महाभारतम्-12-शांतिपर्व-016
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युधिष्ठिरंप्रति भीमवचनम्।। 1।।
वैशंपायन उवाच। | 12-16-1x |
अर्जुनस्य वचः श्रुत्वा भीमसेनोऽत्यमर्षणः। धैर्यमास्थाय तं ज्येष्ठं भ्राता भ्रातरमब्रवीत्।। | 12-16-1a 12-16-1b |
राजन्विदितधर्मोऽसि न तेऽस्त्यविदितं भुवि। उपशिक्षाम ते वृत्तं सदैव न च शक्नुमः।। | 12-16-2a 12-16-2b |
न वक्ष्यामि न वक्ष्यामीत्येवं मे मनसि स्थितम्। अतिदुःखात्तु वक्ष्यामि तन्निबोध जनाधिप।। | 12-16-3a 12-16-3b |
भवतः संप्रमोहेन सर्वं संशयितं कृतम्। विक्लबत्वं च नः प्राप्तमबलत्वं तथैव च।। | 12-16-4a 12-16-4b |
कथं हि राजा लोकस्य सर्वशास्त्रविशारदः। मोहमापद्यसे दैन्याद्यथा कापुरुषस्तथा।। | 12-16-5a 12-16-5b |
आगतिश्च गतिश्चैव लोकस्य विदिता तव। आयत्यां च तदात्वे च न तेऽस्त्यविदितं प्रभो।। | 12-16-6a 12-16-6b |
एवं गते महाराज राज्यं प्रति जनाधिप। हेतुमात्रं तु वक्ष्यामि तमिहैकमनाः श्रृणु।। | 12-16-7a 12-16-7b |
द्विविधो जायते व्याधिः शारीरो मानसस्तथा। परस्परं तयोर्जन्म निर्द्वन्द्वं नोपलभ्यते।। | 12-16-8a 12-16-8b |
शारीराज्जायते व्याधिर्मानसो नात्र संशयः। मानसाज्जायते व्याधिः शारीर इति निश्चयः।। | 12-16-9a 12-16-9b |
शारीरमानसे दुःखे योऽतीते त्वनुशोचति। दुःखेन लभते दुःखं द्वावनर्थौ च विन्दति।। | 12-16-10a 12-16-10b |
शीतोष्णे चैव वायुश्च त्रयः शारीरजा गुणाः। तेषां गुणानां साम्यं यत्तदाहुः स्वस्थलक्षणम्।। | 12-16-11a 12-16-11b |
तेषामन्यतमोद्रेके विधानमुपदिश्यते। उष्णेन बाध्यते शीतं शीतेनोष्णं प्रबाध्यते। `उभाभ्यां बाध्यते वायुर्विधानमिदमुच्यते।।' | 12-16-12a 12-16-12b 12-16-12c |
सत्वं रजस्तय इति मानसाः स्युस्त्रयो गुणाः। तेषां गुणानां साम्यं यत्तदाहुः स्वस्थलक्षणम्।। | 12-16-13a 12-16-13b |
तेषामन्यतमोद्रेके विधानमुपदिश्यते। हर्षेण बाध्यते शोको हर्षः शोकेन बाध्यते। `उभाभ्यां बाध्यते मोहो विधानमिदमुच्यते।।' | 12-16-14a 12-16-14b 12-16-14c |
कश्चित्सुखे वर्तमानो दुःखस्य स्मर्तुमिच्छति। कश्चिद्दुःखे वर्तमानः सुखस्य स्मर्तुमिच्छति।। | 12-16-15a 12-16-15b |
स त्वं न दुःखी दुःखस्य न सुखी च सुखस्य च। नादुःखी दुःखभागस्य नासुखी च सुखस्य च। स्मर्तुमर्हसि कौरव्य दिष्टं हि बलवत्तरम्।। | 12-16-16a 12-16-16b 12-16-16c |
अथवा ते स्वभावोऽयं येन पार्थिव तुष्यसे। दृष्ट्वा सभागतां कृष्णामेकवस्त्रां रजस्वलाम्। मिषतां पाण्डुपुत्राणां न तस्य स्मर्तुमर्हसि।। | 12-16-17a 12-16-17b 12-16-17c |
