महाभारतम्-12-शांतिपर्व-027
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व्यासेन युधिष्ठिरंप्रत्यश्मजनकसंवादानुवादपूर्वकं क्षात्रधर्मविधानम्।। 1।।
वैशंपायन उवाच। | 12-27-1x |
ज्ञातिशोकाभितप्तस्य प्राणानिष्टांस्त्यजिष्यतः। ज्येष्ठस्य पाण्डुपुत्रस्य व्यासः शोकमपानुदत्।। | 12-27-1a 12-27-1b |
व्यास उवाच। | 12-27-2x |
अत्राप्युदाहरन्तीमभितिहासं पुरातनम्। अश्मगीतं नरव्याघ्र तन्निबोध युधिष्ठिर।। | 12-27-2a 12-27-2b |
अश्मानं ब्राह्मणं प्राज्ञं वैदेहो जनको नृपः। संशयं परिपप्रच्छ दुःखशोकसमन्वितः।। | 12-27-3a 12-27-3b |
जनक उवाच। | 12-27-4x |
आगमे यदि वाऽपाये ज्ञातीनां द्रविणस्य च। नरेण प्रतिपत्तव्यं कल्याणं कथमिच्छता।। | 12-27-4a 12-27-4b |
अश्मोवाच। | 12-27-5x |
उत्पन्नमिममात्मानं नरस्यानन्तरं ततः। तानितान्यनुवर्तन्ते दुःखानि च सुखानि च।। | 12-27-5a 12-27-5b |
तेषामन्यतरापत्तौ यद्यदेवोपसेवते। तदस्य चेतनामाशु हरत्यभ्रमिवानिलः।। | 12-27-6a 12-27-6b |
अभिजातोऽस्मि सिद्धोऽस्मि नास्मि केवलमानुषः। इत्येभिर्हेतुभिस्तस्य त्रिभिश्चित्तं प्रसिच्यते।। | 12-27-7a 12-27-7b |
संप्रसक्तमना भोगान्विसृज्य पितृसंचितान्। परिक्षीणः परस्वानामादानं साधु मन्यते।। | 12-27-8a 12-27-8b |
तमतिक्रान्तमर्यादमाददानमसांप्रतम्। प्रतिषेधन्ति राजानो लुब्धा मृगमिवेषुभिः।। | 12-27-9a 12-27-9b |
ये च विंशतिवर्षा वा त्रिंशद्वर्षाश्च मानवाः। परेण ते वर्षशतान्न भविष्यन्ति पार्थिव।। | 12-27-10a 12-27-10b |
तेषां परमदुःखानां बुद्ध्या भैषज्यमाचरेत्। सर्वप्राणभृतां वृत्तं प्रेक्षमाणस्ततस्ततः।। | 12-27-11a 12-27-11b |
मानसानां पुनर्योनिर्दुःखानां चित्तविभ्रमः। अनिष्टोपनिपातो वा तृतीयं नोपपद्यते।। | 12-27-12a 12-27-12b |
एवमेतानि दुःखानि तानि तानीह मानवम्। विविधान्युपवर्तन्ते तथा संस्पर्शजान्यपि।। | 12-27-13a 12-27-13b |
जरामृत्यू हि भूतानां खादितारौ वृकाविव। बलिनां दुर्बलानां च ह्रस्वानां महतामपि।। | 12-27-14a 12-27-14b |
न कश्चिज्जात्वतिक्रामेज्जरामृत्यू हि मानवः। अपि सागरपर्यन्तां विजित्येमां वसुंधराम्।। | 12-27-15a 12-27-15b |
सुखं वा यदि वा दुःखं भूतानां पर्युपस्थितम्। प्राप्तव्यमवशैः सर्वं परिहारो न विद्यते।। | 12-27-16a 12-27-16b |
पूर्वे वयसि मध्ये वाऽप्युत्तरे वा नराधिप। अवर्जनीयास्तेऽर्था वै काङ्क्षिता ये ततोऽन्यथा।। | 12-27-17a 12-27-17b |
