महाभारतम्-12-शांतिपर्व-046

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  375. 375

वैशंपायनेन जनमेजयंप्रति भीष्मकृतकृष्णस्तेवराजानुवादपूर्वकं भीष्मस्य शरीरत्यागप्रकारकथनम्।। 1।।

जनमेजय उवाच। 12-46-1x
शरतल्पे शयानस्तु भरतानां पितामहः।
कथमुत्सृष्टवान्देहं कं च योगमधारयत्।।
12-46-1a
12-46-1b
वैशंपायन उवाच। 12-46-2x
शृणुष्वावहितो राजञ्शुचिर्भूत्वा समाहितः।
भीष्मस्य कुरुशार्दूल देहोत्सर्गं महात्मनः।।
12-46-2a
12-46-2b
प्रवृत्तमात्रे त्वयनमुत्तरेण दिवाकरे।
`शुक्लपक्षस्य चाष्टभ्यां माघमासस्य पार्थिव।।
12-46-3a
12-46-3b
प्राजापत्ये च नक्षत्रे मध्यं प्राप्ते दिवाकरे।'
समावेशयदात्मानमात्मत्येव समाहितः।।
12-46-4a
12-46-4b
विकीर्णांशुरिवादित्यो भीष्मः शरशतैश्चितः।
शुशुभे परया लक्ष्म्या वृतो ब्राह्मणसत्तमैः।।
12-46-5a
12-46-5b
व्यासेन देवश्रवसा नारदेन सुरर्षिणा।
देवस्थानेन वात्स्येन तथाऽश्मकसुमन्तुना।।
12-46-6a
12-46-6b
तथा जैमिनिना चैव पैलेन च महात्मना।
शाण्डिल्यदेवलाभ्यां च मैत्रेयेण च धीमता।।
12-46-7a
12-46-7b
असितेन वसिष्ठेन कौशिकेन महात्मना।
हारितलोमशाभ्यां च तथाऽऽत्रेयेण धीमता।।
12-46-8a
12-46-8b
[बृहस्पतिश्च शुक्रश्च च्यवनश्च महामुनिः।
सनत्कुमारः कपिलो चाल्मीकिस्तुम्बुरुः कुरुः।।
12-46-9a
12-46-9b
मौद्गल्यो भार्गवो रामस्तृणबिन्दुर्महामुनिः।
पिप्पलादोऽथ वायुश्च सवर्तः पुलहः कचः।।
12-46-10a
12-46-10b
काश्यपश्च पुलस्त्यश्च क्रतुर्दक्षः पराशरः।
मरीचिरङ्गिराः काश्यो गौतमो गालवो मुनिः।।
12-46-11a
12-46-11b
धौम्यो विभाण्डो माण्डव्योधौम्रः कृष्णानुभौतिकः।
उलूकः परमो विप्रो मार्कण्डेयो महामुनिः।
भास्करिः पूरणः कृष्णः सूतः परमधार्मिकः।।
12-46-12a
12-46-12b
12-46-12c
एतैश्चान्यैर्मुनिगणैर्महाभागैर्महात्मभिः।
श्रद्धादमशमोपेतैर्वृतश्चन्द्र इव ग्रहैः।।
12-46-13a
12-46-13b
भीष्मस्तु पुरुषव्याघ्रः कर्मणा मनसा गिरा।
शरतल्पगतः कृष्णं प्रदध्यौ प्राञ्जलिः शुचिः।।
12-46-14a
12-46-14b
स्वरेण हृष्टपुष्टेन तुष्टाव मधुसूदनम्।
योगेश्वरं पझनाभं विष्णुं जिष्णुं जगत्पतिम्।
`अनादिनिधनं विष्णुमात्मयोनिं सनातनम्।।'
12-46-15a
12-46-15b
12-46-15c
कृताञ्जलिपुटो भूत्वा वाग्विदां प्रवरः प्रभुः।।
भीष्मः परमधर्मात्मा वासुदेवमथास्तुवत्।।
12-46-16a
12-46-16b
भीष्म उवाच। 12-46-17x
आरिराधयिषुः कृष्णं वाचं जिगदिषामि याम्।
तया व्याससमासिन्या प्रीयतां पुरुषोत्तमः।।
12-46-17a
12-46-17b
शुचिं शुचिपदं हंसं तत्परं परमेष्ठिनम्।
युक्त्वा सर्वात्मनाऽऽत्मानं तं प्रपद्ये प्रजापतिम्।।
12-46-18a
12-46-18b
अनाद्यन्तं परं ब्रह्म न देवा नर्षयो विदुः।
