महाभारतम्-12-शांतिपर्व-243
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भीष्मेण युधिष्ठिरंप्रति भूतेषु तारतम्यकतनपूर्वकज्ञानप्रशंसापरशुकसंबोध्यकव्यासवाक्यानुवादः।। 1।।
व्यास उवाच। | 12-243-1x |
अथ ज्ञानप्लवं धीरो गृहीत्वा शान्तिमात्मनः। उन्मज्जंश्च निमज्जंश्च विद्यामेवाभिसंश्रयेत्।। | 12-243-1a 12-243-1b |
शुक उवाच। | 12-243-2x |
किं तज्ज्ञानमथो विद्या यथा निस्तरते द्वयम्। प्रवृत्तिलक्षणो धर्मो निवृत्तिरिति चैव हि।। | 12-243-2a 12-243-2b |
व्यास उवाच। | 12-243-3x |
यस्तु पश्यन्स्वभावेन विनाभावमचेतनः। पुष्णाति स पुनः सर्वान्प्रज्ञया मुक्तहेतुकः।। | 12-243-3a 12-243-3b |
येषां चैकान्तभावेन स्वभावः कारणं मतम्। दूर्वातृणवृसीका ये ते लभन्ते न किंचन।। | 12-243-4a 12-243-4b |
येचैनं पक्षमाश्रित्य निवर्तन्त्यल्पमेधसः। स्वभावं कारणं ज्ञात्वा न श्रेयः प्राप्नुवन्ति ते।। | 12-243-5a 12-243-5b |
स्वभावो हि विनाशाय मोहकर्ममनोभवः। निरुक्तमेतयोरेतत्स्वभावपरिभावयोः।। | 12-243-6a 12-243-6b |
कृष्यादीनीह कर्माणि सस्यसंहरणानि च। प्रज्ञावद्भिः प्रक्लृप्तानि यानासनगृहाणि च।। | 12-243-7a 12-243-7b |
आक्रीडानां गृहाणां च गदानामगदस्य च। प्रज्ञावन्तः प्रवक्तारो ज्ञानवद्भिरनुष्ठिताः।। | 12-243-8a 12-243-8b |
प्रज्ञा संयोजयत्यर्थैः प्रज्ञा श्रेयोऽधिगच्छति। राजानो भुञ्जते राज्यं प्रज्ञया तुल्यलक्षणाः।। | 12-243-9a 12-243-9b |
परावरं तु भूतानां ज्ञानेनैवोपलभ्यते। विद्यया तात सृष्टानां विद्यैवेह परा गतिः।। | 12-243-10a 12-243-10b |
भूतानां जन्म सर्वेषां विविधानां चतुर्विधम्। जरायुजाण्डजोद्भिज्जस्वेदजं चोपलक्षयेत्।। | 12-243-11a 12-243-11b |
स्थावरेभ्यो विशिष्टानि जङ्गमान्युपधारयेत्। उपपन्नं हि यच्चेष्टा विशिष्येत विशेष्यया।। | 12-243-12a 12-243-12b |
आहुर्द्विबहुपादानि जङ्गमानि द्वयानि तु। बहुषाद्भ्यो विशिष्टानि द्विपादानि बहून्यपि।। | 12-243-13a 12-243-13b |
द्विपदानि द्वयान्याहुः पार्थिवानीतराणि च। पार्थिवानि विशिष्टानि तानि ह्यन्नानि भुञ्जते।। | 12-243-14a 12-243-14b |
पार्थिवानि द्वयान्याहुर्मध्यमान्युत्तमानि तु। मध्यमानि विशिष्टानि जातिधर्मोपधारणात्।। | 12-243-15a 12-243-15b |
मध्यमानि द्वयान्याहुर्धर्मज्ञानीतराणि च। धर्मज्ञानि विशिष्टानि कार्याकार्योपधारणात्।। | 12-243-16a 12-243-16b |
धर्मज्ञानि द्वयान्याहुर्वेदज्ञानीतराणि च। वेदज्ञानि विशिष्टानि वेदो ह्येषु प्रतिष्ठितः।। | 12-243-17a 12-243-17b |
वेदज्ञानि द्वयान्याहुः प्रवक्तृणीतराणि च। प्रवक्तॄणि विशिष्टानि सर्वधर्मोपधारणात्।। | 12-243-18a 12-243-18b |
विज्ञायन्ते हि यैर्वेदाः सधर्माः सक्रियाफलाः। सधर्मा निखिला वेदाः प्रवक्तृभ्यो विनिःसृताः।। | 12-243-19a 12-243-19b |
प्रवक्तॄणि द्वयान्याहुरात्मज्ञानीतराणि च। आत्मज्ञानि विशिष्टानि जन्माजन्मोपधारणात्।। | 12-243-20a 12-243-20b |
धर्मद्वयं हि यो वेद स सर्वज्ञः स सर्ववित्। सत्याशीः सत्यसंकल्पः सत्यः शुचिरथेश्वरः।। | 12-243-21a 12-243-21b |
धर्मज्ञानप्रतिष्ठं हि तं देवा ब्राह्मणं विदुः। शब्दब्रह्मणि निष्णातं परे च कृतनिश्चयम्।। | 12-243-22a 12-243-22b |
अन्तस्थं च बहिष्ठं च येऽधियज्ञाधिदैवतम्। जानन्ति तान्नमस्यामस्ते देवास्तात ते द्विजाः।। | 12-243-23a 12-243-23b |
तेषु विश्वमिदं भूतं साग्रं च जगदाहितम्। तेषां माहात्म्यभावस्य सदृशं नास्ति किंचन।। | 12-243-24a 12-243-24b |
आद्यन्तनिधनं चैव कर्म चातीत्य सर्वशः। चतुर्विधस्य भूतस्य सर्वस्येशाः स्वयंभुवः।। | 12-243-25a 12-243-25b |
।। इति श्रीमन्महाभारते शान्तिपर्वणि मोक्षधर्मपर्वणि त्रिचत्वारिंशदधिकद्विशततमोऽध्यायः।। 243।। |
12-243-3 मुक्तहेतुकानिति झ. पाठः।। 12-243-4 पूत्वा तृणमिषीकां वेति झ. पाठः।। 12-243-7 सस्यसंग्रहणानि चेति थ. पाठः।। 12-243-8 गदानां रोगाणाम्। अगदस्यौषधस्य। अनुष्ठिताः प्रयोजिताः। गतानामागतस्य चेति ट. थ। पाठः।। 12-243-9 तुल्यलक्षणाः प्रज्ञाधिक्याद्वैश्वर्याधिक्यभाजः।। 12-243-12 यच्चेष्टे विशिष्येत निचेष्टक इति ट. थ. पाठः।। 12-243-14 पार्थिवानि पृथिवीचराणि मानुषाणि। इतराणि स्वेचराणि।। 12-243-19 सर्वयज्ञाः क्रिया वेदा इति ध. पाठः।। 12-243-21 धर्मद्वयं प्रवृत्तिनिवत्तिरूपं। सत्यागीति झ. पाठः। सत्यक्षान्तिः स ईश्वर इति ट.थ. पाठः।। 12-243-22 शब्दब्रह्मणि वेदशास्त्रे।।
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