अप्रियैः सह संयोगो विप्रयोगश्च सुप्रियैः। अर्थानर्थौ सुखं दुःखं विधानमनुवर्तते।। | 12-27-18a 12-27-18b |
प्रादुर्भावश्च भूतानां देहत्यागस्तथैव च। प्राप्तिव्यायामयोगश्च सर्वमेतत्प्रतिष्ठितम्।। | 12-27-19a 12-27-19b |
गन्धवर्णरसस्पर्शा निवर्तन्ते स्वभावतः। तथैव सुखदुःखानि विधानमनुवर्तते।। | 12-27-20a 12-27-20b |
आसनं शयनं यानमुत्थानं पानभोजनम्। नियतं सर्वभूतानां कालेनैव भवत्युत।। | 12-27-21a 12-27-21b |
वैद्याश्चाप्यातुराः सन्ति बलवन्तश्च दुर्बलाः। स्त्रीमन्तश्चापरे षण्ढा विचित्रः कालपर्ययः।। | 12-27-22a 12-27-22b |
कुले जन्म तथा वीर्यमारोग्यं रूपमेव च। सौभाग्यमुपभोगश्च भवितव्येन लभ्यते।। | 12-27-23a 12-27-23b |
सन्ति पुत्राः सुबहवो दरिद्राणामनिच्छताम्। नास्ति पुत्रः समृद्धानां विचित्रं विधिचेष्टितम्।। | 12-27-24a 12-27-24b |
व्याधिरग्निर्जलं शस्त्रं बुभुक्षाश्चापदो विषम। ज्वरश्च मरणं जन्तोरुच्चाच्च पतनं तथा।। | 12-27-25a 12-27-25b |
निर्याणे यस्य यद्दिष्टं तेन गच्छति सेतुना। दृश्यते नाप्यतिक्रामन्न निष्क्रान्तोऽथवा पुनः। दृश्यते चाप्यतिक्रामन्न निग्राह्योऽथवा पुनः।। | 12-27-26a 12-27-26b 12-27-26c |
दृश्यते हि युवैवेह विनश्यन्वसुमान्नरः। दरिद्रश्च परिक्लिष्टः शतवर्षो जरान्वितः।। | 12-27-27a 12-27-27b |
अकिञ्चनाश्च दृश्यन्ते पुरुषाश्चिरजीविनः। समृद्धे च कुले जाता विनश्यन्ति पतङ्गवत्।। | 12-27-28a 12-27-28b |
प्रायेण श्रीमतां लोके भोक्तुं शक्तिर्न विद्यते। दरिद्राणां तु भूयिष्ठं काष्ठमश्मा हि जीर्यते।। | 12-27-29a 12-27-29b |
अहमेतत्करोमीति मन्यते कालनोदितः। यद्यदिष्टमसंतोषाहुरात्मा पापमाचरेत्।। | 12-27-30a 12-27-30b |
मृगयाक्षाः स्त्रियः पानं प्रसङ्गा निन्दिता बुधैः। दृश्यन्ते पुरुषाश्चात्र संप्रयुक्ता बहुश्रुताः।। | 12-27-31a 12-27-31b |
इति कालेन सर्वार्थानीप्सितानीप्सितानिह। स्पृशन्ति सर्वभूतानि निमित्तं नोपलभ्यते।। | 12-27-32a 12-27-32b |
वायुमाकाशमग्निं च चन्द्रादित्यावहः क्षपे। ज्योतींषि सरितः शैलान्कः करोति बिभतिं च।। | 12-27-33a 12-27-33b |
शीतमुष्णं तथा वर्षं कालेन परिवर्तते। एवमेव मनुष्याणां सुखदुःखे नरर्षभ।। | 12-27-34a 12-27-34b |
नौषधानि न शस्त्राणि न होमा न पुनर्जपाः। त्रायन्ते मृत्युनोपेतं जरया चापि मानवम्।। | 12-27-35a 12-27-35b |