एकोऽयं वेद भगवान्धाता नारायणो हरिः।।
12-46-19a
12-46-19b
नारायणादृषिगणास्तथा सिद्धमहोरगाः।
देवा देवर्षयश्चैव यं विदुर्दुःखभेषजम्।।
12-46-20a
12-46-20b
देवदानवगन्धर्वा यक्षराक्षसपन्नगाः।
यं न जानन्ति को ह्येष कुतो वा भगवानिति।।
12-46-21a
12-46-21b
`यमाहुर्जगतः कोशं यस्मिंश्च निहिताः प्रजाः।
यस्मिँल्लोकाः स्फुरन्त्येते जाले शकुनयो यथा।।'
12-46-22a
12-46-22b
यस्मिन्विश्वानि भूतानि तिष्ठन्ति च विशन्ति च।
गुणभूतानि भूतेशे सूत्रे मणिगणा इव।।
12-46-23a
12-46-23b
`यं च विश्वस्य कर्तारं जगतस्तस्थुषां पतिम्
वदन्ति जगतोऽध्यक्षमध्यात्मपरिचिन्तकाः।। '
12-46-24a
12-46-24b
यस्मिन्नित्ये तते तन्तौ दृढे स्रगिव तिष्ठति।
सदसद्ग्रथितं विश्वं विश्वाङ्गे विश्वकर्मणि।।
12-46-25a
12-46-25b
हरिं सहस्रशिरसं सहस्रचरणेक्षणम्।
सहस्रबाहुमकुटं सहस्रवदनोज्ज्वलम्।।
12-46-26a
12-46-26b
प्राहुर्नारायणं देवं यं विश्वस्य परायणम्।
अणीयसामणीयांसं स्थविष्ठं च स्थवीयसाम्।
गरीयसां गरिष्ठं च श्रेष्ठं च श्रेयसामपि।।
12-46-27a
12-46-27b
12-46-27c
चं वाकेष्वनुवाकेषु निषत्सूपनिषत्सु च।
गृणन्ति सत्यकर्माणं सत्यं सत्येषु सामसु।।
12-46-28a
12-46-28b
चतुर्भिश्चतुरात्मानं सत्वस्थं सात्वतां पतिम्।
यं दिव्यैर्देवमर्चन्ति गुह्यैः परमनामभिः।।
12-46-29a
12-46-29b
[यस्मिन्नित्यं तपस्तप्तं यदङ्गेष्वनुतिष्ठति।
सर्वात्मा सर्ववित्सर्वः सर्वज्ञः सर्वभावनः।। ]
12-46-30a
12-46-30b
यं देवं देवकी देवी वसुदेवादजीजनत्।
भौमस्य ब्रह्मणो गुप्त्यै दीप्तमग्निमिवारणिः।।
12-46-31a
12-46-31b
यमनन्यो व्यपेताशीरात्मानं वीतकल्मषम्।
इष्ट्वानन्त्याय गोविन्दं पश्यत्यात्मानमात्मनि।।
12-46-32a
12-46-32b
`अप्रतर्क्यमविज्ञेयं हरिं नारायणं विभुम्।'
अतिवाय्विन्द्रकर्माणमतिसूर्याग्नितेजसम्।
अतिबुद्धीन्द्रियात्मानं तं प्रपद्ये प्रजापतिम्।।
12-46-33a
12-46-33b
12-46-33c
पुराणे पुरुषं प्रोक्तं ब्रह्मप्रोक्तं युगादिषु।
क्षये संकर्षणं प्रोक्तं तमुपास्यमुपास्महे।।
12-46-34a
12-46-34b
यमेकं बहुधात्मानं प्रादुर्भूतमधोक्षजम्।
नान्यभक्ताः क्रियावन्तो यजन्ते सर्वकामदम्।।
12-46-35a
12-46-35b
ऋतमेकाक्षरं ब्रह्म यत्तत्सदसतः परम्।
अनादिमध्यपर्यन्तं न देवा नर्षयो विदुः।।
12-46-36a
12-46-36b
यं सुरासुरगन्धर्वाः सिद्धा ऋषिमहोरगाः।
प्रयता नित्यमर्चन्ति परमं सुखभेषजम्।।
12-46-37a
12-46-37b
अनादिनिधनं देवमात्मयोनिं सनातनम्।
अप्रेक्ष्यमनभिज्ञेयं हरिं नारायणं प्रभुम्।।
12-46-38a
12-46-38b
अथ भीष्मस्तवराजः।। 12-46-39x
हिरण्यवर्णं यं गर्भमदितिर्दैत्यनाशनम्।
