महाभारतम्-13-अनुशासनपर्व-062
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भीष्मेण युधिष्ठिरम्प्रति दानादिषु पात्रलक्षणानां स्वर्गनरकप्रापकपुण्यपापानां च प्रतिपादनम्।। 1 ।।
युधिष्ठिर उवाच। | 13-62-1x |
पित्र्यं वाऽप्यथवा दैवं दीयते यत्पितामह। एतदिच्छाम्यहं ज्ञातुं दत्तं केषु महाफलम्।। | 13-62-1a 13-62-1b |
भीष्म उवाच। | 13-62-2x |
येषां दाराः प्रतीक्षन्ते सुवृष्टिमिव कर्षकाः। उच्छेषपरिशेषं हि तान्भोजय युधिष्ठिर।। | 13-62-2a 13-62-2b |
चारित्रनिरता राजन्ये कृशाः कृशवृत्तयः।। अर्थिनश्चोपगच्छन्ति तेषु दत्तं महाफलम्।। | 13-62-3a 13-62-3b |
तद्भक्तास्तद्गृहा राजंस्तद्बलास्तदपाश्रयाः। अर्थिनश्च भवन्त्यर्थे तेषु दत्तं महाफलम्।। | 13-62-4a 13-62-4b |
तस्करेभ्यः परेभ्यो वा हृतस्वा भयदुःखिताः। अर्थिनो भोक्तुमिच्छन्ति तेषु दत्तं महाफलम्।। | 13-62-5a 13-62-5b |
अकल्ककस्य विप्रस्य रौक्ष्यात्करकृतात्मनः। वटवो यस्य भिक्षन्ति तेभ्यो दत्तं महाफलम्।। | 13-62-6a 13-62-6b |
हृतस्वा हृतदाराश्च ये विप्रा देशसम्प्लवे। अर्थार्थमभिगच्छन्ति तेभ्यो दत्तं महाफलम्।। | 13-62-7a 13-62-7b |
व्रतोनो नियमस्थाश्च ये विप्राः श्रुतसम्मताः। तस्मपाप्त्यर्थमिच्छन्ति तेभ्यो दत्तं महाफलम्।। | 13-62-8a 13-62-8b |
अत्युत्क्रान्ताश्च धर्मेषु पाषण्डस्रमयेषु च। कृशप्राणाः कृशघनास्तेभ्यो दत्तं महाफलम्।। | 13-62-9a 13-62-9b |
कृतसर्वस्वहरणा निर्दोषाः प्रभविष्णुभिः। स्पृहयन्ति च भुक्त्वाऽन्नं तेषुदत्तं महाफलम्।। | 13-62-10a 13-62-10b |
तपस्विनस्तपोनिष्ठास्तेषां भैक्षचराश्च ये। अर्थिनः किञ्चिदिच्छन्ति तेषु दत्तं महाफलम्।। | 13-62-11a 13-62-11b |
महाफलविधिर्दाने श्रुतस्ते भरतर्षभ। निरयं येन गच्छन्ति स्वर्गं चैव हि तत्छृणु।। | 13-62-12a 13-62-12b |
`व्रतानां पारणार्थाय गुर्वर्थे यज्ञदक्षिणाम्। निर्वेशार्थं च विद्वांसस्तेषां दत्तं महाफलम्।। | 13-62-13a 13-62-13b |
पित्रोश्च रक्षणार्थाय पुत्रदारार्थमेव वा। महाव्याधिविमोक्षार्थं तेषु दत्तं महाफलम्।। | 13-62-14a 13-62-14b |
बालाः स्त्रियश्च वाञ्छन्ति सुभक्तं चाप्यसाधनाः। स्वर्गमायान्ति दत्त्वैषां निरयान्नोपयान्ति ते।।'।। | 13-62-15a 13-62-15b |
गुर्वर्थमभयार्थं वा वर्जयित्वा युधिष्ठिर। येऽनृतं कथयन्ति स्म ते वा निरयगामिनः।। | 13-62-16a 13-62-16b |
परदाराभिहर्तारः परदाराभिमर्शिनः। परदारप्रयोक्तास्ते वै निरयगामिनः।। | 13-62-17a 13-62-17b |
