महाभारतम्-12-शांतिपर्व-361
← शांतिपर्व-360 | महाभारतम् द्वादशपर्व महाभारतम्-12-शांतिपर्व-361 वेदव्यासः |
शांतिपर्व-362 → |
ब्रह्मणा रुद्रंप्रति भगवन्महिमप्रतिपदानम्।। 1।।
ब्रह्मोवाच। | 12-361-1x |
शृणु पुत्र यथाह्येष पुरुषः शाश्वतोऽव्ययः। अक्षयश्चाप्रमेयश्च सर्वगश्च निरुच्यते।। | 12-361-1a 12-361-1b |
न स शक्यस्त्वया द्रष्टुं मयाऽन्यैर्वाऽपि सत्तम। सगुणैर्निर्गुणैर्विश्वो ज्ञानदृश्यो ह्यसौ स्मृतः।। | 12-361-2a 12-361-2b |
अशरीरः शरीरेषु सर्वेषु निवसत्यसौ। वसन्नपि शरीरेषु न स लिप्यति कर्मभिः।। | 12-361-3a 12-361-3b |
ममान्तरात्मा तव च ये चान्ये देहसंज्ञिताः। सर्वेषां साक्षिभूतोऽसौ न ग्राह्यः केनचिक्वचित्।। | 12-361-4a 12-361-4b |
विश्वमूर्धा विश्वभुजो विश्वपादाक्षिनासिकः। एकश्चरति क्षेत्रेषु स्वैरचारी यथासुखम्।। | 12-361-5a 12-361-5b |
क्षेत्राणि हि शरीराणि बीजं चापि शुभाशुभम्। तानि वेत्ति स योगात्मा ततः क्षेत्रज्ञ उच्यते।। | 12-361-6a 12-361-6b |
नागतिर्न गतिस्तस्य ज्ञेया भूतेषु केनचित्। साङ्ख्येन विधिना चैव योगेन च यथाक्रमम्।। | 12-361-7a 12-361-7b |
चिन्तयामि गतिं चास्य न गतिं वेद्मि चोत्तराम्। यथाज्ञानं तु वक्ष्यामि पुरुषं तु सनातनम्।। | 12-361-8a 12-361-8b |
तस्यैकत्वं महत्त्वं च स चैकः पुरुषः स्मृतः। महापुरुषशब्दं स बिभर्त्येकः सनातनः।। | 12-361-9a 12-361-9b |
स्तं निर्गुणं पुरुषं चाविशन्ति।। | 12-361-10f |
हित्वा गुणमयं सर्वं कर्मं हित्वा शुभाशुभम्। उभे सत्यानृते त्यक्त्वा एवं भवति निर्गुणः।। | 12-361-11a 12-361-11b |
अचिन्त्यं चापि तं ज्ञात्वा भावसूक्ष्मं चतुष्टयम्। विचरेद्योऽसमुन्नद्धः स गच्छेत्पुरुषं शुभम्।। | 12-361-12a 12-361-12b |
एकं हि परमात्मानं केचिदिच्छन्ति पण्डिताः। एकात्मानं तथाऽऽत्मानमपरेध्यात्मचिन्तकाः।। | 12-361-13a 12-361-13b |
तत्र यः परमात्मा हि स नित्यो निर्गुणः स्मृतः। स हि नारायणो ज्ञेयः सर्वात्मा पुरुषो हि सः।। | 12-361-14a 12-361-14b |
न लिप्यते फलैश्चापि पद्मपत्रमिवाम्भसा। कर्मात्मा त्वपरो योसौ मोक्षबन्धैः स युज्यते।। | 12-361-15a 12-361-15b |
ससप्तदशकेनापि राशिना युज्यते च सः। एवं बहुविधः प्रोक्तः पुरुषस्ते यथाक्रमम्।। | 12-361-16a 12-361-16b |
यत्तत्कृत्स्नं लोकतन्त्रस्य धाम वेद्यं परं बोधनीयं च वेदैः। मन्ता मन्तव्यं प्राशिता प्राशनीयं घ्राता घ्रेयं स्पर्शिता स्पर्शनीयम्।। | 12-361-17a 12-361-17b 12-361-17c 12-361-17d |
द्रष्टा द्रष्टव्यं श्राविता श्रावणीयं ज्ञाता ज्ञेयं सगुणं निर्गुणं च। यद्वै प्रोक्तं तात सम्यक्प्रधानं नित्यं चैतच्छाश्वतं चाव्ययं च।। | 12-361-18a 12-361-18b 12-361-18c 12-361-18d |
यद्वै सूते धातुराद्यं विधानं तद्वै विप्राः प्रवदन्तेऽनिरुद्धम्। यद्वै लोके वैदिकं कर्म साधु आशीर्युक्तं तद्धि तस्योपभोग्यम्।। | 12-361-19a 12-361-19b 12-361-19c 12-361-19d |
देवाः सर्वे मनुयः साधु दान्ता स्तं प्राग्वंशे यज्ञभागं भजन्ते। अहं ब्रह्मा आद्य ईशः प्रजानां तस्माज्जातस्त्वं च मत्तः प्रसूतः।। | 12-361-20a 12-361-20b 12-361-20c 12-361-20d |
मत्तो जगज्जङ्गमं स्थावरं च सर्वे वेदाः सरहस्या हि पुत्र।। | 12-361-21a 12-361-21b |
चतुर्विभक्तः पुरुषः स क्रीडति यथेच्छति। एवं स भगवान्देवः स्वेन ज्ञानेन बोधयत्।। | 12-361-22a 12-361-22b |
एतत्ते कथितं पुत्र यथावदनुपृच्छतः। साङ्ख्यज्ञाने तथा योगे यथावदनुवर्णितम्।। | 12-361-23a 12-361-23b |
।। इति श्रीमन्महाभारते शान्तिपर्वणि मोक्षधर्मपर्वणि नारायणीये समाप्तौ एकषष्ट्यधिकत्रिशततमोऽध्यायः।। 361।। |
12-361-2 सगुणो निर्गुणो विश्व इति ट. ध. पाठः।।
शांतिपर्व-360 | पुटाग्रे अल्लिखितम्। | शांतिपर्व-362 |