महाभारतम्-12-शांतिपर्व-195
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भीष्मेण युधिष्ठिरंप्रति जापकोपाख्यानकथनम्।। 1।।
युधिष्ठिर उवाच। | 12-195-1x |
गतीनामुत्तमा प्राप्तिः कथिता जापकेष्विह। एकैवैषा गतिस्तेषामुत यान्त्यपरामपि।। | 12-195-1a 12-195-1b |
भीष्म उवाच। | 12-195-2x |
शृणु वहितो राजञ्जापकानां गतिं विभो। यथा गच्छन्ति निरयमनेकं पुरुषर्षभ।। | 12-195-2a 12-195-2b |
यथोक्तमेतत्पूर्वं यो नानुतिष्ठति जापकः।। एकदेशक्रियश्चात्र निरयं स निगच्छति।। | 12-195-3a 12-195-3b |
अवमानेन कुरुते न तुष्यति न शोचति। ईदृशो जापको याति निरयं नात्र संशयः।। | 12-195-4a 12-195-4b |
अहंकारकृतश्चैव सर्वे निरयग्रामिनः। परावमानी पुरुषो भविता निरयोपगः।। | 12-195-5a 12-195-5b |
अभिध्यापूर्वकं जप्यं कुरुते यश्च मोहितः। यत्रास्य रागः पतति तत्रतत्रोपपद्यते।। | 12-195-6a 12-195-6b |
अथैश्वर्यप्रसक्तः सञ्जापको यत्र रज्यते। स एव निरयस्तस्य नासौ तस्मात्प्रमुच्यते।। | 12-195-7a 12-195-7b |
रागेण जापको जप्यं कुरुते यश्च मोहितः। यत्रास्य रागः पतति तत्र तत्रोपजायते।। | 12-195-8a 12-195-8b |
दुर्बुद्धिरकृतप्रज्ञश्चले मनसि तिष्ठति। फलस्यापचितिं याति निरयं चाधिगच्छति।। | 12-195-9a 12-195-9b |
अकृतव्रज्ञको बालो मोहं गच्छति जापकः। स मोहान्निरयं याति यत्र गत्वाऽनुशोचति।। | 12-195-10a 12-195-10b |
दृढग्राही करोमीति जाप्यं जपति जापकः। न संपूर्णो न वा युक्तो निरयं सोऽधिगच्छति।। | 12-195-11a 12-195-11b |
अनिमित्तं परं यत्तदव्यक्तं ब्रह्मणि स्थितम्। तद्भूतो जापकः कस्मात्सशरीरमिहाविशेत्।। | 12-195-12a 12-195-12b |
दुष्प्रज्ञानेन निरया बहवः समुदाहृताः। प्रशस्तं जापकत्वं च दोषाश्चैते तदात्मकाः।। | 12-195-13a 12-195-13b |
।। इति श्रीमन्महाभारते शान्तिपर्वणि मोक्षधर्मपर्वणि पञ्चनवत्यधिकशततमोऽध्यायः।। 195।। |
12-195-1 यतीनामिति ध. पाठः।। 12-195-2 एतत्सर्वं य इति ट. पाठः।। 12-195-3 अपूर्णाङ्गजपपर इत्यर्थः।। 12-195-4 अवमानेनाश्रद्धया। जपे प्रीत्यादिरहितः।। 12-195-5 अहंकारकृतो दर्पवन्तः। पुरुषो जापकः।। 12-195-6 अभिध्याफलाभिसन्धिः। यत्र फले रागः प्रीतिस्तत्र तत्फलभोगनिमित्तमुपपद्यते योग्यं देहं प्राप्नोति।। 12-195-7 स एवतत्र रागएव।।
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