ये परस्वापहर्तारः परस्वानां च नाशकाः। सूचकाश्च परेषां ये ते वा निरयगामिनः।। | 13-62-18a 13-62-18b |
प्रपाणां च सभानां च संक्रमाणां च भारत। अगाराणां च भेत्तारो नरा निरयगामिनः।। | 13-62-19a 13-62-19b |
अनाथां प्रमदां बालां वृद्धां भीतां तपस्विनीम्। वञ्चयन्ति नरा ये च ते वै निरयगामिनः।। | 13-62-20a 13-62-20b |
वृत्तिच्छेदं गृहच्छेदं दारच्छेदं च भारत। मित्रच्छेदं तथाऽऽशायास्ते वै निरयगामिनः।। | 13-62-21a 13-62-21b |
सूचकाः सेतुभेत्तारः परवृत्त्युपजीवकाः। अकृतज्ञाश्च मित्राणां ते वै निरयगामिनः।। | 13-62-22a 13-62-22b |
पाषण्डा दूषकाश्चैव समयानां च दूषकाः। ये प्रत्यवसिताश्चैव ते वै निरयगामिनः।। | 13-62-23a 13-62-23b |
विषमव्यवहाराश्च विषमाश्चैव वृद्धिषु। लाभेषु विषमाश्चैव ते वै निरयगामिनः।। | 13-62-24a 13-62-24b |
दूतसंव्यवहाराश्च निष्परीक्षाश्च मानवाः। प्राणिहिंसाप्रवृत्ताश्चि ते वै निरयगामिनः।। | 13-62-25a 13-62-25b |
कृताशं कृतनिर्देशं कृतभक्तं कृतश्रमम्। भेदैर्ये व्यपकर्षन्ति ते वै निरयगामिनः।। | 13-62-26a 13-62-26b |
पर्यश्नन्ति च ये दारानग्निभृत्यातिथींस्तथा। उत्सन्नपितृदेवेज्यास्ते वै निरयगामिनः।। | 13-62-27a 13-62-27b |
वेदविक्रयिणश्चैव वेदानां चैव दूषकाः। वेदानां लेखकाश्चैव ते वै निरयगामिनः।। | 13-62-28a 13-62-28b |
चातुराश्रम्यबाह्याश्च श्रुतिबाह्याश्च ये नराः। विकर्मभिश्च जीवन्ति ते वै निरयगामिनः।। | 13-62-29a 13-62-29b |
केशविक्रयिका राजन्विषविक्रयिकाश्च ये। क्षीरविक्रयिकाश्चैव ते वै निरयगामिनः।। | 13-62-30a 13-62-30b |
ब्राह्मणानां गवां चैव कन्यानां च युधिष्ठिर। येऽन्तरायान्ति कार्येषु ते वै निरयगामिनः।। | 13-62-31a 13-62-31b |
शस्त्रविक्रयिकाश्चैव कर्तारश्च युधिष्ठिर। शल्यानां धनुषां चैव ते वै निरयगामिनः।। | 13-62-32a 13-62-32b |
शिलाभिः शङ्कुभिर्वाऽपि श्वर्भ्रैर्वा भरतर्षभ। ये मार्गमनुरुन्धन्ति ते वै निरयगामिनः।। | 13-62-33a 13-62-33b |
उपाध्यायांश्च भृत्यांश्च भक्तांश्च भरतर्षभ। ये त्यजन्त्यविकारांस्त्रींस्ते वै निरयगामिनः।। | 13-62-34a 13-62-34b |
अप्राप्तदमकाश्चैव नासानां वेधकाश्च ये। बन्धकाश्च पशूनां ये ते वै निरयगामिनः।। | 13-62-35a 13-62-35b |
अगोप्तारश्च राजानो बलिषड्भागतस्कराः। समर्थाश्चाप्यदातारस्ते वै निरयगामिनः।। | 13-62-36a 13-62-36b |
क्षान्तान्दान्तांस्तथा प्राज्ञान्दीर्घकालं सहोषितान्। त्यजन्ति कृतकृत्या ये ते वै निरयगामिनः।। | 13-62-37a 13-62-37b |
