महाभारतम्-13-अनुशासनपर्व-049
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वैशम्पानेन जनमेजयंप्रति द्वैपायनादिभिर्युधिष्ठिरम्प्रत्युक्तमहादेवमहिमानुवादः।। 1 ।।
वैशम्पायन उवाच। | 13-49-1x |
महायोगी तु तं प्राह कृष्णद्वैपायनो मुनिः। पठस्व पुत्र भद्रं ते प्रीयतां ते महेश्वरः।। | 13-49-1a 13-49-1b |
पुरा पुत्र मया मेरौ तप्यता परमं तपः। पुत्रहेतोर्महाराज स्तव एषोऽनुकीर्तितः।। | 13-49-2a 13-49-2b |
लब्धवानीप्सितं काममहं वै पाण्डुनन्दन। तथा त्वमपि शर्वाद्धि सर्वान्कामानवाप्स्यसि।। | 13-49-3a 13-49-3b |
कपिलश्च ततः प्राह साङ्ख्यर्षिर्देवसम्मतः। मया जन्मान्यनेकानि भक्त्या चाराधितो भवः। प्रीतश्च भगवाञ्ज्ञानं ददौ मम भवान्तकम्।। | 13-49-4a 13-49-4b 13-49-4c |
चारुशीर्षस्ततः प्राह शक्रस्य दयितः सखा। आलम्बायन इत्येवं विश्रुतः करुणात्मकः।। | 13-49-5a 13-49-5b |
मया गोकर्णमासाद्य तपस्तप्त्वा शतं समाः। अयोनिजानां दान्तानां धर्मज्ञानां सुवर्चसाम्।। | 13-49-6a 13-49-6b |
अजराणामदुःखानां शतवर्षसहस्रिणाम्। लब्धं पुत्र शतं शर्वात्पुरा पाण्डुनृपात्मज।। | 13-49-7a 13-49-7b |
वाल्मीकिश्चाह भगवान्युधिष्ठिरमिदं वचः। विवादे साग्निमुनिभिर्ब्रह्मघ्नो वै भवानिति।। | 13-49-8a 13-49-8b |
उक्तः क्षणेन चाविष्टस्तेनाधर्मेण भारत। सोऽहमीशानमनघममोघं शरणं गतः।। | 13-49-9a 13-49-9b |
मुक्तश्चास्मि ततः पापैस्ततो दुःखविनाशनः। आह मां त्रिपुरघ्नो वै यशस्तेऽग्र्यं भविष्यति।। | 13-49-10a 13-49-10b |
जामदग्न्यश्च कौन्तेयमिदं धर्मभृतांवरः। ऋषिमध्ये स्थितः प्राह ज्वलन्निव दिवाकरः।। | 13-49-11a 13-49-11b |
पितृविप्रवधेनाहमार्तो वै पाण्डवाग्रज। शुचिर्भूत्वा महादेवं गतोस्मि शरणं नृप।। | 13-49-12a 13-49-12b |
नामभिश्चास्तुवं देवं ततस्तुष्टोऽभवद्भवः। परशुं च ततो देवो दिव्यान्यस्त्राणि चैव मे।। | 13-49-13a 13-49-13b |
पापं च ते न भविता अजेयश्च भविष्यसि। न ते प्रभविता मृत्युरजरश्च भविष्यसि।। | 13-49-14a 13-49-14b |
आह मां भगवानेवं शिखण्डी शिवविग्रहः। तदवाप्तं च मे सर्वं प्रसादात्तस्य धीमतः।। | 13-49-15a 13-49-15b |
विश्वामित्रस्तदोवाच क्षत्रियोऽहं तदाऽभवम्। ब्राह्मणोऽहं भवानीति मया चाराधितो भवः। तत्प्रसादान्मया प्राप्तं ब्राह्मण्यं दुर्लभं महत्।। | 13-49-16a 13-49-16b 13-49-16c |
