महाभारतम्-12-शांतिपर्व-013
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युधिष्ठिरंप्रति सहदेववचनम्।। 1।।
सहदेव उवाच। | 12-13-1x |
न बाह्यं द्रव्यमुत्सृज्य सिद्धिर्भवति भारत। शारीरं द्रव्यमुत्सृज्य सिद्धिर्भवति वा न वा।। | 12-13-1a 12-13-1b |
बाह्यद्रव्यविमुक्तस्य शारीरेष्वनुगृध्यतः। यो धर्मो यत्सुखं वा स्याद्द्विषतां तत्तथाऽस्तु नः।। | 12-13-2a 12-13-2b |
शारीरंद्रव्यमुत्सृज्य पृथिवीमनुशासतः। यो धर्मो यत्सुखं वा स्यात्सुहृदां तत्तथाऽस्तु नः।। | 12-13-3a 12-13-3b |
द्व्यक्षरस्तु भवेन्मृत्युरुयक्षरं ब्रह्म शाश्वतम्। ममेति द्व्यक्षरो मृत्युर्न ममेति च शाश्वतम्।। | 12-13-4a 12-13-4b |
ब्रह्ममृत्यू ततो राजन्नात्मन्येव समाश्रितौ। अदृश्यमानौ भूतानि योजयेतामसंशयम्।। | 12-13-5a 12-13-5b |
अविनाशोऽस्य सत्वस्य नियतो यदि भारत। हित्वा शरीरं भूतानां न हिंसा प्रतिपत्स्यते।। | 12-13-6a 12-13-6b |
अथापि च सहोत्पत्तिः सत्वस्य प्रलयस्तथा। नष्टे शरीरे नष्टः स्याद्वृथा च स्यात्क्रियापथः।। | 12-13-7a 12-13-7b |
तस्मादेकान्तमुत्सृज्य पूर्वैः पूर्वतरैश्च यः। पन्था निषेवितः सद्भिः स निषेव्यो विजानता।। | 12-13-8a 12-13-8b |
`स्वायंभुवेन मनुना तथाऽन्यैश्तक्रवर्तिभिः। यद्ययं ह्यधमः पन्थाः कस्मात्तैस्तैर्निषेवितः।। | 12-13-9a 12-13-9b |
कृतत्रेतादियुक्तानि गुणवन्ति च भारत। युगानि बहुशस्तैश्च भुक्तेयमवनी नृप।।' | 12-13-10a 12-13-10b |
लब्ध्वाऽपि पृथिवीं कृत्स्नां सहस्थावरजङ्गमाम्। न भुङ्क्ते यो नृपः सम्यक्किंफलं तस्य जीविते।। | 12-13-11a 12-13-11b |
अथवा वसतो राजन्वने वन्येन जीवतः। द्रव्येषु यस्य ममता मृत्योरास्ये स वर्तते।। | 12-13-12a 12-13-12b |
बाह्यान्तराणां भूतानां स्वभावं पश्य भारत। ये तु पश्यन्ति तद्भूतं मुच्यन्ते ते महाभयात्।। | 12-13-13a 12-13-13b |
भवान्पिता भवान्माता भवान्भ्राता भवान्गुरुः। दुःखप्रलापानार्तस्य तन्मे त्वं क्षन्तुमर्हसि।। | 12-13-14a 12-13-14b |
तथ्यं वा यदि वाऽतथ्यं यन्मयैतत्प्रभाषितम्। तद्विद्वि पृथिवीपाल भक्त्या भरतसत्तम।। | 12-13-15a 12-13-15b |
।। इति श्रीमन्महाभारते शान्तिपर्वणि राजधर्मपर्वणि त्रयोदशोऽध्यायः।। 13।। |
12-13-2 सुहृदां तत्तथास्तु न इति ड.थ. पाठः।। 12-13-4 ममेति स्वीकारः नममेति परित्यागश्च एतौ मृत्युशाश्वतौ संसारमोक्षयोर्मूले इत्यर्थः।। 12-13-7 सत्वस्य कर्तृत्वधर्मवत्या बुद्धेः।।
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