यथा काष्ठं च काष्ठं च समेयातां महोदधौ। समेत्य च व्यपेयातां तद्वद्भूतसमागमः।। | 12-27-36a 12-27-36b |
ये च निष्परुषैरुक्तगीतवाद्यैरुपस्थिताः। ये चानाथाः परान्नादाः कालस्तेषु समक्रियः।। | 12-27-37a 12-27-37b |
मातापितृसहस्राणि पुत्रदारशतानि च। संसारेष्वनुभूतानि कस्य ते कस्य वा वयम्।। | 12-27-38a 12-27-38b |
नैवास्य कश्चिद्भविता नायं भवति कस्यचित्। पथि संगतमेवेदं दारबन्धुसुहृज्जनैः।। | 12-27-39a 12-27-39b |
क्वासे क्व च गमिष्यामि कोऽन्वहं किमिहास्थितः। कस्मात्किमनुशोचेयमित्येवं स्थापयेन्मनः।। | 12-27-40a 12-27-40b |
अनित्ये प्रियसंवासे संसारे चक्रवद्गतौ। पथि संगतमेवैतद्धाता माता पिता सखा।। | 12-27-41a 12-27-41b |
न दृष्टपूर्वं प्रत्यक्षं परलोकं विदुर्बुधाः। आगमांस्त्वनतिक्रम्य श्रद्धातव्यं बुभूषता।। | 12-27-42a 12-27-42b |
कुर्वीत पितृदैवत्यं धर्म्याणि च समाचरेत्। यजेच्च विद्वान्विधिवत्रिवर्गं चाप्युपाचरेत्।। | 12-27-43a 12-27-43b |
सन्निमज्जेज्जगदिदं गम्भीरे कालसागरे। जरामृत्युमहाग्राहे न कश्चिदवबुध्यते।। | 12-27-44a 12-27-44b |
आयुर्वेदमधीयानाः केवलं सपरिग्रहाः। दृश्यन्ते बहवो वैद्या व्याधिभिः समबिप्लुताः।। | 12-27-45a 12-27-45b |
ते पिबन्तः कषायांश्च सर्पीषि विविधानि च। न मृत्युमतिवर्तन्ते वेलामिव महोदधिः।। | 12-27-46a 12-27-46b |
रसायनविदश्चैव सुप्रयुक्तरसायनाः। दृश्यन्ते जरया भग्ना नागा नागैरिवोत्तमैः।। | 12-27-47a 12-27-47b |
तथैव तपसोपेताः स्वाध्यायाध्ययने रताः। दातारो यज्ञशीलाश्च न तरन्ति जरान्तकौ।। | 12-27-48a 12-27-48b |
न ह्यहानि निवर्तन्ते न मासा न पुनः समाः। जातानां सर्वभूतानां न पुनर्वै समागमः।। | 12-27-49a 12-27-49b |
सोऽयं विपुलमध्वानं कालेन ध्रुवमध्रुवः। स्रोतसैव समभ्येति सर्वभूतनिषेवितम्।। | 12-27-50a 12-27-50b |
देहो वा जीविताद्व्येति देही वाऽप्येति देहतः। पथि संगतमेवेदं दारैरन्यैश्च बन्धुभिः।। | 12-27-51a 12-27-51b |
नायमत्यन्तसंवासो लभ्यते जातु केनचित्। अपि स्वेन शरीरेण किमुतान्येन केनचित्।। | 12-27-52a 12-27-52b |
क्वनु तेऽद्य पिता राजन्क्वनु तेऽद्य पितामहाः। न त्वं पश्यसि तानद्य न त्वां पश्यन्ति तेऽनघ।। | 12-27-53a 12-27-53b |
न चैव पुरुषो द्रष्टा स्वर्गस्य नरकस्य च। आगमस्तु सतां चक्षुर्नृपते तमिहाचर।। | 12-27-54a 12-27-54b |
चरितब्रह्मचर्यो हि प्रजायेत यजेत च। पितृदेवमनुष्याणामानृण्यादनसूयकः।। | 12-27-55a 12-27-55b |
