महाभारतम्-12-शांतिपर्व-152
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वैदिशनाम्नि नगरे केषुचिद्ब्राह्मणेषु मृतबालं श्मशानमुपनीय गृध्रजम्बुकवचनैर्ढौलायमानमानसतथा चिन्तयत्सु तत्र यदृच्छासमागतपरमेश्वरेण पार्वतीचोदनया मृतबालकोज्जीवनम्।। 1।।
युधिष्ठिर उवाच। | 12-152-1x |
कच्चित्पितामहेनासीच्छ्रुवं वा दृष्टमेव च। कच्चिन्मर्त्यो मृतो राजन्पुनरुज्जीवितोऽभवत्।। | 12-152-1a 12-152-1b |
भीष्म उवाच। | 12-152-2x |
शृणु पार्थ यथावृत्तमितिहासं पुरातनम्। गृध्रजम्बुकसंवादं यो वृत्तो वैदिशे पुरे।। | 12-152-2a 12-152-2b |
कस्यचिद्ब्राह्मणस्यासीद्दुःखलब्धः सुतो मृतः। बाल एव विशालाक्षो बालग्रहनिपीडितः।। | 12-152-3a 12-152-3b |
दुःखिताः केचिदादाय बालमप्राप्तयोवनम्। कुलसर्वस्वभूतं वै रुदन्तः शोककर्शिताः।। | 12-152-4a 12-152-4b |
बालं मृतं गृहीत्वाऽथ श्मशानाभिमुखाः स्थिताः। अङ्गेनाङ्गं समाक्रस्य रुरुदुर्भृशदुःखिताः।। | 12-152-5a 12-152-5b |
शोचन्तस्तस्य पूर्वोक्तान्भाषितांश्चासकृत्पुनः। तं बालं भूतले क्षिप्य प्रतिगन्तुं न शक्नुयुः।। | 12-152-6a 12-152-6b |
तेषां रुदितशब्देन गृध्रोऽभ्येत्य वचोऽब्रवीत्। प्रेतात्मकमिमंकाले त्यक्त्वा गच्छत माचिरम्।। | 12-152-7a 12-152-7b |
इह पुंसां सहस्राणि स्त्रीसहस्राणि चैव ह। समानीतानि कालेन हित्वा वै यान्ति बान्धवाः।। | 12-152-8a 12-152-8b |
संपश्यत जगत्सर्वं सुखदुःखैरधिष्ठितम्। संयोगो विप्रयोगश्च पर्यायेणोपलभ्यते।। | 12-152-9a 12-152-9b |
गृहीत्वा ये च गच्छन्ति येऽनुयान्ति च तान्मृतान्। तेऽप्यायुषः प्रमाणेन स्वेन गच्छन्ति जन्तवः।। | 12-152-10a 12-152-10b |
अलं स्थित्वा श्मशानेऽस्मिन्गृध्रगोमायुसंकुले। कङ्कालबहुले घोरे सर्वप्राणिभयंकरे।। | 12-152-11a 12-152-11b |
न पुनर्जीवितः कश्चित्कालधर्ममुपागतः। प्रियो वा यदि वा द्वेष्यः प्राणिनां गतिरीदृशी।। | 12-152-12a 12-152-12b |
सर्वेण खलु मर्तव्यं मर्त्यलोके प्रसूयता। कृतान्तविहिते मार्गे मृतं को जीवयिष्यति।। | 12-152-13a 12-152-13b |
दिशान्तोपचितो यावदस्तं गच्छति भास्करः। गम्यतां स्वमधिष्ठानं सुतस्नेहं विसृज्य वै।। | 12-152-14a 12-152-14b |
ततो गृध्रवचः श्रुत्वा विक्रोशन्तस्तदा नृप। बान्धवास्तेऽभ्यगच्छन्त पुत्रमुत्सृज्य भूतले।। | 12-152-15a 12-152-15b |
विनिश्चित्याथ च तदा विक्रोशन्तस्ततस्ततः। [मृत इत्येव गच्छन्तो निराशास्तस्य दर्शने।।] | 12-152-16a 12-152-16b |
निश्चितार्थाश्च ते सर्वे संत्यजन्तः स्वमात्मजम्। निराशा जीविते तस्य मार्गमावृत्य धिष्ठिताः।। | 12-152-17a 12-152-17b |
