महाभारतम्-13-अनुशासनपर्व-229
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महादेवेन देवींप्रति यमनगरतन्मार्गादिप्रतिपादनपूर्वकं पापिनां यातनानुभवप्रकारादिप्रतिपादनम्।। 1 ।।
उमोवाच। | 13-229-1x |
भगवन्सर्वलोकेश त्रिपुरार्दन शङ्कर। कीदृशा यमदण्डास्ते कीदृशाः परिचारकाः।। | 13-229-1a 13-229-1b |
कथं मृतास्ते गच्छन्ति प्राणिनो यमसादनम्। कीदृशं भवनं तस्य कथं दण्डयति प्रजाः। एतत्सर्वं महादेव श्रोतुमिच्छाम्यहं प्रभो।। | 13-229-2a 13-229-2b 13-229-2c |
महेश्वर उवाच। | 13-229-3x |
शृणु कल्याणि तत्सर्वं यत्ते देवि मनःप्रियम्। दक्षिणस्यां दिशि शुभे यमस्य सदनं महत्।। | 13-229-3a 13-229-3b |
विचित्रं रमणीयं च नानाभावसमन्वितम्। पितृभिः प्रेतसङ्घैश्च यमदूतैश्च सन्ततम्।। | 13-229-4a 13-229-4b |
प्राणिसङ्घैश्च बहुभिः कर्मवश्यैश्च पूरितम्। तत्रास्ते दण्डयन्नित्यं यमो लोकहिते रतः।। | 13-229-5a 13-229-5b |
मायया सततं वेत्ति प्राणिनां यच्छुभाशुभम्। मायया संहरंस्तत्र प्राणिसङ्घान्यतस्ततः।। | 13-229-6a 13-229-6b |
तस्य मायामयाः पाशा न वेद्यन्ते सुरासुरैः। को हि मानुषमात्रस्तु देवस्य चरितं महत्।। | 13-229-7a 13-229-7b |
एवं संवसतस्तस्य यमस्य परिचारकाः। गृहीत्वा सन्नयन्त्येव प्राणिनः क्षीणकर्मणः। यन केनापदेशेन त्वपदेशसमुद्भवाः।। | 13-229-8a 13-229-8b 13-229-8c |
कर्मणा प्राणिनो लोके उत्तमाधममध्यमाः। यथार्हं तान्समादाय नयन्ति यमसादनम्।। | 13-229-9a 13-229-9b |
धार्मिकानुत्तमान्विद्धि स्वर्गिणस्ते यथाऽमराः। त्रिषु जन्म लभन्ते ये कर्मणा मध्यमाः स्मृताः। तिर्यङनरकगन्तारो ह्यधमास्ते नराधमाः।। | 13-229-10a 13-229-10b 13-229-10c |
पन्थानस्त्रिविधा दृष्टाः सर्वेषां गतजीविनाम्। रमणीयं निराबाधं दुर्दर्शमिति नामतः।। | 13-229-11a 13-229-11b |
रमणीयं तु यन्मार्गं पताकाध्वजसङ्कुलम्। धूपितं सिक्तसंमृष्टं पुष्पमालाभिसङ्कुलम्।। | 13-229-12a 13-229-12b |
मनोहरं सुखस्पर्शं गच्छतामेव तद्भवेत्। निराबाधं यथालोकं सुप्रशस्तं कृतं भवेत्।। | 13-229-13a 13-229-13b |
तृतीयं यत्तु दुर्दर्शं दुर्गन्धि तमसा वृतम्। परुषं शर्कराकीर्णं श्वदंष्ट्राबहुलं भृशम्। किमिकीटसमाकीर्णं भजतामतिदुर्गमम्।। | 13-229-14a 13-229-14b 13-229-14c |
मार्गैरेवं त्रिभिर्नित्यमुत्तमाधममध्यमान्। सन्नयन्ति यथा काले तन्मे शृणु शुचिस्मिते।। | 13-229-15a 13-229-15b |
उत्तमानन्तकाले तु यमदूताः सुसंवृताः। नयन्ति सुखमादाय रमणीयपथेन वै।। | 13-229-16a 13-229-16b |
उमोवाच। | 13-229-17x |
भगवंस्तत्र चात्मानं त्यक्तदेहं निराश्रयम्। अदृश्यं कथमादाय सन्नयन्ति यमान्तिकम्।। | 13-229-17a 13-229-17b |
महेश्वर उवाच। | 13-229-18x |
शृणु भामिनि तत्स्रवं त्रिविधं देहकारणम्। कर्मवश्यं भोगवश्यं दुःखवश्यमिति प्रिये।। | 13-229-18a 13-229-18b |
मानुषं कर्मवश्यं स्याद्द्वितीयं भोगसाधनम्। तृतीयं यातनावश्यं शरीरं मायया कृतम्। यमलोके न चान्यत्र दृश्यते यातनायुतम्।। | 13-229-19a 13-229-19b 13-229-19c |
शरीरैर्यातनावश्यैर्जीवानामुच्य भामिनि। नयन्ति यामिकास्तत्र प्राणिनो मायया मृतान्।। | 13-229-20a 13-229-20b |