स यज्ञशीलः प्रजने निविष्टः प्राग्ब्रह्मचारी प्रविभक्तभैक्षः। आराधयेत्स्वर्गमिमं च लोकं परं च मुक्त्वा हृदयव्यलीकम्।। | 12-27-56a 12-27-56b 12-27-56c 12-27-56d |
सम्यक्स्वधर्मं चरतो नृपस्य द्रव्याणि चाभ्याहरतो यथावत्। प्रवृद्धचक्रस्य यशोऽभिवर्धते सर्वेषु लोकेषु चराचरेषु।। | 12-27-57a 12-27-57b 12-27-57c 12-27-57d |
इत्येवमाकर्ण्य विदेहराजो वाक्यं समग्रं परिपूर्णहेतु। अश्मानमामन्त्र्य विशुद्धबुद्धि र्ययौ गृहं स्वं प्रति शान्तशोकः।। | 12-27-58a 12-27-58b 12-27-58c 12-27-58d |
तथा त्वमप्यद्य विमुच्य शोक मुत्तिष्ठ शक्रोपम हर्षमेहि। क्षात्रेण धर्मेण मही जिता ते तां भुङ्क्ष्व कुन्तीसुत मावमंस्थाः।। | 12-27-59a 12-27-59b 12-27-59c 12-27-59d |
।। इति श्रीमन्महाभारते शान्तिपर्वणि राजधर्मपर्वणि सप्तविंशोऽध्यायः।। |
12-27-1 प्राणानभ्युत्सिसृक्षत इति झ. पाठः। तत्र अभ्युत्सिसृक्षतः त्यक्तुमिच्छत इत्यर्थः।। 12-27-5 आत्मानं देहम्। उत्पन्नमनु अनन्तरं अव्यवधानेनैव।। 12-27-7 प्रसिच्यते क्लिन्नं श्लथं भवतीत्यर्थः।। 12-27-8 भोगान् भोग्यार्थान् धनादीन् विसृज्य आदाचौर्यं साधु हितम्।। 12-27-9 असांप्रतमयुक्तम्। लुब्धा व्याधा।। 12-27-10 वर्षशतात् परेण ऊर्ध्वम्।। 12-27-11 तेषां दारिद्र्योत्थानभैषज्यं प्रतीकारम्।। 12-27-13 संस्पर्शजानि विषयसङ्गजानि।। 12-27-17 तेऽर्था जरादयः पदार्थाः। ततोऽन्यथाऽजरत्वादिरूपेण ये मनुष्यस्य काङ्क्षिता इष्टाः।। 12-27-18 विधानमदृष्टम्।। 12-27-19 प्राप्तिर्लाभो व्यायामः श्रमः। अलाभ इतियावत्। तयोर्योगः प्रतिष्ठितं विधानमित्यनुषज्यते।। 12-27-20 फलस्था गन्धादयो निवर्तन्ते पूर्वेपूर्वे उत्तरेउत्तरे उपयान्ति तथैव सुखादीनि अप्रत्याख्येयानि अनुसृत्य वर्तते विद्वान्।। 12-27-25 बुभुक्षाः क्षुत्प्रभृतयः।। 12-27-31 प्रसङ्गा युद्धविवादादयः। क्षत्र मृगयादौ।। 12-27-37 उपस्थिताः सेविताः। कालो मृत्युः। ये चैव पुरुषाः स्त्रीभिर्गीतवाद्यैरुपस्थिता इति झ. पाठः।। 12-27-38 संसारेषु व्यतीतेषु तानि तेषु तदा तदेति ड. थ. पाठः।। 12-27-40 स्थापयेद्विचारे इति शेषः।। 12-27-47 नागा गजाः। उत्तमैर्वलिष्ठैः।। 12-27-52 संवासः सहावस्थानम्।। 12-27-55 प्रजायेत पुत्रादीनुत्पादयेत्। आनृण्याद्धेतोः।। 12-27-56 प्रजने प्रजोत्पादने। हृदयव्यलीकं हृत्स्थमप्रियम्।।
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