ध्वाङ्क्षपक्षसवर्णस्तु बिलान्निःसृत्य जम्बुकः। गच्छमानान्स्म तानाह निर्घृणाः खलु मानुषाः।। | 12-152-18a 12-152-18b |
आदित्योऽयं स्थितो मूढाः स्नेहं कुरुत मा भयम्। बहुरूपो मुहूर्ताच्च जीवेदपि च बालकः।। | 12-152-19a 12-152-19b |
दर्भान्भूमौ विनिक्षिप्य पुत्रस्नेहविनाकृताः। श्मशाने सुतमुत्सृज्य कस्माद्गच्छत निर्घृणाः।। | 12-152-20a 12-152-20b |
न वोऽस्त्यस्मिन्सुते स्नेहो बाले मधुरभाषिणि। यस्य भाषितमात्रेण प्रसादमधिगच्छत।। | 12-152-21a 12-152-21b |
न पश्यध्वं सुतस्नेहो यादृशः पशुपक्षिणाम्। न तेषां धारयित्वा तान्कश्चिदस्ति फलागमः।। | 12-152-22a 12-152-22b |
चतुष्पात्पक्षिकीटानां प्राणिनां स्नेहसङ्गिनाम्। परलोकगतिस्थानां मुनियज्ञक्रियामिव।। | 12-152-23a 12-152-23b |
तेषां पुत्राभिरामाणामिह लोके परत्र च। न गुणो दृश्यते कश्चित्प्रजाः संधारयन्ति च।। | 12-152-24a 12-152-24b |
अपश्यतां प्रियान्पुत्रान्येषां शोको न तिष्ठति। न ते पोषणसंप्रीता मातापितर एव हि।। | 12-152-25a 12-152-25b |
मानुषाणां कुतः स्नेहो येषां शोको न विद्यते। इमं कुलकरं पुत्रं त्यक्त्वा क्व नु गमिष्यथ।। | 12-152-26a 12-152-26b |
चिरं मुञ्चत बाष्पं च चिरं स्नेहेनन पश्यत। एवंविधानि हीष्टानि दुस्त्यजानि विशेषतः।। | 12-152-27a 12-152-27b |
क्षीणस्याथामिशस्तस्य श्मशानाभिमुखस्य च। बान्धवा यत्र तिष्ठति तत्रान्यो नाधितिष्ठति।। | 12-152-28a 12-152-28b |
सर्वस्य दयिताः प्राणाः सर्वः स्नेहं च विन्दति। तिर्यग्योनिष्वपि संतां स्नेहं पश्यत यादृशम्।। | 12-152-29a 12-152-29b |
त्यक्त्वा कथं गच्छथेमं पद्मलोलायतेक्षणम्। यथा नवोद्वाहकृतं स्नानमाल्यविभूषितम्। | 12-152-30a 12-152-30b |
जम्बुकस्य वचः श्रुत्वा कृपणं परिदेवतः। न्यवर्तन्त तदा सर्वे बालार्थं ते स्म मानुषाः।। | 12-152-31a 12-152-31b |
गृध्र उवाच। | 12-152-32x |
अहो बत नृशंसेन जम्बुकेनाल्पमेधसा। क्षुद्रेणोक्ता हीनसत्वा मानुषाः किं निवर्तथ।। | 12-152-32a 12-152-32b |
पञ्चभूतपरित्यक्तं शुष्कं काष्ठत्वमागतम्। कस्माच्छोचथ निश्चेष्टमात्मानं किं न शोचथ।। | 12-152-33a 12-152-33b |
तपः कुरुत वै तीव्रं मुच्यध्वं येन किल्बिषात्। तपसा लभ्यते सर्वं विलापः किं करिष्यति।। | 12-152-34a 12-152-34b |
अनिष्टानि न भाग्यानि जानीत स्वंस्वमात्मना। येन गच्छति बालोऽयं दत्त्वा शोकमनन्तकम्।। | 12-152-35a 12-152-35b |
धनं गावः सुवर्णं च मणिरत्नमथापि च। अपत्यं च तपोमूलं तपो योगाच्च लभ्यते।। | 12-152-36a 12-152-36b |
यथा कृता च भूतेषु प्राप्यते सुखदुःखिता। गृहीत्वा जायते जन्तुर्दुःखानि च सुखानि च।। | 12-152-37a 12-152-37b |
