महाभारतम्-13-अनुशासनपर्व-120
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भीष्मेण युधिष्ठिरम्प्रति पेनपोपाख्यानकथनारभ्यः।। 1 ।। त्रिशिखरगिर्याश्रमवासिने सुमित्रनाम्ने विप्रवराय आङ्गिरसेनैकस्या गोर्दानम्।। 2 ।। तस्या वंशेऽसङ्ख्येयानां गवां सम्भवः।। 3 ।। सुमित्रेण वत्समुखोद्गतक्षीरफेनपानात्फेनप इति नामाधिगमः।। 4 ।।
युधिष्ठिर उवाच। | 13-120-1x |
कः फेनपेति नाम्नाऽसौ कथं वा भक्षितः पुरा। मृत उज्जीवितः कस्मात्कथं गोलोकमाश्रितः।। | 13-120-1a 13-120-1b |
विरुद्वे मानुषे लोके तथा समयवर्त्मसु। क्रते दैवं हि दुष्प्रपं मानुषेषु विशेषतः। संशयो मे महानत्र तन्मे व्याख्यातुमर्हसि।। | 13-120-2a 13-120-2b 13-120-2c |
भीष्म उवाच। | |
श्रूयते भार्गवे वंशे सुमित्रो नाम भारत। वेदाध्ययनसम्पन्नो विपुले तपसि स्थितः।। | 13-120-3a 13-120-3b |
वानप्रस्थाश्रमे युक्तः स्वकर्मनिरतः सदा। विनयाचारतत्वज्ञः सर्वधर्मार्थकोविदः।। | 13-120-4a 13-120-4b |
यत्नात्त्रिषवणस्नायी संध्योपासनतत्परः। अग्निहोत्ररतः क्षान्तो जपञ्जुह्वच्च नित्यदाः।। | 13-120-5a 13-120-5b |
पितृदेवांश्च नियतमतिर्थींश्च स पूजयन्। प्राणसन्धारणार्थं च यत्किंचिदुपहारयन्।। | 13-120-6a 13-120-6b |
गिरिस्त्रिशिखरो नाम यतः प्रभवते नदी। कुलजेति पुराणेषु विश्रुता रुद्रनिर्मिता।। | 13-120-7a 13-120-7b |
तस्यास्तीरे समे देशे पुष्पमालासमाकुले। वन्यौषधिद्रुमोपेते नानापक्षिमृगायुते।। | 13-120-8a 13-120-8b |
व्यपेतदंशमशके ध्वाङ्क्षगृध्रैरसेविते। कृष्णदर्भतृणप्राये सुरम्ये ज्योतिरश्मिनि।। | 13-120-9a 13-120-9b |
सर्वोन्नतैः समैः श्यामैर्याज्ञीयैस्तरुभिर्वृते। तत्राश्रमपदं पुण्यं भृगूणामभवत्पुरा। | 13-120-10a 13-120-10b |
उवास तत्र नियतः सुमित्रो नाम भार्गवः। यथोद्दिष्टेन पूर्वेषां भृगूणां साधुवर्त्मना।। | 13-120-11a 13-120-11b |
तस्मा आङ्गिरसः कश्चिद्ददौ गां शर्करीं शुभाम्। वर्षासु पश्चिमे मासि पौर्णमास्यां शुचिव्रतः।। | 13-120-12a 13-120-12b |
स तां लब्ध्वा धर्मशीलश्चिन्तयामास तत्परः। सुमित्रः परया भक्त्या जननीमिव मातरम्।। | 13-120-13a 13-120-13b |
तेन सन्धुक्ष्यमाणा सा रोहिणी कामरूपिणी। प्रवृद्धिमगमच्छ्रेष्ठा प्राणतश्च सुदर्शना।। | 13-120-14a 13-120-14b |
सिराविमुक्तपार्श्वान्ता विपुलां कान्तिमुद्वहत्। श्यामपार्श्वान्तपृष्ठा सा सुरभिर्मधुपिङ्गला।। | 13-120-15a 13-120-15b |
बृहती सूक्ष्मरोमान्ता रूपोदग्रा तनुत्वचा। कृष्णपुच्छा श्वेतवक्त्रा समवृत्तपयोधरा।। | 13-120-16a 13-120-16b |
पृष्ठोन्नता पूर्वनता शङ्कुकर्णी सुलोचना। दीर्घजिह्वा ह्रस्वशृङ्गी सम्पूर्णदशनान्तरा।। | 13-120-17a 13-120-17b |
मांसाधिकगलान्ता सा प्रसन्ना शुभदर्शना। नित्यं शमयुता स्निग्धा सम्पूर्णोदात्तनिस्वना।। | 13-120-18a 13-120-18b |
प्राजापत्यैर्गवां नित्यं प्रशस्तैर्लक्षणैर्युता। यौवनस्थेव वनिता शुशुभे रूपशोभया।। | 13-120-19a 13-120-19b |
वृषेणोपगता सा तु कल्या मधुरदर्शना। मिथुनं जनयामास तुल्यरूपमिवात्मनः।। | 13-120-20a 13-120-20b |
संवर्धयामास स तां सवत्सां भार्गवो मुनिः। तयोः प्रजाधिसंसर्गात्सहस्रं च गवामभूत्।। | 13-120-21a 13-120-21b |
गवां जातिसहस्राणि सम्भूतानि परस्परम्। ऋषभाणां च राजेन्द्र नैवान्तः प्रतिदृश्यते।। | 13-120-22a 13-120-22b |
तैराश्रमपदं रम्यमरण्यं चैव सर्वशः। समाकुलं समभवन्मेघैरिव नभस्थलम्।। | 13-120-23a 13-120-23b |
कानि चित्पद्मवर्णानि किंशुकाभानि कानिचित्। रुक्मवर्णानि चान्यानि चन्द्रांशुसदृशानि च।। | 13-120-24a 13-120-24b |
तथा राजतवर्णानि कानिचिल्लोहितानि वै। नीललोहितताम्राणि कृष्णानि कपिलानि च। नानारागविचित्राणि यूथानि कुलयूथप।। | 13-120-25a 13-120-25b 13-120-25c |
न च क्षीरं सुतस्नेहाद्वत्सानामुपजीवति। भार्गवः केवलं चासीद्गवां प्राणायने रतः।। | 13-120-26a 13-120-26b |
तथा शुश्रूषतस्तस्य गवां हितमवेक्षतः। व्यतीयात्सुमाहान्कालो वत्सोच्छिष्टेन वर्ततः।। | 13-120-27a 13-120-27b |
क्षुत्पिपासापरिश्रान्तः सततं प्रस्रवं गवाम्। वत्सैरुच्छिष्टमुदितं बहुक्षीरतया बहु।। | 13-120-28a 13-120-28b |
पीतवांस्तेन नामास्य फेनपेत्यभिविश्रुतम्। गौतमस्याभिनिष्पन्नमेवं नाम युधिष्ठिर।। | 13-120-29a 13-120-29b |
।। इति श्रीमन्महाभारते अनुशासनपर्वणि दानधर्मपर्वणि विंशत्यधिकशततमोऽध्यायः।। 120 ।। |
13-120-7 कूलहेति पुराणेष्विति ट.ध.पाठः।।
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