असितो देवलश्चैव प्राह पाण्डुसुतं नृपम्।। | 13-49-17a |
शापाच्छक्रस्य कौन्तेय विभो धर्मोऽनशत्तदा। तन्मे धर्मं यशश्चाग्र्यमायुश्चैवाददत्प्रभुः।। | 13-49-18a 13-49-18b |
ऋषिर्गृत्समदो नाम शक्रस्य दयितः सखा। प्राहाजमीढं भगवान्बृहस्पतिसमद्युतिः।। | 13-49-19a 13-49-19b |
वरिष्ठो नाम भगवांश्चाक्षुषस्य मनोः सुतः। शतक्रतोरचिन्त्यस्य सत्रे वर्षसहस्रिके।। | 13-49-20a 13-49-20b |
वर्तमानेऽब्रवीद्वाक्यं साम्नि ह्युच्चारिते मया। रथन्तरे द्विजश्रेष्ठ न सम्यगिति वर्तते।। | 13-49-21a 13-49-21b |
समीक्षस्व पुनर्बुद्ध्या पापं त्यक्त्वा द्विजोत्तम। अयज्ञवाहिनं पापमकार्षीस्त्वं सुदुर्मते।। | 13-49-22a 13-49-22b |
एवमुक्त्वा महाक्रोधः प्राह शम्भुं पुनर्वचः। प्रज्ञया रहितो दुःखी नित्यभीतो वनेचरः।। | 13-49-23a 13-49-23b |
दशवर्षसहस्राणि दशाष्टौ च शतानि च। नष्टपानीयपवने मृगैरन्यैश्च वर्जिते।। | 13-49-24a 13-49-24b |
अयज्ञीयद्रुमे देशे रुरुसिंहनिषेविते। भविता त्वं मृगः क्रूरो महादुःखसमन्वितः।। | 13-49-25a 13-49-25b |
तस्य वाक्यस्य निधने पार्थ जातो ह्यहं मृगः। ततो मां शरणं प्राप्तं प्राह योगी महेश्वरः।। | 13-49-26a 13-49-26b |
अजरश्चामरश्चैव भविता दुखवर्जितः। साम्यं ममास्तु ते सौख्यं युवयोर्वर्धतां क्रतुः।। | 13-49-27a 13-49-27b |
अनुग्रहानेवमेष करोति भगवान्विभुः। अयं धाता विधाता च सुखदुःखे च सर्वदा।। | 13-49-28a 13-49-28b |
अचिन्त्य एष भगवान्कर्मणा मनसा गिरा। न मे तात युधिश्रेष्ठ विद्यया पण्डितः समः।। | 13-49-29a 13-49-29b |
वासुदेवस्तदोवाच पुनर्मतिमतांवरः। सुवर्णाक्षो महादेवस्तपसा तोषितो मया।। | 13-49-30a 13-49-30b |
ततोऽथ भगवानाह प्रीतो मा वै युधिष्ठिर। अर्थात्प्रियतरः कृष्ण मत्प्रसादाद्भविष्यसि।। | 13-49-31a 13-49-31b |
अपराजितश्च युद्धेषु तेजश्चैवानलोपमम्। एवं सहस्रशश्चान्यान्महादेवो वरं ददौ।। | 13-49-32a 13-49-32b |
मणिमन्थेऽथ शैले वै पुरा सम्पूजितो मया। वर्षायुतासहस्राणां सहस्रं शतमेव च।। | 13-49-33a 13-49-33b |
ततो मां भगवान्प्रीत इदं वचनमब्रवीत्। वरं वृणीष्व भद्रं ते यस्ते मनसि वर्तते।। | 13-49-34a 13-49-34b |
ततः प्रणम्य शिरसा इदं वचनमब्रवम्। यदि प्रीतो महादेवो भक्त्या परमया प्रभुः।। | 13-49-35a 13-49-35b |
