महाभारतम्-12-शांतिपर्व-310
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भीष्मेण युधिष्ठिरंप्रति प्राणिनां शरीरादिसंबन्धादिप्रकारप्रतिपादकवसिष्ठकरालजनकसंवादानुवादः।। 1।।
वसिष्ठ उवाच। | 12-310-1x |
एवमप्रतिबुद्धत्वादबुद्धजनसेवनात्। सर्गकोटिसहस्राणि मरणान्तानि गच्छति।। | 12-310-1a 12-310-1b |
धाम्ना धामसहस्राणि पतनान्तानि गच्छति। तिर्यग्योनौ मनुष्यत्वे देवलोके तथैव च।। | 12-310-2a 12-310-2b |
चन्द्रमा इव भूतानां पुनस्तत्र सहस्रशः। लीयतेऽप्रतिबुद्धत्वादेवमेष ह्यबुद्धिमान्।। | 12-310-3a 12-310-3b |
कला पञ्चदशी योनिस्तद्धाम इति मन्यते। नित्यमेतं विजानीहि सोमं वै षौडशीं कलाम्।। | 12-310-4a 12-310-4b |
कलया जायते जन्तुः पुनः पुनरबुद्धिमान्। धाम तस्योपयुञ्जन्ति भूय एवोपजायते।। | 12-310-5a 12-310-5b |
षोडशी तु कला सूक्ष्मा स सोम उपधार्यताम्। न तूपयुज्यते देवैर्देवानुपयुनक्ति सा।। | 12-310-6a 12-310-6b |
एतामक्षपयित्वा हि जायते नृपसत्तम। सा ह्यस्य प्रकृतिर्दृष्टा तत्क्षयान्मोक्ष उच्यते।। | 12-310-7a 12-310-7b |
तदेवं षोडशकलं देहमव्यक्तसंज्ञिकम्। ममायमिति मन्वानस्तत्रैव परिवर्तते।। | 12-310-8a 12-310-8b |
पञ्चविंशस्तथैवात्मा तस्यैवाप्रतिबोधनात्। विमलश्च विशुद्धश्च शुद्धामलनिषेवणात्।। | 12-310-9a 12-310-9b |
अशुद्ध एव शुद्धात्मा तादृग्भवति पार्थिव। अबुद्धसेवनाच्चापि बुद्धोऽप्यबुद्धतां व्रजेत्।। | 12-310-10a 12-310-10b |
तथैवाप्रतिबुद्धोऽपि विज्ञेयो नृपसत्तम। प्रकृतेस्त्रिगुणायास्तु सेवनात्प्राकृतो भवेत्।। | 12-310-11a 12-310-11b |
करालजनक उवाच। | 12-310-12x |
अक्षरक्षरयोरेषु द्वयोः संबन्ध उच्यते। स्त्रीपुंसोश्चापि भगवन्संबन्धस्तद्वदुच्यते।। | 12-310-12a 12-310-12b |
ऋते तु पुरुषं नेह स्त्री गर्भं धारयत्युत। ऋते स्त्रियं न पुरुषो रूपं निर्वर्तयेत्तथा।। | 12-310-13a 12-310-13b |
अन्योन्यस्याभिसंबन्धादन्योन्यगुणसंश्रयात्। रूपं निर्वर्तयत्येतदेवं सर्वासु योनिषु।। | 12-310-14a 12-310-14b |
स्त्रीपुंसोरभिसंबन्धादन्योन्यगुणसंश्रयात्। ऋतौ निर्वर्त्यते रूपं तद्वक्ष्यामि निदर्शनम्।। | 12-310-15a 12-310-15b |
ये गुणाः पुरुषस्येह ये च मातृगुणास्तथा। अस्थि स्नायु च मज्जानं जानीमः पैतृकान्द्विज।। | 12-310-16a 12-310-16b |
त्वङ्भांसं शोणितं चेति मातृजान्यपि शुश्रुम। एवमेताद्द्विजश्रेष्ठ वेदे शास्त्रे च पठ्यते।। | 12-310-17a 12-310-17b |
प्रमाणं यच्च वेदोक्तं शास्त्रोक्तं यच्च पठ्यते। वेदशास्त्रप्रमाणानां प्रमाणं तत्सनातनम्।। | 12-310-18a 12-310-18b |
