महाभारतम्-13-अनुशासनपर्व-029
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गरुडेन कद्रूंप्रत्यमृतानयनकथनम्।। 1 ।। कद्र्वा विनताया दास्यान्मोचनम्।। 2 ।। गरुडेन पुनरिन्द्रायामृतप्रत्यर्पणम्।। 3 ।।
`भीष्म उवाच। | 13-29-1x |
ततो व्रज्रं सहस्राक्षो दृष्ट्वा सक्तं वरायुधम्। ऋषींश्च दृष्ट्वा सहसा सुपर्णमिदमब्रवीत्।। | 13-29-1a 13-29-1b |
कद्रूमभ्यगमत्तूर्णममृतं गृह्य भारतः।। | 13-29-3b |
गरुड उवाच। | 13-29-4x |
तदाहृतं मया शीघ्रममृतं जननीकृते। अदासी सा भवत्वद्य विनता धर्मिचारिणी।। | 13-29-4a 13-29-4b |
कद्रूरुवाच। | 13-29-5x |
स्वागतं स्वाहृतं चेदममृतं विनतात्मज। अदासी जननी तेऽद्य पुत्र कामवशा शुभा। | 13-29-5a 13-29-5b |
एवमुक्ते तदा सा च सम्प्राप्ता विनता गृहम्।। उपनीय यथान्यायं विहगो बलिनांवरः। | 13-29-6a 13-29-6b |
स्मृत्वा निकृत्या विजयं मातुः सम्प्रतिपद्य च।। वधं च भुजगेन्द्राणां ये वालास्तस्य वाजिनः। | 13-29-7a 13-29-7b |
बभूवुरसितप्रख्या निकृत्या वै जितं त्वया।। तामुवाच ततो न्याय्यं विहगो बलिनांवरः। | 13-29-8a 13-29-8b |
उञ्जहारामृतं तूर्णमुत्पपात च रंहसा।। तद्गृहीत्वाऽमृतं तूर्णं प्रयान्तमपराजितम्। | 13-29-9a 13-29-9b |
किमर्थं वैनतेय त्वमाहृत्यामृतमुत्तमम्। पुनर्हरति दुर्बुद्धे मा जातु वृजितं कृथाः।। | 13-29-10a 13-29-10b |
सुपर्णि उवाच। | 13-29-11x |
अमृताहरणं मेऽद्य यत्कृतं जननीकृते। भवत्या वचनादेतदाहरामृतमित्युत।। | 13-29-11a 13-29-11b |
आहृतं तदिदं शीघ्रं मुक्ता च जननी मम। हराम्येष पुनस्तत्र यत एतन्मयाऽऽहृतम्।। | 13-29-12a 13-29-12b |
यदि मां भवती ब्रूयादमृतं मे च दीयताम्। तथा कुर्यां न वा कुर्यां न हि त्वममृतक्षमा। मया धर्मेण सत्येन विनता च समुद्धृता।। | 13-29-13a 13-29-13b 13-29-13c |
भीष्म उवाच। | 13-29-14x |
ततो गत्वाऽथ गरुडः पुरन्दरमुवाच ह। इदं मया वृत्रहन्तर्हृतं तेऽमृतमुत्तमम्। मात्रर्थे हि तथैवेदं गृहाणामृतमाहृतम्।। | 13-29-14a 13-29-14b 13-29-14c |
माता च मम देवेश दासीत्वमुपजग्मुषी। भुजङ्गमानां मातुर्वै सा मुक्ताऽमृतदर्शनात्।। | 13-29-15a 13-29-15b |
एतच्छ्रुत्वा सहस्राक्षः सुपर्णमनुमन्यते। उवाच च मुदा युक्तो दिष्ट्यादिष्ट्येति वासवः।। | 13-29-16a 13-29-16b |
क्रषयो ये सहस्राक्षमुपासन्ति सुरैः सह। ते सर्वे च मुदा युक्ता विश्वेदेवास्तथैव च।। | 13-29-17a 13-29-17b |
ततस्तमृषयः सर्वे देवाश्च भरतर्षभ। ऊचुः पुरन्दरं दृष्टा गरुडो लभतां वरम्।। | 13-29-18a 13-29-18b |
ततः शचीपतिर्वाक्यमुवाच प्रहसन्निव। जनिष्यति हृषीकेशः स्वयमेवैष पक्षिराट्।। | 13-29-19a 13-29-19b |
केशवः पुण्डरीकाक्षः शूरपुत्रस्य वेश्मनि। स्वयं धर्मस्य रक्षार्थं विभज्य भुजगाशनः।। | 13-29-20a 13-29-20b |
एष ते पाण्डवश्रेष्ठ गरुडोऽथ पतत्रिराट्। सुपर्णो वैनतेयश्च कीर्तितो भद्रमस्तु ते।। | 13-29-21a 13-29-21b |
तदेतद्भरतश्रेष्ठ मयाऽऽख्यानं प्रकीर्तितम्। सुपर्णस्य महाबाहो किं भूयः कथयामि ते।।' | 13-29-22a 13-29-22b |
।। इति श्रीमन्महाभारते अनुशासनपर्वणि दानधर्मपर्वणि एकोनविंशोऽध्यायः।। 29 ।। |
13-29-1 जितं त्वयेति तां कद्रूमुवाचेत्युत्तरेण सम्बन्धः।।
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