बालानामथ वृद्धानां दासानां चैव ये नराः। अदत्त्वा भक्षयन्त्यग्रे ते वै निरयगामिनः।। | 13-62-38a 13-62-38b |
एते पूर्वं विनिर्दिष्टाः प्रोक्ता निरयगामिनः। भागिनः स्वर्गलोकस्य वक्ष्यामि भरतर्षभ।। | 13-62-39a 13-62-39b |
सर्वेष्वेव तु कार्येषु दैवपूर्वेषु भारत। हन्ति पुत्रान्पशून्कृत्स्नान्ब्राह्मणातिक्रमः कृतः।। | 13-62-40a 13-62-40b |
दानेन तपसा चैव सत्येन च युधिष्ठिर। ये धर्ममनुवर्तन्ते ते नराः स्वर्गगामिनः।। | 13-62-41a 13-62-41b |
शुश्रूषाभिस्तपोभिश्च विद्यामादाय भारत। ये प्रतिग्रहनिःस्नेहास्ते नराः स्वर्गगामिनः।। | 13-62-42a 13-62-42b |
भयात्पाषात्तथा बाधाद्दारिद्र्याद्व्याधिधर्षणात्। तत्कृते धनमीप्सन्ते ते नराः स्वर्गगामिनः।। | 13-62-43a 13-62-43b |
क्षमावन्तश्च धीराश्च धर्मकार्येषु चोत्थिताः। मङ्गलाचारसम्पन्नाः पुरुषाः स्वर्गगामिनः।। | 13-62-44a 13-62-44b |
निवृत्ता मधुमांसेभ्यः परदारेभ्य एव च। निवृत्ताश्चैव मद्येभ्यस्ते नराः स्वर्गगामिनः।। | 13-62-45a 13-62-45b |
आश्रमाणां च कर्तारः कुलानां चैव भारत। देशानां नगराणां च ते नराः स्वर्गगामिनः।। | 13-62-46a 13-62-46b |
वस्त्राभरणदातारो भक्ष्यपानान्नदास्तथा। कुटुम्बानां च भर्तारः पुरुषाः स्वर्गगामिनः।। | 13-62-47a 13-62-47b |
सर्वहिंसानिवृत्ताश्च नराः सर्वसहाश्च ये। सर्वस्याश्रयभूताश्च ते नराः स्वर्गगामिनः।। | 13-62-48a 13-62-48b |
मातरं पितरं चैव शुश्रुषन्ति जितेन्द्रियाः। भ्रातॄणां चैव सस्नेहास्ते नराः स्वर्गगामिनः।। | 13-62-49a 13-62-49b |
आढ्याश्च बलवन्तश्च यौवनस्थाश्च भारत। ये वै जितेन्द्रिया धीरास्ते नराः स्वर्गगामिनः।। | 13-62-50a 13-62-50b |
अपराधिषु सस्नेहा मृदवो मृदुवत्सलाः। आराधनसुखाश्चापि पुरुषाः स्वर्गगामिनः।। | 13-62-51a 13-62-51b |
सहस्रपरिवेष्टारस्तथैव च सहस्रदाः। त्रातारश्च सहस्राणां ते नराः स्वर्गगामिनः।। | 13-62-52a 13-62-52b |
सुवर्णस्य च दातारो गवां च भरतर्षभ। यानानां वाहनानां च ते नराः स्वर्गगामिनः।। | 13-62-53a 13-62-53b |
वैवाहिकानां द्रव्याणां प्रेष्याणां च युधिष्ठिर। दातारो वाससां चैव ते नराः स्वर्गगामिनः।। | 13-62-54a 13-62-54b |
विहारावसथोद्यानकूपारामसभाप्रपा। वप्राणां चैव कर्तारस्ते नराः स्वर्गगामिनः।। | 13-62-55a 13-62-55b |
निवेशनानां क्षेत्राणां वसतीनां च भारत। दातारः प्रार्थितानां च ते नराः स्वर्गगामिनः।। | 13-62-56a 13-62-56b |
