महाभारतम्-13-अनुशासनपर्व-169
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सनत्कुमारेण रुद्रंप्रति प्राणिनां मरणसूचकदुर्निमित्तकथनपूर्वकं जिजीविषोस्तत्पहिहारोपायकथनम्।। 1 ।। तथाऽनिच्छोर्भगवद्ध्यानेन शरीरत्यागस्य पारत्रिकसुखसाधनत्वोक्तिः।। 2 ।। तथा भगवज्ज्ञानप्रशंसनपूर्वकं तदुपदेशपरंपराकथनम्।। 3 ।।
`सनत्कुमार उवाच। | 13-169-1x |
अरिष्टानि प्रवक्ष्यामि तत्वेन शृणु तद्भवान्। मध्य उत्तरतस्तात दक्षिणामुखनिष्ठितम्।। | 13-169-1a 13-169-1b |
विद्युत्संस्थानपुरुषं यदि पश्येत मानवः। वर्षत्रयेण जानीयाद्देहन्यासमुपस्थितम्। एतत्फलमंरिष्टस्य शङ्कराहुर्मनीषिणः। | 13-169-2a 13-169-2b 13-169-2c |
शुद्धमण्डमादित्यमरश्मिमथ पश्यतः। वर्षार्धकेन जानीयाद्देहन्यासमुपस्थितम्।। | 13-169-3a 13-169-3b |
छिद्रां चन्द्रमसश्छायां पादावप्यनपश्यतः। संवत्सरेण जानीयाद्देहन्यासमुपस्थितम्।। | 13-169-4a 13-169-4b |
कनीनिकायामशिरःपुरुषं यदि पश्यति। जानीयात्षट्सु मासेषु देहन्यासमुपस्थितम्।। | 13-169-5a 13-169-5b |
कर्णौ पिधाय हस्ताभ्यां शब्दं न शृणुयाद्यदि। विजानीयात्तु मासेन देहन्यासमुपस्थितम्।। | 13-169-6a 13-169-6b |
आमगन्धमुपाघ्राति सुरभिं प्राप्य भास्वरम्। देवतायतनस्थोपि सप्तरात्रेण मृत्युभाक्।। | 13-169-7a 13-169-7b |
सर्वाङ्गधारणावस्थां धारयेत समाहितः। यथा स मृत्युं जयति नान्यथेह महेश्वर। यदि जीवितुमिच्छेत चिरकालं महामुने।। | 13-169-8a 13-169-8b 13-169-8c |
अथ नेच्छेच्चिरं कालं त्यजेदात्मानमात्मना। केवलं चिन्तयानस्तु निष्कलं स निरामयम्।। | 13-169-9a 13-169-9b |
अथ तं निर्विकारं तु प्रकृते परमं शुचिः। पुरुषं देहसाधर्म्यं देहन्यासमुपाश्नुयात्।। | 13-169-10a 13-169-10b |
जाग्रतो हि मयोक्तानि तवारिष्टानि तत्वतः। धारणाच्चैव सर्वाङ्गे मृत्यु जीयात्सुरर्षभ।। | 13-169-11a 13-169-11b |
एकत्वदर्शनं भूयो नानात्वं च निबोध मे। अक्षरं च क्षरं चैव चतुष्टयविधानतः।। | 13-169-12a 13-169-12b |
अव्यक्तादीनि तत्वानि सर्वाण्येव महाद्युते। आहुश्चतुर्विंशतितमं विकारपुरुषान्वितम्।। | 13-169-13a 13-169-13b |
एकत्वदर्शनं चैव नानात्वेन वरं स्मृतम्। पञ्चविंशतिवर्गः स्यादपवर्गोऽजरामरः।। | 13-169-14a 13-169-14b |
स निर्विकारः पुरुषस्तत्वेनैवोपदिश्यते। स एव पञ्चविंशस्तु विकारः पुरुषः स्मृतः।। | 13-169-15a 13-169-15b |
यद्येष निर्विकारः स्यात्तत्वं न तु भवेद्भव। विकारो विद्यमानस्तु तत्वसंज्ञकमुच्यते।। | 13-169-16a 13-169-16b |
यद्योषोऽव्यक्ततां नैति व्यतिरेकान्न संशयः। तथा भवति निस्तत्वस्तथा सत्वस्तथागुणः।। | 13-169-17a 13-169-17b |
