महाभारतम्-13-अनुशासनपर्व-271
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भीष्मेण युधिष्ठिरंप्रति देवदेवर्षिगिरिनदीतीर्थक्षेत्रादीनां विस्तरेण पृथङ्नामनिर्देशपूर्वकं प्रातःसायं तत्कीर्तनस्य दुरितनिवृत्तिसुकृतप्राप्तिहेतुत्वोत्कीर्तनम्।। 1 ।।
वैशम्पायन उवाच। | 13-271-1x |
शरतल्पगतं भीष्मं पाण्डवोऽथ कुरूद्वहः। युधिष्ठिरो हितं प्रेप्सुरपृच्छत्कल्मषापहम्।। | 13-271-1a 13-271-1b |
युधिष्ठिर उवाच। | 13-271-2x |
किं श्रेयः पुरुषस्येह किं कुर्वन्सुखमेधते। विपाप्मा स भवेत्केन किं वा कल्मषनाशनम्।। | 13-271-2a 13-271-2b |
वैशम्पायन उवाच। | 13-271-3x |
तस्मै शुश्रूषमाणाय भूयः शान्तनवस्तदा। दैवं वंशं यथान्यायमाचष्ट पुरुषर्षभ।। | 13-271-3a 13-271-3b |
भीष्म उवाच। | 13-271-4x |
अयं दैवतवंशो वै ऋषिवंशसमन्वितः। त्रिसन्ध्यं पठितः पुत्र कल्मषापहरः परः।। | 13-271-4a 13-271-4b |
यदह्ना कुरुते पापमिन्द्रियैः पुरुषश्चरन्। बुद्धिपूर्वमबुद्धिर्वा रात्रौ यच्चापि सन्ध्ययोः।। | 13-271-5a 13-271-5b |
मुच्यते सर्वपापेभ्यः कीर्तयन्वै शुचिः सदा। नान्धो न बधिरः काले कुरुते स्वस्तिमान्सदा।। | 13-271-6a 13-271-6b |
तिर्यग्योनिं न गच्छेच्च नरकं सङ्कराणि च। न च दुःखमयं तस्य मरणे स न मुह्यति।। | 13-271-7a 13-271-7b |
देवासुरगकुरुर्देवः सर्वभूतनमस्कृतः। अचिन्त्योथाप्यनिर्देश्यः सर्वप्राणो ह्ययोनिजः।। | 13-271-8a 13-271-8b |
पितामहो जगन्नाथः सावित्री ब्रह्मणः सती। वेदभूरथ कर्ता च विष्णुर्नारायणः प्रभुः।। | 13-271-9a 13-271-9b |
उमापतिर्विरूपाक्षः स्कन्दः सेनापतिस्तथा। विशाखो हुतभुग्वायुश्चन्द्रसूर्यौ प्रभाकरौ।। | 13-271-10a 13-271-10b |
शक्रः शचीपतिर्देवो यमो धूमोर्णया सह। वरुणः सह गौर्या च सह ऋद्ध्या धनेश्वरः।। | 13-271-11a 13-271-11b |
सौम्या गौः सुरभिर्देवी विश्रवाश्च महानृषिः। सङ्कल्पः सागरो गङ्गा स्रवन्त्योऽथ मरुद्गणः।। | 13-271-12a 13-271-12b |
वालखिल्यास्तपःसिद्धाः कृष्णद्वैपायनस्तथा। नारदः पर्वतश्चैव विश्वावसुर्हहाहुहूः।। | 13-271-13a 13-271-13b |
तुम्बुरुश्चित्रसेनश्च देवदूतश्च विश्रुतः। देवकन्या महाभागा दिव्याश्चाप्सरसां गणाः।। | 13-271-14a 13-271-14b |
उर्वशी मेनका रम्भा मिश्रकेशी ह्यलम्बुषा। विश्वाची च घृताची च पञ्चचूडा तिलोत्तमा।। | 13-271-15a 13-271-15b |
आदित्या वसवो रुद्राः साश्विनः पितरोपि च। धर्मः श्रुतं तपो दीक्षा व्यवसायः पितामहः।। | 13-271-16a 13-271-16b |
शर्वर्यो दिवसाश्चैव मारीचः कश्यपस्तथा। शुक्रो बृहस्पतिर्भौमो बुधो राहुः शनैश्चरः।। | 13-271-17a 13-271-17b |
नक्षत्राण्यृतवश्चैव मासाः पक्षाः सवत्सराः। वैनतेयाः समुद्राश्च कद्रुजाः पन्नगास्तथा।। | 13-271-18a 13-271-18b |
शतद्रुश्च विपाशा च चन्द्रभागा सरस्वती। सिन्धुश्च देविका चैव प्रभासं पुष्कराणि च।। | 13-271-19a 13-271-19b |
गङ्गा महानदी वेणा कावेरी नर्मदा तथा। कुलम्पुना विशल्या च करतोयाम्बुवाहिनी।। | 13-271-20a 13-271-20b |