नित्यकालं तवेशान भक्तिर्भवतु मे स्थिरा। एवमस्त्विति भगवांस्तत्रोक्त्वान्तरधीयत।। | 13-49-36a 13-49-36b |
जैगीषव्य उवाच। | 13-49-37x |
ममाष्टगुणमैश्वर्यं दत्तं भगवता पुरा। यत्नेनान्येन बलिना वाराणस्यां युधिष्ठिर।। | 13-49-37a 13-49-37b |
गर्ग उवाच। | 13-49-38x |
चतुःषष्ट्यङ्गमददत्कलाज्ञानं ममाद्भुतम्। सरस्वत्यास्तटे तुष्टो मनोयज्ञेन पाण्डव।। | 13-49-38a 13-49-38b |
तुल्यं मम सहस्रं तु सुतानां ब्रह्मवादिनाम्। आयुश्चैव सपुत्रस्य संवत्सरशतायुतम्।। | 13-49-39a 13-49-39b |
पराशर उवाच। | 13-49-40x |
प्रसाद्येह पुरा शर्वं मनसाऽचिन्तयं नृप। महातपा महातेजा महायोगी महायशाः।। | 13-49-40a 13-49-40b |
वेदव्यासः श्रियावासो ब्राह्मणः करुणान्वितः। अप्यसावीप्सितः पुत्रो मम स्याद्वै महेश्वरात्।। | 13-49-41a 13-49-41b |
इति मत्वा हृदि मतं प्राह मां सुरसत्तमः। मयि सम्भावना यास्याः फलात्कृष्णो भविष्यति।। | 13-49-42a 13-49-42b |
सावर्णस्य मनोः सर्गे सप्तर्षिश्च भविष्यति। वेदानां च स वै वक्ता कुरुवंशकरस्तथा।। | 13-49-43a 13-49-43b |
इतिहासस्य कर्ता च पुत्रस्ते जगतो हितः। भविष्यति महेन्द्रस्य दयितः स महामुनिः।। | 13-49-44a 13-49-44b |
अजरश्चामरश्चैव पराशर सुतस्तव। एवमुक्त्वा स भगवांस्तत्रैवान्तरधीयत। युधिष्ठिर महायोगी वीर्यवानक्षयोऽव्ययः।। | 13-49-45a 13-49-45b 13-49-45c |
माण्डव्य उवाच। | 13-49-46x |
अचोरश्चोरशङ्कायां शूले भिन्नो ह्यहं तदा।। | 13-49-46a |
तत्रस्थेन स्तुतो देवः प्राह मां वै नरेश्वर। मोक्षं प्राप्स्यसि शूलाच्च जीविष्यसि समार्बुदम्।। | 13-49-47a 13-49-47b |
रुजा शूलकृता चैव न ते विप्र भविष्यति। आधिभिर्व्याधिभिश्चैव वर्जितस्त्वं भविष्यति।। | 13-49-48a 13-49-48b |
पादाच्चतुर्थात्सम्भूत आत्मा यस्मान्मुने तव। त्वं भविष्यस्यनुपमो जन्म वै सफलं कुरु।। | 13-49-49a 13-49-49b |
तीर्थाभिषेकं सकलं त्वमविघ्नेन चाप्स्यसि। स्वर्गं चैवाक्षयं विप्र विदधामि तवोर्जितम्।। | 13-49-50a 13-49-50b |
एवमुक्त्वा तु भगवान्वरेण्यो वृषवाहनः। महेश्वरो महाराजः कृत्तिवासा महाद्युतिः। सगणो दैवतश्रेष्ठस्तत्रैवान्तरधीयत।। | 13-49-51a 13-49-51b 13-49-51c |
गालव उवाच। | 13-49-52x |