विकारगुणसंत्यागात्प्रकृत्यन्यत्वता शुचिः। तदा नानात्वतामेति सर्गहीनोऽपवर्गभाक्।। | 13-169-18a 13-169-18b |
बोध्यमानः प्रबुध्येत समो भवति बुद्धिमान्। अक्षरश्च भवत्येष यथावा च्युतवान्क्षणात्।। | 13-169-19a 13-169-19b |
अव्यक्ताव्यक्तिरुक्ता स्यान्निर्गुणस्य गुणाकरात्। एतदेकत्वनानात्वमक्षरः क्षर एव च।। | 13-169-20a 13-169-20b |
व्याख्यातं तव शूलाङ्क तथारिष्टानि चैव हि। विमोक्षलक्षणं शेषं तदपीह ब्रवीमि ते। यं ज्ञात्वा यतयः प्राप्ताः केवलत्वमनामयम्।। | 13-169-21a 13-169-21b 13-169-21c |
साङ्ख्याश्चाप्यथ योगाश्च दग्धपङ्का गतज्वराः। अमूर्तित्वमनुप्राप्ता निर्गुणा निर्भया भव।। | 13-169-22a 13-169-22b |
विपाप्मानो महादेव मुक्ताः संसारसागरात्। सरणे प्रजनादाने गुणानां प्रकृतिः सदा। परा प्रमत्ता सततमेतावत्कार्यकारणम्।। | 13-169-23a 13-169-23b 13-169-23c |
असच्चैव च सच्चैव कुरुते स पुनः पुनः। चैतन्येन पुराणेन चेतनाचेतनात्परः।। | 13-169-24a 13-169-24b |
यस्तु चेतयते चेतो मनसा चैकबुद्धिकम्। स नैव सन्न चैवासन्सदसन्न च संस्मृतः।। | 13-169-25a 13-169-25b |
व्यतिरिक्तश्च शुद्धश्च सोऽन्यश्चाप्रकृतिस्तथा। उपेक्षकश्च प्रकृतेर्विकारपुरुषः स्मृतः।। | 13-169-26a 13-169-26b |
विकारपुरुषेणैषा संयुक्ता सृजते जगत्। पुनराददते चैव गुणानामन्यथात्मनि।। | 13-169-27a 13-169-27b |
मत्स्योदकात्ससंज्ञातः प्रकृतेरेव कर्मणः। तद्वत्क्षेत्रसहस्राणि स एव प्रकरिष्यति।। | 13-169-28a 13-169-28b |
क्षेत्रप्रलयतज्ज्ञस्तु क्षेत्रज्ञ इति चोच्यते। सयोगो नित्य इत्याहुर्ये जनास्तत्वदर्शिनः।। | 13-169-29a 13-169-29b |
एवमेष ह्यसत्सच्च विकारपुरुषः स्मृतः। विकारापद्यमानं तु विकृतिं प्रवदन्ति नः।। | 13-169-30a 13-169-30b |
यदा त्वेष विकारस्य प्रकृतानिति मन्यते। तदा विकारतामेति विकारान्यत्वतां व्रजेत्।। | 13-169-31a 13-169-31b |
प्रकृत्या च विकारैश्च व्यतिरिक्तो यदा भवेत्। शुचि यत्परमं शुद्धं प्रतिबुद्धं सनातनम्। अयुक्तं निष्कलं शुद्धमव्ययं चाजरामरम्।। | 13-169-32a 13-169-32b 13-169-32c |
समेत्य तेन शुद्धेन बुध्यमानः स भास्वरः। विमोक्षं भजते व्यक्तादप्रबुद्धादचेतनात्।। | 13-169-33a 13-169-33b |
उदुम्बराद्वा मशकः प्रलयान्निर्गतो यथा। तथाऽव्यक्तस्य संत्यागान्निर्ममः पञ्च विंशकः।। | 13-169-34a 13-169-34b |
यथा पुष्करपर्णस्थो जलबिन्दुर्न संश्लिषेत्। तथैवाव्यक्तविषये न लिप्येत्पञ्चविंशकः।। | 13-169-35a 13-169-35b |
आकाश इव निःसङ्गस्तथा सङ्गस्त्था वरः। पञ्चविंशतिमो बुद्धो बुद्धेनि समतां गतः।। | 13-169-36a 13-169-36b |
