महाभारतम्-13-अनुशासनपर्व-196
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महेश्वरेण देवादीन्प्रति गोप्रशंसनम्।। 1 ।।
[महेश्वर उवाच। | 13-196-1x |
सारमुद्धृत्य युष्माभिः साधुधर्म उदाहृतः। धर्मगुह्यमिदं मत्तः शृणुध्वं सर्व एव ह।। | 13-196-1a 13-196-1b |
येषां धर्माश्रिता बुद्धिःक श्रद्दधानाश्च ये नराः। तेषां स्यादुपदेष्टव्यः सरहस्यो महाफलः।। | 13-196-2a 13-196-2b |
निरुद्विग्नस्तु यो दद्यान्मासमेकं गवाह्निकम्। एकभक्तं तथाऽश्नीयाच्छ्रूयतां तस्य यत्फलम्।। | 13-196-3a 13-196-3b |
इमा गावो महाभागाः पवित्रं परमं स्मृताः। त्रीन्लोकान्धानयन्ति स्म सदेवासुरमानुपान्।। | 13-196-4a 13-196-4b |
तासु चैव महापुण्यं शुश्रूषा च महाफलम्। अहन्यहनि धर्मेण युज्यते वै गवाह्निकः।। | 13-196-5a 13-196-5b |
मया ह्येता ह्यनुज्ञाताः पूर्वमासन्कृते युगे। ततोऽहमनुनीतो वै ब्रह्मणा पद्मयोनिना।। | 13-196-6a 13-196-6b |
तस्माद्व्रजस्थानगतस्तिष्ठत्युपरि मे वृषः। रमेऽहं सह गोभिश्च तस्मात्पूज्याः सदैव ताः।। | 13-196-7a 13-196-7b |
महाप्रभावा वरदा वरं दद्युरुपासिताः। ता गावोऽस्यानुमन्यन्ते सर्वकर्मसु युत्फलम्।। | 13-196-8a 13-196-8b |
तस्य तत्र चतुर्भागो यो ददाति गवाह्निकम्।।] | 13-196-9a |
।। इति श्रीमन्महाभारते अनुशासनपर्वणि दानधर्मपर्वणि षण्णवत्यधिकशततमोऽध्यायः।। 196 ।। |
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