एकं द्वादशधा जज्ञे तस्मै सूर्यात्मने नमः।।
12-46-39a
12-46-39b
शुक्ले देवान्पितॄन्कृष्णे तर्पयत्यमृतेन यः।
यश्च राजा द्विजातीनां तस्मै सोमात्मने नमः।।
12-46-40a
12-46-40b
`हुताशनमुखैर्देवैर्धार्यते सकलं जगत्।
हविः प्रथमभोक्ता यस्तस्मै होत्रात्मने नमः।। '
12-46-41a
12-46-41b
महतस्तमसः पारे पुरुषं ह्यतितेजसम्।
यं ज्ञात्वा मृत्युमत्येति तस्मै ज्ञेयात्मने नमः।।
12-46-42a
12-46-42b
यं बृहन्तं बृहत्युक्थे यमग्नौ यं महाध्वरे।
यं विप्रसङ्घा गायन्ति तस्मै वेदात्मने नमः।।
12-46-43a
12-46-43b
पादाङ्गं संधिपर्वाणं स्वरव्यञ्जनभूषितम्।
यमाहुरक्षरं विप्रास्तस्मै वागात्मने नमः।।
12-46-44a
12-46-44b
[यज्ञाङ्गो यो वराहो वै भूत्वा गामुज्जहारह।
लोकत्रयहितार्थाय तस्मै वीर्यात्मने नमः।।]
12-46-45a
12-46-45b
ऋग्यजुःसामधामानं दशार्धहविराकृतिम्।
यं सप्ततन्तुं तन्वन्ति तस्मै यज्ञात्मने नमः।।
12-46-46a
12-46-46b
[चतुर्भिश्च चतुर्भिश्च द्वाभ्यां पञ्चभिरेव च।
हूयते च पुनर्द्वाभ्यां तस्मै होमात्मने नमः।।]
12-46-47a
12-46-47b
यः सुपर्णो यजुर्नाम च्छन्दोगात्रस्त्रिवृच्छिराः।
रथन्तरबृहत्पक्षस्तस्मै स्तोत्रात्मने नमः।।
12-46-48a
12-46-48b
यः सहस्रसवे सत्रे जज्ञे विश्वसृजामृषिः।
हिरण्यपक्षः शकुनिस्तस्मै तार्क्ष्यात्मने नमः।।
12-46-49a
12-46-49b
यश्चिनोति सतां सेतुमृतेनामृतयोनिना।
धर्मार्थव्यवहाराङ्गैस्तस्मै सत्यात्मने नमः।।
12-46-50a
12-46-50b
यं पृथग्धर्मचरणाः पृथग्धर्मफलैषिणः।
पृथग्धर्मैः समर्चन्ति तस्मै धर्मात्मने नमः।।
12-46-51a
12-46-51b
[यतः सर्वे प्रसूयन्ते ह्यनङ्गात्माङ्गदेहिनः।
उन्मादः सर्वभूतानां तस्मै कामात्मने नमः।।]
12-46-52a
12-46-52b
यं तं व्यक्तस्थमव्यक्तं विचिन्वन्ति महर्षयः।
क्षेत्रे क्षेत्रज्ञमासीनं तस्मै क्षेत्रात्मने नमः।।
12-46-53a
12-46-53b
यं दृगात्मानमात्मस्थं वृतं षोडशभिर्गुणैः।
प्राहुः सप्तदशंसाङ्ख्यास्तस्मै साङ्ख्यात्मने नमः।।
12-46-54a
12-46-54b
यं विनिद्रा जितश्वासाः संतुष्टाः संयतेन्द्रियाः।
ज्योतिः पश्यन्ति युञ्जानास्तस्मै योगात्मेन नमः।।
12-46-55a
12-46-55b
अपुण्यपुण्योपरमे यं पुनर्भवनिर्भयाः।
शान्ताः संन्यासिनो यान्ति तस्मै मोक्षात्मने नमः।।
12-46-56a
12-46-56b
यस्याग्रिरास्यं द्यौर्मूर्धा खं नाभिश्चरणौ क्षितिः।
सूर्यश्चक्षुर्दिशः श्रोत्रं तस्मै लोकात्मने नमः।।
12-46-57a
12-46-57b
युगेष्वावर्तते योंऽशैर्मासर्त्वयनहायनैः।
सर्गप्रलययोः कर्ता तस्मै कालात्मने नमः।।
12-46-58a
12-46-58b
योऽसौ युगसहस्रान्ते प्रदीप्तार्चिर्विभावसुः।
संभक्षयति भूतानि तस्मै घोरात्मने नमः।।
12-46-59a
12-46-59b
