महाभारतम्-13-अनुशासनपर्व-063
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भीष्मेण युधिष्ठिरम्प्रति हिंसाभावेपि ब्रह्महत्याप्राप्तिप्रतिपादकव्यासवचनानुवादः।। 1 ।।
युधिष्ठिर उवाच। | 13-63-1x |
इदं मे तत्त्वतो राजन्वक्तुमर्हसि भारत। अहिंसयित्वाऽपि कथं ब्रह्महत्या विधीयते।। | 13-63-1a 13-63-1b |
भीष्म उवाच। | 13-63-2x |
व्यासमामन्त्र्य राजेन्द्र पुरा यत्पृष्टवानहम्। तत्तेऽहं सम्प्रवक्ष्यामि तदिहैकमनाः शृणु।। | 13-63-2a 13-63-2b |
चतुर्थस्त्वं वसिष्ठस्य तत्त्वमाख्याहि मे मुने। अहिंसयित्वा केनेह ब्रह्महत्या विधीयते।। | 13-63-3a 13-63-3b |
इति पृष्टो मया राजन्पराशरशरीरजः। अब्रवीन्निपुणो धर्मे निःसंशयमनुत्तमम्।। | 13-63-4a 13-63-4b |
ब्राह्मणं स्वयमाहूय भिक्षार्थे कृशवृत्तिनम्। ब्रूयान्नास्तीति यः पश्चात्तं विद्याद्ब्रह्मघातिनम्।। | 13-63-5a 13-63-5b |
मध्यस्थस्येह विप्रस्य योऽनूचानस्य भारत। वृत्तिं हरति दुर्बुद्धिस्तं विद्याद्ब्रह्मघातिनम्।। | 13-63-6a 13-63-6b |
गोकुलस्य तृषार्तस्य जलार्थमभिधावतः। उत्पादयति यो विघ्नं तं विद्या** ह्मघातिनम्।। | 13-63-7a 13-63-7b |
यः प्रवृत्तां श्रुतिं सम्यकू शास्त्र वा मुनिभिः कृतम्। दूषयत्यनभिज्ञाय तं विद्याद्ब्रह्मघातिनम्।। | 13-63-8a 13-63-8b |
आत्मजां रूपसम्पन्नां महतीं सदृशे वरे। न प्रयच्छति यः कन्यां तं विद्याद्ब्रह्मधातिनम्।। | 13-63-9a 13-63-9b |
अधर्मनिरतो मूढो मिथ्या यो वै द्विजातिषु। दद्यान्मर्मातिगं शोकं तं विद्याद्ब्रह्मघातिनम्।। | 13-63-10a 13-63-10b |
चक्षुषा विप्रहीणस्य पङ्गुलस्य जडस्य वा। हरेत यो वै सर्वस्वं तं विद्या *** घातिनम्।। | 13-63-11a 13-63-11b |
आश्रमे वा वने वाऽपि ग्रामे वा यदि वा पुरे। अग्निं समुत्सृजेन्मोहात्तं विद्याद्ब्रह्मघातिनम्।। | 13-63-12a 13-63-12b |
।। इति श्रीमन्महाभारते अनुशासनपर्वणि दानधर्मपर्वणि त्रिषष्टितमोऽध्यायः।। 63 ।। |
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