महाभारतम्-12-शांतिपर्व-129
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यमेन गौतमंप्रति मातापित्रोः परिचर्यायास्तदृणापनोदनोपायत्वकथनम्।। 1।।
युधिष्ठिर उवाच। | 12-129-1x |
नामृतस्येव पर्याप्तिर्ममास्ति ब्रुवति त्वयि। [यथाहि स्वात्मवृत्तिस्थस्तथा तृप्तोऽस्मि भारत।।] | 12-129-1a 12-129-1b |
तस्मात्कथय भूयोऽपि त्वं ममेह पितामह। [न हि तृप्तिमहं यामि पिबन्धर्मामृतं हि ते।।] | 12-129-2a 12-129-2b |
भीष्म उवाच। | 12-129-2x |
अत्राप्युदाहरन्तीममितिहासं पुरातनम्। गौतमस्य च संवादं यमस्य च महात्मनः।। | 12-129-3a 12-129-3b |
पारियात्रं गिरिं प्राप्य गौतमस्याश्रमो महान्। वसते गौतमो यत्र तपसा दग्धकिल्विषः।। | 12-129-4a 12-129-4b |
पृष्टिं वर्षसहस्राणि सोऽतप्यद्गौतमस्तपः। तमुग्रतपसा युक्तं भावितं सुमहामुनिम्।। | 12-129-5a 12-129-5b |
उपयातो नरव्याघ्र लोकपालो यमस्तदा। तमपश्यत्सुतपसमृषिं वै गौतमं तदा।। | 12-129-6a 12-129-6b |
स तं विदित्वा ब्रह्मर्षियेममागतमोजसा। प्राञ्जलिः प्रणतो भूत्वा उपसृप्तस्तपोधनः।। | 12-129-7a 12-129-7b |
तं धर्मराजो दृष्ट्वैव नमस्कृत्य द्विजोत्तमम्। न्यमन्त्रयत धर्मेण क्रियतां किमिति ब्रुवन्।। | 12-129-8a 12-129-8b |
गौतम उवाच। | 12-129-9x |
मातापितृभ्यामानृण्यं किं कृत्वा समवाप्नुयात्। कथं च लोकानाप्नोति पुरुषो दुर्लभाञ्शुभान्।। | 12-129-9a 12-129-9b |
यम उवाच। | 12-129-10x |
तपः शौचवता नित्यं सत्यधर्मरतेन च। मातापित्रोरहरहः पूजनं कार्यमञ्जसा।। | 12-129-10a 12-129-10b |
अश्वमेधैश्च यष्टव्यं बहुभिः स्वाप्तदक्षिणैः। तेन लोकानवाप्नोति पुरुषोऽद्भुतदर्शनान्।। | 12-129-11a 12-129-11b |
।। इति श्रीमन्महाभारते शान्तिपर्वणि राजधर्मपर्वणि एकोनत्रिंशदधिकशततमोऽध्यायः।। 129।। |
12-129-1 पर्याप्तिरलंभावस्तृप्तिरिति यावत्।। 12-129-8 न्यमन्त्रयत तं सुमुखीकृतवान्।। 12-129-11 अश्वमेधैरिति स्वधर्ममात्रस्योपलक्षणम्।।
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