संभक्ष्य सर्वभूतानि कृत्वा चैकार्णवं जगत्।
बालः स्वपिति यश्चैकस्तस्मै मायात्मने नमः।।
12-46-60a
12-46-60b
सहस्रशिरसे तस्मै पुरुषायामितात्मने।
चतुःसमुद्रपयसि योगनिद्रात्मने नमः।।
12-46-61a
12-46-61b
अजस्य नाभावध्येकं यस्मिन्विश्वं प्रतिष्ठितम्।
पुष्करं पुष्कराक्षस्य तस्मै पझात्मने नमः।।
12-46-62a
12-46-62b
यस्य केशेषु जीमूता नद्यः सर्वाङ्गसंधिषु।
कुक्षौ समुद्राश्चत्वारस्तस्मै तोयात्मने नमः।।
12-46-63a
12-46-63b
यस्मात्सर्गाः प्रवर्तन्ते सर्गप्रलयविक्रियाः।
यस्मिंश्चैव प्रलीयन्ते तस्मै हेत्वात्मने नमः।।
12-46-64a
12-46-64b
[यो निषण्णो भवेद्रात्रौ दिवा भवति विष्ठितः।
इष्टानिष्टस्य च द्रष्टा तस्मै द्रष्ट्रात्मने नमः।।]
12-46-65a
12-46-65b
अकार्यः सर्वकार्येषु धर्मकार्यार्थमुद्यतः।
वैकुण्ठस्य हि तद्रूपं तस्मै कार्यात्मने नमः।।
12-46-66a
12-46-66b
ब्रह्म वक्तं भुजौ क्षत्रं कृत्स्नमूरूदरं विशः।
पादौ यस्याश्रिताः शूद्रास्तस्मैवर्णात्मने नमः।।
12-46-67a
12-46-67b
अन्नपानेन्धनमयो रसप्राणविवर्धनः।
यो धारयति भूतानि तस्मै प्राणात्मने नमः।।
12-46-68a
12-46-68b
[प्राणानां धारणार्थाय योऽन्नं भुङ्क्ते चतुर्विधम्।
अन्तर्भूतः पचत्यग्निस्तस्मै पाकात्मने नमः।। ]
12-46-69a
12-46-69b
विषये वर्तमानानां यं तं वैषयिकैर्गुणैः।
प्राहुर्विषयगोप्तारं तस्मै गोप्त्रात्मने नमः।।
12-46-70a
12-46-70b
अप्रमेयशरीराय सर्वतो बुद्धिचक्षुषे।
अपारपरिमाणाय तस्मै दिव्यात्मने नमः।।
12-46-71a
12-46-71b
परः कालात्परो यज्ञात्परः सदसतश्च यः।
अनादिरादिर्विश्वस्य तस्मै विश्वात्मने नमः।।
12-46-72a
12-46-72b
वैद्युतो जाठरश्चैव पावकः शुचिरेव च।
दहनः सर्वभक्षाणां तस्मै वह्न्यात्मने नमः।।
12-46-73a
12-46-73b
रसातलगतः श्रीमार्ननन्तो भगवान्प्रभुः।
जगद्धारयते योऽसौ तस्मै शेषात्मने नमः।।
12-46-74a
12-46-74b
ज्वलनार्केन्दुताराणां ज्योतिषां दिव्यमूर्तिनाम्।
यस्तेजयति तेजांसि तस्मै तेजात्मने नमः।।
12-46-75a
12-46-75b
आत्मज्ञानमिदं ज्ञानं ज्ञात्वा पञ्चस्ववस्थितम्।
यं ज्ञानेनाधिगच्छन्ति तस्मै ज्ञानात्मने नमः।।
12-46-76a
12-46-76b
साङ्ख्यैर्योगैर्विनिश्चित्य साध्यैश्च परमर्षिभिः।
यस्य तु ज्ञायते तत्वं तस्मै गुह्यात्मने नमः।।
12-46-77a
12-46-77b
जटिने दण्डिने नित्यं लम्बोदरशरीरिणे।
कमण्डलुनिषङ्गाय तस्मै ब्रह्मात्मने नमः।।
12-46-78a
12-46-78b
[शूलिने त्रिदशेशाय त्र्यम्बकाय महात्मने।
भस्मदिग्धोर्ध्वलिङ्गाय तस्मा रुद्रात्मने नमः।।
12-46-79a
12-46-79b
चन्द्रार्धकृतशीर्षाय व्यालयज्ञोपवीतिने।
पिनाकशूलहस्ताय तस्मै उग्रात्मने नमः।।]
12-46-80a
12-46-80b