न कर्मणा पितुः पुत्रः पिता व्रा पुत्रकर्मणा। मार्गेणान्येन गच्छन्ति बद्धाः सुकृतदुष्कृतैः।। | 12-152-38a 12-152-38b |
धर्मं चरत यत्नेन तथाऽधर्मान्निवर्तत। वर्तध्वं च यथाकालं दैवतेषु द्विजेषु च।। | 12-152-39a 12-152-39b |
शोकं त्यजत दैन्यं च सुतस्नेहान्निवर्तत। त्यज्यतामयमाक्रोशस्ततः शीघ्रं निवर्तत।। | 12-152-40a 12-152-40b |
यत्करोति शुभं कर्म तथा कर्म सुदारुणम्। तत्कर्तैव समश्नाति बान्धवानां किमत्र ह।। | 12-152-41a 12-152-41b |
इह त्यक्त्वा न तिष्ठन्ति बान्धवा बान्धवं प्रियम्। स्नेहमुत्सृज्य गच्छन्ति बाष्पपूर्णाविलेक्षणाः।। | 12-152-42a 12-152-42b |
प्राज्ञो वा यदि वा मूर्खः सधनो निर्धनोऽपि वा। सर्वः कालवशं याति शुभाशुभसमन्वितः।। | 12-152-43a 12-152-43b |
किं करिष्यथ शोचित्वा मृतं किमनुशोचथ। सर्वस्य हि प्रभुः कालो धर्मतः समदर्शनः।। | 12-152-44a 12-152-44b |
यौवनस्थांश्च बालांश्च बृद्धान्गर्भगतानपि। सर्वानाविशते मृत्युरेवंभूतमिदं जगत्।। | 12-152-45a 12-152-45b |
जम्बुक उवाच। | 12-152-46x |
अहो मन्दीकृतः स्नेहो गृध्रेणेहाल्पबुद्धिना। पुत्रस्नेहाभिभूतानां युष्माकं शोचतां भृशम्।। | 12-152-46a 12-152-46b |
समैः सम्यक्प्रयुक्तैश्च वचनैर्हेतुदर्शनैः। `सर्वमेतत्प्रपद्याशु कुरुध्वं वा विचारणां।' यद्गच्छथ जलस्थानं स्नेहमुत्सृज्य दुस्त्यजम्।। | 12-152-47a 12-152-47b 12-152-47c |
अहो पुत्रवियोगेन मृतशून्योपसेवनात्। क्रोशतां वा भृशं दुःखं विवत्सानां गवामिव।। | 12-152-48a 12-152-48b |
अद्य शोकं विजानामि मानुषाणां महीतले। स्नेहं हि कारणं कृत्वा ममाप्यश्रूण्यथापतन्।। | 12-152-49a 12-152-49b |
यत्नो हि सततं कार्यस्ततो दैवेन सिद्ध्यति। दैवं पुरुषकारश्च कृतान्तेनोपपद्यते।। | 12-152-50a 12-152-50b |
अनिर्वेदः सदा कार्यो निर्वेदाद्धि कुतः सुखम्। प्रयत्नात्प्राप्यते ह्यर्थः कस्माद्गच्छथ निर्दयम्।। | 12-152-51a 12-152-51b |
आत्ममांसोपवृत्तं च शरीरार्धमर्यी तनुम्। पितॄणां वंशकर्तारं वने त्यक्त्वा क्व यास्यथ।। | 12-152-52a 12-152-52b |
अथवाऽस्तं गते सूर्ये संध्याकाल उपस्थिते। ततो नेष्यश्च वा पुत्रमिहस्था वा भविष्यथ।। | 12-152-53a 12-152-53b |
गृध्र उवाच। | 12-152-54x |
अद्य वर्षसहस्रं मे साग्रं जातस्य मानुषाः। न च पश्यामि जीवन्तं मृतं स्त्रीपुंनपुंसकम्।। | 12-152-54a 12-152-54b |
मृता गर्भेषु जायन्ते जातमात्रा म्रियन्ति च। चंक्रमन्तो म्रियन्ते च यौवनस्थास्तथा परे।। | 12-152-55a 12-152-55b |
अनित्यानीह भाग्यानि चतुष्पात्पक्षिणामपि। जङ्गमाजङ्गमानां च ह्यायुरग्रेऽवतिष्ठते।। | 12-152-56a 12-152-56b |
