महाभारतम्-13-अनुशासनपर्व-221
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ईश्वरेण पार्वतींप्रति प्राणिनामङ्गविकृत्यनपत्यतादिदोषहेतुभूतदुष्कर्मप्रतिपादनम्।। 1 ।।
उमोवाच। | 13-221-1x |
भगवन्देवदेवेश भूतपाल नमोस्तु ते। ह्रस्वाङ्गाश्चैव वक्राङ्गाः कुब्जा वामनकास्तथा।। | 13-221-1a 13-221-1b |
अपरे मानुषा देव दृश्यन्ते कुणिबाहवः। केन कर्मविपाकेन तन्मे शंसितुमर्हसि।। | 13-221-2a 13-221-2b |
महेश्वर उवाच। | 13-221-3x |
ये पुरा मनुजा देवि लोभमोहसमन्विताः। धान्यमानान्विकुर्वन्ति क्रयविक्रयकारणात्।। | 13-221-3a 13-221-3b |
कुलदोषं तदा देवि धृतमानेषु नित्यशः। अर्धापकर्षणं चैव सर्वेषां क्रयविक्रये।। | 13-221-4a 13-221-4b |
अङ्गदोषकरा ये तु परेषां कोपकारणात्। मांसादाश्चैव ये मूर्खा अयथावत्प्रथाः सदा।। | 13-221-5a 13-221-5b |
एवंयुक्तसमाचाराः पुनर्जन्मनि शोभने। ह्रस्वाङ्गा वामनाश्चैव कुब्जाश्चैव भवन्ति ते।। | 13-221-6a 13-221-6b |
उमोवाच। | 13-221-7x |
भगवन्मानुषाः केचिद्दृश्यन्ते मानुषेषु वै। उन्मत्ताश्च पिशाचाश्च पर्यटन्तो यतस्ततः। केन कर्मविपाकेन तन्मे शंसितुमर्हसि।। | 13-221-7a 13-221-7b 13-221-7c |
महेश्वर उवाच। | 13-221-8x |
ये पुरा मनुजा देवि दर्पाहंकारसंयुताः। बहुधा प्रलपन्त्येव हसन्ति च परान्भृशम्।। | 13-221-8a 13-221-8b |
मोहयन्ति परान्भोगैर्मदनैर्लोभकारणात्। वृद्धान्गुरूंश्च ये मूर्खा वृथैवापहसन्ति च। शौण्डा विदग्धाः शास्त्रेषु सदैवानृतवादिनः।। | 13-221-9a 13-221-9b 13-221-9c |
एवंयुक्तसमाचाराः पुनर्जन्मनि शोभने। उन्मत्ताश्च पिशाचाश्च भवन्त्येव न संशयः।। | 13-221-10a 13-221-10b |
उमोवाच। | 13-221-11x |
भगवन्मानुषाः केचिन्निरपत्याः सुदुःखिताः। यतन्तो न लभन्त्येव अपत्यानि यतस्ततः। केन कर्मविपाकेन तन्मे शंसितुमर्हसि।। | 13-221-11a 13-221-11b 13-221-11c |
महेश्वर उवाच। | 13-221-12x |
ये पुरा मनुजा देवि सर्वप्राणिषु निर्दयाः। घ्नन्ति बालांश्च भुञ्जन्ते मृगाणां पक्षिणामपि।। | 13-221-12a 13-221-12b |
गुरुविद्वेषिणश्चैव परपुत्राभ्यसूयकाः। पितृपूजां न कुर्वन्ति यथोक्तां चाष्टकादिभिः।। | 13-221-13a 13-221-13b |
एवंयुक्तसमाचाराः पुनर्जन्मनि शोभने। मानुष्यं वा चिरात्प्राप्य निरपत्या भवन्ति ते। पुत्रशोकयुताश्चापि नास्ति तत्र विचारणा।। | 13-221-14a 13-221-14b 13-221-14c |
उमोवाच। | 13-221-15x |
भगवन्मानुषाः केचित्प्रदृश्यन्ते सुदुःखिताः। उद्वेगवासनिरताः सोद्वेगाश्च यतव्रताः।। | 13-221-15a 13-221-15b |
नित्यं शोकसमाविष्टा दुर्गताश्च तथैव च। केन कर्मविपाकेन तन्मे शंसितुमर्हसि।। | 13-221-16a 13-221-16b |
महेश्वर उवाच। | 13-221-17x |
ये पुरा मनुजा नित्यमुत्क्रोशनपरायणाः। भीषयन्ति परानित्यं विकुर्वन्ति तथैव च।। | 13-221-17a 13-221-17b |
ऋणवृद्धिकराश्चैव दरिद्रेभ्यो यथेष्टतः। ऋणार्थमभिगच्छन्ति सततं वृद्धिरूपकाः।। | 13-221-18a 13-221-18b |