[अन्योन्यगुणसंरोधादन्योन्यगुणसंश्रयात्।] एवमेवाभिसंबद्धौ नित्यं प्रकृतिपूरुषौ।। | 12-310-19a 12-310-19b |
पश्यामि भगवंस्तस्मान्मोक्षधर्मो न विद्यते। अथवाऽनन्तरकृतं किंचिदेव निदर्शनम्। तन्ममाचक्ष्व तत्त्वेन प्रत्यक्षो ह्यसि सर्वथा।। | 12-310-20a 12-310-20b 12-310-20c |
मोक्षकामा वयं चापि काङ्क्षामो यदनामयम्। अदेहमजरं नित्यमतीन्द्रियमनीश्वरम्।। | 12-310-21a 12-310-21b |
वसिष्ठ उवाच। | 12-310-22x |
यदेतदुक्तं भवता देवशास्त्रनिदर्शनम्। एवमेतद्यथा चैतन्न गृह्णाति तथा भवान्।। | 12-310-22a 12-310-22b |
धार्यते हि त्वया ग्रन्थ उभयोर्वेदशास्त्रयोः। न च ग्रन्थस्य तत्त्वज्ञो यथावत्त्वं नरेश्वरः।। | 12-310-23a 12-310-23b |
यो हि वेदे च शास्त्रे च ग्रन्थधारणतत्परः। न च ग्रन्थार्थतत्त्वज्ञस्तस्य तद्वारणं वृथा।। | 12-310-24a 12-310-24b |
मारं स वहते तस्य ग्रन्थस्यार्थं न वेत्ति यः। यस्तु ग्रन्थार्थतत्त्वज्ञो नास्य ग्रन्थगुणो वृथा।। | 12-310-25a 12-310-25b |
ग्रन्थस्यार्थस्य पृष्टः संस्तादृशो वक्तुमर्हति। यथातत्त्वाभिगमनादर्थं तस्य स विन्दति।। | 12-310-26a 12-310-26b |
वस्तु संसत्सु कथयेद्ग्रन्थार्थस्थूलबुद्धिमान्। स कथं मन्दविज्ञानो ग्रन्थं वक्ष्यति निर्णयात्।। | 12-310-27a 12-310-27b |
निर्णयं चापि छिद्रात्मा न तं वक्ष्यति तत्त्वतः। सोपहास्यात्मतामेति यस्माच्चावाप्तवानपि।। | 12-310-28a 12-310-28b |
तस्मात्त्वं शृणु राजेन्द्र यथैतदनुदृश्यते। याथातथ्येन साङ्ख्येषु योगेषउ च महात्मसु।। | 12-310-29a 12-310-29b |
यदेव योगाः पश्यन्ति साङ्ख्यैस्तदवगम्यते। एकं साङ्ख्यं च योगं च यः पश्यति स बुद्धिमान्।। | 12-310-30a 12-310-30b |
त्वङ्भांसं रुघिरं मेदः पित्तं मज्जा च स्नायु च। एतदैन्द्रियकं तात तद्भवानिदमाह माम्।। | 12-310-31a 12-310-31b |
द्रव्याद्द्रव्यस्य निर्वृत्तिरिन्द्रियादिन्द्रियं तथा। देहाद्देहमवाप्नोति बीजाद्वीजं तथैव च।। | 12-310-32a 12-310-32b |
निरिन्द्रियस्याबीजस्य निर्द्रव्यस्याप्यदेहिनः। कथं गुणा भविष्यन्ति निर्गुणत्वान्महात्मनः।। | 12-310-33a 12-310-33b |
गुणा गुणेषु जायन्ते तत्रैव निविशन्ति च। एवं गुणाः प्रकृतितो जायन्ते निविशन्ति च।। | 12-310-34a 12-310-34b |
त्वङ्भांसं रुधिरं मेदः पित्तं मज्जाऽस्थि स्नायु च। अष्टौ तान्यथ शुक्रेण जानीहि प्राकृतानि वै।। | 12-310-35a 12-310-35b |
पुमांश्चैवापुमांश्चैव त्रैलिङ्ग्यं प्राकृतं स्मृतम्। न वा पुमान्पुमांश्चैव स लिङ्गीत्यभिधीयते।। | 12-310-36a 12-310-36b |
अलिङ्गात्प्रकृतिर्लिङ्गैरुपालभ्यति सात्मजैः। यथा पुष्पफलैर्नित्यमृतवो मूर्तयस्तथा।। | 12-310-37a 12-310-37b |