इष्टदारवियुक्ताश्च पुत्रशोकान्वितास्तथा। दह्यमानाः स्म शोकेन गृहं गच्छन्ति नित्यशः।। | 12-152-57a 12-152-57b |
अनिष्टानां सहस्राणि तथेष्टानां शतानि च। उत्सृज्येह प्रयाता वै बान्धवा भृशदुःखिताः।। | 12-152-58a 12-152-58b |
त्यज्यतामेष निस्तेजाः शून्यः काष्ठत्वमागतः। अन्यदेहविषक्तं हि शिशुं काष्ठमुपासथ।। | 12-152-59a 12-152-59b |
त्यक्तजीवस्य वै बाष्पं कस्माद्धित्वा न गच्छत। निरर्थको ह्ययं स्नेहो निष्फलश्च परिश्रमः।। | 12-152-60a 12-152-60b |
न च क्षुर्भ्यां न कर्णाभ्यां च शृणोति स पश्यति। कस्मादेनं सप्नुत्सृज्य न गृहान्गच्छताशु वै।। | 12-152-61a 12-152-61b |
मोक्षधर्माश्रितैर्वाक्यैर्हेतुमद्भिः सुनिष्ठुरैः। भयोक्ता गच्छत क्षिप्रं स्वं स्वमेव निवेशनम्।। | 12-152-62a 12-152-62b |
प्रज्ञाविज्ञानयुक्तेन बुद्धिसंज्ञाप्रदायिना। वच्चं श्राविता नूनं मानुषाः संनिवर्तथ।। | 12-152-63a 12-152-63b |
[शोको द्विगुणतां याति दृष्ट्वा स्मृत्वा च चेष्टितम्। इत्येतद्वचनं श्रुत्वा सन्निवृत्तास्तु मानुषाः। अपश्यत्तं तदा सुप्तं द्रुतमागत्य जम्बुकः।।] | 12-152-64a 12-152-64b 12-152-64c |
जम्बुक उवाच। | 12-152-65x |
इमं कनकवर्णाभं भूषणैः समलंकृतम्। गृध्रवाक्यात्कथं पुत्रं त्यक्ष्यध्वं पितृपिण्डदम्।। | 12-152-65a 12-152-65b |
न स्नेहस्य च विच्छेदो विलापरुदितस्य च। मृतस्यास्य परित्यागात्तापो वै भविता ध्रुवम्।। | 12-152-66a 12-152-66b |
श्रूयते शम्बुके शूद्रे हते ब्राह्मणदारकः। जीवितो धर्ममासाद्य रामात्सत्यपराक्रमात्।। | 12-152-67a 12-152-67b |
तथा श्वैत्यस्य राजर्षेर्बालो दिष्टान्तमागतः। मुनिना धर्मनिष्ठेन मृतः संजीवितः पुनः।। | 12-152-68a 12-152-68b |
तथा कश्चिद्भवेत्सिद्धो मुनिर्वा देवतापि वा। कृपणानामनुक्रोशं कुर्याद्वो रुदतामिह।। | 12-152-69a 12-152-69b |
इत्युक्तास्ते न्यवर्तन्त शोकार्ताः पुत्रवत्सलाः। अङ्के शिरः समाधाय रुरुदुर्बहुविस्तरम्। तेषां रुदितशब्देन गृध्रोऽभ्येत्य वचोऽब्रवीत्।। | 12-152-70a 12-152-70b 12-152-70c |
अश्रुपातपरिक्लिन्नः पाणिस्पर्शप्रपीडितः। धर्मराजप्रयोगाच्च दीर्घनिद्रां प्रवेशितः।। | 12-152-71a 12-152-71b |
`तपसाऽपि हि संयुक्तो जनः कालेन हन्यते। सर्वस्नेहावसक्तानामिदं हि स्नेहवर्तनम्।।' | 12-152-72a 12-152-72b |
बालवृद्धसहस्राणि सदा संत्यज्य बान्धवाः। दिनानि चैव रात्रीश्च दुःखं तिष्ठन्ति भूतले।। | 12-152-73a 12-152-73b |
अलं निर्बन्धमागत्य शोकस्य परिवारणम्। अप्रत्ययं कुतो ह्यस्य पुनरद्येह जीवितम्।। | 12-152-74a 12-152-74b |
