महाभारतम्-12-शांतिपर्व-001
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गङ्गातीरे बन्धूनां कृतोदकं युधिष्ठिरंप्रति व्यासनारदादिमहर्षीणां समागमनम्।। 1।। युधिष्ठिरेण तत्र नारदंप्रति कर्णवृत्तान्तकथनप्रार्थना।। 2।।
श्रीवेदव्यासाय नमः। | 12-1-1x |
नारायणं नमस्कृत्य नरं चैव नरोत्तमम्। देवीं सरस्वतीं व्यासं ततो जयमुदीरयेत्।। | 12-1-1a 12-1-1b |
वैशंपायन उवाच। | 12-1-1x |
कृत्वोदकं ते सुहृदां सर्वेषां पाण्डुनन्दनाः। विदुरो धृतराष्ट्रश्च सर्वाश्च भरतस्त्रियः।। | 12-1-1c 12-1-1d |
तत्र ते सुमहात्मानो न्यवसन्कुरुनन्दनाः। शौचं निर्वर्तयिष्यन्तो मासच्चात्रं बहिः पुरात्।। | 12-1-2a 12-1-2b |
कृतोदकं तु राजानं धर्मात्मानं युधिष्ठिरम्। अभिजग्मुर्महात्मानः सिद्धा ब्रह्मर्षिसत्तमाः।। | 12-1-3a 12-1-3b |
द्वैपायनो नारदश्च देवलश्च महानृषिः। देवस्थानश्च कण्वश्च तेषां शिष्याश्च सत्तमाः।। | 12-1-4a 12-1-4b |
अन्ये च वेदविद्वांसः कृतप्रज्ञा द्विजातयः। गृहस्थाः स्नातकाः सन्तो ददृशुः कुरुसत्तमम्।। | 12-1-5a 12-1-5b |
तेऽभिगम्य महात्मानं पूजिताश्च यथाविधि। आसनेषु महार्हेषु विविशुः परमर्षयः।। | 12-1-6a 12-1-6b |
प्रतिगृह्य ततः पूजां तत्कालसदृशीं तदा। पर्युपांसन्यथान्यायं परिवार्य युधिष्ठिरम्।। | 12-1-7a 12-1-7b |
पुण्ये भागीरथीतीरे शोकव्याकुलचेतसम्। आश्वासयन्तो राजेन्द्रं विप्राः शतसहस्रशः।। | 12-1-8a 12-1-8b |
नारदस्त्वव्रवीत्काले धर्मपुत्रं युधिष्ठिरम्। संभाष्य मुनिभिः सार्धं कृष्णद्वैपायनादिभिः।। | 12-1-9a 12-1-9b |
नारद उवाच। | 12-1-10x |
पार्थस्य बाहुवीर्येण प्रसादान्माधवस्य च। जिता सेयं मही कृत्स्ना धर्मेण च युधिष्ठिर।। | 12-1-10a 12-1-10b |
दिष्ट्या मुक्ताः स्थ संग्रामादस्माल्लोकभयंकरात्। क्षत्रधर्मरतश्चासि कच्चिन्मोदसि पाण्डव।। | 12-1-11a 12-1-11b |
कच्चिच्च निहतामित्रः प्रीणासि सुहृदो नृप। कच्चिच्छ्रियमिमां प्राप्य न त्वां शोकः प्रबाधते।। | 12-1-12a 12-1-12b |
युधिष्ठिर उवाच। | 12-1-13x |
विजितेयं मही कृत्स्ना कृष्णबाहुबलाश्रयात्। ब्राह्मणानां प्रसादेन भीमार्जुनबलेन च।। | 12-1-13a 12-1-13b |
इदं तु मे महद्दुःखं वर्तते हृदि नित्यदा। कृत्वा ज्ञातिक्षयमिमं महान्तं घोरदर्शनम्।। | 12-1-14a 12-1-14b |
