महाभारतम्-12-शांतिपर्व-261
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भीष्मेण युधिष्ठिरंप्रति पृथिव्यादिभूदगुणप्रतिपादकव्यासवाक्यानुवादः।। 1।।
भीष्म उवाच। | 12-261-1x |
भूतानां गुणसङ्ख्यानं भूयः पुत्र निशामय। द्वैपायनमुखाद्धष्टं श्लाघया परयाऽनघ।। | 12-261-1a 12-261-1b |
दीप्तानलनिभः प्राह भगवान्धूमवत्सलः। ततोऽहमपि वक्ष्यामि भूयः पुत्र निदर्शनम्।। | 12-261-2a 12-261-2b |
भूमेः स्थैर्यं गुरुत्वं च काठिन्यं प्रसवात्मता। गन्धो भारश्च शक्तिश्च संघातः स्थापना धृतिः।। | 12-261-3a 12-261-3b |
अपां शैत्यं रसः क्लेदो द्रवत्वं स्नेहसौम्यता। जिह्वाविस्यन्दनं चापि भौमानां श्रपणं तथा।। | 12-261-4a 12-261-4b |
अग्नेर्दुर्धर्षता ज्योतिस्तापः पाकः प्रकाशनम्। शौचं रागो लघुस्तैक्ष्ण्यं सततं चोर्ध्वभागिता।। | 12-261-5a 12-261-5b |
वायोरनियमस्पर्शो वादस्थानं स्वतन्त्रता। बलं शैध्यं च मोक्षं च कर्म चेष्टात्मता भवः।। | 12-261-6a 12-261-6b |
आकाशस्य गुणः शब्दो व्यापित्वं छिद्रताऽपि च। अनाश्रयमनालम्बमव्यक्तमविकारिता।। | 12-261-7a 12-261-7b |
अप्रतीघातिता चैव श्रोतत्वं विवराणि च। गुणाः पञ्चाशतं प्रोक्ताः पञ्चभूतविभाविताः।। | 12-261-8a 12-261-8b |
फलोपपत्तिर्व्यक्तिश्च विसर्गः कल्पना क्षमा। सदसच्चाशुता चैव मनसो नव वै गुणाः।। | 12-261-9a 12-261-9b |
इष्टानिष्टविपत्तिश्च व्यवसायः समाधिता। संशयः प्रतिपत्तिश्च बुद्धेः पञ्च गुणान्विदुः।। | 12-261-10a 12-261-10b |
युधिष्ठिर उवाच। | 12-261-11x |
कथं पञ्चगुणा बुद्धिः कथं पञ्चेन्द्रिया गुणाः। एतन्मे सर्वमाचक्ष्व सूक्ष्मज्ञानं पितामह।। | 12-261-11a 12-261-11b |
भीष्म उवाच। | 12-261-12x |
आहुः षष्टिं भूतगुणान्वै भूतविषक्तान्प्रकृतिविसृष्टान्। नित्यविषक्तांश्चाक्षरसृष्टा न्पुत्र न नित्यं तदिह वदन्ति।। | 12-261-12a 12-261-12b 12-261-12c 12-261-12d |
तत्पुत्रचिन्ताकलिलं तदुक्त मनागतं वै तव संप्रतीह। भूतार्थवत्त्वं तदवाप्य सर्वं भूतप्रभावाद्भव शान्तबुद्धिः।। | 12-261-13a 12-261-13b 12-261-13c 12-261-13d |
।। इति श्रीमन्महाभारते शान्तिपर्वणि मोक्षधर्मपर्वँणि एकषष्ट्यधिकद्विशततमोऽध्यायः।। 261।। |
12-261-2 धर्मवत्सल इति ड. पाठः।। 12-261-4 जिह्वा रसनेन्द्रियम्। विस्यन्दनं प्रस्रवणम्। भौमानां तण्डुलादीनां श्रपणं पाचनम्। विष्यन्दनं चैव भूमावास्रवणं तथेति थ. पाठः। विष्यन्दनं भूमेर्देहेष्वाश्रयणं तथेति ध. पाठः।। 12-261-5 ज्योतिर्ज्वलनकर्म। लघुः शीघ्रगामित्वम्। दशमश्चोर्ध्वभागितेति थ.ध. पाठः।। 12-261-6 अनियमस्पर्शोऽनुष्णाशीतस्पर्शः। वादस्थानं वागिन्द्रियगोलकानि। स्वतन्त्रता गमनादौ। मोक्षो मूत्रादेः। कर्म उत्क्षेपणादि। चेष्टा श्वासप्रश्वासादिः। भवो जन्ममरणे। वायोस्तिर्यग्गतिः स्पर्शे इति ड. थ. पाठः। चलं शैघ्र्यं च गमनं चेष्टा कर्मात्मता तथा इति ड. थ. पाठः।। 12-261-7 अनाश्रयमाश्रयत्वाभावः। अनालम्बनमाश्रयान्तरशून्यत्वम्। अव्यक्तं रूपस्पर्शशून्यत्वात्। अविकारिता द्रव्यान्तरानारम्भकत्वम्।। 12-261-8 पञ्चभूतात्मभाविताः पञ्चानां भूतानामात्मा प्रातिस्विकं स्वरूपं तत्र लक्षिताः।। 12-261-9 व्यक्तिः स्मरणम्। विसर्गो विपरीतः सर्गो भ्रान्तिः। कल्पना मनोरथवृत्तिः। क्षमा प्रसिद्ध। सत् वैराग्यादि। असत् रागद्वेषादि। आशुता अस्तिरत्वम्।। 12-261-10 इष्टानिष्टानां वृत्तिविशेषाणां विपत्तिर्नाशो निद्रारूपा वृत्तिरित्यर्थः। व्यवसाय उत्साहः। समाधिता चित्तस्थैर्यं निरोध इत्यर्थः। प्रतिपत्तिः प्रत्यक्षादिप्रमाणवृत्तिः।।
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