महाभारतम्-13-अनुशासनपर्व-259
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वायुना हैहयंप्रति कश्यपचरित्रकथनम्।। 1 ।। तथा उचथ्योपाख्यानकथनारम्भः।। 2 ।। सोमेन भद्राभिधायाः स्वकन्याया उचथ्याय भार्यात्वेन प्रदानम्।। 3 ।। पूर्वमेव तां कामितवता वरुणेन विजने तस्या अपहरणम्।। 4 ।। नारदात्तच्छ्रुतवतोचथ्येन कोपात्समुद्रे शोषिते भयाद्वरुणेनोचथ्याय पुनर्भद्राप्रत्यर्पणम्।। 5 ।।
वायुरुवाच। | 13-259-1x |
इमां भूमिं द्विजातिभ्यो दित्सुर्वै दक्षिणां पुरा। अङ्गो नाम नृपो राजंस्ततश्चिन्तां मही ययौ।। | 13-259-1a 13-259-1b |
धारिणीं सर्वभूतानामयं प्राप्य वरो नृपः। कथमिच्छति मां दातुं द्विजेभ्यो ब्रह्मणः सुताम्।। | 13-259-2a 13-259-2b |
साहं त्यक्त्वा गमिष्यामि भूमित्वं ब्रह्मणः पदम्। अयं सराष्ट्रो नृपतिर्मार्भूदिति ततोऽगमत्।। | 13-259-3a 13-259-3b |
ततस्तां कश्यपो दृष्ट्वा व्रजन्तीं पृथिवीं तदा। प्रविवेश महीं सद्यो युक्तात्मा सुसमाहितः।। | 13-259-4a 13-259-4b |
ऋद्धा सा सर्वतो जज्ञे तृणौषधिसमन्विता। धर्मोत्तरा नष्टभया भूमिरासीत्तमतो नृप।। | 13-259-5a 13-259-5b |
एवं वर्षसहस्राणि दिव्यानि विपुलव्रतः। त्रिंशतं कश्यपो राजन्भूमिरासीदतन्द्रितः।। | 13-259-6a 13-259-6b |
अथागम्य महाराजन्नमस्कृत्यि च कश्यपम्। पृथवी काश्यपी जज्ञे सुता तस्य महात्मनः।। | 13-259-7a 13-259-7b |
एष राजन्नीदृशो वै ब्राह्मणः कश्यपोऽभवत्। अन्यं प्रब्रूहि वा त्वं च कश्यपात्क्षत्रियं वरम्।। | 13-259-8a 13-259-8b |
तूष्णीं बभूव नृपतिः पवनस्त्वब्रवीद्वचः। शृणु राजन्नुचथ्यस्य जातस्याङ्गिरसे कुले।। | 13-259-9a 13-259-9b |
भद्रा सोमस्य दुहिता रूपेण परमा मता। तस्यास्तुल्यं पतिं सोम उचथ्यं समपश्यत।। | 13-259-10a 13-259-10b |
सा च तीव्रं तपस्तेपे महाभागा यशस्विनी। उचथ्यं तु महाभागं तत्कृते वरयत्तदा।। | 13-259-11a 13-259-11b |
तत आहूय चोचथ्यं ददामीति यशस्विनीम्। भार्यार्थे स च जग्राह विधिवद्भूरिदक्षिणः।। | 13-259-12a 13-259-12b |
तां त्वकामयत श्रीमान्वरुणः पूर्वमेव ह। स चागम्य वनप्रस्थं यमुनायां जहार ताम्।। | 13-259-13a 13-259-13b |
जलेश्वरस्तु हृत्वा तामनयस्त्वं पुरं प्रति। परमाद्भुतसङ्काशं षट्सहस्रशतह्रदम्।। | 13-259-14a 13-259-14b |
न हि रम्यतरं किञ्चित्तस्मादन्यत्पुरोत्तमम्। वासादैरप्सरोभिश्च दिव्यैः कामैश्च शोभितम्।। | 13-259-15a 13-259-15b |
तत्र देवस्तया सार्धं रेमे राजञ्जलेश्वरः। तदाख्यातमुचथ्याय ततः पत्न्यवमर्दनम्।। | 13-259-16a 13-259-16b |
तच्छ्रुत्वा नारदात्सर्वमुचथ्यो नारदं तदा। प्रोवाच गच्छ ब्रूहि त्वं वरुणं परुषं वचः।। | 13-259-17a 13-259-17b |
मद्वाक्यान्मुञ्च मे भार्यां कस्मात्तां हृतवानसि। लोकपालोसि लोकानां न लोकस्य विलोपकः।। | 13-259-18a 13-259-18b |