यो जातो वसुदेवेन देवक्यां यदुनन्दनः।
शङ्खचक्रगदापाणिर्वासुदेवात्मने नमः।।
12-46-81a
12-46-81b
शिरःकपालमालाय व्याघ्रचर्मनिवासिने।
भस्मदिग्धशरीराय तस्मै रुद्रात्मने नमः।।
12-46-82a
12-46-82b
यो मोहयति भूतानि सर्वपाशानुबन्धनैः।
सर्वस्य रक्षणार्थाय तस्मै मोहात्मने नमः।।
12-46-83a
12-46-83b
चैतन्यं सर्वतो नित्यं सर्वप्राणिहृदि स्थितम्।
सर्वातीततरं सूक्ष्मं तस्मै सूक्ष्मात्मने नमः।।
12-46-84a
12-46-84b
पञ्चभूतात्मभूताय भूतादिनिधनाय च।
अक्रोधद्रोहमोहाय तस्मै शान्तात्मने नमः।।
12-46-85a
12-46-85b
यस्मिन्सर्वं यतः सर्वं यः सर्वं सर्वतश्च यः।
यश्च सर्वमयो देवस्तस्मै सर्वात्मने नमः।।
12-46-86a
12-46-86b
यः शेते क्षीरपर्यङ्के दिव्यनागविभूषिते।
फणासहस्ररचिते तस्मै निद्रात्मने नमः।।
12-46-87a
12-46-87b
विश्वे च मरुतश्चैव रुद्रादित्याश्विनावपि।
वसवः सिद्धसाध्याश्च तस्मै देवात्मने नमः।।
12-46-88a
12-46-88b
अव्यक्तं बुद्ध्यहंकारो मनोबुद्धीन्द्रियाणि च।
तन्मात्राणि विशेषाश्च तस्मै तत्वात्मने नमः।।
12-46-89a
12-46-89b
भूतं भव्यं भविष्यच्च भूतादिप्रभवाव्ययः।
योऽग्रजः सर्वभूतानां तस्मै भूतात्मने नमः।।
12-46-90a
12-46-90b
यं हि सूक्ष्मं विचिन्वन्ति परं सूक्ष्मविदो जनाः।
सूक्ष्मात्सूक्ष्मं च यद्ब्रह्म तस्मै सूक्ष्मात्मने नमः।।
12-46-91a
12-46-91b
मत्स्यो भूत्वा विरिञ्चाय येन वेदाः समाहृताः।
रसातलगतः शीघ्रं तस्मै मत्स्यात्मने नमः।।
12-46-92a
12-46-92b
मन्दराद्रिर्धृतो येन प्राप्ते ह्यमृतमन्थने।
अतिकर्कशदेहाय तस्मै कूर्मात्मने नमः।।
12-46-93a
12-46-93b
वाराहं रूपमास्थाय महीं सवनपर्वताम्।
उद्धरत्येकदंष्ट्रेण तस्मै क्रोडात्मने नमः।।
12-46-94a
12-46-94b
नारसिंहवपुः कृत्वा सर्वलोकभयंकरम्।
हिरण्यकशिपुं जघ्ने तस्मै सिंहात्मने नमः।।
12-46-95a
12-46-95b
पिङ्गेक्षणसटं यस्य रूपं दंष्ट्रानखैर्युतम्।
दानवेन्द्रान्तकरणं तस्मै दृप्तात्मने नमः।।
12-46-96a
12-46-96b
यं न देवा न गन्धर्वा न दैत्या न च दानवाः।
तत्वतो हि विजानन्ति तस्मै सूक्ष्मात्मने नमः।।]
वामनं रूपमास्थाय बलिं संयम्य मायया।
त्रैलोक्यं क्रान्तवान्यस्तु तस्मै क्रान्तात्मने नमः।।
12-46-97a
12-46-97b
12-46-97c
12-46-97d
जमदग्निसुतो भूत्वा रामः शस्त्रभृतां वरः।
महीं निःक्षत्रियां चक्रे तस्मै रामात्मने नमः।।
12-46-98a
12-46-98b
त्रिःसप्तकृत्वो यश्चैको धर्मे व्युत्क्रान्तिगौरवात्।
जघान क्षत्रियान्सङ्ख्ये तस्मै क्रोधात्मने नमः।।
12-46-99a
12-46-99b
[विभज्य पञ्चधाऽऽत्मानं वायुर्भूत्वा शरीरगः।
यश्चेष्टयति भूतानि तस्मै वाय्वात्मने नमः।।]
12-46-100a
12-46-100b
रामो दशिरथिर्भूत्वा पुलस्त्यकुलनन्दनम्।