सरयूर्गण्डकी चैव लोहितश्च महानदः। ताम्रारुणा वेत्रवती पर्णाशा गौतमी तथा।। | 13-271-21a 13-271-21b |
गोदावरी च वेण्या च कृष्णवेणा तथाऽद्रिजा। दृषद्वती च कावेरी चक्षुर्मन्दाकिनी तथा।। | 13-271-22a 13-271-22b |
प्रयागं च प्रभासं च पुण्यं नैमिषमेव च। तच्च विश्वेश्वरस्थानं यत्र तद्विमलं सरः।। | 13-271-23a 13-271-23b |
पुण्यतीर्थं सुसलिलं कुरुक्षेत्रं प्रकीर्तितम्। सिन्धूत्तमं तपो दानं जम्बूमार्गमथापि च।। | 13-271-24a 13-271-24b |
हिरण्वती वितस्ता च तथा प्लक्षवती नदी। वेदस्मृतिर्वेदवती मालवाऽथाश्ववत्यपि।। | 13-271-25a 13-271-25b |
भूमिभागास्तथा पुण्या गङ्गाद्वारमथापि च। ऋषिकुल्यास्तथा मेध्या नद्यः सिन्धुवहास्तथा।। | 13-271-26a 13-271-26b |
चर्मण्वती नदी पुण्या कौशिकी यमुना तथा। नदी भीमरथी चैव बाहुदा च महानदी।। | 13-271-27a 13-271-27b |
माहेन्द्रवाणी त्रिदिवा नीलिका च सरस्वती। नन्दा चापरनन्दा च तथा तीर्थमहाह्रदः।। | 13-271-28a 13-271-28b |
गयाऽथ फल्गुतीर्थं च धर्मारण्यं सुरैर्वृतम्। तथा देवनदी पुण्या सरश्च ब्रह्मनिर्मितम्।। | 13-271-29a 13-271-29b |
पुण्यं त्रिलोकविख्यातं सर्वपापहरं शिवम्। हिमवान्पर्वतश्चैव दिव्यौषधिसमन्वितः।। | 13-271-30a 13-271-30b |
विन्ध्यो धातुविचित्राङ्गस्तीर्थवानौषधान्वितः। मेरुर्महेन्द्रो मलयः श्वेतश्च रजतावृतः।। | 13-271-31a 13-271-31b |
शृङ्गवान्मन्दरो नीलो निषधो दर्दुरस्तथा। चित्रकूटोऽञ्जनाभश्च पर्वतो गन्धमादनः।। | 13-271-32a 13-271-32b |
पुण्यः सोमगिरिश्चैव तथैवान्ये महीधराः। दिशश्च विदिशश्चैव क्षितिः सर्वे महीरुहाः।। | 13-271-33a 13-271-33b |
विश्वेदेवा नभश्चैव नक्षत्राणि ग्रहास्तथा। पान्तु नः सततं देवाः कीर्तिताऽकीर्तिता मया।। | 13-271-34a 13-271-34b |
कीर्तयानो नरो ह्येतान्मुच्यते सर्वकिल्बिषैः। स्तुवंश्च प्रतिनन्दंश्च मुच्यते सर्वतो भयात्।। | 13-271-35a 13-271-35b |
सर्वसङ्करपापेभ्यो देवतास्तवनन्दकः। देवतानन्तरं विप्रांस्तपःसिद्धांस्तपोधिकान्।। | 13-271-36a 13-271-36b |
कीर्तितान्कीर्तयिष्यामि सर्वपापप्रमोचनान्। यवक्रीतोऽथ रैम्यश्च कक्षीवानौशिजस्तथा।। | 13-271-37a 13-271-37b |
भृग्वङ्गिरास्तथा कण्वो मेधातिथिरथ प्रभुः। बर्ही च गुणसम्पन्नः प्राचीं दिशमुपाश्रिताः।। | 13-271-38a 13-271-38b |
भद्रां दिशं महाभागा उल्मुचुः प्रमुचुस्तथा। | 13-271-39a |
मुमुचुश्च महाभागः स्वस्त्यात्रेयश्च वीर्यवान्।। | 13-271-39a |
मित्रावरुणयोः पुत्रस्तथाऽगस्त्यः प्रतापवान्। दृढायुश्चोर्ध्वबाहुश्च विश्रुतावृषिसत्तमौ।। | 13-271-40a 13-271-40b |
पश्चिमां दिशमाश्रित्य य एधन्ते निबोध तान्। उषङ्गुः सह सोदर्यैः परिव्याधश्च वीर्यवान्।। | 13-271-41a 13-271-41b |
ऋषिर्दीर्घतमाश्चैव गौतमः काश्यपस्तथा। एकतश्च द्वितश्चैव त्रितश्चैव महानृषिः।। | 13-271-42a 13-271-42b |
