महाभारतम्-13-अनुशासनपर्व-023
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कद्र्वा स्ववचनतिरस्कारिणः कांश्चन पुत्रान्प्रति जनमेजयसर्पसत्रे निधनरूपशापदानम्।। 1 ।। कैश्चन सर्पैरुच्चैरश्रवसो वाले स्वाङ्गवेष्टनेन नैल्यसम्पादनम्।। 2 ।। ततः कद्रूचोदनया हयवाले नैल्यदर्शिन्या विनतया तद्दास्याङ्गीकरणम्।। 3 ।।
`भीष्य उवाच। | 13-23-1x |
श्रुत्वा तु वचनं मातुः क्रुद्धायास्ते भुजङ्गमाः। कृच्छ्रेणैवान्वमोदन्त केचिद्धित्वा दिशो गताः।। | 13-23-1a 13-23-1b |
ये प्रतस्थुर्दिशस्तत्र क्रुद्धा तानशपद्भृशम्। भुजङ्गमानां माताऽसौ कद्रूर्वैरकरी तदा।। | 13-23-2a 13-23-2b |
उत्पत्स्यति हि राजन्यः पाण्डवो जनमेजयः। चतुर्थो धन्विनां श्रेष्ठात्कुन्तीपुत्राद्धनञ्जयात्।। | 13-23-3a 13-23-3b |
स सर्पसत्रमाहर्ता क्रुद्धः कुरुकुलोद्वहः। तस्मिन्सत्रेऽग्निना युष्मान्पञ्चत्वमुपनेष्यति।। | 13-23-4a 13-23-4b |
एवं क्रुद्धाऽशपन्माता पन्नगान्धर्मचारिणः। गुरोः परित्यागकृतं नैतदन्यद्भविष्यति।। | 13-23-5a 13-23-5b |
एवं शप्ता दिशः प्राप्ताः पन्नगा धर्मचारिणः। विहाय मातरं क्रुद्धा गता वैरकरीं तदा।। | 13-23-6a 13-23-6b |
तत्र ये वृजिनं तस्या अनापन्ना भुजङ्गमाः। ते तस्य वाजिनो वाला बभूवुरसितप्रभाः।। | 13-23-7a 13-23-7b |
तान्दृष्ट्वा वालधिस्थांश्च पुत्रान्कद्रूरथाब्रवीत्। विनतामथ संहृष्टा हयोसौ दृश्यतामिति।। | 13-23-8a 13-23-8b |
एकवर्णो न वा भद्रे पणो नौ सुव्यवस्थितः। उतकादुत्तरन्तं तं हयं चैव च भामिनि।। | 13-23-9a 13-23-9b |
सा त्ववक्रमतिर्देवी विनता जिह्मगामिनीम्। अब्रवीद्भगिनीं किञ्चिद्विहसन्तीव भारत।। | 13-23-10a 13-23-10b |
हन्त पश्याव गच्छावः सुकृतो नौ पणः शुभे। दासी वा ते भविष्यामि त्वं वा दासी भविष्यसि।। | 13-23-11a 13-23-11b |
एवं स्थिरं पणं कृत्वा हयं ते तं ददर्शतुः। कृत्वा साक्षिणमात्मानं भगिन्यौ कुरुसत्तम।। | 13-23-12a 13-23-12b |
सा दृष्ट्वैव हयं मन्दं विनता शोककर्शिता। श्वेतं चन्द्रांशुवालं तं कालवालं मनोजवम्।। | 13-23-13a 13-23-13b |
तत्र सा व्रीलिता वाक्यं विनता साश्रुबिन्दुका। उवाच कालवालोऽयं तुरगो विजितं त्वया।। | 13-23-14a 13-23-14b |
दासी मां प्रेषय स्वार्थे यथा कामवशां शुभे। दास्यश्च कामकारा हि भर्तृणां नात्र संशयः'।। | 13-23-15a 13-23-15b |
।। इति श्रीमन्महाभारते अनुशासनपर्वणि दानधर्मपर्वणि त्रयोविंशोऽध्यायः।। 23 ।। |
13-23-9 हयमुद्दिश्य नौ पणः सुव्यवस्थित इति शेषेणान्वयः।।
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