महाभारतम्-12-शांतिपर्व-231
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भीष्मेण युधिष्ठिरंप्रति सर्यस्यापि कालनियामकेश्वरनियम्यत्वप्रतिपादकशक्रबलिसंवादानुवादः।। 1।।
भीष्म उवाच। | 12-231-1x |
पुनेरव तु सं शक्रः अहसन्निदमब्रवीत्। निश्वसन्तं यथा गायं प्रत्याहाराय भारत।। | 12-231-1a 12-231-1b |
यथज्ञानसहस्रेण ज्ञातिभिः परिवारितः। लोकान्यतापयन्तर्वान्यास्यस्मानवितर्कयन्।। | 12-231-2a 12-231-2b |
दृष्ट्वा सुकृष्णां चेमागयस्थामात्मनो बले। ज्ञातिमित्रपरित्यक्तः शोचस्याहो न शोचसि।। | 12-231-3a 12-231-3b |
प्रीतिं प्राप्यातुलां पूर्वं लोकांश्चात्मवशे स्थितान्। विनिपातमिमं चाद्य शोचस्याहो न शोचसि।। | 12-231-4a 12-231-4b |
बलिरुवाच। | 12-231-5x |
`गर्वं हित्वा तथा मानं देवराज शृणुष्व मे। मया च त्वाऽनुसद्भावं पूर्वमाचरितं महत्।। | 12-231-5a 12-231-5b |
अवश्यकालपर्यायमात्मनः परिवर्तनम्। अविदँल्लोकमाहात्म्यं-------।।' | 12-231-6a 12-231-6b |
अनित्यमुपलक्ष्येह कालपर्यायमात्मनः। तस्माच्छक्र न शोचामि सर्वं ह्येवेदमन्तवत्।। | 12-231-7a 12-231-7b |
अन्तवन्त इमे देहा भूतानां च सुराधिप। तेन शक्र न शोचामि नापराधादिदं मम।। | 12-231-8a 12-231-8b |
जीवितं च शरीरं च जात्या वै सह जायते। उभे सह विवर्धेते उभे सह विनश्यतः।। | 12-231-9a 12-231-9b |
न हीदृशमहंभावमवशः प्राप्य केवलम्। यदेवमभिजानामि का व्यथा मे विजानतः।। | 12-231-10a 12-231-10b |
भूतानां निधनं निष्ठा स्रोतसामिव सागरः। नैतत्सम्यग्विजानन्तो नरा मुह्यन्ति वज्रधृत्।। | 12-231-11a 12-231-11b |
ये त्वेवं नाभिजानन्ति रजोमोहपरायणाः। ते कृच्छ्रं प्राप्य सीदन्ति बुद्धिर्येषां प्रणश्यति।। | 12-231-12a 12-231-12b |
बुद्धिलाभात्तु पुरुषः सर्वं तुदति किल्विषम्। विपाप्मा लभते सत्वं सत्वस्थः संप्रसीदति।। | 12-231-13a 12-231-13b |
ततस्तु ये निवर्तन्ते जायन्ते वा पुनः पुनः। कृपणाः परितप्यन्ते तैरर्थैरभिचोदिताः।। | 12-231-14a 12-231-14b |
अर्थसिद्धिमनर्थं च जीवितं मरणं तथा। सुखं दुःखं फलं चैव न द्वेष्मि न च कामये।। | 12-231-15a 12-231-15b |
हतं हन्ति हतो ह्येव यो नरो हन्ति कंचन। उभौ तौ न विजानीतो यश्च हन्ति हतश्च यः।। | 12-231-16a 12-231-16b |
हत्वा जित्वा च मघवन्यः कश्चित्पुरुषायते। अकर्ता ह्येव भवति कर्ता ह्येव करोति तत्।। | 12-231-17a 12-231-17b |
को हि लोकस्य कुरुते विनाशप्रभवावुभौ। कृतं हि तत्कृतेनैव कर्ता तस्यापि चापरः।। | 12-231-18a 12-231-18b |
