महाभारतम्-12-शांतिपर्व-300
← शांतिपर्व-299 | महाभारतम् द्वादशपर्व महाभारतम्-12-शांतिपर्व-300 वेदव्यासः |
शांतिपर्व-301 → |
भीष्मेण युधिष्ठिरंप्रति वर्णधर्मादिप्रतिपादकपराशरगीतानुवादः।। 1।।
पराशर उवाच। | 12-300-1x |
प्रतिग्रहार्जिता विप्रे क्षत्रिये युधि निर्जिताः। वैश्ये न्यायार्जिताश्चैव शूद्रे शुश्रूषयार्जिताः।। | 12-300-1a 12-300-1b |
स्वल्पाऽप्यर्थाः प्रशस्यन्ते धर्मस्यार्थे महाफलाः। नित्यं त्रयाणां वर्णानां शुश्रूषुः शूद्र उच्यते।। | 12-300-2a 12-300-2b |
क्षत्रधर्मा वैश्यधर्मा नावृत्तिः पतते द्विजः। शूद्रधर्मा यदा तु स्यात्तदा पतति वै द्विजः।। | 12-300-3a 12-300-3b |
वाणिज्यं पाशुपाल्यं च तथा शिल्पोपजिवनम्। सूद्रस्यापि विधीयन्ते यदा वृत्तिर्न जायते।। | 12-300-4a 12-300-4b |
रङ्गावतरणं चैव तथा रूपोपजीवनम्। मद्यमांसोपजीव्यं च विक्रयं लोहचर्मणोः।। | 12-300-5a 12-300-5b |
अपूर्विणा न कर्तव्यं कर्म लोके विगर्हितम्। कृतपूर्विणस्तु त्यजतो महान्धर्म इति श्रूतिः।। | 12-300-6a 12-300-6b |
संसिद्धः पुरुषो लोके यदाचरति पापकम्। मदेनाभिप्लुतमनास्तच्च न ग्राह्यमुच्यते।। | 12-300-7a 12-300-7b |
श्रूयन्ते हि पुराणेषु प्रजा धिग्दण्डशासनाः। दान्ता धर्मप्रधानाश्च न्यायधर्मानुवृत्तिकाः।। | 12-300-8a 12-300-8b |
धर्म एव सदा नॄणामिह राजन्प्रशस्यते। धर्मवृद्धा गुणानेव सेवन्ते हि नरा भुवि।। | 12-300-9a 12-300-9b |
तं धर्ममसुरास्तात नामृष्यन्त नराधिप। विवर्धमानाः क्रमशस्तत्र तेऽन्वाविशन्प्रजाः।। | 12-300-10a 12-300-10b |
तासां दर्पः समभवत्प्रजानां धर्मनाशनः। दर्पात्मनां ततः पश्चात्क्रोधस्तासामजायत।। | 12-300-11a 12-300-11b |
ततः क्रोधाभिभूतानां वृत्तं लज्जासमन्वितम्। ह्रीश्चैवाप्यनशद्राजंस्ततो मोहो व्यजायत।। | 12-300-12a 12-300-12b |
ततो मोहपरीतास्ता नापश्यन्त यथा पुरा। परस्परावमर्देन वर्धयन्त्यो यथासुखम्।। | 12-300-13a 12-300-13b |
ताः प्राप्य तु स धिग्दण्डो न कारणमतो भवत्। ततोऽभ्यगच्छन्देवांश्च ब्राह्मणांश्चावमन्य ह।। | 12-300-14a 12-300-14b |
एतस्मिन्नेव काले तु देवा देववरं शिवम्। अगच्छञ्शरणं धीरं बहुरूपं गुणाधिकम्।। | 12-300-15a 12-300-15b |
तेन स्म ते गगनगाः सपुराः पातिताः क्षितौ। त्रिधाऽप्येकेन बाणेन देवाप्यायिततेजसा।। | 12-300-16a 12-300-16b |
तेषामधिपतिस्त्वासीद्भीमो भीमपराक्रमः। देवतानां भयकरः स हतः शूलपाणिना।। | 12-300-17a 12-300-17b |