मध्यमान्योधवेषेण मध्यमेन पथा तथा।। | 13-229-21a |
चण्डालवेषास्त्वधमान्गृहीत्वा भर्त्सतर्जनैः। आकर्षन्तस्तथा पाशैर्दुर्दर्शेन नयन्ति तान्।। | 13-229-22a 13-229-22b |
त्रिविधानेवमादाय नयन्ति यमसादनम्। धर्मासनगतं दक्षं भ्राजमानं स्वतेजसा।। | 13-229-23a 13-229-23b |
लोकपालं सहाध्यक्षं तथैव परिषद्गतम्। दर्शयन्ति महाभागे यामिकास्तं निवेद्य ते।। पूजयन्दण्डयन्कांश्चित्तेषां शृण्वञ्शुभाशुभम्। व्याहृतो बहुसाहस्रैस्तत्रास्ते सततं यमः।। | 13-229-24a 13-229-24b 13-229-24b 13-229-24c |
गतानां तु यमस्तेषामुत्तमानभिपूजया। अभिसङ्गृह्य विधिवत्पृष्ट्वा स्वागतकौशलम्। प्रस्तुत्य तत्कृतं तेषां लोकं संदिशते यमः।। | 13-229-26a 13-229-26b 13-229-26c |
यमेनैवमनुज्ञाता यान्ति पश्चात्त्रिविष्टपम्।। | 13-229-27a |
मध्यमानां यमस्तेषां श्रुत्वा कर्म यथातथम्। जायन्तां मानुषेष्वेव इति संदिशते च तान्।। | 13-229-28a 13-229-28b |
अधमान्पाशसंयुक्तान्यमो नावेक्षते गतान्। यमस्य पुरुषा घोराश्चण्डालसमदर्शनाः। यातनाः प्रापयन्त्येताँल्लोकपालस्य शासनात्।। | 13-229-29a 13-229-29b 13-229-29c |
भिन्दन्तश्च तुदन्तश्च प्रकर्षन्तो यतस्ततः। क्रोशन्तः पातयन्त्येतान्मिथो गर्तेष्ववाङ्मुखान्।। | 13-229-30a 13-229-30b |
संयामिन्यः शिलास्तेषां पतन्ति शिरसि प्रिये। अयोमुखाः कङ्कवला भक्षयन्ति सुदारुणाः।। | 13-229-31a 13-229-31b |
असिपत्रवने घोरे चारयन्ति तथा परान्। तीक्ष्णदंष्ट्रास्तथा श्वानः कांश्चित्तत्र ह्यदन्ति वै।। | 13-229-32a 13-229-32b |
तत्र वैतरणी नाम नदी ग्राहसमाकुला। दुष्प्रवेशा च घोरा च मूत्रशोणितवाहिनी। तस्यां सम्मज्जयन्त्येते तृषितान्पाययन्ति तान्।। | 13-229-33a 13-229-33b 13-229-33c |
आरोपयन्ति वै कांश्चित्तत्र कण्टकशल्मलीम्। यन्त्रचक्रेषु तिलवत्पीड्यन्ते तत्र केचन।। | 13-229-34a 13-229-34b |
अङ्गरेषु च दह्यन्ते तथा दुष्कृतकारिणः। कुम्भीपाकेषु पच्यन्ते पच्यन्ते सिकतासु वै।। | 13-229-35a 13-229-35b |
पाट्यन्ते तरुवच्छस्त्रैः पापिनः क्रकचादिभिः। भिद्यन्ते भागशः शूलैस्तुद्यन्ते सूक्ष्मसूचिभिः।। | 13-229-36a 13-229-36b |
एवं त्वया कृतं दोषं तदर्थं दण्डनं त्विति। वाचैव घोषयन्ति स्म दण्डमानाः समन्ततः।। | 13-229-37a 13-229-37b |
एवं ते यातनां प्राप्य शरीरैर्यातनाशयैः। प्रसहन्तश्च तद्दुःखं स्मरन्तः स्वापराधजम्।। | 13-229-38a 13-229-38b |
क्रोशन्तश्च रुद्रन्तश्च न मुच्यन्ते कथञ्चन। स्मरन्तस्तत्र तप्यन्ते पापमात्मकृतं भृशम्।। | 13-229-39a 13-229-39b |
एवं बहुविधा दण्डा भुज्यन्ते पापकारिभिः। यातनाभिश्च पच्यन्ते नरकेषु पुनः पुनः।। | 13-229-40a 13-229-40b |
अपरे यातनां भुक्त्वा मुच्यन्ते तत्र किल्बिषात्। पापदोषक्षयकरा यातनाः संस्मृता नृणाम्। बहुतप्तं यथा लोहममलं तत्तथा भवेत्।। | 13-229-41a 13-229-41b 13-229-41c |
।। इति श्रीमन्महाभारते अनुशासनपर्वणि दानधर्मपर्वणि एकोनत्रिंशदधिकद्विशततमोऽध्यायः।। 229 ।। |
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