महाभारतम्-13-अनुशासनपर्व-016
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भीष्मेण युधिष्ठिरंप्रति भगवन्महिमप्रतिपादकव्यासवचनानुवादः।। 1 ।।
`भीष्म उवाच। | 13-16-1x |
द्वारकायां यथा प्राह पुराऽयं मुनिसत्तमः। वेदविप्रमयत्वं तु वासुदेवस्य तच्छृणु।। | 13-16-1a 13-16-1b |
यूपं विष्णुं वासुदेवं विजान- न्सर्वान्विप्रान्बोधते तत्वदर्शि। विष्णुं क्रान्तं वासुदेवं विजान- न्विप्रो विप्रत्वं गच्छते तत्वदर्शी।। | 13-16-2a 13-16-2b 13-16-2c 13-16-2d |
विष्णुर्यज्ञस्त्विज्यते चापि विष्णुः कृष्णो विष्णुर्यश्च कृत्स्नः प्रभुश्च। कृष्णो वेदाङ्गं वेदवादाश्च कृष्ण एवं जानन्ब्राह्मणो ब्रह्म एति।। | 13-16-3a 13-16-3b 13-16-3c 13-16-3d |
स्थानं सर्वं वैष्णवं यज्ञमार्गे चातुर्होत्रं वैष्णवं तत्र कृष्णः। सर्वैर्भावैरिज्यते सर्वकामैः पुण्याँल्लोकान्ब्राह्मणाः प्राप्नुवन्ति।। | 13-16-4a 13-16-4b 13-16-4c 13-16-4d |
सोमं सद्भावाद्ये च जातं पिबन्ति दीप्तिं कर्म ये विदानाश्चरन्ति। एकान्तमिष्टं चिन्तयन्तो दिविस्था- स्ते वै स्थानं प्राप्नुवन्ति व्रतज्ञाः।। | 13-16-5a 13-16-5b 13-16-5c 13-16-5d |
ओमित्येतद्ध्यायमानो न गच्छे- द्दुर्गं पन्थानं पापकर्मापि विप्रः। सर्वं कृष्णं वासुदेवं हि विग्राः कृत्वा ध्यानं दुर्गतिं न प्रयान्ति।। | 13-16-6a 13-16-6b 13-16-6c 13-16-6d |
आज्यं यज्ञः स्रुक्स्रुवौ यज्ञदाता इच्छा पत्नी पत्निशाला हवींषि। इध्याः पुरोडाशं सर्वदा होतृकर्ता कृत्स्नं विष्णुं संविजानंस्तमेति।। | 13-16-7a 13-16-7b 13-16-7c 13-16-7d |
योगेयोगे कर्मणां चाभिहारे युक्ते वैताने कर्मणि ब्राह्मणस्य। पुष्ट्यर्थेषु प्राप्नुयात्कर्मसिद्धिं शान्त्यर्थेषु प्राप्नुयात्सर्वशान्तिम्ट'।। | 13-16-8a 13-16-8b 13-16-8c 13-16-8d |
।। इति श्रीमन्महाभारते अनुशासनपर्वणि दानधर्मपर्वणि षोडशोऽध्यायः।। 16 ।। |
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