महाभारतम्-12-शांतिपर्व-372
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आश्चर्थकथनं प्रार्थितेन नागेन सूर्यमण्डले तत्तुल्यतेजोन्तरप्रवेशदर्शनकथनम्।। 1।।
ब्राह्मण उवाच। | 12-372-1x |
विवस्वतो गच्छति पर्ययेण वोडुं भवांस्तं यथमेकचक्रम्। आश्चर्यभूतं यदि तत्र किंचि द्दृष्टं त्वयाशंसितुमर्हसि त्वम्।। | 12-372-1a 12-372-1b 12-372-1c 12-372-1d |
नाग उवाच। | 12-372-2x |
आश्चर्याणामनेकानां प्रतिष्ठा भगवान्रविः। यतो भूताः प्रवर्तन्ते सर्वे त्रैलोक्यसंमताः।। | 12-372-2a 12-372-2b |
यस्य रश्मिसहस्रेषु शाखास्विव विहंगमाः। वसन्त्याश्रित्य मुनयः संसिद्धा दैवतैः सह।। | 12-372-3a 12-372-3b |
यतो पायुर्विनिःसृत्य सूर्यरश्म्याश्रितो महान्। विजृम्भत्यम्बरे तत्र किमाश्चर्यमतः परम्।। | 12-372-4a 12-372-4b |
विभज्यं तं तु विप्रर्षे प्रजानां हितकाम्यया। तोयं सृजति वर्षासु किमाश्चर्यमतः परम्।। | 12-372-5a 12-372-5b |
यस्य मण्डलमध्यस्थो महात्मा परमत्विषा। ीप्तः समीक्षतेऽलोकान्किमाश्चर्यमतः परम्।। | 12-372-6a 12-372-6 द |
शुक्रो नामासितः पादो यश्च वारिधरोऽम्बरे। तोयं सृजति वर्षासु किमाश्चर्यमतः परम्।। | 12-372-7a 12-372-7b |
योऽष्टमासांस्तु शुचिना किरणेनोक्षितं पयः। प्रत्यादत्ते पुनः काले किमाश्चर्यमतः परम्।। | 12-372-8a 12-372-8b |
यस्य तेजोविशेषेषु स्वयमात्मा प्रतिष्ठितः। यतो बीजं मही चेयं धार्यते सचराचरम्।। | 12-372-9a 12-372-9b |
यत्र देवो महाबाहुः शाश्वतः पुरुषोत्तमः। अनादिनिधनो विप्र किमाश्चर्यमतः परम्।। | 12-372-10a 12-372-10b |
आश्चर्याणामिवाश्चर्यमिदमेकं तु मे शृणु। विमले यन्मया दृष्टमम्बरे सूर्यसंश्रयात्।। | 12-372-11a 12-372-11b |
पुरा मध्याह्नसमये लोकांस्तपति भास्करे। प्रत्यादित्यप्रतीकाशः सर्वतः समदृश्यत।। | 12-372-12a 12-372-12b |
स लोकांस्तेजसा सर्वान्स्वभासा निर्विभासयन्। आदित्याधिमुखोऽभ्येति गगनं पाटयन्निव।। | 12-372-13a 12-372-13b |
हुताहुतिरिव ज्योतिर्व्याप्य तेजोमरीचिभिः। अनिर्देश्येन रूपेण द्वितीय इव भास्करः।। | 12-372-14a 12-372-14b |
तस्याभिगमनप्राप्तौ हस्तौ दत्तौ विवस्वता। तेनापि दक्षिणो हस्तो दत्तः प्रत्यर्चितार्थिना।। | 12-372-15a 12-372-15b |
ततो भित्त्वैव गगन प्रविष्टो रश्मिमण्डलम्। एकीभूतं च तत्तेजः क्षणेनादित्यतां गतम्।। | 12-372-16a 12-372-16b |
तत्र नः संशयो जातस्तयोस्तेजः समागमे। अनयोः को भवेत्सूर्यो रथस्थो योऽयमागतः।। | 12-372-17a 12-372-17b |
ते वयं जातसंदेहाः पर्यपृच्छामहे रविम्। क एष दिवमाक्रम्य गतः सूर्य इवापरः।। | 12-372-18a 12-372-18b |
।। इति श्रीमन्महाभारते शान्तिपर्वणि मोक्षधर्मपर्वणि द्विसप्तत्यधिकत्रिशततमोऽध्यायः।। 372।। |
12-372-4 विसृजत्यम्बरे तोयमिति ट. पाठः।। 12-372-5 तं वातं पुरोवातादिरूपेण विभज्य परिणामं नीत्वा।। 12-372-6 महात्मान्तर्यामी।। 12-372-7 पादइव पादोऽवयवः नीलमेघरूपेणाप्ययमेव वर्षतीत्यर्थः।। 12-372-9 यतः सूर्यात्। बीजं औषधम्।। 12-372-12 प्रत्यादिप्रतीकाशः आदित्यान्तरतुल्यतेजस्कः। समदृश्यत दृष्टः।। 12-372-15 दत्तः प्रत्यर्चिनार्चिनेति ट. पाठः।। 12-372-16 भित्त्वैव रविमण्डलमिति ट. पाठः।।
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