सोमेन दत्ता भार्या मे त्वया चापहृताऽद्य वै। इत्युक्तो वचनात्तस्य नारदेन जलेश्वरः।। | 13-259-19a 13-259-19b |
मुञ्च भार्यामुचथ्यस्य कस्मात्त्वं हृतवानसि। इति श्रुत्वा वचस्तस्य सोऽथ तं वरुणोऽब्रवीत्।। | 13-259-20a 13-259-20b |
ममैषा सुप्रिया भार्या नैनामुत्स्रष्टुमुत्सहे। इत्युक्तो वरुणेनाथ नारदः प्राप्य तं मुनिम्। उचथ्यमब्रवीद्वाक्यं नातिहृष्टमना इव।। | 13-259-21a 13-259-21b 13-259-21c |
गले गृहीत्वा क्षिप्तोस्मि वरुणेन महामुने। न प्रयच्छति ते भार्यां यत्ते कार्यं कुरुष्व तत्।। | 13-259-22a 13-259-22b |
नारदस्य वचः श्रुत्वा क्रुद्धः प्राज्वलदङ्गिराः। अपिबत्तेजसा वारि विष्टभ्य सुमहातपाः।। | 13-259-23a 13-259-23b |
पीयमाने तु सर्वस्मिंस्तोयेऽपि सलिलेश्वरः। सुहृद्भिर्भिक्षमाणोऽपि नैवामुञ्चत तां तदा।। | 13-259-24a 13-259-24b |
ततः क्रुद्धोऽब्रवीद्भूमिमुचथ्यो ब्राह्मणोत्तमः। दर्शय स्वस्थलं भद्रे षट्सहस्रशतह्रदम्।। | 13-259-25a 13-259-25b |
ततस्तदीरणं जातं समुद्रस्यावसर्पतः। तस्माद्देशान्नदीं चैव प्रोवाचासौ द्विजोत्तमः।। | 13-259-26a 13-259-26b |
अदृश्या गच्छ भीरु त्वं सरस्वति मरून्प्रति। अणुण्यभूषो भवतु देशस्त्यक्तस्तया शुभे।। | 13-259-27a 13-259-27b |
ततश्चूर्णीकृते देशेक भद्रामादाय वारिपः। अददाच्छरणं गत्वा भार्यामाङ्गिरसाय वै।। | 13-259-28a 13-259-28b |
प्रतिगृह्य तु तां भार्यामुचथ्यः सुमनाऽभवत्। मुमोच च जगद्दुःखान्मरुतश्चैव निर्मलाः।। | 13-259-29a 13-259-29b |
ततः स लब्ध्वा तां भार्यां वरुणं प्राह धर्मवित्। उचथ्यः सुमहातेजा यत्तुच्छृणु नराधिप।। | 13-259-30a 13-259-30b |
मयैषा तपसा प्राप्ता क्रोशतस्ते जलाधिप। इत्युक्त्वा तामुपादाय स्वमेव भवनं ययौ।। | 13-259-31a 13-259-31b |
एष राजन्नीदृशो वै उचथ्यो ब्राह्मणर्षभः। ब्रवीमि हान्यं ब्रूहि त्वमुचथ्यात्क्षत्रियं वरम्।। | 13-259-32a 13-259-32b |
।। इति श्रीमन्महाभारते अनुशासनपर्वणि दानधर्मपर्वणि एकोनषष्ट्यधिकद्विशततमोऽध्यायः।। 259 ।। |
13-259-3 भूमित्वं त्यक्त्वा ब्रह्मणः पदं गमिष्यामीति सम्बन्धः।। 13-259-11 उचथ्यार्थे तु चार्वङ्गी परं नियममास्थिता। इति झ.पाठः।। 13-259-12 सोमः ददामीत्युक्त्वा ददावित्यध्याहारेण योजना। ददावत्रिर्यशस्विनीमिति झ.पाठः। अत्रिः सोमपिता।। 13-259-16 देवो वरुणः। तया भद्रकया।। 13-259-25 दर्शयस्व बिलं भद्रे इति क.पाठः।। 13-259-26 ईरिणं ऊषरप्रवेशः। समुद्रश्चापसर्पतेति क.पाठः।। 13-259-27 अपुण्य एष भवित्विति झ.पाठः।। 13-259-29 दुःखाद्वरुणं चैव हैहयेति झ.पाठः। जगद्वरुणं च दुःखान्मुमोच मोचयामास।।
अनुशासनपर्व-258 | पुटाग्रे अल्लिखितम्। | अनुशासनपर्व-260 |