महाभारतम्-13-अनुशासनपर्व-024
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नारदेन गरुडंप्रति विनतायाः कद्रूदास्यनिवेदनम्।। 1 ।। तच्छ्रवणखिन्नेन तेन कद्रूंप्रति स्वमातुर्दास्यान्मोचनयाचना ।। 2 ।। कद्र्वा गरुडंप्रत्यमृतानयने मातुर्दास्यान्मोचनोक्तिः।। 3 ।।
`भीष्म उवाच। | 13-24-1x |
ततः कद्रूर्हसन्ती च विनतां धर्मचारिणीम्। दासीवत्प्रेषयामास सा च सर्वं चकार तत्।। | 13-24-1a 13-24-1b |
न विवर्णा न संक्षुब्धा न च क्रुद्धा न दुःखिता। प्रेष्यकर्म चकारास्या विनता कमलेक्षणा।। | 13-24-2a 13-24-2b |
इमा दिशश्चतस्रोऽस्याः प्रेष्यभावेन वर्तिताः। अथ स्म वैनतेयं वै बलदर्पौ समीयतुः।। | 13-24-3a 13-24-3b |
तं दर्पवशमापन्नं परिधावन्तमन्तिकात्। ददर्श नारदो राजन्देवर्षिर्दर्पसंयुतम्।। | 13-24-4a 13-24-4b |
तमब्रवीच्च देवर्षिर्नारदः प्रहसन्निव। किं दर्पवशमापन्नो न वै पश्यसि मातरम्।। | 13-24-5a 13-24-5b |
बलेन दृप्तः सततमहंमानकृतः सदा। दासीं पन्नगराजस्य मातुरन्तर्गृहे सतीम्।। | 13-24-6a 13-24-6b |
तमब्रवीद्वैनतेयः कर्म किं तन्महामते। जनयित्री मयि सुते जाता दासी तपस्विनी।। | 13-24-7a 13-24-7b |
अथाब्रवीदृषिर्वाक्यं दीव्यती विजिता खग। निकृत्या पन्नगेन्द्रस्य मात्रा पुत्रैः पुरा सह।। | 13-24-8a 13-24-8b |
गरुड उवाच। | 13-24-9x |
कथं जिता निकृत्या सा भगवञ्जननी मम। ब्रूहि तन्मे यथावृत्तं श्रुत्वा वेत्स्ये ततः परम्।। | 13-24-9a 13-24-9b |
ततस्तस्य यथावृत्तं सर्वं तन्नारदस्तदा। आचख्यौ भरतश्रेष्ठ यथावृत्तं पतत्रिणः।। | 13-24-10a 13-24-10b |
तच्छ्रुत्वा वैनतेयस्य कोपो हृदि समाविशत्। जगर्हे पन्नगान्सर्वान्मात्रा सह परंतपः।। | 13-24-11a 13-24-11b |
ततस्तु रोषाद्दुःखाच्च तूर्णमुत्पत्यक पक्षिराट्। जगाम यत्र माताऽस्य कृच्छ्रे महति वर्तते।। | 13-24-12a 13-24-12b |
तत्रापश्यत्ततो दीनां जटिलां मलिनां कृशाम्। तोयदेन प्रतिच्छन्नां सूर्याभामिव मातरम्।। | 13-24-13a 13-24-13b |
तस्य दुःखाच्च रोषाच्च नेत्राभ्यामश्रु चास्रवत्। प्रवृत्तिं च निवृत्तिं च पौरुषे प्रतितस्थुषः।। | 13-24-14a 13-24-14b |
अनुक्त्वा मातरं किञ्चित्पतत्रिवरपुङ्गवः। कद्रूमेव स धर्मात्मा वचनं प्रत्यभाषत।। | 13-24-15a 13-24-15b |
यदि धर्मेण मे माता जिता यद्यप्यधर्मतः। ज्येष्ठा त्वमसि मे माता धर्मः सर्वः स मे मतः।। | 13-24-16a 13-24-16b |
इयं तु मे स्यात्कृपणा मयि पुत्रेऽम्ब दुःखिता। अनुजानीहि तां साधु मत्कृते धर्मदर्शिनि।। | 13-24-17a 13-24-17b |
कद्रूः श्रुत्वास्य तद्वाक्यं वैनतेयस्य धीमतः। उवाच वाक्यं दुष्प्रज्ञा परीता दुःखमूर्च्छिता।। | 13-24-18a 13-24-18b |
नाहं तव न ते मातुर्वैनतेय कथञ्चन। कुर्यां प्रियमनिष्टात्मा मां ब्रवीषि खग द्विजा।। | 13-24-19a 13-24-19b |
तां तदा ब्रुवतीं वाक्यमनिष्टं क्रूरभाषिणीम्। दारुणां सूनृताभिस्तामनुनेतुं प्रचक्रमे।। | 13-24-20a 13-24-20b |
गरुड रुवाच। | 13-24-21x |
ज्येष्ठा त्वमसि कल्याणि मातुर्मे भामिनि प्रिया। सोदर्यी मम चासि त्वं ज्येष्ठा माता न संशयः।। | 13-24-21a 13-24-21b |
कद्रूरुवाच। | 13–24-22x |
विहङ्गम यथाकामं गच्छ कामगम द्विज। सूनृताभिस्त्वया माता नादासी शक्यमण्डज।। | 13-24-22a 13-24-22b |
अमृतं यद्याहरेस्त्वं विहङ्गं जननीं तव। अदासीं मम पश्येमां वैनतेय न संशयः।। | 13-24-23a 13-24-23b |
।। इति श्रीमन्महाभारते अनुशासनपर्वणि दानधर्मपर्वणि चतुर्विंशोऽध्यायः।। 24 ।। |
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