महाभारतम्-12-शांतिपर्व-033
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व्यासेन युधिष्ठिरंप्रति प्रायश्चित्तप्रयोजकपापकर्मणां प्रायश्चित्तानां च कथनम्।। 1।।
युधिष्ठिर उवाच। | 12-33-1x |
कानि कृत्वेह कर्माणि प्रायश्चित्तीयते नरः। किं कृत्वा मुच्यते तत्र तन्मे ब्रूहि पितामह।। | 12-33-1a 12-33-1b |
व्यास उवाच। | 12-33-2x |
अकुर्वन्विहितं कर्म प्रतिषिद्धानि चाचरन्। प्रायश्चित्तीयते ह्येवं नरो मिथ्याऽनुवर्तयन्।। | 12-33-2a 12-33-2b |
सूर्येणाभ्युदितो यश्च ब्रह्मचारी भवत्युत। तथा सूर्याभिनिर्मुक्तः कुनखी श्यावदन्नपि।। | 12-33-3a 12-33-3b |
परिवित्तिः परिवेत्ता ब्रह्मेज्यायाश्च दूषकः। दिधिषूपतिस्तथा यः स्यादग्रेदिधिषुरेव च।। | 12-33-4a 12-33-4b |
अवकीर्णी भवेद्यश्च द्विजातिवधकस्तथा। अतीर्थे ब्राह्मणस्त्यागी तीर्थे चाप्रतिपादकः।। | 12-33-5a 12-33-5b |
ग्रामयाजी च कौन्तेय मांसस्य परिविक्रयी। यश्चाग्नीनपविध्येत तथैव ब्रह्मविक्रयी।। | 12-33-6a 12-33-6b |
शूद्रस्त्रीवधको यश्च पूर्वः पूर्वस्तु गर्हितः। वृथा पशुसमालम्भी वनदाहस्य कारकः।। | 12-33-7a 12-33-7b |
अनृतेनोपवर्ती च प्रतिषेद्धा गुरोस्तथा। `स्वदत्तस्यापहर्ता च परदत्तनिरोधकः।। | 12-33-8a 12-33-8b |
वाग्दत्तं च मनोदत्तं धारादत्तं च यो हरेत्। पाकभेदेन भोक्ता च भुञ्जानस्याप्यनादरः।। | 12-33-9a 12-33-9b |
स्वजनैः कलहं चैव आश्रितानामरक्षणम्। ' एतान्येनांसि सर्वाणि व्युत्क्रान्तसमयश्च यः।। | 12-33-10a 12-33-10b |
अकार्याणि तु वक्ष्यामि यानि तानि निबोध मे। लोकवेदविरुद्धानि तान्येकाग्रमनाः शृणु।। | 12-33-11a 12-33-11b |
स्वधर्मस्य परित्यागः परधर्मस्य च क्रिया। अयाज्ययाजनं चैव तथाऽभक्ष्यस्य भक्षणम्।। | 12-33-12a 12-33-12b |
शरणागतसंत्यागो भृत्यस्याभरणं तथा। रसानां विक्रयश्चापि तिर्यग्योनिवधस्तथा।। | 12-33-13a 12-33-13b |
आधानादीनि कर्माणि शक्तिमान्न करोति यः। अप्रयच्छंश्च सर्वाणि नित्यदेयानि भारत।। | 12-33-14a 12-33-14b |
दक्षिणानामदानं च ब्राह्मणस्वाभिमर्शनम्। सर्वाण्येतान्यकार्याणि प्राहुर्धर्मविदो जनाः।। | 12-33-15a 12-33-15b |
पित्रा विवदते पुत्रो यश्च स्याद्गुरुतल्पगः। अप्रजायन्नरव्याघ्र भवत्यधार्मिको नरः।। | 12-33-16a 12-33-16b |
उक्तान्येतानि कर्माणि विस्तरेणेतरेण च।। | 12-33-17a |
यानि कुर्वन्निकुर्वंश्च प्रायश्चित्तीयते नरः। एतान्येव तु कर्माणि क्रियमाणानि मानवैः। येषुयेषु निमित्तेषु न लिप्यन्तेऽथ ताञ्शृणु।। | 12-33-18a 12-33-18b 12-33-18c |
प्रगृह्य शस्त्रमायान्तमपि वेदान्तगं रणे। जिघांसन्तं जिघांसीयान्न तेन ब्रह्महा भवेत्।। | 12-33-19a 12-33-19b |
इति चाप्यत्र कौन्तेय मन्त्रो वेदेषु पठ्यते। वेदप्रमाणविहितं धर्मं च प्रब्रवीमि ते।। | 12-33-20a 12-33-20b |
अपेतं ब्राह्मणं वृत्ताद्यो हन्यादाततायिनम्। न तेन ब्रह्महा स स्यान्मन्युस्तन्मन्युमृच्छति।। | 12-33-21a 12-33-21b |
प्राणात्यये तथा ज्ञानादाचरन्मदिरामपि। आदेशितो धर्मपरैः पुनः संस्कारमर्हति।। | 12-33-22a 12-33-22b |
