महाभारतम्-12-शांतिपर्व-036
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व्यासेन भीष्ममुखाराजधर्मादिश्रवणे आदिष्टस्य युधिष्ठिरस्य कृष्णाद्याज्ञया धृतराष्ट्रादिभिः सह कुरुनगरप्रवेशः।। 1।।
युधिष्ठिर उवाच। | 12-36-1x |
श्रोतुमिच्छामि भगवन्विस्तरेण महामुने। राजधर्मान्द्विजश्रेष्ठ चातुर्वर्ण्यस्य चाखिलान्।। | 12-36-1a 12-36-1b |
आपत्सु च यथा नीतिः प्रणेतव्या द्विजोत्तम। धर्म्यमालम्ब्य पन्थानं विजयेयं कथं महीम्।। | 12-36-2a 12-36-2b |
प्रायश्चित्तकथा ह्येषा भक्ष्याभक्ष्यसमन्विता। कौतूहलानुप्रवणा हर्षं जनयतीव मे।। | 12-36-3a 12-36-3b |
धर्मचर्या च राज्यं च नित्यमेव विरुध्यते। एवं मुह्यति मे चेतश्चिन्तयानस्य नित्यशः।। | 12-36-4a 12-36-4b |
वैशंपायन उवाच। | 12-36-5x |
तमुवाच महाराज व्यासो वेदविदां वरः। नारदं समभिप्रेक्ष्य सर्वं जानन्पुरातनम्।। | 12-36-5a 12-36-5b |
श्रोतुमिच्छसि चेद्धर्मं निखिलेन नराधिप। प्रेहि भीष्मं महाबाहो वृद्धं कुरुपितामहम्।। | 12-36-6a 12-36-6b |
स ते धर्मरहस्येषु संशयान्मनसि स्थितान्। छेत्ता भागीरथीपुत्रः सर्वज्ञः सर्वधर्मवित्।। | 12-36-7a 12-36-7b |
जनयामास यं देवी दिव्या त्रिपथगा नदी। साक्षाद्ददर्श यो देवान्सर्वानिन्द्रपुरोगमान्।। | 12-36-8a 12-36-8b |
बृहस्पतिपुरोगांस्तु देवर्षीनसकृत्प्रभुः। तोषयित्वोपचारेण राजनीतिमधीतवान्।। | 12-36-9a 12-36-9b |
उशना वेद यच्छास्त्रं देवासुरगुरुर्द्विजः। स च धर्मं सवैयाख्यं प्राप्तवान्कुरुसत्तमः।। | 12-36-10a 12-36-10b |
भार्गवाच्च्यवनाच्चापि वेदानङ्गोपबृंहितान्। प्रतिपेदे महाबुद्धिर्वसिष्ठाच्चरितव्रतः।। | 12-36-11a 12-36-11b |
पितामहसुतं ज्येष्ठं कुमारं दीप्ततेजसम्। अध्यात्मगतितत्त्वज्ञमुपाशिक्षत यः पुरा।। | 12-36-12a 12-36-12b |
मार्कण्डेयमुखात्कृत्स्नं यतिधर्ममवाप्तवान्। रामादस्त्राणि शक्राच्च प्राप्तवान्पुरुपर्षभः।। | 12-36-13a 12-36-13b |
मृत्युरात्मेच्छया यस्य जातस्य मनुजेष्वपि। तथाऽनपत्यस्य सतः पुण्यलोकादिविश्रुताः।। | 12-36-14a 12-36-14b |
यस्य ब्रह्मर्षयः पुण्या नित्यमासन्स भसादः। यस्य नाविदितं किंचिज्ज्ञानं ज्ञेयेषु दृश्यते।। | 12-36-15a 12-36-15b |
स ते वक्ष्यति धर्मज्ञः सूक्ष्मधर्मार्थतत्त्ववित्। तमभ्येहि पुरा प्राणान्स विमुञ्चति धर्मवित्।। | 12-36-16a 12-36-16b |
एवमुक्तस्तु कौन्तेयो दीर्घप्रज्ञो महामतिः। उवाच वदतां श्रेष्ठं व्यासं सत्यवतीसुतम्।। | 12-36-17a 12-36-17b |
युधिष्ठिर उवाच। | 12-36-18x |
