महाभारतम्-12-शांतिपर्व-317
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भीष्मेण युधिष्ठिरंप्रति जगत्प्रलयप्रकारादिप्रतिपादकजनकयाज्ञवल्क्यसंवादानुवादः।। 1।।
याज्ञवल्क्य उवाच। | 12-317-1x |
तत्त्वानां सर्गसङ्ख्या च कालसङ्ख्या तथैव च। मया प्रोक्ताऽनुपूर्वेण संहारमपि मे शृणु।। | 12-317-1a 12-317-1b |
यता संहरते जन्तून्ससर्ज च पुनः पुनः। अनादिनिधनो ब्रह्मा नित्यश्चाक्षर एव च। | 12-317-2a 12-317-2b |
अहःक्षयमथो बुद्ध्वा निशि स्वप्नमनास्तथा। चोदयामास भगवानव्यक्तोऽहंकृतं नरम्।। | 12-317-3a 12-317-3b |
ततः शतसहस्रांशुरव्यक्तेनाभिचोदितः। कृत्वा द्वादशधाऽऽत्मानमादित्यो ज्वलदग्निवत्।। | 12-317-4a 12-317-4b |
चतुर्विधं प्रजाजातं निर्दहत्याशु तेजसा। जराय्वण्डस्वेदजातमुद्भिज्जं स नराधिप।। | 12-317-5a 12-317-5b |
एतदुन्मेषमात्रेण विनष्टं स्थाणुजङ्गमम्। कूर्मपृष्ठसमा भूमिर्भवत्यथ समन्ततः।। | 12-317-6a 12-317-6b |
जगद्दग्ध्वाऽमितबलः केवलां जगर्ती ततः। अम्भसा बलिना क्षिप्रमापूरयति सर्वशः।। | 12-317-7a 12-317-7b |
ततः कालाग्निमासाद्य तदम्भो याति संक्षयम्। विनष्टेऽम्भसि राजेन्द्र जाज्वलत्यनलो महान्।। | 12-317-8a 12-317-8b |
तमप्रमेयातिबलं ज्वलमानं विभावसुम्। ऊष्माणं सर्वभूतानां सप्ताचिंपमथाञ्जसा।। | 12-317-9a 12-317-9b |
भक्षयामास भगवान्वायुरष्टात्मको बली। विचरन्नमितप्राणस्तिर्यगूर्ध्वमधस्तथा।। | 12-317-10a 12-317-10b |
तमप्रतिबलं भीममाकाशं ग्रसते पुनः। आकाशमप्यभिनदन्मनो ग्रसति चारिकम्।। | 12-317-11a 12-317-11b |
मनो ग्रसति सर्वात्मा सोहंकारः प्रजापतिः। अहंकारो महानात्मा भूतभव्यभविष्यवित्।। | 12-317-12a 12-317-12b |
तमप्यनुपमात्मानं विश्वं शंभुः प्रजापतिः। अणिमा लघिमा प्राप्तिरीशानो ज्योतिरव्ययः।। | 12-317-13a 12-317-13b |
सर्वतः पाणिपादं तत्सर्वतोक्षिशिरोमुखम्। सर्वतः श्रुतिमल्लोके सर्वमावृत्य तिष्ठति।। | 12-317-14a 12-317-14b |
हृदयं सर्वभूतानां पर्वणाऽङ्गुष्ठमात्रकः। अणुग्रसत्यनन्तो हि महात्मा विश्वमीश्वरः।। | 12-317-15a 12-317-15b |
ततः समभवत्सर्वमक्षयाव्ययमव्रणम्। भूतभव्यभविष्याणां स्रष्टारमनघं तथा।। | 12-317-16a 12-317-16b |
एषोप्ययस्ते राजेन्द्र यथावत्समुदाहृतः। अध्यात्ममधिभूतं च श्रूयतां चाधिदैवतम्।। | 12-317-17a 12-317-17b |
।। इति श्रीमन्महाभारते शान्तिपर्वणि मोक्षधर्मपर्वणि सप्तदशाधिकत्रिशततमोऽध्यायः।। 317।। |
12-317-4 संदधेऽयं महीमिति ड. थ. पाठः।। 12-317-8 पुत्रान्देवानिति ड. थ. पाठः। पुत्रान्पूर्वंमेव महानृषिरिति। पितॄणां पितर इति झ. पाठः।। 12-317-13 अन्योन्यस्य हिते रता इति झ. ध. पाठः।। 12-317-21 एतद्वशे हि भूतानीति ट. ड. थ. पाठः।।
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