महाभारतम्-13-अनुशासनपर्व-251
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महेश्वरेण मुनिगणान्प्रति श्रीकृष्णस्य वंशानुक्रमवर्णनपूर्वकं गुणगणानुवर्णनम्।। 1 ।।
ऋषय ऊचुः। | 13-251-1x |
पिनाकिन्भगनेत्रघ्न सर्वलोकनमस्कृत। महात्म्यं वासुदेवस्य श्रोतुमिच्छाम शङ्कर।। | 13-251-1a 13-251-1b |
ईश्वर उवाच। | 13-251-2x |
पितामहादपि वरः शाश्वतः पुरुषो हरिः। कृष्णो जाम्बूनदाभासो व्यभ्रे सूर्य इवोदितः।। | 13-251-2a 13-251-2b |
दशबाहुर्महातेजा देवतारिनिषूदनः। श्रीवत्साङ्को हृषीकेशः सर्वदैवतपूजितः।। | 13-251-3a 13-251-3b |
ब्रह्मा तस्योदरभवस्तस्याहं च शिरोभवः। शिरोरुहेभ्यो ज्योतींषि रोमभ्यश्च सुराऽसुराः।। | 13-251-4a 13-251-4b |
ऋषयो देहसम्भूतास्तस्य लोकाश्च शाश्वताः। पितामहगृहं साक्षात्सर्वदेवगृहं च सः।। | 13-251-5a 13-251-5b |
सोस्याः पृथिव्याः कृत्स्नायाः स्रष्टा त्रिभुवनेश्वरः। संहर्ता चैव भूतानां स्थावरस्य चरस्य च।। | 13-251-6a 13-251-6b |
स हि देववरः साक्षाद्देवनाथः परन्तपः। सर्वज्ञः सर्वसंश्लिष्टः सर्वगः सर्वतोमुखः।। | 13-251-7a 13-251-7b |
परमात्मा हृषीकेशः सर्वव्यापी महेश्वरः। न तस्मात्परमं भूतं त्रिषु लोकेषु किञ्चन।। | 13-251-8a 13-251-8b |
सनातनो वै मधुहा गोविन्द इति विश्रुतः। स सर्वान्पार्तिवान्सङ्ख्ये घातयिष्यति मानदः।। | 13-251-9a 13-251-9b |
सुरकार्यार्थमुत्पन्नो मानुषं वपुरास्थितः। न हि देवगणाः शक्तास्त्रिविक्रमविनाकृताः।। | 13-251-10a 13-251-10b |
भुवने देवकार्याणि कर्तुं नायकवर्जिताः। नायकः सर्वभूतानां सर्वदेवनमस्कृतः।। | 13-251-11a 13-251-11b |
एतस्य देवनाथस्य देवकार्यपरस्य च। ब्रह्मभूतस्य सततं ब्रह्मर्षिशरणस्य च।। | 13-251-12a 13-251-12b |
ब्रह्मा वसति गर्भस्थः शरीरे सुखसंस्थितः। शर्वः सुखं संश्रितश्च् शरीरे सुखसंस्थितः।। | 13-251-13a 13-251-13b |
सर्वाः सुखं संश्रिताश्च शरीरे तस्य देवताः। स देवः पुण्डरीकाक्षः श्रीगर्भः श्रीसहोषितः।। | 13-251-14a 13-251-14b |
शार्ङ्गचक्रायुधः खड्गी सर्वनागरिपुध्वज। उत्तमेन स शीलेन दमेन च शमेन च।। | 13-251-15a 13-251-15b |
पराक्रमेण वीर्येण वपुषा दर्शनेन च। आरोहेणि प्रमाणेन धैर्येणार्जवसम्पदा।। | 13-251-16a 13-251-16b |
आनृशंस्येन रूपेण बलेन न समन्वितः। अस्त्रैः समुदितः सर्वैर्दिव्यैरद्भुतदर्शनैः।। | 13-251-17a 13-251-17b |
योगमायः सहस्राक्षो निरपायो महामनाः। वीरो मित्रजनश्लाघी ज्ञातिबन्धुजनप्रियः।। | 13-251-18a 13-251-18b |
क्षमावांश्चानहंवादी ब्रह्मण्यो ब्रह्मनायकः। भयहर्ता भयार्तानां मित्राणां नन्दिवर्धनः।। | 13-251-19a 13-251-19b |
शरण्यः सर्वभूतानां दीनानां पालने रतः। श्रुतवानर्थसम्पन्नः सर्वभूतनमस्कृतः।। | 13-251-20a 13-251-20b |
समाश्रितानां वरदः शत्रूणामपि धर्मवित्। नीतिज्ञो नीतिसम्पन्नो ब्रह्मवादी जितेन्द्रियः।। | 13-251-21a 13-251-21b |