विश्वामित्राभ्यनुज्ञातो ह्यहं पितरमागतः। अब्रवीन्मां ततो माता दुःखिता रुदती भृशम्।। | 13-49-52a 13-49-52b |
कौशिकेनाभ्यनुज्ञातं पुत्रं देवविभूषितम्। न तात तरुणं दान्तं पिता त्वां पश्यतेऽनघ।। | 13-49-53a 13-49-53b |
श्रुत्वा जनन्या वचनं निराशो गुरुदर्शने। नियतात्मा महादेवमपश्यं सोऽब्रवीच्च माम्।। | 13-49-54a 13-49-54b |
पिता माता च ते त्वं च पुत्र मृत्युविवर्जिताः। भविष्यथ विश क्षिप्रं द्रष्टासि पितरं क्षये।। | 13-49-55a 13-49-55b |
अनुज्ञातो भगवता गृहं गत्वा युधिष्ठिर। अपश्यं पितरं तात इष्टिं कृत्वा विनिःसृतम्। उपस्पृश्य गृहीत्वेध्मं कुशांश्च शरणाकुरून्।। | 13-49-56a 13-49-56b 13-49-56c |
तान्विसृज्य च मां प्राह पिता सास्राविलेक्षणः। प्रणमन्तं परिष्वज्य मूर्ध्न्युपाघ्राय पाण्डव।। | 13-49-57a 13-49-57b |
दिष्ट्या दृष्टोसि मे पुत्र कृतविद्य इहागत।। | 13-49-58a |
वैशम्पायन उवाच। | 13-49-59x |
एतान्यत्यद्भुतान्येव कर्माण्यथ महात्मनः। प्रोक्तानि मुनिभिः श्रुत्वा विस्मयामास पाण्डवः।। | 13-49-59a 13-49-59b |
ततः कृष्णोऽब्रवीद्वाक्यं पुनर्मतिमतांवरः। युधिष्ठिरं धर्मनिधिं पुरुहूतमिवेश्वरः।। | 13-49-60a 13-49-60b |
उपमन्युर्मयि प्राह तपन्निव दिवाकरः। अशुभैः पापकर्माणो ये नराः कलुषीकृताः।। | 13-49-61a 13-49-61b |
ईशानं न प्रपद्यन्ते तमोराजसवृत्तयः। | 13-49-62a |
ईश्वरं सम्प्रपद्यन्ते द्विजा भावितभावनाः।। | 13-49-63a |
सर्वथा वर्तमानोपि यो भक्तः परमेश्वरे। सदृशोऽरण्यवासीनां मुनीनां भावितात्मनाम्।। | 13-49-64a 13-49-64b |
ब्रह्मत्वं केशवत्वं वा शक्रत्वं वा सुरैः सह। त्रैलोक्यस्याधिपत्यं वा तुष्टो रुद्रः प्रयच्छति | 13-49-65a 13-49-65b |
मनसाऽपि शिवं तात ये प्रपद्यन्ति मानवाः। विधूय सर्वपापानि देवैः सह वसन्ति ते।। | 13-49-66a 13-49-66b |
भित्त्वाभित्त्वा च कूलानि हुत्वा सर्वमिदं जगत्। जयेद्देवं विरूपाक्षं न स पापेन लिप्यते।। | 13-49-67a 13-49-67b |
सर्वलक्षणहीनोपि युक्तो वा सर्वपातकैः। सर्वं तुदति तत्पापं भावयञ्शिवमात्मना | 13-49-68a 13-49-68b |
कीटपक्षिपतङ्गानां तिरश्चामपि केशव। महादेवप्रपन्नानां न भयं विद्यते क्वचित्।। | 13-49-69a 13-49-69b |
एवमेव महादेवं भक्ता ये मानवा भुवि। न ते संसारवशगा इति मे निश्चिता मतिः। ततः कृष्णोऽब्रवीद्वाक्यं धर्मपुत्रं युधिष्ठिरम्।। | 13-49-70a 13-49-70b 13-49-70c |
