महाभारतम्-13-अनुशासनपर्व-139
← अनुशासनपर्व-138 | महाभारतम् त्रतयोदशपर्व महाभारतम्-13-अनुशासनपर्व-139 वेदव्यासः |
अनुशासनपर्व-140 → |
भीष्मेण युधिष्ठिरंप्रति निमिकृतश्राद्धप्रकारानुवादेन श्राद्धविधिकथनम्।। 1 ।।
भीष्म उवाच। | 13-139-1x |
तथा विधौ प्रवृत्ते तु सर्व एव महर्षयः। पितृयज्ञानकुर्वन्त विधिदृष्टेन कर्मणा।। | 13-139-1a 13-139-1b |
ऋषयो धर्मनित्यास्तु कृत्वा निवपनान्युत। तर्पणं चापि कुर्वन्त तीर्थांभोभिर्यतव्रताः।। | 13-139-2a 13-139-2b |
निवापैर्दीयमानैश्च चातुर्वर्ण्येन भारत। तर्पिताः पितरो देवास्तत्रान्नं जरयन्ति वै।। | 13-139-3a 13-139-3b |
अजीर्णैस्त्वभिहन्यन्ते ते देवाः पितृभिः सह।। सोममेवाभ्यपद्यन्त तदा ह्यन्नाभिपीडिताः।। | 13-139-4a 13-139-4b |
तेऽब्रुवन्सोममासाद्य पितरोऽजीर्णपीडिताः। निवापान्नेन पीड्यामः श्रेयो नोत्र विधीयताम्।। | 13-139-5a 13-139-5b |
तान्सोमः प्रत्युवाचाथ श्रेयश्चेदीप्सितं सुराः। स्वयंभूसदनं यात स वः श्रेयोऽभिधास्यति।। | 13-139-6a 13-139-6b |
ते सोमवचनाद्देवाः पितृभिः सह भारत। मेरुशृङ्गे समासीनं पितामहमुपागमन्।। | 13-139-7a 13-139-7b |
पितर ऊचुः। | 13-139-8x |
निवापान्नेन भगवन्भृशं पीड्यामहे वयम्। प्रसादं कुरु नो देव श्रेयो नः संविधीयताम्।। | 13-139-8a 13-139-8b |
इति तेषां वचः श्रुत्वा स्वयम्भूरिदमब्रवीत्। एष मे पार्श्वतो वह्निर्युष्मच्छ्रेयो विधास्यति। | 13-139-9a 13-139-9b |
अग्निरुवाच। | 13-139-10x |
सहितास्तस्य भोक्ष्यामो निवापे समुपस्थिते। जरयिष्यथ चाप्यन्नं मया सार्धं न संशयः।। | 13-139-10a 13-139-10b |
एतच्छ्रुत्वा तु पितरस्ततस्ते विज्वराऽभवन्। एतस्मात्कारणाच्चाग्नेः प्राग्भागो दीयते नृप।। | 13-139-11a 13-139-11b |
निवापे चाग्निपूर्वं वै निवृत्ते पुरुषर्षभ। न ब्रह्मराक्षसास्तं वै निवापं धर्षयन्त्युत।। | 13-139-12a 13-139-12b |
रक्षांसि नाभिवर्धन्ते स्थिते देवे हुताशने। पूर्वं पिण्डं पितुर्दद्यात्ततो दद्यात्पितामहे।। | 13-139-13a 13-139-13b |
प्रपितामहाय च तत एष श्राद्धविधिः स्मृतः। ब्रूयाच्छ्राद्धे च सावित्रीं पिण्डे पिण्डे समाहितः। सोमायेति च वक्तव्यं तथा पितृमतेति च।। | 13-139-14a 13-139-14b 13-139-14c |
रजस्वला च या नारी व्यङ्गिता कर्णयोश्च या। निवापे नोपतिष्ठेत सङ्ग्राह्या नान्यवंशजा।। | 13-139-15a 13-139-15b |
जलं प्रतरमाणस्च कीर्तयेत पितामहान्। नदीमासाद्य कुर्वीत पितॄणां पितृतर्पणम्।। | 13-139-16a 13-139-16b |
पूर्वं स्ववंशजानां तु कृत्वा।?द्भिस्तर्पणं पुनः। सुहृत्सम्बन्धिवर्गाणां ततो दद्याज्जलाञ्जलिम्।। | 13-139-17a 13-139-17b |
कल्माषगोयुगेनाथ युक्तेन तरतो जलम्। पितरोऽभिलषन्ते वै नावं चाप्यधिरोहिताः।। | 13-139-18a 13-139-18b |
सदा नावि जलं तज्ज्ञाः प्रयच्छन्ति समाहिताः। मासार्धे कृष्णपक्षस्य कुर्यान्निर्वपणानि वै।। | 13-139-19a 13-139-19b |
पुष्टिरायुस्तथा वीर्यं श्रीश्चैव पितृभक्तितः।। | 13-139-20a |
पितामहः पुलस्त्यश्च वसिष्ठः पुलहस्तथा। अङ्गिराश्च क्रतुश्चैव कश्यपश्च महानृषिः। | 13-139-21a 13-139-21b |
एते कुरुकुलश्रेष्ठ महायोगेश्वराः स्मृताः।। एते च पितरो राजन्नेष श्राद्धविधिः परः। | 13-139-22a 13-139-22b |
प्रेतास्तु पिण्डसम्बन्धान्मुच्यन्ते तेन कर्मणा।। इत्येषा पुरुषश्रेष्ठ श्राद्धोत्पत्तिर्यथागमम्। | 13-139-23a 13-139-23b |
व्याख्याता पूर्वनिर्दिष्टा किं ते वक्ष्याम्यतः परम्।। | 13-139-24a |
।। इति श्रीमन्महाभारते अनुशासनपर्वणि दानधर्मपर्वणि एकोनचत्वारिंशदधिकशततमोऽध्यायः।। 139 ।। |
13-139-1 तथानिमौ प्रवृत्ते इति झ.पाठः। तथा पित्र्ये प्रवृत्ते इति ध.पाठः।। 13-139-15 अन्यवंशजापि पाकार्थं न सङ्ग्राह्य। न ग्राह्याश्चाप्यवंशजा इति ट.थ.पाठ।। 13-139-18 युक्तेन शकटेन।। 13-139-19 मासार्धे अमावास्यायाम्। कृष्णपक्षस्येत्युक्तेर्नात्र शुक्लादिमासो विवक्षितः।।
अनुशासनपर्व-138 | पुटाग्रे अल्लिखितम्। | अनुशासनपर्व-140 |