पृथिवी ज्योतिराकाशमापो वायुश्च पञ्चमः। एतद्योनीनि भूतानि तत्र का परिदेवना।। | 12-231-19a 12-231-19b |
महाविद्योऽल्पविद्यश्च बलवान्दुर्बलश्च यः। दर्शनीयो विरूपश्च सुभगो दुर्भगश्च यः।। | 12-231-20a 12-231-20b |
सर्वं कालः समादत्ते गम्भीरः स्वेन तेजसा। तस्मिन्कालवशं प्राप्ते का व्यथा मे विजानतः।। | 12-231-21a 12-231-21b |
दग्धमेवानुदहते हतमेवानुहन्यते। नश्यते नष्टमेवाग्रे लब्धव्यं लभते नरः।। | 12-231-22a 12-231-22b |
नास्य द्वीपः कुतः पारो नावारः संप्रदृश्यते। नान्तमस्य प्रपश्यामि विधेर्दिव्यस्य चिन्तयन्।। | 12-231-23a 12-231-23b |
यदि मे पश्यतः कालो भूतानि न विनाशयेत्। स्यान्मे हर्षश्च दर्पश्च क्रोधश्चैव शचीपते।। | 12-231-24a 12-231-24b |
तुषभक्षं तु मां ज्ञात्वा प्रविविक्तजने गृहे। बिभ्रतं गार्दभं रूपमागत्य परिगर्हसे।। | 12-231-25a 12-231-25b |
इच्छन्नहं विकुर्यां हि रूपाणि बहृधाऽऽत्मनः। विभीषणानि यानीक्ष्य पलायेथास्त्वमेव मे।। | 12-231-26a 12-231-26b |
कालः सर्वं समादत्ते कालः सर्वं प्रयच्छति। कालेन विहितं सर्वं मा कृथाः शक्र पौरुषम्।। | 12-231-27a 12-231-27b |
पुरा सर्वं प्रव्यथितं मयि क्रुद्धे पुरंदर। `विद्रवन्ति त्वया सार्धं सर्व एव दिबौकसः।।' | 12-231-28a 12-231-28b |
अवैमि त्वस्य लोकस्य कर्मं शक्र सनातनम्। त्वमप्येवमवेक्षस्व माऽऽत्मना विस्मगं गमः।। | 12-231-29a 12-231-29b |
प्रभवश्च प्रभावश्च नात्मसंस्थः कदाचन। कौमारमेव ते चित्तं तथैवाद्य यथा पुरा। समवेक्षस्व मघवन्बुद्धिं विन्दस्व नैष्ठिकीम्।। | 12-231-30a 12-231-30b 12-231-30c |
देवा मनुष्याः पितरो गन्धर्वोरगराक्षसाः। आसन्सर्वे मम वशे तत्सर्वं वेत्थ वासव।। | 12-231-31a 12-231-31b |
नमस्तस्यै दिशेऽप्यस्तु यस्यां वैरोचनो बलिः। इति मामभ्यपद्यन्त बुद्धिमात्सर्यमोहिताः।। | 12-231-32a 12-231-32b |
नाहं तदनुशोचामि नात्मभ्रंशं शचीपते। एवं मे निश्चिता बुद्धिः शास्तुस्तिष्ठाम्यहं वशे।। | 12-231-33a 12-231-33b |
दृश्यते हि कुले जातो दर्शनीयः प्रतापवान्। दुःखं जीवन्सहामात्यो भवितव्यं हि तत्तथा।। | 12-231-34a 12-231-34b |
दौष्कुलेयस्तथा मूढो दुर्जातः शक्र दृश्यते। सुखं जीवन्सहामात्यो भवितव्यं हि तत्तथा।। | 12-231-35a 12-231-35b |
कल्याणी रूपसंपन्ना दुर्भगा शक्र दृश्यते। अलक्षणा विरूपा च सुभगा दृश्यते परा।। | 12-231-36a 12-231-36b |