`नैष जम्बुकवाक्येन पुनः प्राप्स्यति जीवितम्।' मृतस्योत्सृष्टदेहस्य पुनर्देहो न विद्यते।। | 12-152-75a 12-152-75b |
नैव मूर्तिप्रदानेन जम्बुकस्य शतैरपि। न स जीवयितुं शक्यो बालो वर्षशतैरपि।। | 12-152-76a 12-152-76b |
अथ रुद्रः कुमारो वा ब्रह्मा वा विष्णुरेव च। वरमस्मै प्रयच्छन्ति ततो जीवेदयं शिशुः।। | 12-152-77a 12-152-77b |
नैव बाष्पविमोक्षेण न वा श्वासकृतेन च। न दीर्घरुदितेनायं पुनर्जीवं गमिष्यति।। | 12-152-78a 12-152-78b |
अहं च क्रोष्टुकश्चैव यूयं ये चास्य बान्धवाः। धर्माधर्मौ गृहीत्वेह सर्वे वर्तामहेऽध्वनि।। | 12-152-79a 12-152-79b |
अप्रियं परुषं चापि परद्रोहं परस्त्रियम्। अधर्ममनृतं चैव दूरात्प्राज्ञो विवर्जयेत्।। | 12-152-80a 12-152-80b |
धर्मं सत्यं श्रुतं न्याय्यं महतीं प्राणिनां दयाम्। अजिह्नत्वमशाठ्यं च यत्नतः परिमार्गत।। | 12-152-81a 12-152-81b |
मातरं पितरं वाऽपि बान्धवान्सुहृदस्तथा। जीवतो ये न पश्यति तेषां धर्मविपर्ययः।। | 12-152-82a 12-152-82b |
यो न पश्यति चक्षुर्भ्यां नेङ्गते च कथंचन। तस्य निष्ठावसानान्ते रुदन्ताः किं करिष्यथ।। | 12-152-83a 12-152-83b |
इत्युक्तास्ते सुतं त्यक्त्वा भूमौ शोकपरिप्लुताः। दह्यमानाः सुतस्नेहात्प्रययुर्बान्धवा गृहम्।। | 12-152-84a 12-152-84b |
जम्बुक उवाच। | 12-152-85x |
दारुणो मर्त्यलोकोऽयं सर्वप्राणिविनाशनः। इष्टबन्धुवियोगश्च तथेहाल्पं च जीवितम्।। | 12-152-85a 12-152-85b |
बह्वलीकमसत्यं चाप्यतिवादाप्रियंवदम्। इमं प्रेक्ष्य पुनर्भावं दुःखशोकविवर्धनम्। न मे मानुषलोकोऽयं मुहूर्तमपि रोचते।। | 12-152-86a 12-152-86b 12-152-86c |
अहो धिग्गृध्रवाक्येन यथैवाबुद्धयस्तथा। कथं गच्छथ निःस्नेहाः सुतस्नेहं विसृज्य च।। | 12-152-87a 12-152-87b |
प्रदीप्ताः पुत्रशोकेन सन्निवर्तथ मानुषाः। श्रुत्वा गृध्रस्य वचनं पापस्येहाकृतात्मनः।। | 12-152-88a 12-152-88b |
सुखस्यानन्तरं दुःखं दुःखस्यानन्तरं सुखम्। सुखदुःखावृते लोके नास्ति सौख्यमनन्तकम्।। | 12-152-89a 12-152-89b |
इमं क्षितितले त्यक्त्वा बालं रूपसमन्वितम्। कुलशोभाकरं मूढाः पुत्रं त्यक्त्वा क्व यास्यथ।। | 12-152-90a 12-152-90b |
रूपयौवनसंपन्नं द्योतमानमिव श्रिया। जीवन्तमेव पश्यामि मनसा नात्र संशयः।। | 12-152-91a 12-152-91b |
विनाशेनास्य न हि वै सुखं प्राप्स्यथ मानुषाः। पुत्रशोकाभितप्तानां मृतमप्यद्य वः क्षमम्।। | 12-152-92a 12-152-92b |
दुःखसंभावनं कृत्वा धारयित्वा सुखं स्वयम्। त्यक्त्वा गमिष्यथ क्वाद्य समुत्सृज्याल्पबुद्धिवत्।। | 12-152-93a 12-152-93b |
भीष्म उवाच। | 12-152-94x |
तथा धर्मविरोधेन प्रियमिथ्याभिधायिनाम्। श्मशानवासिना नित्यं रात्रिं मृगयता नृप।। | 12-152-94a 12-152-94b |
