महाभारतम्-13-अनुशासनपर्व-256
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भीष्मेण युधिष्ठिरंप्रति ब्राह्मणमहिमप्रशंसनपूर्वकं तेषां पूज्यत्वादिकथनम्।। 1 ।।
युधिष्ठिर उवाच। | 13-256-1x |
के पूज्याः के नमस्कार्या कथं वर्तेत केषु च। किमाचारः कीदृशेषु पितामह न रिष्यते।। | 13-256-1a 13-256-1b |
भीष्म उवाच। | 13-256-2x |
ब्राह्मणानां परिभवः सादयेदपि देवताः। ब्राह्मणांस्तु नमस्कृत्य युधिष्ठिर न रिष्यते।। | 13-256-2a 13-256-2b |
ते पूज्यास्ते नमस्कार्या वर्तेथास्तेषु पुत्रवत्। ते हि लोकानिमान्सर्वान्धारयन्ति मनीषिणः।। | 13-256-3a 13-256-3b |
ब्राह्मणाः सर्वलोकानां महान्तो धर्मसेतवः।। धनत्यागाभिरामास्चि वाक्सङ्गमधुराश्च ये।। | 13-256-4a 13-256-4b |
रमणीयाश्च भूतानां नियमेन धृतव्रताः। प्रणेतारश्च कोशानां शास्त्राणां च यशस्विनः।। | 13-256-5a 13-256-5b |
तपो येषां धनं नित्यं वाक्चैव विपुलं बलम्। प्रसवाश्चैव धर्माणां धर्मज्ञाः सूक्ष्मदर्शिनः।। | 13-256-6a 13-256-6b |
धर्मकामाः स्थिता धर्मे सुकृतैर्धर्मसेवतः। यान्समाश्रित्य तिष्ठन्ति प्रजाः सर्वाश्चतुर्विधाः।। | 13-256-7a 13-256-7b |
पन्थानः सर्वनेतारो यज्ञवाहाः सनातनाः। पितृपैतामहीं गुर्वीमुद्वहन्ति धुरं सदा।। | 13-256-8a 13-256-8b |
धुरि ये नावसीदन्ति विषमे सद्धया इव। पितृदेवातिथिमुखा हव्यकव्याग्रभोजिनः।। | 13-256-9a 13-256-9b |
भोजनादेव लोकांस्त्रींस्त्रायन्ते महतो भयात्। दीपः सर्वस्य लोकस्य चक्षुश्चक्षुष्मतामपि।। | 13-256-10a 13-256-10b |
सर्वशिल्पादिनिधयो निपुणाः सूक्ष्मदर्शिनः। गतिज्ञाः सर्वभूतानामध्यात्मगतिचिन्तकाः।। | 13-256-11a 13-256-11b |
आदिमध्यावसानानां ज्ञातारश्छिन्नसंशयाः। परावरविशेषज्ञा गन्तारः परमां गतिम्।। | 13-256-12a 13-256-12b |
विमुक्ता धूतपाप्मानो निर्द्वन्द्वा निष्परिग्रहाः। मानार्हा मानिता नित्यं ज्ञानविद्भिर्महात्मभिः।। | 13-256-13a 13-256-13b |
चन्दने मलपङ्के च भोजनेऽभोजने समाः। समं येषां दुकूलं च शाणक्षौमाजिनानि च।। | 13-256-14a 13-256-14b |
तिष्ठेयुरप्यभुञ्जाना बहूनि दिवसान्यपि। शोषयेयुश्च गात्राणि स्वाध्यायैः संयतेन्द्रियाः।। | 13-256-15a 13-256-15b |
अदैवं दैवतं कुर्युर्दैवतं चाप्यदैवतम्। लोकानन्यान्सृजेयुस्ते लोकपालांश्च कोपिताः।। | 13-256-16a 13-256-16b |
अपेयः सागरो येषामपि सापान्महात्मनाम्। येषां कोपाग्निरद्यापि दण्डके नोपशाम्यति।। | 13-256-17a 13-256-17b |
देवानामपि ये देवाः कारणं कारणस्य च। प्रमामस्य प्रमाणं च तस्मान्नाभिभवेद्बुधः।। | 13-256-18a 13-256-18b |
तेषां वृद्धाश्च बालाश्च सर्वे सन्मार्गदर्शिनः। तपोविद्याविशेषात्तु मानयन्ति परस्परम्।। | 13-256-19a 13-256-19b |
अविद्वान्ब्राह्मणो देवः पात्रं वै पावनं महत्। विद्वान्भूयस्तरो देवः पूर्णसागरसन्निभः।। | 13-256-20a 13-256-20b |
अविद्वांश्चैव विद्वांश्च ब्राह्मणो दैवतं महत्। प्रणीतश्चाप्रणीतश्च यथाऽग्निर्दैवतं महत्।। | 13-256-21a 13-256-21b |
श्मशाने ह्यपि तेजस्वी पावको नैव दुष्यति। हविर्यज्ञे च विधिवद्भूय एवाभिशोभते।। | 13-256-22a 13-256-22b |
एवं यद्यप्यनिष्टेषु वर्तते सर्वकर्मसु। सर्वथा ब्राह्मणो मान्यो दैवतं विद्धि तत्परम्।। | 13-256-23a 13-256-23b |
।। इति श्रीमन्महाभारते अनुशासनपर्वणि दानधर्मपर्वणि षट्पञ्चाशदधिकद्विशततमोऽध्यायः।। 256 ।। |
13-256-1 किमाचारः कथं धर्मः कीदृशेषु न रिष्यते इति क.पाठः।। 13-256-16 अदैवं दैवतं कुर्युर्भस्म कुर्युश्च ते जगत् इति क.थ.पाठः।।
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