नैतदस्मत्कृतं शक्र नैतच्छक्र त्वया कृतम्। यत्तमेवं गतो वज्रिन्यच्चाप्येवं गता वयम्।। | 12-231-37a 12-231-37b |
न कर्म तव नान्येषां कुतो मम शतक्रतो। ऋद्धिर्वाऽप्यथवा नर्द्धिः पर्यायकृतमेव तत्।। | 12-231-38a 12-231-38b |
पश्यामि त्वां विराजन्तं देवराजमवस्थितम्। श्रीमन्तं द्युतिमन्तं च गर्जमानं ममोपरि।। | 12-231-39a 12-231-39b |
एवं नैव न चेत्कालो मामाक्रम्य स्थितो भवेत्। पातयेयमहं त्वाऽद्य सवज्रमपि मुष्टिना।। | 12-231-40a 12-231-40b |
न तु विक्रमकालोऽयं शान्तिकालोऽयमागतः। कालः स्थापयते सर्वं कालः पचति वै तथा।। | 12-231-41a 12-231-41b |
मां चेदभ्यागतः कालो दानवेश्वरमूर्जितम्। गर्जन्तं प्रतपन्तं च कमन्यं नागमिष्यति।। | 12-231-42a 12-231-42b |
द्वादशानां तु भवतामादित्यानां महात्मनाम्। तेजांस्येकेन सर्वेषां देवराज धृतानि मे।। | 12-231-43a 12-231-43b |
अहमेवोद्वहाम्यापो विसृजामि च वासव। तपामि चैव त्रैलोक्यं विद्योताम्यहमेव च।। | 12-231-44a 12-231-44b |
संरक्षामि विलुम्पामि ददाम्यहमथाददे। संयच्छामि नियच्छामि लोकेषु प्रभुरीश्वरः।। | 12-231-45a 12-231-45b |
तदद्य विनिवृत्तं मे प्रभुत्वममराधिप। कालसैन्यावगाढस्य सर्वं न प्रतिभाति मे।। | 12-231-46a 12-231-46b |
नाहं कर्ता न चैव त्वं नान्यः कर्ता शचीपते। पर्यायेण हि भुज्यन्ते लोकाः शक्र यदृच्छया।। | 12-231-47a 12-231-47b |
मासमासार्धवेश्मानमहोरात्राभिसंवृतम्। ऋतुद्वारं वायुमुखमायुर्वेदविदो जनाः।। | 12-231-48a 12-231-48b |
आहुः सर्वमिदं चिन्त्यं जनाः केचिन्मनीषया। `अनित्यपञ्चवर्षाणि षष्ठो दृश्यति देहिनाम्।।' | 12-231-49a 12-231-49b |
अस्याः पञ्चैव चिन्तायाः पर्येष्यामि च पञ्चधा। `ततस्तानि न पश्यामि काले तमपि वृत्रहन्।।' | 12-231-50a 12-231-50b |
गम्भीरं गहनं ब्रह्म महत्तोयार्णवं यथा। अनादिनिधनं चाहुरक्षरं क्षरमेव च।। | 12-231-51a 12-231-51b |
सत्त्वेषु लिङ्गमाविश्य निर्लिङ्गमपि तत्स्वयम्। मन्यन्ते ध्रुवमेवैनं ये जनास्तत्त्वदर्शिनः।। | 12-231-52a 12-231-52b |
`यमिन्द्रियाणि सर्वाणि नानुपश्यन्ति पञ्चधा। तं कालमिति जानीहि यस्य सर्वमिदं वशे।।' | 12-231-53a 12-231-53b |
भूतानां तु विषर्यासं कुरुते भगवानिति। न ह्येतावद्भवेद्ग्राम्यं न यस्मात्प्रभवेत्पुनः।। | 12-231-54a 12-231-54b |
गतिं हि सर्वभूतानामगत्वा क्व गमिष्यति। यो धावता न हातव्यस्तिष्ठन्नपि न हीयते।। | 12-231-55a 12-231-55b |