भवार्थमिह देवानां बुद्ध्या परमया युतः। प्राजापत्ये शुभे मार्गे मानवे धर्मसंस्कृते।। | 13-251-22a 13-251-22b |
समुत्पत्स्यति गोविन्दो मनोर्वंशे महात्मनः। अङ्गो नाम मनोः पुत्रो अन्तर्धामा ततः परः।। | 13-251-23a 13-251-23b |
अन्तर्धाम्नो हविर्धामा प्रजापतिरनिन्दितः। प्राचीनबर्हिर्भविता हविर्धाम्नः सुतो महान्।। | 13-251-24a 13-251-24b |
तस्य प्रचेतःप्रमुखा भविष्यन्ति दशात्मजाः। प्राचेतसस्तथा दक्षो भवितेह प्रजापतिः।। | 13-251-25a 13-251-25b |
दाक्षायण्यास्तथाऽऽदित्यो मनुरादित्यतस्तथा। मनोश्च वंशज इला सुद्युम्नश्च भविष्यति।। | 13-251-26a 13-251-26b |
बुधात्पुरूरवाश्चापि तस्मादायुर्भविष्यति। नहुषो भविता तस्माद्ययातिस्तस्य चात्मजः।। | 13-251-27a 13-251-27b |
यदुस्तस्मान्महासत्वः क्रोष्टा तस्माद्भविष्यति। क्रोष्टुश्चैव महान्पुत्रो वृजिनीवान्भविष्यति।। | 13-251-28a 13-251-28b |
वृजिनीवतश्च भविता उषङ्गुरपराजितः। उषङ्गोर्भविता पुत्रः शूरश्चित्ररथस्तथा। तस्य त्ववरजः पुत्रः शूरो नाम भविष्यति।। | 13-251-29a 13-251-29b 13-251-29c |
तेषां विख्यातवीर्याणां चरित्रगुणशालिनाम्। यज्वनां सुविशुद्धानां वंशे ब्राह्मणसम्मते।। | 13-251-30a 13-251-30b |
स शूरः क्षत्रियश्रेष्ठो महावीर्यो महायशाः। स्ववंशविस्तरकरं जनयिष्यति मानदः। वसुदेव इति ख्यातं पुत्रमानकदुन्दुभिम्।। | 13-251-31a 13-251-31b 13-251-31c |
तस्य पुत्रश्चतुर्बाहुर्वासुदेवो भविष्यति।। दाता ब्राह्मणसत्कर्ता ब्रह्मभूतो द्विजप्रियः। | 13-251-32a 13-251-32b |
राज्ञो मागधसंरुद्धान्मोक्षयिष्यति यादवः।। | 13-251-33a |
जरासन्धं तु राजानं निर्जित्य गिरिगह्वरे। सर्वपार्थिवरत्नाढ्यो भविष्यति स वीर्यवान्।। | 13-251-34a 13-251-34b |
पृथिव्यामप्रतिहतो वीर्येण च भविष्यति। विक्रमेण च सम्पन्नः सर्वपार्थिवपार्थिवः।। | 13-251-35a 13-251-35b |
शूरसेनेषु भूत्वा स द्वारकायां वसन्प्रभुः। पालयिष्यति गां देवीं विजित्य नयवित्सदा।। | 13-251-36a 13-251-36b |
तं भवन्तः समासाद्य वाङ्भाल्यैरर्हणैर्वरैः। अर्चयन्तु यथान्यायं ब्रह्माणमिव शाश्वतम्।। | 13-251-37a 13-251-37b |
यो हि मां द्रष्टुमिच्छेत ब्रह्माणं च पितामहम्। द्रष्टव्यस्तेन भगवान्वासुदेवः प्रतापवान्।। | 13-251-38a 13-251-38b |
दृष्टे तस्मिन्नहं दृष्टो न मेऽत्रास्ति विचारणा। पितामहो वा देवेश इति वित्त तपोधनाः।। | 13-251-39a 13-251-39b |
स यस्य पुण्डरीकाक्षः प्रीतियुक्तो भविष्यति। तस्य देवगणः प्रीतो ब्रह्मपूर्वो भविष्यति।। | 13-251-40a 13-251-40b |
यश्च तं मानवे लोके संश्रयिष्यति केशवम्। तस्य कीर्तिर्जयश्चैव स्वर्गश्चैव भविष्यति।। | 13-251-41a 13-251-41b |
धर्माणां देशिकः साक्षात्स भविष्यति धऱ्मिभाक्। धर्मवद्भिः स देवेशो नमस्कार्यः सदोद्यतैः।। | 13-251-42a 13-251-42b |