सौभद्रं द्रौपदेयांश्च घातयित्वा सुतान्प्रियान्। जयोऽयमजयाकारो भगवन्प्रतिभाति मे।। | 12-1-15a 12-1-15b |
किंनु वक्ष्यति वार्ष्णेयी वधूर्मे मधुसूदनम्। द्वारकावासिनी कृष्णमितः प्रतिगतं हरिम्।। | 12-1-16a 12-1-16b |
द्रौपदी हतपुत्रेयं कृपणा हतबान्धवा। अस्मत्प्रियहिते युक्ता भूयः पीडयतीव माम्।। | 12-1-17a 12-1-17b |
इदमन्यच्च भगवन्यत्त्वां वक्ष्यामि नारद। मन्त्रसंवरणेनास्मि कुन्त्या दुःखेन योजितः।। | 12-1-18a 12-1-18b |
यः स नागायुतप्राणो लोकेऽप्रतिरथो रणे। सिंहविक्रान्तगामी च जितकाशी यतव्रतः।। | 12-1-19a 12-1-19b |
आश्रयो धार्तराष्ट्राणां मानी तीक्ष्णपराक्रमः। अमर्षी नित्यसंरम्भी क्षेप्ताऽस्माकं रणेरणे।। | 12-1-20a 12-1-20b |
शीघ्रास्त्रश्चित्रयोधी च कृती चाद्भुतविक्रमः। गूढोत्पन्नः सुतः कुन्त्या भ्राताऽस्माकमसौ किल | 12-1-21a 12-1-21b |
तोयकर्मणि तं कुन्ती कथयामास मे तदा। पुत्रं सर्वगुणोयेतं कर्णं त्यक्तं जले पुरा।। | 12-1-22a 12-1-22b |
मञ्जूषायां समाधाय गङ्गास्रोतस्यमज्जयत्। यं सूतपुत्रं लोकोऽयं राधेयं चाभ्यमन्यत।। | 12-1-23a 12-1-23b |
स सूर्यपुत्रः कुन्त्या यै भ्राताऽस्माकं च मातृतः। अजानता मया सड्ख्ये राज्यलुब्धेन घातितः। तन्मे दहति गात्राणि तूलराशिमिवानलः।। | 12-1-24a 12-1-24b 12-1-24c |
न हि तं वेद पार्थोऽपि भ्रातरं श्वेतवाहनः। नाहं न भीमो न यमौ स त्वस्मान्वेद तत्वतः।। | 12-1-25a 12-1-25b |
गता किल पृथा तस्य सकाशमिति नः श्चुतम्। अस्माकं शमकामा वै त्वं च पुत्रो ममेत्यथ।। | 12-1-26a 12-1-26b |
पृथाया न कृतः कामस्तेन चापि महात्मना। अतीवानुचितं मातरवोच इति सोऽब्रवीत्।। | 12-1-27a 12-1-27b |
न हि शक्ष्यामि संत्यक्तुमहं दुर्योधनं रणे। अनार्यत्वं नृशंसत्वं कृतघ्नत्वं च मे भवेत्।। | 12-1-28a 12-1-28b |
युधिष्ठिरेण सन्धिं हि यदि कुर्यां मते तव। भीतो रणे श्वेतवाहादिति मां मंस्यते जनः।। | 12-1-29a 12-1-29b |
सोऽहं निर्जित्य समरे विजयं सहकेशवम्। संधास्ये धर्मपुत्रेण पश्चादिति च सोऽब्रवीत्।। | 12-1-30a 12-1-30b |
तमवोचत्किल पृथा पुनः पृथुलवक्षसम्। चतुर्णामभयं देहि कामं युध्यस्व फल्गुनम्।। | 12-1-31a 12-1-31b |
सोऽब्रवीन्मातरं धीमान्वेपमानां कृताञ्जलिः। प्राप्तान्विषह्यांश्चतुरो न हनिष्यामि ते सुतान्।। | 12-1-32a 12-1-32b |