ततो मध्यस्थतां नीता वचनैरमृतोपमैः। जम्बुकेन स्वकार्यार्थं बान्धवास्तत्र वारिताः।। | 12-152-95a 12-152-95b |
गृध्र उवाच। | 12-152-96x |
अयं प्रेतसमाकीर्णो यक्षराक्षससेवितः। दारुणः काननोद्देशः कौशिकैरभिनादितः।। | 12-152-96a 12-152-96b |
भीमः सुघोरश्च तथा नीलमेघसमप्रभः। अस्मिञ्शवं परित्यज्य प्रेतकार्याण्युपासत।। | 12-152-97a 12-152-97b |
भानुर्यावन्न यात्यस्तं यावच्च विमला दिशः। तावदेनं परित्यज्य प्रेतकार्याण्युपासत।। | 12-152-98a 12-152-98b |
नदन्ति परुषं श्येनाः शिवाः क्रोशन्ति दारुणम्। मृगेन्द्राः प्रतिनर्दन्ति रविरस्तं च गच्छति।। | 12-152-99a 12-152-99b |
चिता धूमेन नीलेन संरज्यन्ते च पादपाः। श्मशाने च निराहाराः प्रतिनर्दन्ति देवताः।। | 12-152-100a 12-152-100b |
सर्वे विकृतदेहाश्चाप्यस्मिन्देशे सुदारुणे। युष्मान्प्रधर्षयिष्यन्ति विकृता मांसभोजिनः।। | 12-152-101a 12-152-101b |
क्रूरश्चायं वनोद्देशो भयमद्य भविष्यति। त्यज्यतां काष्ठभूतोऽयं मुच्यतां जाम्बुकं वचः।। | 12-152-102a 12-152-102b |
यदि जम्बुकवाक्यानि निष्फलान्यनृतानि च। श्रोष्यथ भ्रष्टविज्ञानास्ततः सर्वे विनङ्क्ष्यथ।। | 12-152-103a 12-152-103b |
जम्बुक उवाच। | 12-152-104x |
स्थीयतां वो न भेतव्यं यावत्तपति भास्करः। तावदस्मिन्सुते स्नेहादनिर्वेदेन वर्तत।। | 12-152-104a 12-152-104b |
स्वैरं रुदन्तो विस्रब्धाश्चिरं स्नेहेन पश्यत। `दारुणेऽस्मिन्वनोद्देशे भयं वो न भविष्यति।। | 12-152-105a 12-152-105b |
अयं सौम्यो वनोद्देशः पितृणां निधनाकरः।' स्थीयतां यावदादित्यः किंवः क्रव्यादभाषितैः।। | 12-152-106a 12-152-106b |
यदि गृध्रस्य वाक्यानि तीव्राणि रभसानि च। गृह्णीत मोहितात्मानः सुतो वो न भविष्यति।। | 12-152-107a 12-152-107b |
भीष्म उवाच। | 12-152-108x |
गृध्रो नास्तमितेऽभ्येति तिष्ठेन्नक्तं च जम्बुकः। मृतस्य तं परिजनमूचतुस्तौ क्षुधान्वितौ।। | 12-152-108a 12-152-108b |
स्वकार्यबद्धकक्षौ तौ राजन्गृध्रोऽथ जम्बुकः। क्षुत्पिपासापरिश्रान्तौ शास्त्रमालम्ब्य जल्पतः।। | 12-152-109a 12-152-109b |
तयोर्विज्ञानविदुषोर्द्वयोर्मृगपतत्रिणोः। वाक्यैरमृतकल्पैस्तैः प्रतिष्ठन्ते व्रजन्ति च।। | 12-152-110a 12-152-110b |
शोकदैन्यसमाविष्टा रुदन्तस्तस्थिरे तदा। स्वकार्यकुशलाभ्यां ते संभ्राम्यन्ते ह नैपुणात्।। | 12-152-111a 12-152-111b |
तथा तयोर्विवदतोर्विज्ञानविदुषोर्द्वयोः। बान्धवानां स्थितानां चाप्युपातिष्ठत शंकरः।। | 12-152-112a 12-152-112b |
देव्या प्रणोदितो देवः कारुण्यार्द्रीकृतेक्षणः। ततस्तानाह मनुजान्वरदोऽस्मीति शंकरः।। | 12-152-113a 12-152-113b |
