महाभारतम्-12-शांतिपर्व-039
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कृष्णादिभिर्युधिष्ठिरस्य राज्येऽभिषेचनम्।। 1।।
वैशंपायन उवाच। | 12-39-1x |
ततः कुन्तीसुतो राजा गतमन्युर्गतज्वरः। काञ्चने प्राड्भुखो हृष्टो न्यषीदत्परमासने।। | 12-39-1a 12-39-1b |
तमेवाभिमुखौ पीठे प्रदीप्ते काञ्चने शुभे। सात्यकिर्वासुदेवश्च निषीदतुररिंदमौ।। | 12-39-2a 12-39-2b |
मध्ये कृत्वा तु राजानं भीमसेनार्जुनावुभौ। निषीदतुर्महात्मानौ श्लक्ष्णयोर्मणिपीठयोः।। | 12-39-3a 12-39-3b |
दान्ते शय्यासने शुभ्रे जाम्बूनदविभूषिते। पृथाऽपि सहदेवेन सहास्ते नकुलेन च।। | 12-39-4a 12-39-4b |
सुधर्मा विदुरो धौम्यो धृतराष्ट्रश्च कौरवः। निषेदुर्ज्वलनाकारेष्वासनेषु पृथक्पृथक्।। | 12-39-5a 12-39-5b |
युयुत्सुः सञ्जयश्चैव गान्धारी च यशस्विनी। धृतराष्ट्रो यतो राजा ततः सर्वे समाविशन्।। | 12-39-6a 12-39-6b |
तत्रोपविष्टो धर्मात्मा श्वेताः सुमनसोऽस्पृशत्। स्वस्तिकानक्षतान्भूमिं सुवर्णं रजतं मणीन्।। | 12-39-7a 12-39-7b |
ततः प्रकृतयः सर्वाः पुरस्कृत्य पुरोहितम्। ददृशुर्धर्मराजानमादाय बहुमङ्गलम्।। | 12-39-8a 12-39-8b |
पृथिवीं च सुवर्णं च रत्नानि विविधानि च। आभिषेचनिकं भाण्डं सर्वसंभारसंभृतम्।। | 12-39-9a 12-39-9b |
काञ्चनौदुम्बरास्तत्र राजताः पृथिवीमयाः। पूर्णकुम्भाः सुमनसो लाजा बर्हीषि गोरसाः।। | 12-39-10a 12-39-10b |
शमीपिप्पलपालाशसमिधो मधुसर्पिषी। स्रुव औदुम्बरः शङ्खस्तथा हेमविभूषितः।। | 12-39-11a 12-39-11b |
दाशार्हेणाभ्यनुज्ञातस्तत्र धौम्यः पुरोहितः। प्रागुदक्प्रवणे वेदीं लक्षणेनोपलिख्य च।। | 12-39-12a 12-39-12b |
व्याघ्रचर्मोत्तरे शुक्ले सर्वतोभद्र आसने। दृढपादप्रतिष्ठाने हुताशनसमत्विपि।। | 12-39-13a 12-39-13b |
उपवेश्य महात्मानं कृष्णां च द्रुपदात्मजाम्। जुहाव पावकं धीमान्विधिमन्त्रपुरस्कृतम्।। | 12-39-14a 12-39-14b |
तत उत्थाय दाशार्हः शङ्खमादाय पूरितम्। अभ्यषिञ्चत्पतिं पृथ्व्याः कुन्तीपुत्रं युधिष्ठिरम्। धृतराष्ट्रश्च राजर्षिः सर्वाः प्रकृतयस्तथा।। | 12-39-15a 12-39-15b 12-39-15c |
अनुज्ञातोऽथ कृष्णेन भ्रातृभिः सह पाण्डवः। पाञ्चजन्याभिषिक्तश्च राजाऽमृतमुखोऽभवत्।। | 12-39-16a 12-39-16b |
ततोऽनुवादयामासुः पणवानकदुन्दुभीन्।। | 12-39-17a |
धर्मराजोऽपि तत्सर्वं प्रतिजग्राह धर्मतः। पूजयामास तांश्चापि विधिवद्भूरिदक्षिणः।। | 12-39-18a 12-39-18b |
ततो निष्कसहस्रेण ब्राह्मणान्स्वस्त्यवाचयन्। वेदाध्ययनसंपन्नान्धृतिशीलसमन्वितान्।। | 12-39-19a 12-39-19b |
ते प्रीता ब्राह्मणा राजन्स्वस्त्यूचुर्जयमेव च। हंसा इव च नर्दन्तः प्रशशंसुर्युधिष्ठिरम्।। | 12-39-20a 12-39-20b |
युधिष्ठिर महाबाहो दिष्ट्या जयसि पाण्डव। दिष्ट्या स्वधर्मं प्राप्तोऽसि विक्रमेण महाद्युते।। | 12-39-21a 12-39-21b |
दिष्ट्या गाण्डीवधन्वा च भीमसेनश्च पाण्डवः। त्वं चापि कुशली राजन्माद्रीपुत्रौ च पाण्डवौ।। | 12-39-22a 12-39-22b |
मुक्ता वीरक्षयात्तस्मात्संग्रामाद्विजितद्विषः। क्षिप्रमुत्तरकार्याणि कुरु सर्वाणि भारत।। | 12-39-23a 12-39-23b |
ततः प्रीत्याऽर्चितः सद्भिर्धर्मराजो युधिष्ठिरः। प्रतिपेदे महद्राज्यं सुहृद्भिः सह भारत।। | 12-39-24a 12-39-24b |
।। इति श्रीमन्महाभारते शान्तिपर्वणि राजधर्मपर्वणि एकोनचत्वारिंशोऽध्यायः।। 39।। |
12-39-1 गतमन्युर्वीतदैन्यः। गतज्वरो वीतशोकः।। 12-39-2 निषीदतुरिति निषेदतुरित्यर्थे आर्षम्।। 12-39-4 दान्ते गजदन्तमये।। 12-39-5 सुधर्मा दुर्योधनपुरोहितः।। 12-39-7 स्वस्तिकान्सर्वतोभद्राद्यङ्कितानि देवतापीठानि।। 12-39-9 भाण्डं उपकरणम्।। 12-39-10 औदुम्बरास्ताम्रमयाः।। 12-39-11 उदुम्बरकाष्टमयः स्रुवः।। 12-39-16 अमृतमुखः अत्यन्तं दर्शनीयः।।
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