महाभारतम्-13-अनुशासनपर्व-056
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भीष्मेण युधिष्ठिरम्प्रति स्त्रीणां भार्यात्वेन परिग्रहयोग्यताप्रतिपादकनारदमार्कण्डेयसंवादानुवादः।। 1 ।।
`मार्कण्डेय उवाच। | 13-56-1x |
श्रुतं बहुविधं वृत्तं कन्यकानां महामते। इच्छामि योषितां श्रोतुं धर्माधर्मौ परिग्रहे।। | 13-56-1a 13-56-1b |
नारद उवाच। | 13-56-2x |
अष्टौ भार्यागमा धर्म्या नराणां दारकर्मणि। प्रेत्येह च हिता यास्तु सपुत्रा हव्यकव्यदाः।। | 13-56-2a 13-56-2b |
साध्वी पाणिगृहीता या कौमारी पाणिवर्जिता। भ्रातृभार्या स्वभार्येति प्रसूयेत्पुत्रमौरसम्।। | 13-56-3a 13-56-3b |
मार्कण्डेय उवाच। | 13-56-4x |
त्रयो भार्यागमा ज्ञेया यत्र धर्मो न नश्यति। पञ्चान्याः पश्चिमा ब्रूहि भार्यास्तासां च ये सुताः।। | 13-56-4a 13-56-4b |
नारद उवाच। | 13-56-5x |
सगोत्रभार्या क्रीता च परभार्या च कारिता। गतागता च या भार्या आश्रमादाहृता च या।। | 13-56-5a 13-56-5b |
एता भार्यागमाः पञ्च पुनर्भार्या भवन्ति याः। एता भार्या नृणां गम्यास्तत्पुत्रा हव्यकव्यदाः।।' | 13-56-6a 13-56-6b |
।। इति श्रीमन्महाभारते अनुशासनपर्वणि दानधर्मपर्वणि षट्पञ्चाशोऽध्यायः।। 56 ।। |
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