महाभारतम्-12-शांतिपर्व-136
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भीष्मेण युधिष्ठिरंप्रति कोशवृद्ध्यर्थमपहार्यानपहार्यधनविवेचनम्।। 1।।
भीष्म उवाच। | 12-136-1x |
अत्र गाथा ब्रह्मगीताः कीर्तयन्ति पुराविदः। येन मार्गेण राजानः कोशं संजनयन्त्युत।। | 12-136-1a 12-136-1b |
न धनं यज्ञशीलानां हार्यं देवस्वमेव च। दस्यूनां निष्क्रियाणां च क्षत्रियो हर्तुमर्हति।। | 12-136-2a 12-136-2b |
इमाः प्रजाः क्षत्रियाणां रक्ष्या हन्याश्च भारत। थनं हि क्षत्रियस्येह द्वितीयस्य न विद्यते।। | 12-136-3a 12-136-3b |
तदस्य स्याद्बलार्थं वा धनं यज्ञार्थमेव वा। अभोज्याश्चौषधीश्छित्त्वा भोज्या एव पचन्त्युत।। | 12-136-4a 12-136-4b |
यो वै न देवान्न पितृन्न मर्त्यान्हविषाऽर्चति। अनर्थकं धनं तत्र प्राहुर्धमेविदो जनाः।। | 12-136-5a 12-136-5b |
हरेत्तद्द्रविणं राजन्धार्मिकः पृथिवीतिः। न हि न प्रीणयेल्लोकान्न लोके गर्हते नृपम्।। | 12-136-6a 12-136-6b |
असाधुभ्योऽर्थमादाय साधुभ्यो यः प्रयच्छति। आत्मानं संक्रमं कृत्वा मन्ये धर्मविदेव सः।। | 12-136-7a 12-136-7b |
[तथातथा जयेल्लोकाञ्शक्त्या चैव यथायथा।] औद्भिदा जन्तवो यद्वच्छ्रुत्वा वाजो यथातथा।। | 12-136-8a 12-136-8b |
अनिमित्तात्संभवन्ति तथा यज्ञः प्रजायते। यथैव दंशमशकं यथा कीटपिपीलिकम्।। | 12-136-9a 12-136-9b |
सैव वृत्तिर्हि यज्ञेषु यथा धर्मो विधीयते।। | 12-136-10a |
यथा ह्यकस्माद्भवति भूमौ पांसुस्तृणोलपम्। तथैवेह भवेद्धर्मः सूक्ष्मः सूक्ष्मतरः स्मृतः।। | 12-136-11a 12-136-11b |
।। इति श्रीमन्महाभारते शान्तिपर्वणि आपद्धर्मपर्वणि षट्त्रिंशदधिकशततमोऽध्यायः।। 136।। |
12-136-4 औषधीश्छित्त्वा ताभिरिन्धनीकृताभिर्भोज्या व्रीह्याद्याः। दुष्टान् हिंसित्वा साधून्पालयेदिति
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