पञ्चैव हि सुता देवि भविष्यन्ति तव ध्रुवाः। सार्जुना वा हते कर्णे सकर्णा वा हतेऽर्जुने।। | 12-1-33a 12-1-33b |
तं पुत्रगृद्धिनी भूयो माता पुत्रमथाब्रवीत्। भ्रातॄणां स्वस्ति कुर्वीथा येषां स्वस्ति चिकीर्षसि।। | 12-1-34a 12-1-34b |
एवमुक्त्वा किल पृथा विसृज्योपययौ गृहान्। सोऽर्जुनेन हतो वीरो भ्रात्रा भ्राता सहोदरः।। | 12-1-35a 12-1-35b |
न चैव निःसृतो मन्त्रः पृथायास्तस्य वा मुने। अथ शूरो महेष्वासः पार्थेनाजौ निपातितः।। | 12-1-36a 12-1-36b |
अहं त्वज्ञासिषं पश्चात्स्वसोदर्यं द्विजोत्तम। पूर्वजं भ्रातरं कर्णं पृथाया वचनात्प्रभो।। | 12-1-37a 12-1-37b |
तेन मे दूयते तीव्रं हृदयं भ्रातृघातिनः। कर्णार्जुनसहायोऽहं जयेयमपि वासवम्।। | 12-1-38a 12-1-38b |
सभायां क्लिश्यमानस्य धार्तराष्ट्रैर्दुरात्मभिः। सहसोत्पतितः क्रोधः कर्णं दृष्ट्वा प्रशाम्यति।। | 12-1-39a 12-1-39b |
यदा ह्यस्य गिरो रूक्षाः श्रृणोमि कटुकोदयाः। सभायां गदतो द्यूते दुर्योधनहितैषिणः।। | 12-1-40a 12-1-40b |
तदा नश्यति मे रोषः पादौ तस्य निरीक्ष्य ह। कुन्त्या हि सदृशौ पादौ कर्णस्येति मतिर्मम।। | 12-1-41a 12-1-41b |
सादृश्यहेतुमन्विच्छन्पृथायास्तस्य चैव ह। कारणं नाधिगच्छामि कथंचिदपि चिन्तयन्।। | 12-1-42a 12-1-42b |
कथं नु तस्य संग्रामे पृथिवी चक्रमग्रसत्। कथं नु शप्तो भ्राता मे तत्त्वं वक्तुमिहार्हसि।। | 12-1-43a 12-1-43b |
श्रोतुमिच्छामि भगवंस्त्वत्तः सर्वं यथातथम्। भवान्हि सर्वविद्विद्वाँल्लोके वेद कृताकृतम्।। | 12-1-44a 12-1-44b |
।। इति श्रीमन्महाभारते शान्तिपर्वणि राजधर्मपर्वणि प्रथमोऽध्यायः।। 1।। |
12-1-1 कृतोदकास्ते इति झ. पाठः।। 12-1-2 तत्र गङ्गातीरे।। 12-1-8 आश्वासयन्तः हेतौ शतृप्रत्ययः। आश्वासनार्थं पर्युपासन्नित्यर्थः।। 12-1-16 वधूः कनिष्ठभ्रातृभार्यात्वात्स्नुषाभूता। वार्ष्णेयी सुभद्रा।। 12-1-18 मन्त्रसंवरणेन गूढोत्पन्नस्यास्मद्भातुः कर्णस्याप्रकाशेन।। 12-1-20 अमर्षी परोत्कर्षासहिष्णुः। नित्यसंरम्भी सदा क्रोधवान्।। 12-1-24 मातृतः मातृसंबन्धेन।। 12-1-26 पाण्डववत् त्वं च पुत्रो मभेत्यव्रवीदिति शेषः।। 12-1-27 कामोऽभिलषितम्।। 12-1-32 वध्यान्विषबह्यानिति थ. पाठःo। विषह्यान्वशगान्।। 12-1-35 विसृज्य कर्णमिति शेषः।। 12-1-43 चक्रं रथचक्रम्।। 12-1-44 कृतं कार्यम्। अकृतं कारणम्।।
शांतिपर्व | पुटाग्रे अल्लिखितम्। | शांतिपर्व-002 |