रसानां चाथ बीजानां धान्यानां च युधिष्ठिर। स्वयमुत्पाद्य दातारः पुरुषाः स्वर्गगामिनः।। | 13-62-57a 13-62-57b |
यस्मिंस्तस्मिन्कुले जाता बहुपुत्राः शतायुषः। सानुक्रोशा जितक्रोधाः पुरुषाः स्वर्गगामिनः।। | 13-62-58a 13-62-58b |
एतदुक्तममुत्रार्थं दैवं पित्र्यं च भारत। दानधर्मं च दानस्य यत्पूर्वमृषितिः कृतम्।। | 13-62-59a 13-62-59b |
।। इति श्रीमन्महाभारते अनुशासनपर्वणि दानधर्मपर्वणि द्विषष्टितमोऽध्यायः।। 62 ।। |
13-62-2 भोजनपात्रेऽवशिष्टमुच्छेषः तेन सहितं परिशेषं स्थाल्यामवशिष्टं प्रतीक्षन्ते। येषां पाकपर्याप्तमेव धान्यादिकमस्ति न कुसूलादौ तान् भोजय।। 13-62-4 तद्भक्ताः चारित्रमेव भक्तोऽन्नं तद्वज्जीवनं येषां ते। तद्गृहाः तदेव गृहे स्त्र्यादौ येषां ते अर्थे प्रयोजने सत्येवार्थिनो भवन्ति न सङ्ग्रहार्थम्।। 13-62-6 रौक्ष्यात् दारिद्र्यात्। करे कृतः आत्मेवात्मा जीवनमन्नम्। हस्ते गृहीतान्नस्य वटवः क्षुधार्ताः मह्य देहि मह्यं देवीति याचन्ते तेभ्योऽतिदरिद्रेभ्यः।। 13-62-9 पाषण्डानां समयो मर्यादा येषु धर्मेषु तत्र अत्युत्क्रान्ताः अत्यन्तं ततो दूरे स्थिताः।। 13-62-10 भुवत्वान्नमेव स्पृहयन्ति न स्वादु। अतएव न चतुर्थी।। 13-62-16 असयार्थं, भयनिवृत्तिरूपं प्रयोजनम्।। 13-62-17 अभिमर्शितो जाराः। प्रयोक्तारः हर्त्रभिमर्शिनोर्दूताः।। 13-62-18 परेषां दोषस्येति शेषः।। 13-62-21 आशायाश्छेदमित्येकदेशानुषङ्गः। कुर्वन्तीति शेषः।। 13-62-22 सूचकाः राजगामिपैशुन्यवादिनः। सेतुः आर्यमर्यादा।। 13-62-23 पाषण्डाः वेदविरोधिनः शाक्यादयः दूषकाः सतां निन्दकाः। समयानां धर्मसङ्केतानाम्। प्रत्यवसिताः आरूढपतिताः।। 13-62-26 कृताशं दासमर्थिन वा। कृतनिर्देशं निर्देशः तुभ्यमिदं दास्यामीति प्रतिज्ञा सा कृतायस्मै तम्। भक्तं वेतनम्। व्यपकर्षन्ति षत्युः सकाशाद्दूरीकुर्वन्ति।। 13-62-27 पर्यश्नन्ति। परित्यज्याश्नन्ति।। 13-62-29 विकर्मभइः स्वस्य निषिद्धैः कर्मभिः।। 13-62-30 केशाश्चामरकम्बलादयः।। 13-62-32 कर्तारः शस्त्रशल्यादीनाम्।। 13-62-35 अप्राप्तानामदान्तानां पशूनाम्। अण्डमर्दनेन बलवीर्ययोर्नाशका अप्राप्तदमकाः।। 13-62-40 ये ब्राह्मणातिक्रमं न कुर्वन्ति ते स्वर्गागामिन इत्यर्थः।। 13-62-43 कर्तारः पालनकर्तारः।। 13-62-51 आराधनेनि इतरान् सुखयनति ते तथा।। 13-62-57 दानस्य प्रत्यर्पणस्य। दानं च तद्धर्म येति शोधको धर्मः दैष् शोधन इति धातुः अमुत्रार्थं परलोकफलम्।।
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