महाभारतम्-12-शांतिपर्व-346
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भीष्मेण युधिष्ठिरंप्रति दडुनामभिर्नारदकृतश्वेतद्वीपगतभगवत्स्तोत्रानुवादः।। 1।।
भीष्म उवाच। | 12-346-1x |
प्राप्य श्वेतं महाद्वीपं नारदो भगवानृषिः। ददर्श तानेव नराञ्श्वेतांश्चन्द्रसमप्रभान्।। | 12-346-1a 12-346-1b |
पूजयामास शिरसा मनसा तैश्च पूजितः। दिदृक्षुर्जप्यपरमः सर्वकृच्छ्रगतः स्थितः।। | 12-346-2a 12-346-2b |
भूत्वैकाग्रमना विप्र ऊर्ध्वबाहुः समाहितः। स्तोत्रं जगौ स विश्वाय निर्गुणाय गुणात्मने।। | 12-346-3a 12-346-3b |
नारद उवाच। | 12-346-4x |
ओँ नमस्ते देवदेवेश निष्क्रिय निर्गुण लोकसाक्षिन् क्षेत्रज्ञ पुरुषोत्तम अनन्त पुरुष महापुरुष पुरुषोत्तम त्रिगुण प्रधान अमृत अमृताख्य अनन्ताख्य व्योम अमृतात्मन् सनातन सदसद्व्यक्ताव्यक्त ऋतधाम आदिदेव वसुप्रद प्रजापते सुप्रजापते वनस्पते महाप्रजापते ऊर्जस्पते वाचस्पते जगत्पते मनस्पते दिवस्पते मरुत्पते सलिलपते पृथिवीपते दिक्पते पूर्वनिवास गुह्य ब्रह्मपुरोहित ब्रह्मकायिक राजिक महाराजिक चातुर्महाराजिक आभासुर महाभासुर सप्तमहाभाग सप्तमहास्वरयाम्य महायाम्य संज्ञासंज्ञ *तुपित महातुषित प्रमर्दन परिनिर्मित अपरिनिर्मित वशवर्तिन् अपरिनिन्दित अपरिमित वशवर्तिन् अवशवर्तिन् यज्ञ महायज्ञ असंयज्ञ यज्ञसंभव यज्ञयोने यज्ञगर्भ यज्ञहृदय यज्ञस्तुत यज्ञभागहर पञ्चयज्ञ पञ्चकालकर्तृपते पाञ्चरात्रिक वैकुण्ठ अपराजित मानसिक नावमिक नामनामिक परस्वामिन् सुस्नातहंस परमहंस महाहंस परमज्ञेय हिरण्येशय वेदेशय देवेशय कुशेशयब्रह्मेशय पद्मेशय विश्वेश्वर विष्वक्सेन त्वं जगदन्वयस्त्वं जगत्प्रकृतिस्तवाग्निरास्यं वडवामुखोऽग्निस्त्वमाहुतिः सारथिस्त्वं वषट्कारस्त्वमोंकारस्त्वं तपस्त्वं मनस्त्वं चन्द्रमाः पूर्णाङ्गस्त्वं चक्षुराज्यम् त्वं सूर्यस्त्वं दिशांगजस्त्वं दिग्भानो विदिग्भानो हयशिरः प्रथमत्रिसौपर्णो वर्णधरः पञचाग्रे त्रिणाचिकेत षडङ्गनिधान प्राग्जोतिष ज्येष्ठसामग सामिकव्रतधराथर्वशिराः पञ्चमहाकल्प फेनपाचार्य बालखिल्य वैखानसा भग्नयोगा भग्नव्रता भग्नपरिसंख्यान युगादे युगमध्य युगनिधनाखण्डल प्राचीनगर्भकौशिक पुरुष्टुत पुरुहूत विश्वकृद्विश्वजिद्विश्वरूपानन्तगतेऽनन्तभोगाऽनन्ताऽनादेऽमध्याऽव्यक्तमध्याऽव्यक्तनिधन व्रतावास समुद्राधिवास यशोवास तपोवास दमावास लक्ष्म्यावास विद्यावास कीर्त्यावास श्रीवास सर्वावास वासुदेव सर्वच्छन्दक हरिहय हरिमेध महायज्ञभागहर वरप्रद सुखप्रद धनप्रद हरिमेध यम नियम महानियम कृच्छ्राऽतिकृच्छ्रा महाकुच्छ्र सर्वकृच्छ्र नियमधर निवृत्तभ्रम निवृत्तिधर्मप्रवरगत प्रवचनगत पृश्निगर्भप्रवृत्त प्रवृत्तवेदक्रियाऽजसर्वगते सर्वदर्शिनं नग्राह्याऽक्षयाऽचल महाविभूते माहात्म्यशरीर पवित्र महापवित्र हिरण्यमय बृहदप्रतर्क्याऽविज्ञेय ब्रह्माग्र्य प्रजासर्गकर प्रजानिधनकर महामायाधर विद्याधर योगधर चित्रशिखण्डिन् वरप्रद पुरोडाशभागहर गताध्वरच्छिन्नतृष्ण च्छिन्नसंशय सर्वतोवृत्त निवृत्तरूप ब्राह्मणरूप च्छिन्नसंशय सर्वतोवृत्त निवृत्तरूप ब्राह्मणरूप ब्राह्मणप्रिय विश्वर्मूर्ते महामूर्ते बान्धव भक्तवत्सल ब्रह्मण्यदेव भक्तोऽहं त्वां दिदृक्षुरेकान्तदर्शनाय नमोनमः।। | 12-346-4a |
12-346-2 जप्यपरमः सर्वभूतहिते रत इति ध. पाठः।। 12-346-3 ऊर्ध्वबाहुर्महामुनिरिति ट. थ. पाठः। महामतिरिति ध. पाठः। निर्गुणाय महात्मन इति ट. थ. ध. पाठः।।
- रुषित- महारुषितेति ध. पाठः।
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