वैशसं सुमहत्कृत्वा ज्ञातीनां रोमहर्षणम्। आगस्कृत्सर्वलोकस्य पृथिवीनाशकारकः।। | 12-36-18a 12-36-18b |
घातयित्वा तमेवाजौ छलेनाजिह्नयोधिनम्। उपसंप्रष्टुमर्हामि तमहं केन हेतुना।। | 12-36-19a 12-36-19b |
वैशंपायन उवाच। | 12-36-20x |
ततस्तं नृपतिश्रेष्ठं चातुर्वर्ण्यहितेप्सया। पुनरेव महाबाहुर्यदुश्रेष्ठोऽब्रवीद्वचः।। | 12-36-20a 12-36-20b |
वासुदेव उवाच। | 12-36-21x |
नेदानीमतिनिर्बन्धं शोके त्वं कर्तुमर्हसि। यदाह भगवान्व्यासस्तत्कुरुष्व नृपोत्तम।। | 12-36-21a 12-36-21b |
ब्राह्मणास्त्वां महाबाहो भ्रातरश्च महौजसः। पर्जन्यमिव घर्मान्ते नाथमाना उपासते।। | 12-36-22a 12-36-22b |
हतशिष्टाश्च राजानः कृत्स्नं चैव समागतम्। चातुर्वर्ण्यं महाराज राष्ट्रं ते कुरुजाङ्गलम्।। | 12-36-23a 12-36-23b |
प्रियार्थमपि चैतेषां ब्राह्मणानां महात्मनाम्। नियोगादस्य च गुरोर्व्यासस्यामिततेजसः।। | 12-36-24a 12-36-24b |
सुहृदामस्मदादीनां द्रौपद्यांश्च परंतप। कुरु प्रियममित्रघ्न लोकस्य च हितं कुरु।। | 12-36-25a 12-36-25b |
वैशंपायन उवाच। | 12-36-26x |
एवमुक्तः स कृष्णेन राजा राजीवलोचनः। हितार्थं सर्वलोकस्य समुत्तस्थौ महामनाः।। | 12-36-26a 12-36-26b |
सोऽनुनीतो नरव्याघ्र विष्टरश्रवसा स्वयम्। द्वैपायनेन च तथा देवस्थानेन जिष्णुना।। | 12-36-27a 12-36-27b |
एतैश्चान्यैश्च बहुभिरनुनीतो युधिष्ठिरः। व्यजहान्मानसं दुःखं संतापं च महायशाः।। | 12-36-28a 12-36-28b |
श्रुतवाक्यः श्रुतनिधिः श्रुतश्राव्यविशारदः। व्यवस्य मनसा शान्तिमगच्छत्पाण्डुनन्दनः।। | 12-36-29a 12-36-29b |
स तैः परिवृतो राजा नक्षत्रैरिव चन्द्रमाः। धृतराष्ट्रं पुरस्कृत्य स्वपुरं प्रविवेश ह।। | 12-36-30a 12-36-30b |
प्रविविक्षुः स धर्मज्ञः कुन्तीपुत्रो युधिष्ठिरः। अर्चयामास देवांश्च ब्राह्मणांश्च सहस्रशः।। | 12-36-31a 12-36-31b |
ततो नवं रथं शुभ्रं कम्बलाजिनसंवृतम्। युक्तं षोडशभिस्त्वश्चैः पाण्डुरैः शुभलक्षणैः।। | 12-36-32a 12-36-32b |
मन्त्रैरभ्यर्चितं पण्यैः स्तूयमानश्च बन्दिभिः। आरुरोह यथा देवः सोमोऽम्रतमयं यथम्।। | 12-36-33a 12-36-33b |
जग्राह रश्मीन्कौन्तेयो भीमो भीमपराक्रमः। अर्जुनः पाण्डुरं छत्रं धारयामास भानुमत्।। | 12-36-34a 12-36-34b |
ध्रियमाणं च तच्छत्रं पाण्डुरं राजमूर्धनि। शुशुभे तारकाराजः सिताभ्र इव चाम्बरे।। | 12-36-35a 12-36-35b |
चामरव्यजने त्वस्य वीरौ जगृहतुस्तदा। चन्द्ररश्मिप्रये शुभ्रे माद्रीपुत्रावलंकृते।। | 12-36-36a 12-36-36b |