विष्णुरुवाच। | 13-49-71x |
आदित्यचन्द्रावनिलानलौ च द्यौर्भूमिरापो वसवोऽथ विश्वे। धाताऽर्यमा शुक्रबृहस्पती च वेदा यज्ञा दक्षिणा वेदवाहाः। | 13-49-71a 13-49-71b 13-49-71c 13-49-71d |
सोमो यष्टा यच्च हव्यं हविश्च रक्षा दीक्षा संयमा ये च केचित्।। | 13-49-72a 13-49-72b |
स्वाहा वौषट् ब्राह्मणाः सौरभेयी धर्मं चाग्र्यं कालचक्रं बलं च। यशो दमो बुद्धिमतां स्थितिश्च शुभाशुभं ये मुनयश्च सप्त।। | 13-49-73a 13-49-73b 13-49-73c 13-49-73d |
अग्र्या बुद्धिर्मनसा दर्शने च स्पर्शश्चाग्र्यः कर्मणां या च सिद्धिः। गणा देवानामूष्मपाः सोमपाश्च लेखाः सुयामास्तुषिता ब्रह्मकायाः।। | 13-49-74a 13-49-74b 13-49-74c 13-49-74d |
आभासुरा गन्धपा धूमपाश्च वाचा विरुद्धाश्च मनोविरुद्धाः। शुद्धाश्च निर्माणरताश्च देवाः स्पर्शाशना दर्शपा आज्यपाश्च।। | 13-49-75a 13-49-75b 13-49-75c 13-49-75d |
चिन्त्यद्योता ये च देवेषु मुख्या ये चाप्यन्ते देवताश्चाजमीढ। सुपर्णगन्धर्वपिशाचदानवा यक्षास्तथा चारणपन्नगाश्च।। | 13-49-76a 13-49-76b 13-49-76c 13-49-76d |
स्थूलं सूक्ष्मं मृदु चाप्यसूक्ष्मं दुःखं सुखं दुःखमनन्तरं च। साङ्ख्यं योगं तत्पराणां परं च शर्वाञ्जातं विद्धि य***********।। | 13-49-77a 13-49-77b 13-49-77c 13-49-77d |
तत्सम्भूता भूतकृतो वरेण्या सर्वे देवा भुवनस्यास्य गोपाः। आविश्येमां धरणीं येऽभ्यरक्षन् पुरातनीं तस्य देवस्य सृष्टिम्।। | 13-49-78a 13-49-78b 13-49-78c 13-49-78d |
विचिन्वन्तस्तपसा तत्स्थवीयः किञ्चित्तत्त्वं प्राणहेतोर्नतोस्मि। ददातु वेदः स वरानिहेष्टा- नभिष्टुतोः नः प्रभुरव्ययः सदा।। | 13-49-79a 13-49-79b 13-49-79c 13-49-79d |
इमं स्तवं सन्नियतेन्द्रियश्च भूत्वा शुचिर्यः पुरुषः पठेत। अभग्नयोगो नियतो मासमेकं सम्प्राप्नुयादश्वमेधे फलं यत्।। | 13-49-80a 13-49-80b 13-49-80c 13-49-80d |
वेदान्कृत्स्नान्ब्राह्मणः प्राप्नुयात्तु जयेन्नृपः पार्थ महीं च कृत्स्नाम्। वैश्यो लाभं प्राप्नुयान्नैपुणं च शूद्रो गतिं प्रेत्य तथा सुखं च।। | 13-49-81a 13-49-81b 13-49-81c 13-49-81d |
स्तवराजमिमं कृत्वा रुद्राय दधिरे मनः। सर्वदोषापहं पुण्यं पवित्रं च यशस्विनः।। | 13-49-82a 13-49-82b |
