महाभारतम्-13-अनुशासनपर्व-240
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महेश्वरेण पार्वतींप्रति भद्राश्वकेतुमालादिखण्डानां सुकृतिनां भोगस्थानत्वादिप्रतिपादनम्।। 1 ।।
उमोवाच। | 13-240-1x |
भगवन्सर्वभूतेश पुरमर्दन शङ्कर। श्रुतं पापकृतां दुःखं यमलोके वरप्रद।। | 13-240-1a 13-240-1b |
श्रोतुमिच्छाम्यहं देव नृणां सुकृतकर्मणाम्। कथं ते भुञ्जते भोगान्स्वर्गलोके महेश्वर।। | 13-240-2a 13-240-2b |
कथिताः कीदृशा लोका नृणां सुकृतकारिणाम्। एतन्मे वद देवश श्रोतुं कौतूहलं हि मे।। | 13-240-3a 13-240-3b |
महेश्वर उवाच। | 13-240-4x |
शृणु कल्याणि तत्सर्वं यत्त्वमिच्छसि शोभने। विविधाः पुण्यलोकास्ते कर्मकर्मण्यतां गताः।। | 13-240-4a 13-240-4b |
मेरुं हि कनकात्मानं परितः सर्वतोदिशम्। भद्राश्चः केतुमालश्च उत्तराः कुरवस्तथा।। | 13-240-5a 13-240-5b |
जम्बूवनादयः स्वर्गा इत्येते कर्मवर्जिताः। तेषु भूत्वा स्वयंभूताः प्रदृश्यते यतस्ततः।। | 13-240-6a 13-240-6b |
योजनानां सहस्रं च एकैकं मानमात्रया। नित्यं पुष्पफलोपेतास्तत्र वृक्षाः समन्ततः।। | 13-240-7a 13-240-7b |
आसक्तवस्त्राभरणाः सर्वे कनकसन्निभाः। द्विरेफाश्चाण्डजास्तत्र प्रवालमणिसन्निभाः। विचित्राश्च मनोज्ञाश्च कूजितैः शोभयन्ति तान्।। | 13-240-8a 13-240-8b 13-240-8c |
कुशेशयवनच्छन्ना नलिन्यश्च मनोरमाः। तत्र वान्त्यनिला नित्यं दिव्यगन्धसुखावहाः।। | 13-240-9a 13-240-9b |
सर्वे चाम्लानमाल्याश्च विरजोम्बरसंवृताः। एवं बहुविधा देवि दिव्यभोगाः सुखावहाः।। | 13-240-10a 13-240-10b |
स्त्रियश्च पुरुषाश्चैव सर्वे सुकृतकारिणः। रमन्ते तत्र चान्योन्यं कामरागसमन्विताः।। | 13-240-11a 13-240-11b |
मनोहरा महाभागाः सर्वे ललितकुण्डलाः। एवं तत्र स्थिता मर्त्याः प्रमदाः प्रियदर्शनाः।। | 13-240-12a 13-240-12b |
नानाभावसमायुक्ता यौवनस्थाः सदैव तु। युवत्यः कल्पितास्तत्र कामजा ललितास्तथा।। | 13-240-13a 13-240-13b |
मनोनुकूला मधुरा भोगिनामुपकल्पिताः। प्रमदाश्चोद्भवन्त्येव स्वर्गलोके यथा तथा।। | 13-240-14a 13-240-14b |
एवंविधाः स्त्रियश्चात्र पुरुषाश्च परस्परम्। रमन्ते चेन्द्रियैः स्वस्थै शरीरैर्भोगसंस्कृतैः।। | 13-240-15a 13-240-15b |
कामहर्षगुणाभ्यस्ता नान्ये क्रोधादयः प्रिये। क्षुत्पिपासा न चास्त्यत्रि गात्रक्लेशाश्च शोभने।। | 13-240-16a 13-240-16b |
सर्वतो रमणीयं च सर्वत्र कुसुमान्विम्। यावत्पुण्यफलं तावद्दृश्यन्ते बहुसङ्गताः। निरन्तरं भोगयुता रमन्ते स्वर्गवासिनः।। | 13-240-17a 13-240-17b 13-240-17c |
तत्र भोगान्यथायोगं भुक्त्वा पुण्यक्षयात्पुनः। नश्यन्ति जायमानास्ते शरीरैः सहसा प्रिये।। | 13-240-18a 13-240-18b |
स्वर्गलोकात्परिभ्रष्टाः जायन्ते मानुषे पुनः। पूर्वपुण्यावशेषेण विशिष्टाः सम्भवन्ति ते।। | 13-240-19a 13-240-19b |
एषा स्वर्गगतिः प्रोक्ता पृच्छन्त्यास्तव भामिनि। अत ऊर्ध्वं पदान्यष्टौ सुकर्माणि शृणु प्रिये। भोगयुक्तानि पुण्यानि उच्छ्रितानि परस्परम्।। | 13-240-20a 13-240-20b 13-240-20c |
विद्याधराः किम्पुरुषा यक्षगन्धर्वकिन्नराः। अप्सरोदानवा देवा यथाक्रममुदाहृताः।। | 13-240-21a 13-240-21b |
तेषु स्थानेषु जायन्ते प्राणिनाः पुण्यकर्मणः। तेषामपि च ये लोकाः स्वर्गलोकोपमाः स्मृताः।। | 13-240-22a 13-240-22b |
स्वर्गवत्तत्र ते भोगान्भुञ्जते च रमन्ति च। रूपसत्वबलोपेताः सर्वे दीर्घायुषस्तथा।। | 13-240-23a 13-240-23b |
तेषां सर्वक्रियारम्भो मानुषेष्विव दृश्यते। अतिमानुषमैश्वर्यमत्र मायाबलात्कृतम्।। | 13-240-24a 13-240-24b |
जराप्रसूतिमरणं तेषु स्थानेषु दृश्यते। गुणा दोषाश्च सन्त्यत्र आकाशगमनं तथा।। | 13-240-25a 13-240-25b |
अन्तर्धानं बलं सत्त्वमायुश्च चिरजीवितम्। तपोविशेषज्जायन्ते यथा कर्म्णि भामिनि।। | 13-240-26a 13-240-26b |
देवलोके प्रवृत्तिस्तु तेषामेव विधीयते। न तथा देवलोको हि तद्विशिष्टाः सुराः स्मृताः।।i | 13-240-27a 13-240-27b |
तत्र भोगमनिर्देश्यममृतत्वं च विद्यते। विमानगमनं नित्यमप्सरोगणसेवितम्।। | 13-240-28a 13-240-28b |
एवमन्यच्च तत्कर्म देवताभ्यो विशिष्यते। प्रत्यक्षं तव तत्सर्वं देवलोके प्रवर्तनम्।। | 13-240-29a 13-240-29b |
तस्मान्न वर्णये देवि विदितं च त्वया शुभे। तत्सर्वं सुकृतैरेव प्राप्यते चोत्तमं पदम्।। | 13-240-30a 13-240-30b |
।। इति श्रीमन्महाभारते अनुशासनपर्वणि दानधर्मपर्वणि चत्वारिंशदधिकद्विशततमोऽध्यायः।। 240 ।। |
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