एतत्ते सर्वमाख्यातं कौन्तेयाभक्ष्यभक्षणम्। प्रायश्चित्तविधानेन सर्वमेतेन शुद्ध्यति।। | 12-33-23a 12-33-23b |
गुरुतल्पं हि गुर्वर्थं न दूषयति मानवम्। उद्दालकः श्वेतकेतुं जनयामास शिष्यतः।। | 12-33-24a 12-33-24b |
स्तेयं कुर्वंश्च गुर्वर्थमापत्सु न निषिध्यते। बहुशः कामकारेण न चेद्यः संप्रवर्तते।। | 12-33-25a 12-33-25b |
अन्यत्र ब्राह्मणस्वेभ्य आददानो न दुष्यति। स्वयमप्राशिता यश्च न स पापेन लिप्यते।। | 12-33-26a 12-33-26b |
प्राणत्राणेऽनृतं वाच्यमात्मनो वा परस्य च। गुर्वर्थे स्त्रीषु चैव स्याद्विवाहकरणेषु च।। | 12-33-27a 12-33-27b |
नावर्तते व्रतं स्वप्ने शुक्रमोक्षे कथंचन। आज्यहोमः समिद्धेऽग्नौ प्रायश्चित्तं विधीयते।। | 12-33-28a 12-33-28b |
पारिवित्त्यं तु पतिते नास्ति प्रव्रजिते तथा। भिक्षिते पारदार्यं च तद्धर्मस्य न दूषकम्।। | 12-33-29a 12-33-29b |
वृथा पशुसमालम्भं नैव कुर्यान्न कारयेत्। भ्रनुग्रहः पशूनां हि संस्कारो विधिनोदितः।। | 12-33-30a 12-33-30b |
अनर्हे ब्राह्मणे दत्तमज्ञानात्तन्न दूषकम्। सत्काराणां तथा तीर्थे नित्यं वा प्रतिपादनम्।। | 12-33-31a 12-33-31b |
स्त्रियास्तथापचारिण्या निष्कृतिः स्याददूषिका। अपि सा पूयते तेन न तु भर्ता प्रदुष्यति।। | 12-33-32a 12-33-32b |
तत्त्वं ज्ञात्वा तु सोमस्य विक्रयः स्याददोषवान्। असमर्थस्य भृत्यस्य विसर्गः स्याददोषवान्।। | 12-33-33a 12-33-33b |
वनदाहो गवामर्थे क्रियमाणो न दूषकः। उक्तान्येतानि कर्माणि यानि कुर्वन्न दुष्यति।। | 12-33-34a 12-33-34b |
प्रायश्चित्तानि वक्ष्यामि विस्तरेणैव भारत। `यानि कृत्वा नरः पूतो भविष्यति नराधिप।।' | 12-33-35a 12-33-35b |
।। इति श्रीमन्महाभारते शान्तिपर्वणि राजधर्मपर्वणि त्रयस्त्रिंशोऽध्यायः।। 33।। |
12-33-1 प्रायश्चित्तीयते प्रायश्चित्तेऽधिक्रियते।। 12-33-2 मिथ्यानुवर्तयन्कापट्यं चरन्।। 12-33-4 अनूढे ज्येष्ठे ऊढवान् कनिष्ठः परिवेत्ता। परिवित्तिः पूर्वजः। ज्येष्ठायामनूढायां कनिष्ठामूढवानग्रेदिधिषुः। दिधिषूपतिस्तु कनिष्ठाविवाहोत्तरं ज्येष्ठामूढवान्।। 12-33-5 अबकीर्णां नष्टव्रतः। अतीर्थे अपात्रे त्यागी दाता।। 12-33-6 अपविध्येत त्यजेत्। ब्रह्मविक्रयी भृतकाध्यापकः।। 12-33-14 नित्यदेयानि गोग्रासादीनि।। 12-33-16 अप्रजायन् धर्मपत्न्यां काले मैथुनमकुर्वन्।। 12-33-17 इतरेण संक्षेपेण।। 12-33-19 जिघांसी हन्तुमिच्छावान्। इयात् गच्छेत्।। 12-33-20 मन्त्रो मन्युरकार्षीन्नमोनम् इत्यादिर्मन्यवे स्वाहेत्यन्तः।। 12-33-21 मन्युः क्रोधः तन्मन्युं शत्रोः क्रोधं प्रति ऋच्छति गच्छति। क्रोध एव तं प्रतीपीभूय परशरीरद्वारा हन्तीत्यर्थः।। 12-33-22 आदेशित उपदिष्टः।। 12-33-24 गुर्वर्थं गुर्वाज्ञया।। 12-33-26 स्वय प्रकाशितो यश्च इति ट. ड. थ. पाठः।। 12-33-28 व्रतं नावर्तते पुनरुपनयनं न कर्तव्यमित्यर्थः। आज्यहोमः पुनर्मामैत्विन्द्रियमिति मन्त्रेण।। 12-33-29 वतिप्ते ज्येष्ठभ्रातरि। भिक्षिते धर्मार्थमपि रेतः सिञ्चेति स्त्रिया प्रार्थिते सति।। 12-33-30 पशूनामनुग्रहः अहिंसनं संस्कारः पावित्र्यमित्यन्वयः।।
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