जघान रावणं सङ्ख्ये तस्मै क्षत्रात्मने नमः।।
12-46-101a
12-46-101b
यो हली मुसली श्रीमान्नीलाम्बरधरः स्थितः।
रामाय रौहिणेयाय तस्मै भोगात्मने नमः।।
12-46-102a
12-46-102b
शङ्खिने चक्रिणे नित्यं शार्ङ्गिणे पीतवाससे।
वनमालाधरायैव तस्मै कृष्णात्मने नमः।।
12-46-103a
12-46-103b
वसुदेवसुतः श्रीमान्क्रीडितो नन्दगोकुले।
कंसस्य निधनार्थाय तस्मै क्रीडात्मने नमः।।
12-46-104a
12-46-104b
वासुदेवत्वमागम्य यदोर्वंशसमुद्भवः।
भूभारहरणं चक्रे तस्मै कृष्णात्मने नमः।।
12-46-105a
12-46-105b
सारथ्यमर्जुनस्याजौ कुर्वन्गीतामृतं ददौ।
लोकत्रयोपकाराय तस्मै ब्रह्मात्मने नमः।।
12-46-106a
12-46-106b
दानवांस्तु वशे कृत्वा पुनर्बुद्धत्वमागतः।
सर्गस्य रक्षणार्थाय तस्मै बुद्धात्मने नमः।।
12-46-107a
12-46-107b
हनिष्यति कलौ प्राप्ते म्लेच्छांस्तुरगवाहनः।
धर्मसंस्थापको यस्तु तस्मै कल्क्यात्मने नमः।।
12-46-108a
12-46-108b
तारान्वये कालनेमिं हत्वा दानवपुङ्गवम्।
ददौ राज्यं महेन्द्राय तस्मै साङ्ख्यात्मने नमः।।
12-46-109a
12-46-109b
यः सर्वप्राणिनां देहे साक्षिभूतो ह्यवस्थितः।
अक्षरः क्षरमाणानां तस्मै साक्ष्यात्मने नमः।।
12-46-110a
12-46-110b
नमोस्तु ते महादेव नमस्ते भक्तवत्सल।
सुब्रह्मण्य नमस्तेऽस्तु प्रसीद परमेश्वर।।
12-46-111a
12-46-111b
अव्यक्तव्यक्तरूपेण व्याप्तं सर्वं त्वया विभो।
नारायणं सहस्राक्षं सर्वलोकमहेश्वरम्।।
12-46-112a
12-46-112b
हिरण्यनाभ यज्ञाङ्गममृतं विश्वतोमुखम्।
सर्वदा सर्वकार्येषु नास्ति तेषाममङ्गलम्।।
12-46-113a
12-46-113b
येषां हृदिस्थो देवेशो मङ्गलायतनं हरिः।
मङ्गल भगवान्विष्णुर्मङ्गलं मधुसूदनः।।
12-46-114a
12-46-114b
मङ्गलं पुण्‍डरीकाक्षो मङ्गलं गरुडध्वजः।
विश्वकर्मन्नमस्तेऽस्तु विश्वात्मन्विश्वसंभव।।
12-46-115a
12-46-115b
अपवर्गस्थभूतानां पञ्चानां परमास्थित।
नमस्ते त्रिषु लोकेषु वमस्ते परतस्त्रिषु।।
12-46-116a
12-46-116b
नमस्ते दिक्षु सर्वासु त्वं हि सर्वपरायणम्।
नमस्ते भगवन्विष्णो त्येकानां प्रभवाव्यय।।
12-46-117a
12-46-117b
त्वं हि कर्ता हृषीकेशः संहर्ता चापराजितः।
तेन पश्यामि ते दिव्यान्भावान्हि त्रिषुवर्त्मसु।।
12-46-118a
12-46-118b
तच्च पश्यामि तत्वेन यत्ते रूपं सनातनम्।
दिवं ते शिरसा व्याप्तं पद्भ्यां देवी वसुंधरा।
विक्रमेण त्रयो लोकाः पुरुषोऽसि सनातनः।।
12-46-119a
12-46-119b
12-46-119c
[दिशो भुजा रविश्चक्षुर्वीर्ये शुक्रः प्रतिष्ठितः।
सप्तमार्गा निरुद्धास्ते वायोरमिततेजसः।।]
12-46-120a
12-46-120b
व्यक्ताव्यक्तस्वरूपेण व्याप्तं सर्वं त्वया विभो।
अव्यक्तं ब्राह्मणं रूपं व्यक्तमेतच्चराचरम्।।