ते पञ्च रथमास्थाय भ्रातरः समलंकृताः। भूतानीव समस्तानि राजन्ददृशिरे तदा।। | 12-36-37a 12-36-37b |
आस्थाय तु रथं शुभ्रं युक्तमश्वैर्मनोजवैः। अन्वयात्पृष्ठतो राजन्युयुत्सुः पाण्डवाग्रजम्।। | 12-36-38a 12-36-38b |
रथं हेममयं शुभ्रं शैव्यसुग्रीवयाजितम्। सह सात्यकिना कृष्णः समास्थायान्वयात्कुरून्।। | 12-36-39a 12-36-39b |
नरयानेन तु ज्येष्ठः पिता पार्थस्य भारत। अग्रतो धर्मराजस्य गान्धारीसहितो ययौ।। | 12-36-40a 12-36-40b |
कुरुस्त्रियश्च ताः सर्वाः कुन्ती कृष्णा च माधवी। यानैरुच्चावचैर्जग्मुर्विदुरेण पुरस्कृताः।। | 12-36-41a 12-36-41b |
ततो रथाश्च बहुला नागाश्वसमलंकृताः। पादाताश्च हयाश्चैव पृष्ठतः समनुव्रजन्।। | 12-36-42a 12-36-42b |
ततो वैतालिकैः सूतैर्मागधैश्च सुभाषितैः। स्तूयमानो ययौ राजा नगरं नागसाह्वयम्।। | 12-36-43a 12-36-43b |
तत्प्रयाणं माहबाहोर्बभूवाप्रतिमं भुवि। आकुलाकुलमुत्क्रुष्टं हृष्टपुष्टजनाकुलम्।। | 12-36-44a 12-36-44b |
अभियाने तु पार्थस्य नरैर्नगरवासिभिः। नगरं राजमार्गाश्च यथावत्समलंकृताः।। | 12-36-45a 12-36-45b |
पाण्डुरेण च माल्येन पताकाभिश्च मेदिनी। संस्कृतो राजमार्गोऽभूद्धूपनैश्च प्रधूपितः।। | 12-36-46a 12-36-46b |
अथ चूर्णैश्च गन्धानां नानापुष्पप्रियङ्गुभिः। माल्यदामभिरासक्तै राजवेश्माभिसंवृतम्।। | 12-36-47a 12-36-47b |
कुम्भाश्च नगरद्वारि वारिपूर्णा नवा दृढाः। सिताः सुमनसो गौराः स्थापितास्तत्र तत्र ह।। | 12-36-48a 12-36-48b |
तथा स्वलंकृतं द्वारं नगरं पाण्डुनन्दनः। स्तूयमानः शुभैर्वाक्यैः प्रविवेश सुहृद्वृतः।। | 12-36-49a 12-36-49b |
।। इति श्रीमन्महाभारते शान्तिपर्वणि राजधर्मपर्वणि षट्त्रिंशोऽध्यायः।। 36।। |
12-36-3 कौतूहलेन प्रसङ्गेनाऽनुप्रवणा अभिमुखा।। 12-36-6 प्रेहि प्रयाहि।। 12-36-10 यच्च देवगुरुर्द्रिज इति झ. पाठः। सवैयाख्यं व्याख्यासहितम्।। 12-36-16 विमुञ्चति विमोक्ष्यति ततः पुरा।। 12-36-18 वैशसं विनाशम्।। 12-36-22 नाथमानाः याचमानाः। उपासत इत्युत्तरत्रापि योज्यम्।। 12-36-27 विष्टरश्रवसा विष्णुना।। 12-36-28 संतापं शारीरं तापम्।। 12-36-29 वाक्यानि वेदावयवाः। निधिस्तदर्थविचारग्रन्थो मीमांसा। श्रुतं श्राव्यं नीतिशास्त्रादि। व्यवस्य कर्तव्यमर्थं निश्चित्य।। 12-36-33 अमृतमयं देवतामयम्।। 12-36-38 युयुत्सुर्धृतराष्ट्रपुत्रः।। 12-36-46 मेदिनी समलंकृतेत्यनुषज्यते। धूपनैः अगरुप्रभृतिभिर्धूपद्रव्यैः।।
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