धर्म एव परो हि स्यात्तस्मिन्नभ्यर्चिते विभौ। सहि देवो महातेजाः प्रजाहितचिकीर्षया।। | 13-251-43a 13-251-43b |
धर्मार्थं पुरुषव्याघ्र ऋषिकोटीः ससर्ज ह। ताः सृष्टास्तेन विभुना पर्वते गन्धमादने।। | 13-251-44a 13-251-44b |
सनत्कुमारप्रमुखास्तिष्ठन्ति तपसाऽन्विताः। तस्मात्स वाग्मी धर्मज्ञो नमस्यो द्विजपुङ्गवाः।। | 13-251-45a 13-251-45b |
दिवि श्रेष्ठो हि भगवान्हरिर्नारायणः प्रभुः। वन्दितो हि स वन्देत मानितो मानयीत च। अर्हितश्चार्हयेन्नित्यं पूजितः प्रतिपूजयेत्।। | 13-251-46a 13-251-46b 13-251-46c |
दृष्टः पश्येदहरहः संश्रितः प्रतिसंश्रयेत्। अर्चितश्चार्चयेन्नित्यं स देवो द्विजसत्तमाः।। | 13-251-47a 13-251-47b |
एतत्तस्यानवद्यस्य विष्णोर्वै परमं व्रतम्। आदिदेवस्य महतः सज्जनाचरितं सदा।। | 13-251-48a 13-251-48b |
भुवनेऽभ्यर्चितो नित्यं देवैरपि सनातनः। अभयेनानुरूपेणि युज्यन्ते तमनुव्रताः।। | 13-251-49a 13-251-49b |
कर्मणा मनसा वाचा स नमस्यो द्विजैः सदा। यत्नवद्भिरुपस्थाय द्रष्टव्यो देवकीसुतः।। | 13-251-50a 13-251-50b |
एष वोऽभिहितो मार्गो मया वै मुनिसत्तमाः। तं दृष्ट्वा सर्वशो देवं दृष्टाः स्युः सुरसत्तमाः।। | 13-251-51a 13-251-51b |
महावराहं तं देवं सर्वलोकपितामहम्। अहं चैव नमस्यामि नित्यमेव जगत्पतिम्।। | 13-251-52a 13-251-52b |
तत्र च त्रितयं दृष्टं भविष्यति न संशयः। समस्ता हि वयं देवास्तस्य देहे वसामहे।। | 13-251-53a 13-251-53b |
तस्य चैवाग्रजो भ्राता सिताद्रिनिचयप्रभः। हली बल इति ख्यातो भविष्यति धराधरः।। | 13-251-54a 13-251-54b |
त्रिशिरास्तस्य दिव्यश्च सातकुम्भमयो द्रुमः। ध्वजस्तृणेन्द्रो देवस्य भविष्यति रथाश्रितः।। | 13-251-55a 13-251-55b |
शिरो नागैर्महाभोगैः परिकीर्णं महात्मभिः। भविष्यति महाबाहोः सर्वलोकेश्वरस्य च।। | 13-251-56a 13-251-56b |
चिन्तितानि समेष्यन्ति शस्त्राण्यस्त्राणि चैव ह। अनन्तश्च स अवोक्तो भगवान्हरिरव्ययः।। | 13-251-57a 13-251-57b |
समादिष्टश्च विबुधैर्दर्शय त्वमिति प्रभो। सुपर्णो यस्य वीर्येण कश्यपस्यात्मजो बली। अन्तं नैवाशकद्द्रष्टुं देवस्य परमात्मनः।। | 13-251-58a 13-251-58b 13-251-58c |
स च शेषो विचरते परया वै मुदा युतः। अन्तर्वसति भोगेन परिरभ्य वसुन्धराम्।। | 13-251-59a 13-251-59b |
य एव विष्णुः सोऽनन्तो भगवान्वसुधाधरः। यो रामः स हृषीकेशो योच्युतः स धराधरः।। | 13-251-60a 13-251-60b |
तावुभौ पुरुषव्याघ्रौ दिव्यौ दिव्यपराक्रमौ। द्रष्टव्यौ माननीयौ च चक्रलाङ्गलधारिणौ।। | 13-251-61a 13-251-61b |
एष वोऽनुग्रहः प्रोक्तो मया पुण्यस्तपोधनाः। यद्भवन्तो यदुश्रेष्ठं पूजयेयुः प्रयत्नतः।। | 13-251-62a 13-251-62b |
।। इति श्रीमन्महाभारते अनुशासनपर्वणि दानधर्मपर्वणि एकपञ्चाशदधिकद्विशततमोऽध्यायः।। 251 ।। |
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