महाभारतम्-13-अनुशासनपर्व-025
← अनुशासनपर्व-024 | महाभारतम् त्रतयोदशपर्व महाभारतम्-13-अनुशासनपर्व-025 वेदव्यासः |
अनुशासनपर्व-026 → |
कद्र्वाऽमृताहरणं चोदितेन गरुडेन स्वपितरि कश्यपे तन्निवेदनम्।। 1 ।। तेन तस्य दुष्करत्वकथने गरुडेन स्वेन तस्य सुकरत्वोक्तिः।। 2 ।। कश्यपेन गरुडंप्रति गजकच्छपवृत्तान्तकथनपूर्वकं तयोर्भक्षणाद्बलाप्यायनसम्पादनेनामृताहरणचोदना।। 3 ।।
`भीष्म उवाच। | 13-25-1x |
तथेत्युक्त्वा तु विहगः प्रतिज्ञाय महाद्युतिः। अमृताहरणे वाचं ततः पितरमब्रवीत्।। | 13-25-1a 13-25-1b |
कामं वै सूनृता वाचो विसृज्य च मुहुर्मुहुः। यच्चाप्यनुज्ञां मातुर्वै न च सा ह्यनुमन्यते।। | 13-25-2a 13-25-2b |
सा मा बहुविधा वाचो वज्रकल्पा विसृज्य वै। भगवन्विनता दासी मम माता महाद्युते।। | 13-25-3a 13-25-3b |
कद्रूः प्रेषयते चैव दासीयमिति चाब्रवीत्। आहरामृतमित्येव मोक्ष्यते विनता ततः।। | 13-25-4a 13-25-4b |
सोहं मातृविमोक्षार्थमाहरिष्य इति ब्रुवन्। अमृतं प्रार्थितस्तूर्णमाहर्तुं प्रतिनन्द्य वै।। | 13-25-5a 13-25-5b |
पितोवाच। | 13-25-6x |
अमृतं तात दुष्प्रापं देवैरपि कुतस्त्वया। रक्ष्यते हि भृशं पुत्र रक्षिभिस्तन्निबोध मे।। | 13-25-6a 13-25-6b |
गुप्तमद्भिर्भृशं साधु सर्वतः परिवारितम्। अनन्तरमथो गुप्तं ज्वलता जातवेदसा।। | 13-25-7a 13-25-7b |
ततः शतसहस्राणि अयुतान्यर्बुदानि च। रक्षन्त्यमृतमत्यन्तं किङ्करा नाम राक्षसाः।। | 13-25-8a 13-25-8b |
तेषां शक्त्यृष्टिशूलांश्च शतघ्न्यः पट्टसास्तथा। आयुधा रक्षिणां तात वज्रकल्पाः शिलास्तथा।। | 13-25-9a 13-25-9b |
ततो जालेन महता अवनद्धं समन्ततः। अयस्मयेन वै तात वृत्रहन्तुः स्म शासनात्।। | 13-25-10a 13-25-10b |
तत्त्वमेवंविधं तात कथं प्रार्थयसेऽमृतम्। सुरक्षितं वज्रभृतां वैनतेय विहङ्गम। इन्द्रेण देवैर्नागैश्च खड्गैर्गिरिजलादिभिः।। | 13-25-11a 13-25-11b 13-25-11c |
गरुड उवाच। | 13-25-13x |
पुत्रगृद्ध्या ब्रवीष्येतच्छृणु तात विनिश्चयम्। बलवानुपायवानस्मि भूयः किं करवाणि ते।। | 13-25-12a 13-25-12b |
तमब्रवीत्पिता हृष्टः प्रहसन्वै पुनः पुनः। यदि तौ भक्षयेस्तात क्रूरौ कच्छपवारणौ।। | 13-25-13a 13-25-13b |
तथा बलममेयं ते भविता तन्न संशयः। अमृतस्यैव चाहर्ता भविष्यसि न संशयः।। | 13-25-14a 13-25-14b |
गरुड उवाच। | 13-25-15x |
क्व तौ क्रूरौ महाभाग वर्तेते हस्तिकच्छपौ। भक्षयिष्याम्यहं तात बलस्याप्यायनं प्रति।। | 13-25-15a 13-25-15b |
।। इति श्रीमन्महाभारते अनुशासनपर्वणि दानधर्मपर्वणि पञ्चविंशोऽध्यायः।। 25।। |
13-25-17 गोरुतानि गव्यूतीः।।
अनुशासनपर्व-024 | पुटाग्रे अल्लिखितम्। | अनुशासनपर्व-026 |