एवमप्यनुमानेन ह्यलिङ्गमुपलभ्यते। पञ्चविंशतिमस्तात लिङ्गेषु नियतात्मकः।। | 12-310-38a 12-310-38b |
अनादिनिधनोऽनन्तः सर्वदर्शी निरामयः। केवलं त्वभिमानित्वादगुणेष्वगुणा उच्यते।। | 12-310-39a 12-310-39b |
गुणा गुणवतः सन्ति निर्गुणस्य कुतो गुणाः। तस्मादेवं विजानन्ति ये जना गुणदर्शिनः।। | 12-310-40a 12-310-40b |
यदा त्वेष गुणनिव प्रकृतावनुमन्यते। तदा स गुणवानेव परमं नानुपश्यति।। | 12-310-41a 12-310-41b |
यत्तं बुद्धेः परं प्राहुः साङ्ख्ययोगाश्च सर्वशः। बुध्यमानं महाप्राज्ञमबुद्धपरिवर्जनात्।। | 12-310-42a 12-310-42b |
अप्रबुद्धमथाव्यक्तं गुणं प्राहुरनीश्वरम्। निर्गुणं चेश्वरं नित्यमधिष्ठातारमेव च।। | 12-310-43a 12-310-43b |
प्रकृतेश्च गुणानां च पञ्चविंशतिकं बुधाः। साङ्ख्ययोगे च कुशला बुध्यन्ते परमैषिणः।। | 12-310-44a 12-310-44b |
यदा प्रबुद्धास्त्वव्यक्तमवस्थाजन्मभीरवः। बुध्यमानं प्रबुद्धेन गमयन्ति समन्ततः।। | 12-310-45a 12-310-45b |
एतन्निदर्शनं सम्यगसम्यक्चार्थदर्शनम्। बुध्यमानाप्रबुद्धाना पृथग्पृथगरिंदम्।। | 12-310-46a 12-310-46b |
परस्परेणैतदुक्तं क्षराक्षरनिदर्शनम्। एकत्वमक्षरं प्राहुर्नानात्वं क्षरमुच्यते।। | 12-310-47a 12-310-47b |
पञ्चविंशतिनिष्ठोऽयं यदा सम्यक्प्रचक्षते। एकत्वं दर्शनं चास्य नानात्वं चाप्यदर्शनम्।। | 12-310-48a 12-310-48b |
तत्त्वनिस्तत्त्वयोरेतत्पृथग्नेव निदर्शनम्। पञ्चविंशतितत्वं तु तत्त्वमाहुर्मनीषिणः।। | 12-310-49a 12-310-49b |
निस्तत्त्वं पञ्चविंशस्य परमाहुर्निदर्शनम्। वर्गस्य वर्गमाचारं तत्त्वं तत्त्वात्सनातनम्।। | 12-310-50a 12-310-50b |
।। इति श्रीमन्महाभारते शान्तिपर्वणि मोक्षधर्मपर्वणि दशाधिकत्रिशततमोऽध्यायः।। 310।। |
12-310-9 तस्यैव प्रतिसाधनात् इति ट. थ. पाठः।। 12-310-11 तथैव प्रतिबुद्धोऽपीति थ. ध. पाठः।। 12-310-15 रत्यर्थमभिसंबन्धादिति ट. पाठः।। 12-310-27 न यः संसत्स्विति झ. पाठः।। 12-310-28 यस्माच्चैवात्मवानपीति झ. पाठः।। 12-310-29 योगेशेषु मह्यत्मस्विति ध. पाठः।। 12-310-33 निरिन्द्रियस्य बीजस्येति ट. ड. थ. पाठः।। 12-310-36 स्त्रीलिङ्गं माकृतं स्मृतमिति ड. थ. पाठः।। 12-310-42 यं तु बुद्धेः परं इति ट. पाठः। यत्तद्बुद्धेरिति झ. पाठः।। 12-310-43 सगुणं प्राहुरीश्वरमिति ट. पाठः। अगुणं प्राहुरिति झ. पाठः।। 12-310-46 असत्यत्वार्थदर्शनमिति ड.पाठः। असक्त्वार्थदर्शनमिति ट. थ. पाठः।। 12-310-49 पञ्चविंशतिकत्वं तु इति ट. पाठः। पञ्चविंशतिसर्गं तु इति झ. पाठः।।
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