12-46-121a
12-46-121b
अतसीपुष्पसंकाशं पीतवाससमच्युतम्।
ये नमस्यन्ति गोविन्दं न तेषां विद्यते भयम्।।
12-46-122a
12-46-122b
[एकोऽपि कृष्णस्य कृतः प्रणामो
दशाश्वमेधावभृथेन तुल्यः।
दशाश्वमेधी पुनरेति जन्म
कृष्णप्रणामी न पुनर्भवाय।।
12-46-123a
12-46-123b
12-46-123c
12-46-123d
कृष्णव्रताः कृष्णमनुस्मरन्तो
रात्रौ च कृष्णं पुनरुत्थिता ये।
ते कृष्णदेहाः प्रविशन्ति कृष्ण
माज्यं यथा मन्त्रहुतं हुताशे।।
12-46-124a
12-46-124b
12-46-124c
12-46-124d
नमो नरकसंत्रासरक्षामण्डलकारिणे।
संसारनिम्नगावर्ततरिकाष्ठाय विष्णवे।।
12-46-125a
12-46-125b
नमो ब्रह्मण्यदेवाय गोब्राह्मणहिताय च।
जगद्धिताय कृष्णाय गोविन्दाय नमोनमः।।
12-46-126a
12-46-126b
प्राणकान्तारपाथेयं संसारोच्छेदभेषजम्।
दुःखशोकपरित्राणं हरिरित्यक्षरद्वयम्।।]
12-46-127a
12-46-127b
नारायणपरं ब्रह्म नारायणपरं तपः।
नारायणपरं सत्यं नारायणपरं परम्।।
12-46-128a
12-46-128b
यथा विष्णुमयं सत्यं यथा विष्णुमयं हविः।
तथा विष्णुमयं सर्वं पाप्मा ने नश्यतां तथा।।
12-46-129a
12-46-129b
तस्य यज्ञवराहस्य विष्णोरमिततेजसः।
प्रणामं येऽपि कुर्वन्ति तेषामपि नमोनमः।।
12-46-130a
12-46-130b
त्वां प्रपन्नाय भक्ताय गतिमिष्टां जिगीषवे।
यच्छ्रेयः पुण्डरीकाक्ष तद्ध्यायस्व सुरोत्तम।।
12-46-131a
12-46-131b
इति विद्यातपोयोनिरयोनिर्विष्णुरीडितः।
वाग्यज्ञेनार्चितो देवः प्रीयतां मे जनार्दनः।।
12-46-132a
12-46-132b
वैशंपायन उवाच। 12-46-133x
एतावदुक्त्वा वचनं भीष्मस्तद्रतमानसः।
नम इत्येव कृष्णाय प्रणाममकरोत्तदा।।
12-46-133a
12-46-133b
तस्मिन्नुपरते वाक्ये ततस्ते ब्रह्मवादिनः।
भीष्मं वाग्भिर्वाष्पगलास्तमानर्चुर्महाद्युतिम्।।
12-46-134a
12-46-134b
तेऽस्तुवन्तश्च विप्रेन्द्राः केशवं पुरुषोत्तमम्।
भीष्मं च शनकैः सर्वे प्रशशंसुः पुनः पुनः।।
12-46-135a
12-46-135b
अधिगम्य तु योगेन भक्तिं भीष्मस्य माधवः।
त्रैलोक्यदर्शनं ज्ञानं दिव्यं दत्त्वा ययौ हरिः।।
12-46-136a
12-46-136b
विदित्वा भक्तियोगं तं भीष्मस्य पुरुषोत्तमः।
सहसोत्थाय तं हृष्टो यानमेवान्वपद्यत।।
12-46-137a
12-46-137b
केशवः सात्यकिश्चैव रथेनकेन जग्मतुः।
अपरेण महात्मानौ युधिष्ठिरधनञ्जयौ।।
12-46-138a
12-46-138b
भीमसेनो यमौ चोभौ रथमेकं समास्थिताः।
कृपो युयुत्सुः सूतश्च सञ्जयश्चापरं रथम्।।
12-46-139a
12-46-139b
ते रथैर्नगराकारैः प्रयाताः पुरुषर्षभाः।
नेमिघोषेण महता कम्पयन्ते वसुंधराम्।।
12-46-140a
12-46-140b
ततो गिरः पुरुषवरस्तवेरितां
द्विजेरिताः पथिषु मनाक् स शुश्रुवे।
कृताञ्जलिं प्रणतमथापरं जनं
स केशिहा मुदितमनास्थनन्दत।।