तस्मिन्हतेऽथ स्वं भावं प्रत्यपद्यन्त मानवाः। प्रावर्तन्त च वै वेदाः शास्त्राणि च यथा पुरा।। | 12-300-18a 12-300-18b |
ततोऽभिषिच्य राज्येन देवानां दिवि वासवम्। सप्तर्षयश्चान्वयुञ्जन्नराणां दण्डधारणे।। | 12-300-19a 12-300-19b |
सप्तर्षीणामथोर्ध्वं च विपृथुर्नाम पार्थिवः। राजानः क्षत्रियाश्चैव मण्डलेषु पृथक्पृथक्।। | 12-300-20a 12-300-20b |
महाकुलेषु ये जाता वृद्धाः पूर्वतराश्च ये। तेषामप्यासुरो भावो हृदयान्नापसर्पति।। | 12-300-21a 12-300-21b |
तस्मात्तेनैव भावेन सानुषङ्गेण पार्थिवाः। आसुराण्येव कर्माणि न्यसेवन्भीमविक्रमाः।। | 12-300-22a 12-300-22b |
प्रत्यतिष्ठंश्च तेष्वेव तान्येव स्थापयन्त्यपि। भजन्ते तानि चाद्यापि ये बालिशतरा नराः।। | 12-300-23a 12-300-23b |
तस्मादहं ब्रवीमि त्वां राजन्संचिन्त्य शास्त्रतः। संसिद्धावागमं कुर्यात्कर्म हिंसात्मकं त्यजेत्।। | 12-300-24a 12-300-24b |
न संकरेण द्रविणं प्रचिन्वीयाद्विचक्षणः। धर्मार्थं न्यायमुत्सृज्य न तत्कल्याणमुच्यते।। | 12-300-25a 12-300-25b |
स त्वमेवंविधो दान्तः क्षत्रियः प्रियबान्धवः। प्रजा भृत्यांश्च पुत्रांश्च स्वधर्मेणानुपालय।। | 12-300-26a 12-300-26b |
इष्टानिष्टसमायोगे वैरं सौहार्दमेव च। अथ जातिसहस्राणि बहूनि परिवर्तते।। | 12-300-27a 12-300-27b |
तस्माद्गुणेषु रज्येथा मा दोषेषु कथंचन। निर्गुणोऽपि हि दुर्बुद्धिरात्मनः सोतिरिच्यते।। | 12-300-28a 12-300-28b |
मानुषेषु महाराज धर्माधर्मौ प्रवर्ततः। न तथाऽन्येषु भूतेषु मनुष्यरहितेष्विह।। | 12-300-29a 12-300-29b |
धर्मशीलो नरो विद्वानीहकोऽनीहकोपि वा। आत्मभूतः सदा लोके चरेद्भूतान्यहिंसया।। | 12-300-30a 12-300-30b |
यदा व्यपेतहृल्लेखं मनो भवति तस्य वै। नानृतं चैव भवति तदा कल्याणमृच्छति।। | 12-300-31a 12-300-31b |
।। इति श्रीमन्महाभारते शान्तिपर्वणि मोक्षधर्मपर्वणि त्रिशततमोऽध्यायः।। 300।। |
12-300-1 प्रतिग्रहागता विप्रे इति झ. थ. पाठः।। 12-300-3 न पतत इति संबन्धः। क्षत्रधर्माद्वैश्यधर्मान्नापन्नः पतते द्विज इति ध. पाठः।। 12-300-4 शिल्पं चित्रलेखनादि। वृत्तिः सेवारूपा।। 12-300-5 रङ्गे ख्यादिवेषेण अवतरणम्।। 12-300-6 अपूर्विणा येन पूर्वं मद्याद्युपजीवनं न कृतं सोऽपूर्वी तेन तन्न कर्तव्यम्।। 12-300-7 संसिद्धो लब्धान्नवस्त्रादिः।। 12-300-9 धर्मवृद्ध्या गुणानेवेति थ. पाठः।। 12-300-12 अनशत् अनवयत।। 12-300-16 त्रिदैवत्येन वाणेनेति ध. पाठः। वाणेन देवस्यामिततेजस इति थ. पाठः।।
शांतिपर्व-299 | पुटाग्रे अल्लिखितम्। | शांतिपर्व-301 |