महाभारतम्-13-अनुशासनपर्व-068
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भीष्मेण युधिष्ठिरम्प्रति ब्राह्मणमहिमकथनम्।। 1 ।।
युधिष्ठिर उवाच। | 13-68-1x |
किं राज्ञः सर्वकृत्यानां गरीयः स्यात्पितामह। कुर्वन्किं कर्म नृपतिरुभौ लोकौ समश्रुते | 13-68-1a 13-68-1b |
भीष्म उवाच। | 13-68-2x |
एतद्राज्ञः कृत्यतममभिषिक्तस्य भारत। ब्राह्मणानां रक्षणं च पूजा च सुखमिच्छतः।। | 13-68-2a 13-68-2b |
कर्तव्यं पार्थिवेन्द्रेण तथैव भरतर्षभ। श्रोत्रियान्ब्राह्मणान्वृद्धान्नित्यमेवाभिपूजयेत्।। | 13-68-3a 13-68-3b |
पौरजानपदांश्चापि ब्राह्मणांश्च बहुश्रुतान्। सांत्वेन भोगदानेन नमस्कारैः सदाऽर्चयेत्।। | 13-68-4a 13-68-4b |
एतत्कृत्यतमं राज्ञो नित्यमेवोपलक्षयेत्। यथाऽऽत्मानं यथा पुत्रांस्तथैतान्प्रतिपालयेत्।। | 13-68-5a 13-68-5b |
ये चाप्येषां पूज्यतमास्तान्दृढं प्रतिपूजयेत्। तेषु शान्तेषु तद्राष्ट्रं सर्वमेव विराजते।। | 13-68-6a 13-68-6b |
ते पूज्यास्ते नमस्कार्या मान्यास्ते पितरो यथा। तेष्वेव यात्रा लोकानां भूतानामिव वासवे।। | 13-68-7a 13-68-7b |
अभिचारैरुपायैश्च दहेयुरपि चेतसा। निःशेपं कुपिताः कुर्युरुग्राः सत्यपराक्रमाः। | 13-68-8a 13-68-8b |
नान्तमेषां प्रपश्यामि न दिशश्चाप्यपावृताः। कुपिताः समुदीक्षन्ते दावेषअवग्निशिखा इव।। | 13-68-9a 13-68-9b |
`मान्यास्तेषां साधवो ये न निन्द्याश्चाप्यसाधवः'। बिभ्यत्येषां साहसिका गुणास्तेषामतीव हि। कूपा इव तृणच्छन्ना विशुद्धा द्यौरिवापरे।। | 13-68-10a 13-68-10b 13-68-10c |
प्रसह्यकारिणः केचित्कार्पासमृदवोऽपरे। सन्ति चैषामतिशठास्तथैवान्ये तपस्विनः।। | 13-68-11a 13-68-11b |
कृषिगोरक्ष्यमप्येके भैक्ष्यमन्येऽप्यनुष्ठिताः। चोराश्चान्येऽनृताश्चान्ये तथाऽन्ये नटनर्तकाः।। | 13-68-12a 13-68-12b |
सर्वकर्मसहाश्चान्ये पार्थिवेष्वितरेषु च। विविधाचारयुक्ताश्च ब्राह्मणा भरतर्षभ।। | 13-68-13a 13-68-13b |
नानाकर्मसु रक्तानां बहुकर्मोपजीविनाम्। धर्मज्ञानां सतां तेषां नित्यमवोनुकीर्तयेत् | 13-68-14a 13-68-14b |
पितॄणां देवतानं च मनुष्योरगरक्षसाम्। पुराऽप्येते महाभागा ब्राह्मणा वै जनाधिप।। | 13-68-15a 13-68-15b |
नैते देवैर्न पितृभिर्न गन्धर्वैर्न राक्षसैः। नासुरैर्न पिशाचैश्च शक्या जेतुं द्विजातयः।। | 13-68-16a 13-68-16b |
अदैवं दैवतं कुर्युर्दैवतं चाप्यदैवतम्। यमिच्छेयुः स राजा स्याद्यं द्विष्युः स पराभवेत्।। | 13-68-17a 13-68-17b |
परिवादं च ये कुर्युर्ब्राह्मणानामचेतसः। सत्यं ब्रवीमि ते राजन्विनश्येयुर्न संशयः।। | 13-68-18a 13-68-18b |
निन्दाप्रशंसाकुशलाः कीर्त्यकीर्तिपरायणाः। परिकुप्यन्ति ते राजन्सततं द्विषतां द्विजाः।। | 13-68-19a 13-68-19b |
ब्राह्मणा यं प्रशंसन्ति पुरुषः स प्रवर्धते। ब्राह्मणैर्यः पराकृष्टः पराभूयात्क्षणाद्धि सः।। | 13-68-20a 13-68-20b |
शका यवनकाम्भोजास्तास्ताः क्षत्रियजातयः। वृषलत्वं परिगता ब्राह्मणानामदर्शनात्।। | 13-68-21a 13-68-21b |
द्राविडाश्च कलिङ्गाश्च पुलिन्दाश्चाप्युशीनराः। कोलिसर्पा महिपकास्तास्ताः क्षत्रियजातयः।। | 13-68-22a 13-68-22b |
वृपलत्वं परिगता ब्राह्मणानामदर्शनात्। श्रेयान्पराजयस्तेभ्यो न जयो जयतांवर।। | 13-68-23a 13-68-23b |
यस्तु सर्वमिदं हन्याद्ब्राह्मणं च न तत्समम्। ब्रह्मवध्या महान्दोष इत्याहुः परमर्षयः।। | 13-68-24a 13-68-24b |
परिवादो द्विजातीनां न श्रोतव्यः कथञ्चन। आसीताधोमुखस्तूष्णीं समुत्थाय व्रजेत वा।। | 13-68-25a 13-68-25b |
न स जातो जनिष्यो वा पृथिव्यामिह कश्चन। यो ब्राह्मणविरोधेन सुखं जीवितुमुत्सहेत्।। | 13-68-26a 13-68-26b |
दुर्ग्राह्यो मुष्टिना वायुर्दुःस्पर्शः पाणिना शशी। दुर्धरा पृथिवी मूर्ध्ना दुर्जया ब्राह्मणा भुवि।। | 13-68-27a 13-68-27b |
।। इति श्रीमन्महाभारते अनुशासनपर्वणि दानधर्मपर्वणि अष्टषष्टितमोऽध्यायः।। 68 ।। |
13-68-6 एषां ब्राह्मणानां मध्ये।। 13-68-7 वासवे पर्जन्ये।। 13-68-8 अभिचारैः श्येनयागादिभिः। उणयैः कौलिकशास्त्रप्रसिद्धैः। चेतसा सङ्कल्पमात्रेण।। 13-68-10 एषां एभ्यः साहसिका अकार्यकारिणोऽणि बिभ्यति किमुन विवेकिनः।। 13-68-15 एते पूज्या इति शेषः। यतो महाभागाः।। 13-68-19 परायणाः हेतवः।।
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