महाभारतम्-12-शांतिपर्व-247
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भीष्मेण युधिष्ठिरंप्रति विद्याकर्मस्वरूपादिनिरूपकव्यासवाक्यानुवादः।। 1।।
शुक उवाच। | 12-247-1x |
यदिदं वेदवचनं कुरु कर्म त्यजेति च। कां दिशं विद्यया यान्ति कां च गच्छन्ति कर्मणा।। | 12-247-1a 12-247-1b |
एतद्वै श्रोतुमिच्छामि तद्भवान्प्रब्रवीतु मे। एतच्चान्योन्यवैरूप्ये वर्तेते प्रतिकूलतः।। | 12-247-2a 12-247-2b |
भीष्म उवाच। | 12-247-3x |
इत्युक्तः प्रत्युवाचेदं पराशरसुतः सुतम्। कर्मविद्यामयावेतौ व्याख्यास्यामि क्षराक्षरौ।। | 12-247-3a 12-247-3b |
यां दिशं विद्यया यान्ति यां च गच्छन्ति कर्मणा। शृणुष्वैकमना वत्स गह्वरं ह्येतदन्तरम्।। | 12-247-4a 12-247-4b |
अस्ति धर्म इति ह्युक्त्वा नास्तीत्यत्रैव यो वदेत्। तस्य पक्षस्य सदृशमिदं मम भवेदथ।। | 12-247-5a 12-247-5b |
द्वाविमावथ पन्थानौ यत्र वेदाः प्रतिष्ठिताः। प्रवृत्तिलक्षणो धर्मो निवृत्तौ च व्यवस्थितः।। | 12-247-6a 12-247-6b |
कर्मणा बध्यते जन्तुर्विद्यया तु प्रमुच्यते। तस्मात्कर्म न कुर्वन्ति यतयः पारदर्शिनः।। | 12-247-7a 12-247-7b |
कर्मणा जायते प्रेत्य मूर्तिमान्षोडशात्मकः। विद्यया जायते नित्यमव्ययो ह्यक्षरात्मकः।। | 12-247-8a 12-247-8b |
कर्म त्वेके प्रशंसन्ति स्वल्पबुद्धितया नराः। तेन ते देहजालानि रमयन्त उपासते।। | 12-247-9a 12-247-9b |
ये स्म बुद्धिं परां प्राप्ता धमैर्नपुण्यदर्शिनः। न ते कर्म प्रशंसन्ति कूपं नद्यां पिबन्निव।। | 12-247-10a 12-247-10b |
कर्मणः फलमाप्नोति सुखदुःखे भवाभवौ। विद्यया तदवाप्नोति यत्र गत्वा न शोचति।। | 12-247-11a 12-247-11b |
यत्र गत्वा न म्रियते यत्र गत्वा न जायते। न जीर्यते यत्र गत्वा यत्र गत्वा न वर्धते।। | 12-247-12a 12-247-12b |
यत्र तद्ब्रह्म परममव्यक्तमचलं ध्रवम्। अव्याहतमनायासममृतं चावियोगि च।। | 12-247-13a 12-247-13b |
द्वन्द्वैर्न यत्र बाध्यन्ते मानसेन च कर्मणा। समाः सर्वत्र मैत्राश्च सर्वभूतहिते रताः।। | 12-247-14a 12-247-14b |
विद्यामयोऽन्यः पुरुषस्तात कर्ममयोऽपरः। विद्धि चन्द्रमसं दर्शे सूक्ष्मया कलया स्थितम्। `विद्यामयं तं पुरुषं नित्यं ज्ञानगुणात्मकम्।।' | 12-247-15a 12-247-15b 12-247-15c |
तदेतदृषिणा प्रोक्तं विस्तरेणानुमीयते। नवं तु शशिनं दृष्ट्वा वक्रतन्तुमिवाम्बरे।। | 12-247-16a 12-247-16b |
एकादशविकारात्मा कलासंभारसंभृतः। मृर्तिमानिति तं विद्धि तात कर्म गुणात्मकम्।। | 12-247-17a 12-247-17b |
`तस्मिन्यः संस्थितो ह्यग्निर्नित्यंस्थाल्यामिवाहितः। आत्मानं तं विजानीहि नित्यं त्यागजितात्मकं।। | 12-247-18a 12-247-18b |
देवो यः संश्रितस्तस्मिन्नब्विन्दुरिव पुष्करे। क्षेत्रज्ञं तं विजानीयान्नित्यं योगजितात्मकम्।। | 12-247-19a 12-247-19b |
तमोरजश्च सत्त्वं च विद्धि जीवगुणात्मकम्। जीवमात्मगुणं विद्यादात्मानं प-----नः।। | 12-247-20a 12-247-20b |
अचेतनं जीवगुणं वदन्ति स चेष्टते चेष्टयते च सर्वम् ततः परं क्षेत्रविदो वदन्ति प्राकल्पयद्यो भुवनानि सप्त।। | 12-247-21a 12-247-21b 12-247-21c 12-247-21d |
।। इति श्रीमन्महाभारते शान्तिपर्वणि मोक्षधर्मपर्वणि सप्तचत्वारिंशदधिकद्विशततमोऽध्यायः।। |
12-247-3 क्षराक्षरौ नश्वरानश्वरौ मार्गाविति शेषः। पराशरसुतः शुक मिति ध. पाठः।। 12-247-13 यद्याति परमं ब्रह्म पुराणमचलमिति ट.ड. पाठः।। 12-247-21 स चेष्टते जीवयते चेति झ. पाठः।।
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