अत्रेः पुत्रश्च धर्मात्मा तथा सारस्वतः प्रभुः। उत्तरां दिशमाश्रित्य य एधन्ते निबोध तान्। | 13-271-43a 13-271-43b |
अत्रिर्वसिष्ठः शक्तिश्च पाराशर्यश्च वीर्यवान्। विश्वामित्रो भरद्वाजो जमदग्निस्तथैव च।। | 13-271-44a 13-271-44b |
ऋचीकपुत्रो रामश्च ऋषिरौद्दालकिस्तथा। श्वेतकेतुः कोहलश्च विपुलो देवलस्तथा।। | 13-271-45a 13-271-45b |
देवशर्मा च धौम्यश्च हस्तिकाश्यप एव च। लोमशो नाचिकेतश्च लोमहर्षण एव च।। | 13-271-46a 13-271-46b |
ऋषिरुग्रश्रवाश्चैव भार्गवश्च्यवनस्तथा। एष वै समवायश्च ऋषिदेवसमन्वितः।। | 13-271-47a 13-271-47b |
आद्यः प्रकीर्तितो राजन्सर्वपापप्रमोचनः। नृगो ययातिर्नहुषो यदुः पूरुश्च वीर्यवान्।। | 13-271-48a 13-271-48b |
धुन्धुमारो दिलीपश्च सगरश्च प्रतापवान्। कृशाश्वो यौवनाश्वश्च चित्राश्वः सत्यवांस्तथा।। | 13-271-49a 13-271-49b |
दुष्यन्तो भरतश्चैव चक्रवर्ती महायशाः। पवनो जनकश्चैव तथा दृष्टरथो नृपः।। | 13-271-50a 13-271-50b |
रघुर्नरवरश्चैव तथा दशरथो नृपः। रामो राक्षसहा वीरः शशबिन्दुर्भगीरथः।। | 13-271-51a 13-271-51b |
हरिश्चन्द्रो मरुत्तश्च तथा द?ढरथो नृपः। महोदर्यो ह्यलर्कश्च ऐलश्चैव नराधिपः।। | 13-271-52a 13-271-52b |
करंधमो नरश्रेष्ठः कध्मोरश्च नराधिपः। दक्षोऽम्बरीषः कुकुरो रैवतश्च महायशाः।। | 13-271-53a 13-271-53b |
कुरु संवरणश्चैव मांधाता सत्यविक्रमः। मुचुकुन्दश्च राजर्षिर्जह्नुर्जाह्नविसेवितः।। | 13-271-54a 13-271-54b |
आदिराजः पृथुर्वैन्यो मित्रभानुः प्रियङ्करः। त्रसद्दस्युस्तथा राजा श्वेतो राजर्षिसत्तमः।। | 13-271-55a 13-271-55b |
महाभिषश्च विख्यातो निमी राजा तथाऽष्टकः। आयुः क्षुपश्च राजर्षिः कक्षेयुस्च नराधिपः।। | 13-271-56a 13-271-56b |
प्रतर्दनो दिवोदासः सुदासः कोसलेश्वरः। ऐलो नलश्च राजर्षिर्मनुश्चैव प्रजापतिः।। | 13-271-57a 13-271-57b |
हविध्रश्च पृषध्रश्च प्रतीपः शान्तनुस्तथा। अजः प्राचीनबर्हिश्च तथैक्ष्वाकुर्महायशाः।। | 13-271-58a 13-271-58b |
अनरण्यो नरपतिर्जानुजङ्घस्तथैव च। कक्षसेनश्च राजर्षिर्ये चान्ये चानुकीर्तिताः।। | 13-271-59a 13-271-59b |
कल्यमुत्थाय यो नित्यं सन्ध्ये द्वेऽस्तमयोदये। पठेच्छुचिरनावृत्तः स धर्मफलभाग्भवेत्।। | 13-271-60a 13-271-60b |
देवा देवर्षयश्चैव स्तुता राजर्षयस्तथा। पुष्टिमायुर्यशः स्वर्गं विधास्यन्ति ममेश्वराः।। | 13-271-61a 13-271-61b |
मा विघ्नं मा च मे पापं मा च मे परिपन्थिनः। ध्रुवो जयो मे नित्यः स्यात्परत्र च शुभा गतिः।। | 13-271-62a 13-271-62b |
`पालय त्वं प्रजाः सर्वाः शान्तात्मा त्वनुशासिता। द्वैपायनः स्वयंचक्षुः कृष्णस्तेऽस्तु परायणम्।। | 13-271-63a 13-271-63b |
वैशम्पायन उवाच। | 13-271-64x |
इत्युक्त्वोपासनार्थाय विरराम महामतिः।।' | 13-271-64a |
।। इति श्रीमन्महाभारते अनुशासनपर्वणि दानधर्मपर्वणि एकसप्तत्यधिकद्विशततमोऽध्यायः।। 271 ।। |
अनुशासनपर्व-270 | पुटाग्रे अल्लिखितम्। | अनुशासनपर्व-272 |