यावन्त्यस्य शरीरेषु रोमकूपाणि भारतः। तावन्त्यब्दसहस्राणि स्वर्गे वसति मानवः।। | 13-49-83a 13-49-83b |
।। इति श्रीमन्महाभारते अनुशासनपर्वणि दानधर्मपर्वणि एकोनपञ्चाशोऽध्यायः।। 49 ।। |
13-49-1 पठस्व स्तवमिति शेषः। हे पुत्र युधिष्ठिर।। 13-49-5 आलम्बायन आलम्बगोत्रः। चतुःशीर्ष इति ट.थ.पाठः।। 13-49-7 हे पुत्र शतं पुत्राणामिति शेषः।। 13-49-8 विवादे वेदविपरीतवादे। अग्निसहितैर्मुनिभिरुक्त इति सम्बन्धः।। 13-49-9 तेन वेदविरोधजेन।। 13-49-12 पितृतुल्या विप्रा ज्येष्ठो भ्राता पितुः सम इतिस्मृतेर्ज्येष्ठा भ्रातरस्तेषां वधेन। स तु विप्रवधेनेति ट.थ पाठः।। 13-49-15 शिखण्डी कपर्दी। शिवविग्रहः कल्याणशरीरः।। 13-49-18 प्रभुः प्रार्थितः सन्निति शेषः।। 13-49-21 उच्चारिते अन्यथेति शेषः।। 13-49-22 पापं वितथाभिनिवेशं त्यक्त्वा समीक्षस्व विचारय। अयज्ञवाहिनं न यज्ञं वहति तं पापमवाक्षरपाठजमपराधम्।। 13-49-23 निधने अन्दे सद्य एवेत्यर्थः।। 13-49-27 साम्यभवैषम्यम्। युवयोर्गृत्समदशतक्रत्वोः।। 13-49-31 अर्थः सर्वस्मात्प्रियस्ततोऽपि प्रियोऽन्तरात्मा तत्तुल्यः सर्वेषां भविष्यसीत्यर्थः।। 13-49-33 पूरा पूर्वावतारे।। 13-49-42 या तव मयि सम्भावना एतस्मात्फलमहं प्राप्स्ये इति अस्याः फलात् पुण्यात्तव कृष्णोनाम पुत्रो भविष्यति।। 13-49-49 पादाच्चतुर्थात्। तपः शौचं दया सत्यमिति चत्वारो धर्मस्य पादास्तेषां चतुर्थात्सत्यादेव तवात्मा शरीरम्।। 13-49-52 पितरं द्रक्ष्ये इति बुद्ध्या गृहमागतः। दुःखिता वैधव्यदुःखेन।। 13-49-55 क्षये गृहे। विश प्रविश।। 13-49-56 शरणाकुरून् वाय्वाघातेन वा स्वयं वा पक्वतया फलानामधः पतनेन विशरणं शरणा तत्प्रधानाः कुरवोऽन्नानि शरणाकुरवस्तान्। शॄ विशरणेऽस्माद्भावे ल्युः।। 13-49-57 सास्रत्वादाविले ईक्षणे यस्य।। 13-49-60 ईश्वरो विष्णुः।। 13-49-67 कूलानि गृहतटाकादीनि।। 13-49-68 आत्मना चित्तेन।। 13-49-71 आदित्यचन्द्रावित्यादिसर्वं सर्वाज्जातं विद्धीति सप्तमस्थेनान्वयः।। 13-49-72 उपनिषत्। प्राधान्यात्पृथक्कीर्तनम्। वेदवाहा वेदपाठकाः।। 13-49-75 वाचाविरुद्धाः। वाङ्नियमनशीलाः। निर्माणं अनेकधाभवनं योगेनानेकशरीरधारणं तत्र रताः।। 13-49-77 चिन्त्यद्योताः सङ्कल्पितमात्रं वस्तु येषां सद्यः पुरतः प्रकाशते तादृशाः।।
अनुशासनपर्व-048 | पुटाग्रे अल्लिखितम्। | अनुशासनपर्व-050 |