महाभारतम्-13-अनुशासनपर्व-125
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व्यासेन शुकम्प्रति ब्राह्मणेतरवर्णानां कपिलाक्षीरोपजीवनार्हत्वादिकथनम्।। 1 ।।
`शुक उवाच। | 13-125-1x |
क्षत्रियाश्चैव शूद्राश्च मन्त्रहीनाश्च ये द्विजाः। कपिलामुपजीवन्ति कथमेतत्पितर्भवेत्।। | 13-125-1a 13-125-1b |
श्रीव्यास उवाच। | 13-125-2x |
क्षत्रियाश्चैव शूद्राश्च मन्त्रहीनाश्च ये द्विजाः। कपिलामुपजीवन्ति तेषां वक्ष्यामि निर्णयम्।। | 13-125-2a 13-125-2b |
कपिलास्तूत्तमा लोके गोषु चैवोत्तमा मताः। तासां दाता लभेत्स्वर्गं विधिना यश्च सेवते।। | 13-125-3a 13-125-3b |
स्पृशेत कपिलां यस्तु दण्डेन चरणेन वा। स तेन स्पर्शमात्रेण नरकायोपपद्यते।। | 13-125-4a 13-125-4b |
मन्त्रेण युञ्ज्यात्कपिलां मन्त्रेणैव प्रमुञ्चते। मन्त्रिहीनं तु यो युञ्जात्कृमियोनौ प्रसूयते।। | 13-125-5a 13-125-5b |
प्रहाराहतमर्माङ्गा दुःखेन च जडीकृता। पदानि यावद्गच्छेत तावल्लोकान्कृमिर्भवेत्।। | 13-125-6a 13-125-6b |
यावन्तो बिन्दवस्तस्याः शोणितस्य क्षितिं गताः। तावद्वर्षसहस्राणि नरकं प्रतिपद्यते।। | 13-125-7a 13-125-7b |
मन्त्रेण युञ्ज्यात्कपिलां मन्त्रेण विनियोजयेत्। मन्त्रहीनैरनुयुतो मञ्जयेत्तमसि प्रभो।। | 13-125-8a 13-125-8b |
कपिलां येऽपि जीवन्ति बुद्धिमोहान्विता नराः। तेऽपि वर्षसहस्राणि पतन्ति नरके नृप।। | 13-125-9a 13-125-9b |
अथ न्यायेन ये विप्राः कपिलामुपयुञ्जते। तस्मिंल्लोके प्रमोदन्ते लोकाश्चैषामनामयाः।। | 13-125-10a 13-125-10b |
विधिना ये न कुर्वन्ति शूद्रास्तानुपधारय।।' | 13-125-11a |
।। इति श्रीमन्महाभारते अनुशासनपर्वणि दानधर्मपर्वणि पञ्चविंशत्यधिकशततमोऽध्यायः।। 125 ।। |
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