महाभारतम्-13-अनुशासनपर्व-127
← अनुशासनपर्व-126 | महाभारतम् त्रतयोदशपर्व महाभारतम्-13-अनुशासनपर्व-127 वेदव्यासः |
अनुशासनपर्व-128 → |
व्यासेन शुकम्प्रति कपिलालक्षणविभागादिकथनम्।। 1 ।।
शुक उवाच। | 13-127-1x |
केन वर्णविभागेन विज्ञेया कपिला भवेत्। कति वा लक्षणान्यस्या दृष्टानि मुनिभिः पुरा।। | 13-127-1a 13-127-1b |
श्रीव्यास उवाच। | 13-127-2x |
शृणु तात यथा गोषु विज्ञेया कपिला भवेत्। नेत्रयोः शृङ्गयोश्चैव खुरेषु वृषणेषु च। कर्णतो घ्राणतश्चापि षड्विधाः कपिलाः स्मृताः।। | 13-127-2a 13-127-2b 13-127-2c |
एतेषां लक्षणानां तु यद्येकमपि दृश्यते। कपिलां तां विजानीयादेवमाहुर्मनीषिणः।। | 13-127-3a 13-127-3b |
आग्नेयी नेत्रकपिला खुरैर्माहेश्वरी भवेत्। ग्रीवायां वैष्णवी ज्ञेया पूष्णो घ्राणादजायत।। | 13-127-4a 13-127-4b |
कर्णतस्तु वसन्तेन स्वयोनिमभिजायते। गायत्र्याश्च वृषणयोरुत्पत्तिः षड्गुणा स्मृता।। | 13-127-5a 13-127-5b |
एवं गावश्च विप्राश्च गायत्री सत्यमेव च। वसन्तश्च सुवर्णश्च एकतः समजायत।। | 13-127-6a 13-127-6b |
नेत्रयोः कपिलां यस्तु वाहयेत दुहेत वा। स पापकर्मा नरकं प्रतिष्ठां प्रतिपद्यते।। | 13-127-7a 13-127-7b |
नरकाद्विप्रमुक्तस्तु तिर्यग्योनिं निषेवते। यदा लभेत मानुष्यं जात्यन्धो जायते नरः।। | 13-127-8a 13-127-8b |
शृङ्गयोः कपिलां यस्तु वाहयेत दुहेत वा। तिर्यग्योनिं स लभते जायमानः पुनः पुनः।। | 13-127-9a 13-127-9b |
खुरेषु कपिलां यस्तु वाहयेत दुहेत वा। तमस्यपारे मज्जेत धनहीनो नराधमः।। | 13-127-10a 13-127-10b |
कपिलां वालधानेषु वाहयेत दुहेत वा। निराश्रयः सदा चैव जायते यदि चेत्कृमिः।। | 13-127-11a 13-127-11b |
कर्णेन कपिलां यस्तु जानन्नप्युपजीवति। सहस्रशः शुचिर्भुत्वा मानुष्यं प्राप्नुयादथ। चण्डालः पापयोनिश्च जायते स नराधमः।। | 13-127-12a 13-127-12b 13-127-12c |
घ्राणेन कपिलां यस्तु प्रमादादुपजीवति। सोऽपि वर्षसहस्राणि तिर्यग्योनौ प्रजायते।। | 13-127-13a 13-127-13b |
व्याधिग्रस्तो जडो रोगी भवेन्मानुष्यमागतः।। | 13-127-14a |
मधुसर्पिस्सुगन्धास्तु कपिलाः शास्त्रतः स्मृताः। एताः समुपजीवेत सोऽपि तिर्यक्षु जायते।। | 13-127-15a 13-127-15b |
स्थावरत्वमनुप्राप्तो यदि मानुष्यतां लभेत्। अल्पायुः स भवेज्जातो हीनवर्णकुलोद्भवः।। | 13-127-16a 13-127-16b |
ये तु पापा ह्यसूयन्ते कपिलां वाहयन्ति च। निरयेषु प्रतिष्ठन्ते यावदाभूतसम्प्लवम्।। | 13-127-17a 13-127-17b |
।। इति श्रीमन्महाभारते अनुशासनपर्वणि दानधर्मपर्वणि सप्तविंशत्यधिकशततमोऽध्यायः।। 127 ।। |
13-127-7 वाहयेन दमेत वेति थ.पाठ.।।
अनुशासनपर्व-126 | पुटाग्रे अल्लिखितम्। | अनुशासनपर्व-128 |