12-46-141a
12-46-141b
12-46-141c
12-46-141d
इति स्मरन्पठति च शार्ङ्गधन्वनः
शृणोतु वा यदुकुलनन्दनस्तवम्।
स चक्रभृत्प्रतिहतसर्वाकिल्विषो
जनार्दनं प्रविशति देहसंक्षये।।
12-46-142a
12-46-142b
12-46-142c
12-46-142d
यं योगिनः प्राणवियोगकाले
यत्नेन चित्ते विनिवेशयन्ति।
स तं पुरस्ताद्धरिमीक्षमाणः
प्राणाञ्जहौ प्राप्तफलो हि भीष्मः।।
12-46-143a
12-46-143b
12-46-143c
12-46-143d
स्ववराजः समाप्तोऽयं विष्णोरद्भुतकर्मणः।
गाङ्गेयेन पुरा गीतो महापातकनाशनः।।
12-46-144a
12-46-144b
इमं नरः स्तवराजं मुमुक्षुः
पठञ्शुचिः कलुषितकल्मषापहम्।
अतीत्य लोकान्मलिनः समामता
न्पदं स गच्छत्यमृतं महात्मनः।।
12-46-145a
12-46-145b
12-46-145c
12-46-145d
।। इति श्रीमन्महाभारते शान्तिपर्वणि
राजधर्मपर्वणि षट्‌चत्वारिंशोऽध्यायः।।

12-46-17 जिगदिषामि वक्तुमिच्छामि। व्याससमासिन्या विस्तरसंक्षेपवत्या।। 12-46-25 सदसत्कार्यं कारणं च विश्वं कर्म यस्मात्।। 12-46-28 वाकेषु मन्त्रेषु सामान्यतः कर्मप्रकाशकेषु। अनुवाकेषु मन्त्रार्थविवरणभूतेषु ब्राह्मणवाक्येषु। निषत्सु कर्माङ्गाद्यवबद्धदेवतादिज्ञानवाक्येषु। उपनिषत्सु केवलात्मज्ञापकवाक्येषु गृणन्ति ध्यायन्ति। सत्यमबाधितम्। सत्येष्वबाधितार्थेषु। सामसु ज्येष्ठसामादिषु।। 12-46-29 चतुर्भिर्नामभिर्वासुदेवसकर्षणप्रद्युम्रानिरुद्धरूपैः।। 12-46-30 नित्यं तपः स्वधर्मस्तद्यस्मिन्। यत्प्रीत्यर्थं तप्तं सद्यद्यस्मादङ्गेषु चित्तेष्वनुतिष्ठति उपतिष्ठति यश्च सर्वात्मा तं प्रपद्ये इति सर्वेषां यच्छब्दसंबद्धानां प्रथमेनान्वयः। ईश्वलरार्थमनुष्ठितो धर्मः स्वचित्तशुद्धिद्वारास्वार्थएव भवतीति भावः।। 12-46-31 भौमं ब्रह्म वेदा ब्राह्मणा यज्ञाश्च।। 12-46-32 आत्मानं सर्वेश्वरमात्मनि हार्दाकाशे इष्ट्वा योगेन पश्यति। आनन्त्याय मोक्षाय।। 12-46-34 पुराणे अतीतकल्पादिविषये। पुरुषं पूर्णं सर्वमस्मिन्नतीतमस्त्येवेति योगात्पुरुष इति नाम। युगादिषु युगारम्भेषु। बृंहकत्वात्सृष्टेरेनं ब्रह्मेत्याहुः। क्षये सर्वस्य सम्यक्वर्षणादयं संकर्षण इत्युक्तः।। 12-46-35 नान्यभक्ता अनन्यभक्ताः।। 12-46-39 हिरण्यगर्भमिति ड. थ. पाठः। जज्ञे जनयामास।। 12-46-43 उक्थे बह्वृचाः। अग्नौ चयनेऽध्वर्यवः।। 12-46-47 चतुर्भिरिति। आश्रावयेति चतुरक्षरं अस्तु श्रौषिडिति चतुरक्षरं यजेति द्व्यक्षरं ये यजामहे इति पञ्चाक्षरं द्व्यक्षरो वषट्कार इति सप्तदशभिरक्षरैर्यो हूयते तस्मै होमात्मने नमः।। 12-46-49 यः सहस्रसमे सत्र इति झ. पाठः। तत्र सहस्रसमे सहस्रसं वत्सरे सत्रे इत्यर्थः।। 12-46-54 यं त्रिधात्मानमिति झ.पाठः।।

शांतिपर्व-045 पुटाग्रे अल्लिखितम्। शांतिपर्व-047