प्रव्राजनं च नगरादजिनैश्च विवासनम्। महारण्यनिवासश्च न तस्य स्मर्तुमर्हसि।। | 12-16-18a 12-16-18b |
जटासुरात्परिक्लेशं चित्रसेनेन चाहवम्। सैन्धवाच्च परिक्लेशं कथं विस्मृतवानसि।। | 12-16-19a 12-16-19b |
पुनरज्ञातचर्यायां कीचकेन पदा वधम्। द्रौपद्या राजपुत्र्यांश्च कथं विस्मृतवानसि।। | 12-16-20a 12-16-20b |
यच्च ते द्रोणभीष्माभ्यां युद्धमासीदरिंदम्। मनसैकेन योद्धव्यं तत्ते युद्धमुपस्थितम्।। | 12-16-21a 12-16-21b |
यत्र नास्ति शरैः कार्यं न मित्रैर्न च बन्धुभिः। आत्मनैकेन योद्धव्यं तत्ते युद्धमुपस्थितम्।। | 12-16-22a 12-16-22b |
तस्मिन्ननिर्जिते युद्धे प्राणान्यदि विमोक्ष्यसे। अन्यं देहं समास्थाय ततस्तैरिह योत्स्यसे।। | 12-16-23a 12-16-23b |
`यो ह्यनाढ्यः स पतितस्तदुच्छिष्टं तदल्पकम्। बह्वपथ्यं बलवतो न किंचित्रायते बलम् ।।' | 12-16-24a 12-16-24b |
तस्मादद्यैव गन्तव्यं युध्यस्व भरतर्षभ। परमव्यक्तरूपस्य व्यक्तं त्यक्त्वा स्वकर्मभिः।। | 12-16-25a 12-16-25b |
तस्मिन्ननिर्जिते युद्धे कामवस्थां गमिष्यसि। एतज्जित्वा महाराज कृतकृत्यो भविष्यसि।। | 12-16-26a 12-16-26b |
एतां बुद्धिं विनिश्चित्य भूतानामागतिं गतिम्। पितृपैतामहे वृत्ते शाधि राज्यं यथोचितम्।। | 12-16-27a 12-16-27b |
दिष्ट्या दुर्योधनः पापो निहतः सानुगो युधि। द्रौपद्याः केशपक्षस्य दिष्ट्या ते पदवीं गताः।। | 12-16-28a 12-16-28b |
यजस्व वाजिमेधेन विधिवद्दक्षिणावता। वयं ते किंकराः पार्थ वासुदेवश्च वीर्यवान्।। | 12-16-29a 12-16-29b |
।। इति श्रीमन्महाभारते शान्तिपर्वणि राजधर्मपर्वणि षोडशोऽध्यायः।। 16।। |
12-16-2 नच शक्नुमः। कर्तुमिति शेषः।। 12-16-6 अगतिश्च गतिश्चैवेति झ. पाठः। तत्र आयत्यामुत्तरकाले। तदात्वे वर्तमानकाले अगतिर्दुर्मागः। गतिः सन्मार्ग इत्यर्थः।। 12-16-8 निर्द्वन्द्वं शरीरं विना व्याधिर्नास्ति मनोविना आधिर्नास्तीत्यर्थः।। 12-16-11 शीतोष्णे कफपित्ते। वायुर्वातः।। 12-16-12 विधानं चिकित्सा। उष्णेन द्रव्येण।। 12-16-16 न दुःखी सुखजातस्य न सुखी दुःखजस्य वा इति झ. पाठः।। 12-16-17 येन पार्थिव क्लिश्यसे इति झ. पाठः।। 12-16-18 न तस्य स्मर्तुमर्हसीत्यत्र कथमिति वक्ष्यमाणं पदमपकृष्य योजना।। 12-16-22 यत्र नाभिसरैरिति द. पाठः। तत्र न अभिसरैरिति छेदः।। 12-16-23 तस्मिन्मनसि।। 12-16-25 युध्यस्व। मनोजयार्थं सन्नद्धो भवेत्यर्थः।। 12-16-26 तस्मिन्मनसि कामवस्थाम्। अवाच्यामित्यर्थः। एतन्मनः।। 12-16-28 दिष्ट्या त्वं पदवीं गत इति झ. पाठः।।
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