महाभारतम्-12-शांतिपर्व-316
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भीष्मेण युधिष्ठिरंप्रति अण्डादिसृष्टिप्रकारादिप्रतिपादकजनकयाज्ञवल्क्यसंवादानुवादः।। 1।।
याज्ञवल्क्य उवाच। | 12-316-1x |
अव्यक्तस्य नरश्रेष्ठ कालसङ्ख्यां निबोध मे। पञ्चकल्पसहस्राणि द्विगुणान्यहरुच्यते।। | 12-316-1a 12-316-1b |
रात्रिरेतावती चास्य प्रतिबुद्धो नराधिप। सृजत्योषधिमेवाग्रे जीवनं सर्वदेहिनाम्।। | 12-316-2a 12-316-2b |
ततो ब्रह्माणमसृजद्धैरण्याण्डसमुद्भवम्। सा मूर्तिः सर्वभूतानामित्येवमनुशुश्रुम।। | 12-316-3a 12-316-3b |
संवत्सरमुषित्वाण्डे निष्क्रम्य च महामुनिः। संदधेऽर्धं महीं कृत्स्नां दिवमर्धं प्रजापतिः।। | 12-316-4a 12-316-4b |
द्यावापृथिव्योरिज्येष राजन्वेदेषु पठ्यते। तयोः शकलयोर्मध्यमाकाशमकरोत्प्रभुः।। | 12-316-5a 12-316-5b |
एतस्यापि च सङ्ख्यानं वेदवेदाङ्गपारगैः। दशकल्पसहस्राणि पादोनान्यहरुच्यते।। | 12-316-6a 12-316-6b |
रात्रिमेतावतीं चास्व प्राहुरध्यात्मचिन्तकाः। सृजत्यहंकारमृषिर्भूतं दिव्यात्मकं तथा।। | 12-316-7a 12-316-7b |
चतुरश्चापरान्पुत्रान्देहात्पूर्वं महानृषिः। ते वै पितृभ्यः पितरः श्रूयन्तें राजसत्तम।। | 12-316-8a 12-316-8b |
देवाः पितॄणां च सुता देवैर्लोकाः समावृताः। चराचरा नरश्रेष्ठ इत्येवमनुशुश्रुम।। | 12-316-9a 12-316-9b |
परमेष्ठी त्वहंकारोऽसृजद्भूतानि पञ्चधा। पृथिवी वायुराकाशमापो ज्योतिश्च पञ्चमम्।। | 12-316-10a 12-316-10b |
एतस्यापि निशामाहुस्तृतीयमथ कुर्वतः। पञ्च कल्पसहस्राणि तावदेवाहरुच्यते।। | 12-316-11a 12-316-11b |
शब्दः स्पर्शश्च रूपं च रसो गन्धश्च पञ्चमः। एते विशेषा राजेन्द्र महाभूतेषु पञ्चसु।। | 12-316-12a 12-316-12b |
यैराविष्टानि भूतानि अहन्यहनि पार्थिव। अन्योन्यं स्पृहयन्त्येते अन्योन्यस्याहिते रताः।। | 12-316-13a 12-316-13b |
अन्योन्यमतिवर्तन्ते अन्योन्यस्पर्धिनस्तथा। ते वध्यमाना ह्यन्योन्यं गुणैर्हारिभिरव्ययाः।। | 12-316-14a 12-316-14b |
इहैव परिवर्तन्ते तिर्यग्योनिप्रवेशिनः। त्रीणि कल्पसहस्राणि एतेषामहरुच्यते।। | 12-316-15a 12-316-15b |
रात्रिरेतावती चैव मनसश्च नराधिप। मनश्चरति राजेन्द्र चरितं सर्वमिन्द्रियैः।। | 12-316-16a 12-316-16b |
न चेन्द्रियाणि पश्यन्ति मन एवात्र पश्यति। चक्षुः पश्यति रूपाणि मनसा तु न चक्षुषा।। | 12-316-17a 12-316-17b |
मनसि व्याकुले चक्षुः पश्यन्नपि न पश्यति। अथेन्द्रियाणि सर्वाणि पश्यन्तीत्यभिचक्षते।। | 12-316-18a 12-316-18b |
मनस्युपरते राजन्निन्द्रियोपरमो भवेत्।। | 12-316-19a |
न चेन्द्रियव्युपरमे मनस्युपरमो भवेत्। एवं मनः प्रधानानि इन्द्रियाणि प्रभावयेत्।। | 12-316-20a 12-316-20b |
इन्द्रियाणां तु सर्वेषामीश्वरं मन उच्यते। एतद्विशन्ति भूतानि सर्वाणीह महायशः।। | 12-316-21a 12-316-21b |
।। इति श्रीमन्महाभारते शान्तिपर्वणि मोक्षधर्मपर्वणि षोडशाधिकत्रिशततमोऽध्यायः।। 316।। |
12-316-4 संदधेऽयं महीमिति ड. थ. पाठः।। 12-316-8 पुत्रान्देवानिति ड. थ. पाठः। पुत्रान्पूर्वमेव महानृषिरिति। पितॄणां पितर इति झ. पाठः।। 12-316-13 अन्योन्यस्य हिते रता इति झ. ध. पाठः।। 12-316-21 एतद्वशे हि भूतानीति ट. ड. थ. पाठः।।
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