तमिन्द्रियाणि सर्वाणि नानुपश्यन्ति पञ्चधा। आहुश्चैनं केचिदग्निं केचिदाहुः प्रजापतिम्।। | 12-231-56a 12-231-56b |
ऋतून्मासार्धमासांश्च दिवसांश्च क्षणांस्तथा। पूर्वाह्णमपराह्णं च मध्याह्नमपि चापरे।। | 12-231-57a 12-231-57b |
मुहूर्तमपि चैवाहुरेकं सन्तमनेकधा। तं कालमिति जानीहि यस्य सर्वमिदं वशे।। | 12-231-58a 12-231-58b |
बहूनीन्द्रसहस्राणि समतीतानि वासव। बलवीर्योपपन्नानि यथैव त्वं शचीपते।। | 12-231-59a 12-231-59b |
त्वामप्यतिबलं शक्र देवराजं बलोत्कटम्। प्राप्ते काले महावीर्यः कालः संशमयिष्यति।। | 12-231-60a 12-231-60b |
य इदं सर्वमादत्ते तस्माच्छक्र स्थिरो भव। मया त्वया च पूर्वैश्च न स शक्योऽतिवर्तितुम्।। | 12-231-61a 12-231-61b |
यामेतां प्राप्य जानीषे राज्यश्रियमनुत्तमाम्। स्थिता मयीति तन्मिथ्या नैषा ह्येकत्र तिष्ठति।। | 12-231-62a 12-231-62b |
स्थिता हीन्द्रसहस्रेषु त्वद्विशिष्टतमेष्वियम्। मां च लोला परित्यज्य त्वामगाद्विबुधाधिप।। | 12-231-63a 12-231-63b |
मैवं शक्र पुनः कार्षीः शान्तो भवितुमर्हसि। त्वामप्येवंविधं ज्ञात्वा क्षिप्रमन्यं गमिष्यति। `कालेन चोदिता शक्र मा ते गर्वः शतक्रतो।। | 12-231-64a 12-231-64b 12-231-64c |
क्षमस्व कालयोगं तमागतं विद्धि देवप। निर्लज्जश्चैव कस्मात्त्वं देवराज विकत्थसे।। | 12-231-65a 12-231-65b |
सर्वासुराणामधिपः सर्वदेवभयंकरः। जितवान्ब्रह्मणो लोकं को विद्यादागतं गतिम्।।' | 12-231-66a 12-231-66b |
।। इति श्रीमन्महाभारते शान्तिपर्वणि मोक्षधर्मपर्वणि एकत्रिंशदधिकद्विशततमोऽध्यायः।। 231।। |
12-231-1 यथा नागं प्रव्याहाराय इति ध. पाठः।। 12-231-11 निष्ठा परागतिः।। 12-231-19 मनोऽपि पाञ्चभौतिकमित्यर्थः। भूतानि स्थूलसूक्ष्मशरीराणि।। 12-231-22 दग्धं कालात्मनेश्वरेणाऽनुदहते वह्नयादिः। एवमग्रेऽपि।। 12-231-26 ईक्ष्य दृष्ट्वा।। 12-231-29 धर्मं वृद्धिहासवत्त्वम्।। 12-231-30 प्रभव ऐश्वर्यम्। प्रभावस्तदाविष्करणाम्। नात्मसंस्थो नात्माधीनः। कौमारं बालस्येवाज्ञं तव चित्तम्।। 12-231-33 शास्तुरीश्वरस्य।। 12-231-36 सुभगा भाग्यवती।। 12-231-38 नर्द्धिः ऋद्ध्यभावः। पर्यायः कालक्रमस्तेन कृतम्।। 12-231-40 एवं मम गर्दभत्वादिकं नैव स्यादिति शेषः। नचेदित्यादि तत्रोपपत्तिः।। 12-231-44 उद्वहासि मेधो भूत्वा सूर्यो भूत्वा शोषयामीति वार्थः। आपः अपः।। 12-231-46 कालसैन्यं मासार्धमासादि।। 12-231-47 पर्यायेण कालक्रमेण भुज्यन्ते पाल्यन्ते संहियन्ते वा।।
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