उद्विजन्ते हि तान्दृष्ट्वा धारकाः स्वार्थकारणात्। अतिवृद्धिर्न कर्तव्या दरिद्रेभ्यो यथेष्टतः।। | 13-221-19a 13-221-19b |
ये श्वभिः क्रीडमानाश्च त्रासयन्ति वने मृगान्। प्राणिहिंसां तथा देवि कुर्वन्ति च यतस्ततः।। | 13-221-20a 13-221-20b |
येषां गृहेषु वै श्वानस्त्रासयन्ति वृथा नरान्। एवंयुक्तसमाचाराः कालधर्मगताः पुनः।। | 13-221-21a 13-221-21b |
पीडिता यमदण्डेन निरयस्थाश्चिरं प्रिये। कथञ्चित्प्राप्य मानुष्यं तत्र ते दुःखसंयुताः।। | 13-221-22a 13-221-22b |
कुदेशे दुःखभूयिष्ठे व्याघातशतसङ्कुले। जायन्ते तत्र शोचन्तः सोद्वेगाश्च यतस्ततः।। | 13-221-23a 13-221-23b |
उमोवाच। | 13-221-24x |
भगवन्मानुषाः केचिदैश्वर्यज्ञानसंयुताः। म्लेच्छभूमिषु दृश्यन्ते म्लेच्छैश्वर्यसमन्विताः। केन कर्मविपाकेन तन्मे शंसितुमर्हसि।। | 13-221-24a 13-221-24b 13-221-24c |
महेश्वर उवाच। | 13-221-25x |
ये पुरा मनुजा देवि धनधान्यसमन्विताः। अयथावत्प्रयच्छन्ति श्रद्धावर्जितमेव वा।। | 13-221-25a 13-221-25b |
अपात्रेभ्यश्च ये दानं शौचमङ्गलवर्जिताः। ददत्येव च ये मूर्खाः श्लाघयाऽवज्ञयाऽपि वा।। | 13-221-26a 13-221-26b |
एवंयुक्तसमाचाराः पुनर्जन्मनि शोभने। कुदेशे म्लेच्छभूयिष्ठे दुर्गमे वनसंकटे। म्लेच्छाधिपत्यं सम्प्राप्य जायन्ते तत्रतत्र वै।। | 13-221-27a 13-221-27b 13-221-27c |
उमोवाच। | 13-221-28x |
भगवन्भगनेत्रघ्न मानुषेषु च केचन। क्लीबा नपुंसकाश्चैव दृश्यन्ते षण्डकास्तथा।। | 13-221-28a 13-221-28b |
नीचकर्मरता नीचा नीचसक्यास्तथा भुवि। केन कर्मविपाकेन तन्मे शंसितुमर्हसि।। | 13-221-29a 13-221-29b |
महेश्वर उवाच। | 13-221-30x |
तदहं ते प्रवक्ष्यामि शृणु कल्याणि कारणम्।। | 13-221-30a |
ये पुरा मनुजा भूत्वा घोरकर्मरतास्तथा। पशुपंस्त्वोपगातेन जीवन्ति च रमन्ति च।। | 13-221-31a 13-221-31b |
पुंस्त्वोपघातिनश्चैव नराणां कोपकारणात्। ये धूर्ताः स्त्रीषु गच्छन्ति अयथावद्यथेष्टतः।। | 13-221-32a 13-221-32b |
कामविघ्नकरा ये तु द्वेषपैशुन्यकारणात्। एवंयुक्तसमाचाराः कालधर्मं गतास्तु ते। दण्डिता यमदण्डेन निरयस्थाश्चिरं प्रिये।। | 13-221-33a 13-221-33b 13-221-33c |
यदि चेन्मानुषं जन्म लभेरंस्ते तथाविधाः। क्लीबा वर्षवराश्चैव षण्डकाश्च भवन्ति ते।। | 13-221-34a 13-221-34b |
नीचकर्मपरा लोके निर्लज्जा वीतसम्भ्रमाः। परान्दीनान्बहिष्कृत्य ते भवन्ति स्वकर्मणा।। | 13-221-35a 13-221-35b |
यदि चेत्सम्प्रपश्येरंस्ते मुच्यन्ते हि कल्मषात्। अत्रापि ते प्रमाद्येयुः पतन्ति नरकालये।। | 13-221-36a 13-221-36b |
स्त्रीणामपि तथा देवि यथा पुंसां तु कर्मजम्। इति ते कथितं देवि भूयः श्रोतुं किमिच्छसि।। | 13-221-37a 13-221-37b |
।। इति श्रीमन्महाभारते अनुशासनपर्वणि दानधर्मपर्वणि एकविंशत्यधिकद्विशततमोऽध्यायः।। 221 ।। |
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