महाभारतम्-13-अनुशासनपर्व-081
← अनुशासनपर्व-080 | महाभारतम् त्रतयोदशपर्व महाभारतम्-13-अनुशासनपर्व-081 वेदव्यासः |
अनुशासनपर्व-082 → |
भीष्मेण युधिष्ठिरम्प्रति स्त्रीणां प्रशंसनम्।। 1 ।।
भीष्म उवाच। | 13-81-1x |
प्राचेतसस्य वचनं कीर्तयन्ति पुराविदः। यस्याः किञ्चिन्नाददते ज्ञातयो न स विक्रयः।। | 13-81-1a 13-81-1b |
अर्हणं तत्कुमारीणामानृशंस्यं व्रतं च तत्। सर्वं च प्रतिदेयं स्यात्कन्यायै तदशेषतः।। | 13-81-2a 13-81-2b |
पितृभिर्भ्रातृभिश्चापि श्वशुरैरथ देवरैः। पूज्या लालयितव्याश्च बहुकल्याणमीप्सुभिः।। | 13-81-3a 13-81-3b |
यदि वै स्त्री न रोचेत पुमांसं न प्रमोदयेत्। अप्रमोदात्पुनः पुंसः प्रजनो न प्रवर्धते।। | 13-81-4a 13-81-4b |
पूज्या लालयितव्याश्च स्त्रियो नित्यं जनाधिप। स्त्रियो यत्र च पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवताः।। | 13-81-5a 13-81-5b |
अपूजिताश्च यत्रैताः सर्वास्तत्राफलाः क्रियाः। तदा चैतत्कुलं नास्ति यदा शोचन्ति जामयः।। | 13-81-6a 13-81-6b |
जामीशप्तानि गेहानि निकृत्तानीव कृत्यया। नैव भान्ति न वर्धन्ते श्रिया हीनानि पार्थिव।। | 13-81-7a 13-81-7b |
स्त्रियः पुंसां परिददौ मनुर्जिगमिषुर्दिवम्। अबलाः स्वल्पकौपीनाः सुहृद सत्यजिष्णवः।। | 13-81-8a 13-81-8b |
ईर्षवो मानकामाश्च चण्डाश्च सुहृदोऽबुधाः। स्त्रियस्तु मानमर्हन्ति ता मानयत मानवाः।। | 13-81-9a 13-81-9b |
स्त्रीप्रत्ययो हि वै धर्मो रतिभोगाश्च केवलाः। परिचर्या नमस्कारास्तदायत्ता भवन्तु वः।। | 13-81-10a 13-81-10b |
उत्पादनमपत्यस्य जातस्य परिपालनम्। प्रीत्यर्थं लोकयात्रायाः पश्यत स्त्रीनिबन्धनम्।। | 13-81-11a 13-81-11b |
सम्मान्यमानाश्चैता हि सर्वकार्याष्यवाप्स्यथ। विदेहराजदुहिता चात्र श्लोकमगायत।। | 13-81-12a 13-81-12b |
नास्ति यज्ञः स्त्रियाः कश्चिन्न श्राद्धं नोप्रवासकम्। धर्मः स्वभर्तृशुश्रूषा तया स्वर्गं जयन्त्युत।। | 13-81-13a 13-81-13b |
पिता रक्षति कौमारे भर्ता रक्षति यौवने। पुत्राश्च स्थाविरे भावे न स्त्री स्वातन्त्र्यमर्हति।। | 13-81-14a 13-81-14b |
श्रिय एताः स्त्रियो नाम सत्कार्या भूतिमिच्छता। लालिताऽनुगृहीता च श्रीः स्त्री भवति भारतः।। | 13-81-15a 13-81-15b |
।। इति श्रीमन्महाभारते अनुशासनपर्वणि दानधर्मपर्वणि एकाशीतितमोऽध्यायः।। 81 ।। |
13-81-1 प्राचेतसस्य दक्षस्य। ज्ञातयः कन्यापक्षीयाः। स्वयं नाददतेऽथ च कन्यालङ्कारर्थमिच्छन्ति स विक्रयो न भवतीत्यर्थ।। 13-81-4 न रोचेत न कामयेत। न प्रमोदयेत्कामुकं न कुर्यात्। प्रजनः सन्ततिः।। 13-81-8 स्वल्प ईषदायासेन अपनेयः कौपीनो गुह्याच्छादनपटो यासाम्। सद्योहार्या इत्यर्थः। सुहृदः सौहार्दयुक्ताः।। 13-81-9 बुध्यन्त इत्यबुधाः।। 13-81-10 स्त्रीप्रत्ययः स्त्रीहेतुकः।। 13-81-12 अत्र स्त्रीधर्मविषये।।
अनुशासनपर्व-080 | पुटाग्रे अल्लिखितम्। | अनुशासनपर्व-082 |