महाभारतम्-13-अनुशासनपर्व-136
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भीष्मेण युधिष्ठिरंप्रत्य श्विन्यादिनक्षत्रेषु श्राद्धकरणस्य फलविशेषकथनम्।। 1 ।।
भीष्म उवाच। | 13-136-1x |
यमस्तु यानि श्राद्धानि प्रोवाच शशबिन्दवे। तानि मे शृणु काम्यानि नक्षत्रेषु पृथक्पृथक्।। | 13-136-1a 13-136-1b |
श्राद्धं यः कृत्तिकायोगे कुर्वीत सततं नरः। अग्नीनाधाय सापत्यो यजेत विगतज्वरः।। | 13-136-2a 13-136-2b |
अपत्यकामो रोहिण्यां तेजस्कामो मृगोत्तमे। क्रूरकर्मा ददच्छ्राद्धमार्द्रायां मानवो भवेत्।। | 13-136-3a 13-136-3b |
कृषिभागी भवेन्मर्त्यः कुर्वञ्श्राद्धं पुनर्वसौ। पुष्टिकामोऽथ पुष्येण श्राद्धमीहेत मानवः।। | 13-136-4a 13-136-4b |
आश्लेषायां ददच्छ्राद्धं धीरान्पुत्रान्प्रजायते। ज्ञातीनां तु भवेच्छ्रेष्ठो मघासु श्राद्धमावपन्।। | 13-136-5a 13-136-5b |
फल्गुनीषु ददच्छ्राद्धं सुभगः श्राद्धदो भवेत्। अपत्यभागुत्तरासु हस्तेन फलभाग्भवेत्।। | 13-136-6a 13-136-6b |
चित्रायां तु ददच्छ्राद्धं लभेद्रूपवतः सुतान्। स्वातियोगे पितॄनर्च्य वाणिज्यमुपजीवति।। | 13-136-7a 13-136-7b |
बहुपुत्रो विशाखासु पुत्रमीनहन्भवेन्नरः। अनुराधासु कुर्वाणो राज्यचक्रं प्रवर्तयेत्।। | 13-136-8a 13-136-8b |
आधिपत्यं व्रजेन्मर्त्यो ज्येष्ठायामपवर्जयन्। नरः कुरुकुलश्रेष्ठ ऋद्धो दमपुरःसरः।। | 13-136-9a 13-136-9b |
मूले त्वारोग्यमृच्छेत यशोऽषाढासु चोत्तमम्। उत्तरासु त्वषाढासु वीतशोकश्चरेन्महीम्।। | 13-136-10a 13-136-10b |
श्राद्धं त्वभिजितौ कुर्वन्विद्यां श्रेष्ठामवाप्नुयात्। श्रवणेषु ददच्छ्राद्धं प्रेत्य गच्छेत्स तद्गतिम्।। | 13-136-11a 13-136-11b |
राज्यभागी धनिष्ठायां भवेत नियतं नरः। नक्षत्रे वारुणे कुर्वन्भिषक्सिद्धिमवाप्नुयात्।। | 13-136-12a 13-136-12b |
पूर्वप्रोष्ठपदाः कुर्वन्बहून्विन्दत्यजाविकान्। उत्तरासु प्रकुर्वाणो विन्दो गाः सहस्रशः।। | 13-136-13a 13-136-13b |
बहुकुप्यकृतं वित्तं विन्दते रेवतीं श्रितः। अश्विनीष्वश्वान्विन्देत भरणीष्वायुरुत्तमम्।। | 13-136-14a 13-136-14b |
इमं श्राद्धविधिं श्रुत्वा शशबिन्दुस्तथाऽकरोत्। अक्लेसेनाजयच्चापि महीं सोऽनुशशास ह।। | 13-136-15a 13-136-15b |
।। इति श्रीमन्महाभारते अनुशासनपर्वणि दानधर्मपर्वणि षट्त्रिंशदधिकशततमोऽध्यायः।। 136 ।। |
13-136-3 आर्द्रायां मानदो भवेदिति थ.पाठः।। 13-136-6 फलभाक् इष्टार्थभाक्।। 13-136-12 वारुणे शतभिषजि।। 13-136-14 अश्वांश्चाश्वयुजेवेत्तीति ध.पाठः।।
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