एतद्धि प्रकृतं ज्ञानं तत्वतश्च समुत्थितम्। पूर्वजेभ्यस्तथोत्पन्नं ब्रह्मजेभ्यस्तथानघ।। | 13-169-37a 13-169-37b |
आदिसर्गो महाबाहो तामसेनावृतं परम्। प्रतिष्टावयवंदेवमभेद्यमजरामरम्।। | 13-169-38a 13-169-38b |
सनकः सनन्दनश्चैवि तृतीयश्च सनातनः। ते विदुः परमं धर्ममव्ययं व्ययधर्षणम्।। | 13-169-39a 13-169-39b |
अव्यक्तात्परमात्सूक्ष्मादव्रणान्मूर्तिसंज्ञकात्। क्षेत्रज्ञो भगवानास्ते नरायणपरायणः।। | 13-169-40a 13-169-40b |
अस्माकं सहजातानामुत्पन्नं ज्ञानमुत्तमम्। एते हि मूर्तिमन्तो वै लोकान्प्रविचरामहे।। | 13-169-41a 13-169-41b |
पुनःपुनः प्रजाता वै तत्रतत्र पिनाकधृक्। द्वन्द्वैर्विरज्यमानस्य ज्ञानमुत्पन्नमुत्तमम्।। | 13-169-42a 13-169-42b |
कपिलान्मूलआचार्यात्तत्वबुद्धिविनिश्चयम्। योगसांख्यमवाप्तं मे कार्त्स्न्येन मुनिसत्तमात्।। | 13-169-43a 13-169-43b |
तेन संबोधिताः शिष्या बहवस्तत्वदर्शिनः। तद्बुद्ध्वा बहवः शिष्या मयाप्येतन्निदर्शिताः।। | 13-169-44a 13-169-44b |
जन्ममृत्युहरं तथ्यं ज्ञानं ज्ञेयं सनातनम्। यज्ज्ञात्वा नानुशोचन्ति तत्वज्ञाना निरिन्द्रियाः।। | 13-169-45a 13-169-45b |
शुद्धबीजमलाश्चैव विपङ्का वै निरक्षराः। स्वतन्त्रास्ते स्वतन्त्रेण सम्मिता निष्कलाः स्मृताः।। | 13-169-46a 13-169-46b |
शाश्वताश्चाव्ययाश्चैव तमोग्राह्याश्च भास्वर। विपाप्मानस्तथा सर्वे सत्वस्थाश्चापि निर्व्रणाः।। | 13-169-47a 13-169-47b |
विमुक्ताः केवलाश्चैव वीतमोहभयास्तथा। अमूर्तास्ते महाभाग सर्वे च विगतज्वराः।। | 13-169-48a 13-169-48b |
हिरण्यनाभस्त्रिशिरास्तथा प्रह्लादभास्करौ। वसुर्विश्वावसुश्चैव सार्धं पञ्चशिखस्तथा।। | 13-169-49a 13-169-49b |
गार्ग्योऽथासुरिरावन्त्यो गौतमो वृत एव च। कात्यायनोऽथ नमुचिर्हरिश्च दमनश्चि ह।। | 13-169-50a 13-169-50b |
एते चान्ये च बहवस्तत्वमेवोपदर्शिताः। केचिन्मुक्ताः स्थिताः केचिच्छन्दतश्चापरे मृताः।। | 13-169-51a 13-169-51b |
दर्शितास्त्रिविधं बन्धं विमोक्षं त्रिविधं तथा। अज्ञानं चैव रागश्च संयोगं प्राकृतं तथा।। | 13-169-52a 13-169-52b |
एतेभ्यो बन्धनं प्रोक्तं विमोक्षमपि मे शृणु। परितस्तावता सम्यक्सम्बन्धो यावता कृतः।। | 13-169-53a 13-169-53b |
कृत्स्नक्षयपरित्यागाद्विमोक्ष इति नः श्रुतिः। निवृत्तः सर्वसङ्गेभ्यः केवलः पुरुषोऽमलः।। | 13-169-54a 13-169-54b |
भीष्म उवाच। | 13-169-55x |
इत्येवमुक्त्वा भगवानीश्वराय महात्मने सनत्कुमारः प्रययावाकाशं समुपाश्रितः | 13-169-55a 13-169-55b |
अनुशासनपर्व-168 | पुटाग्रे अल्लिखितम्। | अनुशासनपर्व-170 |