महाभारतम्-12-शांतिपर्व-054
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कृष्णेन भीष्मंप्रति युधिष्ठिरस्य तदनुपसर्पणकारणाभिधानम्।। 1।। भीष्मेण स्वाज्ञयोपसृत्याभिवादयन्तं युधिष्ठिरंप्रति धर्मप्रश्नानुज्ञानम्।। 2।।
वैशंपायन उवाच। | 12-54-1x |
अथाव्रवीन्महातेजा वाक्यं कौरवनन्दनः। हन्त धर्मान्प्रवक्ष्यामि दृढे वाङ्भनसी मम।। | 12-54-1a 12-54-1b |
तव प्रसादाद्गोविन्द भूतात्मा ह्यसि शाश्वतः। युधिष्ठिरस्तु धर्मात्मा मां धर्माननुपृच्छतु। एवं प्रीतो भविष्यामि धर्मान्वक्ष्यामि चाखिलान्।। | 12-54-2a 12-54-2b 12-54-2c |
यस्मिन्राजर्षभे जाते धर्मात्मनि महात्मनि। अहृष्यन्नृषयः सर्वे स मां पृच्छतु पाण्डवः।। | 12-54-3a 12-54-3b |
सर्वेषां दीप्तयशसां कुरूणां धर्मचारिणाम्। यस्य नास्ति समः कश्चित्स मां पृच्छतु पाण्डवः।। | 12-54-4a 12-54-4b |
धृतिर्दमो ब्रह्मचर्यं क्षमा धर्मश्च नित्यदा। यस्मिन्नोजश्च तेजश्च स मां पृच्छतु पाण्डवः।। | 12-54-5a 12-54-5b |
संबन्धिनोऽतिथीन्भृत्यान्संश्रितांश्चैव यो भृशम्। संमानयति सत्कृत्य स मां पृच्छतु पाण्डवः।। | 12-54-6a 12-54-6b |
सत्यं दानं तपः शौर्यं शान्तिर्दाक्ष्यमसंभ्रमः। यस्मिन्नेतानि सर्वाणि स मां पृच्छतु पाण्डवः।। | 12-54-7a 12-54-7b |
यो न कामान्न संरम्भान्न भयान्नार्थकारणात्। कुर्यादधर्मं धर्मात्मा स मां पृच्छतु पाण्डवः।। | 12-54-8a 12-54-8b |
सत्यनित्यः क्षमानित्यो ज्ञाननित्योऽतिथिप्रियः। यो ददाति सतां नित्यं स मां पृच्छतु पाण्डवः।। | 12-54-9a 12-54-9b |
इज्याध्ययननित्यश्च धर्मे च निरतः सदा। क्षान्तः श्रुतरहस्यश्च स मां पृच्छतु पाण्डवः।। | 12-54-10a 12-54-10b |
वासुदेव उवाच। | 12-54-11x |
लज्जया परयोपेतो धर्मराजो युधिष्ठिरः। अभिशापभयाद्भीतो भवन्तं नोपसर्पति।। | 12-54-11a 12-54-11b |
लोकस्य कदनं कृत्वा लोकनाथो विशांपते। अभिशापभयाद्भीतो भवन्तं नोपसर्पति।। | 12-54-12a 12-54-12b |
पूज्यान्मान्यांश्च भक्तांश्च गुरून्संबन्धिबान्धवान्। अर्घार्हानिषुभिर्भित्त्वा भवन्तं नोपसर्पति।। | 12-54-13a 12-54-13b |
भीष्म उवाच। | 12-54-14x |
ब्राह्मणानां यथा धर्मो दानमध्ययनं तपः। क्षत्रियाणां तथा कृष्ण समरे देहपातनम्।। | 12-54-14a 12-54-14b |
पितॄन्पितामहान्भ्रातॄन्गुरून्संबन्धिबान्धवान्। मिथ्याप्रवृत्तान्यः सख्ये निहन्याद्धर्म एव सः।। | 12-54-15a 12-54-15b |
समयत्यागिनो लुब्धान्गुरूनपि च केशव। निहन्ति समरे पापान्क्षत्रियो यः स धर्मवित्।। | 12-54-16a 12-54-16b |
यो लोभान्न समीक्षेत धर्मसेतुं सनातनम्। निहन्ति यस्तं समरे क्षत्रियो वै स धर्मवित्।। | 12-54-17a 12-54-17b |
लोहितोदां केशतृणां गजशैलां ध्वजद्रुमाम्। महीं करोति युद्धेषु क्षत्रियो यः स धर्मवित्।। | 12-54-18a 12-54-18b |
आहूतेन रणे नित्यं योद्धव्यं क्षत्रबन्धुना। धर्म्यं स्वर्ग्यं च लोक्यं च युद्धं हि मनुरब्रवीत्।। | 12-54-19a 12-54-19b |
वैशंपायन उवाच। | 12-54-20x |
एवमुक्तस्तु भीष्मेण धर्मपुत्रो युधिष्ठिरः। विनीतवदुपागम्य तस्थै संदर्शनेऽग्रतः।। | 12-54-20a 12-54-20b |
अथास्य पादौ जग्राह भीष्मश्चापि ननन्द तम्। मूर्ध्निं चैनमुपाघ्राय निषीदेत्यब्रवीत्तदा।। | 12-54-21a 12-54-21b |
तमुवाचाथ गाङ्गेयो वृषभः सर्वधन्विनाम्। मां पृच्छ तात विस्रब्धं मा भैस्त्वं कुरुसत्तम।। | 12-54-22a 12-54-22b |
।। इति श्रीमन्महाभारते शान्तिपर्वणि राजधर्मपर्वणि चतुःपञ्चाशोऽध्यायः।। 54।। |
12-54-2 भूतात्मा प्राणिनामन्तरात्मासि। तेन ममाभिप्रायं वेत्सीति भावः।। 12-54-11 अभिशापो लोकगर्ह्यता।।
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