ते प्रत्यूचुरिदं वाक्य दुःखिताः प्रणताः स्थिताः। एकपुत्रविहीनानां सर्वेष्नां जीवितार्थिनाम्। पुत्रस्य नो जीवदानाज्जीवितं दातुमर्हसि।। | 12-152-114a 12-152-114b 12-152-114c |
एवमुक्तः स भगवान्वारिपूर्णेन पाणिना। जीवं तस्मै कुमाराय प्रादाद्वर्षशतानि वै।। | 12-152-115a 12-152-115b |
तथा गोमायुगृध्राभ्यां प्राददत्क्षुद्विनाशनम्। वरं पिनाकी भगवान्सर्वभूतहिते रतः।। | 12-152-116a 12-152-116b |
ततः प्रणम्य ते देवं श्रेयोहर्षसमन्विताः। कृतकृत्याः सुसंहृष्टाः प्रातिष्ठन्त तदा विभो।। | 12-152-117a 12-152-117b |
अनिर्वेदेन दीर्घेण निश्चयेन ध्रुवेण च। देवदेवप्रसादाच्च क्षिप्रं फलमवाप्यते।। | 12-152-118a 12-152-118b |
पश्य दैवस्य संयोगं बान्धवाना च निश्चयम्। कृपणानां तु रुदतां कृतमश्रुप्रमार्जनम्।। | 12-152-119a 12-152-119b |
पश्य चाल्पेन कालेन निश्चयाध्वेषणेन च। प्रसादं शंकरात्प्राप्य दुःखिताः सुखमाप्नुवन्।। | 12-152-120a 12-152-120b |
ते विस्मिताः प्रहृष्टाश्च पुत्रसंजीवनात्पुनः। बभूवुर्भरतश्रेष्ठ प्रसादाच्छंकरस्य वै।। | 12-152-121a 12-152-121b |
ततस्ते त्वरिता राजंस्त्यक्त्वा शोकं शिशूद्भवम्। विविशुः पुत्रमादाय नगरं हृष्टमानसाः।। | 12-152-122a 12-152-122b |
एषा बुद्धिः समस्तानां चातुर्वर्ण्येन दर्शिता।। | 12-152-123a |
धर्मार्थमोक्षसंयुक्तमितिहासं पुरातनम्। श्रुत्वा मनुष्यः सततमिहामुत्र प्रमोदते।। | 12-152-124a 12-152-124b |
।। इति श्रीमन्महाभारते शान्तिपर्वणि आपद्धर्मपर्वणि द्विपञ्चाशदधिकशततमोऽध्यायः।। 152।। |
12-152-2 यो वृत्तो नैमिषे पुरेति झ. पाठः।। 12-152-5 अङ्केनाङ्कं समाक्रम्येति ड. थ. पाठः।। 12-152-7 एकात्मकमिदं लोके इति थ. ध. पाठः।। 12-152-8 किं तैर्वैयातबान्धवा इति थ. ध. पाठः।। 12-152-12 न पुनर्जीवते कश्चिदिति ड. थ. द. पाठः।। 12-152-13 जीवलोके प्रसूयतेति थ. द. पाठः।। 12-152-14 दिशान्तोपरते काले चास्तं गच्छति भास्कर इति ध. पाठः।। 12-152-22 न मे संधारयित्वा तु इति ध. पाठः।। 12-152-47 यद्रच्छति जनश्चायमिति झ. पाठः।। 12-152-69 कश्चिल्लभेत्सिद्ध इति झ. पाठः।। 12-152-72 तपसा पि हि संयुक्ता धनवन्तो महाधियः। सर्वे मृत्युवशं यान्ति तदिदं प्रेतपत्तनमिति झ. पाठः।। 12-152-77 वरमस्मै प्रयच्छेयुस्तत इति झ. पाठः।। 12-152-95 बान्धवास्तस्य धारिता इति थ. पाठः।। 12-152-104 वः युष्माभिः।। 12-152-108 गृध्रोऽस्तमिस्याह गतो गतो नेचि च जम्बुकः इति झ. पाठः।। 12-152-119 बान्धवानां च सत्यतामिति द. पाठः।।
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