महाभारतम्-12-शांतिपर्व-374
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ब्राह्मणेन नागामन्त्रणपूर्वकमिष्टदेशंप्रति प्रस्थानम्।। 1।।
ब्राह्मण उवाच। | 12-374-1x |
आश्चर्यं नात्र संदेहः सुप्रीतोस्मि भुजङ्गम। अन्वर्थोपगतैर्वाक्यैः पन्थानं चास्मि दर्शितः।। | 12-374-1a 12-374-1b |
स्वस्ति तेऽस्तु गमिष्यामि साधो भुजगसत्तम। स्मरणीयोस्मि भवता संप्रेषणनियोजनैः।। | 12-374-2a 12-374-2b |
नाग उवाच। | 12-374-3x |
अनुक्त्वा हृद्गतं कार्यं क्वेदानीं प्रस्थितो भवान्। उच्यतां द्विज यत्कार्यं यदर्थं त्वमिहागतः।। | 12-374-3a 12-374-3b |
उक्तानुक्ते कृते कार्ये मामामन्त्र्य द्विजर्षभ। मया प्रत्यभ्यनुज्ञातस्ततो यास्यसि सुव्रत।। | 12-374-4a 12-374-4b |
न हि मां केवलं दृष्ट्वा त्यक्त्वा प्रणयवानिह। गन्तुमर्हसि विप्रर्षे वृक्षमूलगतो यथा।। | 12-374-5a 12-374-5b |
त्वयि चाहं द्विजश्रेष्ठ भवान्मयि न संशयः। लोकोऽयं भवतः सर्वः का चिन्ता मयि तेऽनघ।। | 12-374-6a 12-374-6b |
ब्राह्मण उवाच। | 12-374-7x |
एवमेतन्महाप्राज्ञ विदितात्मन्भुजङ्गम। नातिरिक्तास्त्वया देवाः सर्वथैव यथातथम्।। | 12-374-7a 12-374-7b |
स एव त्वं स एवाहं योऽहं स तु भवानपि। अहं भवांश्च भूतानि सर्वे यत्र गताः सदा।। | 12-374-8a 12-374-8b |
आसीत्तु मे भोगिपते संशयः पुण्यरसंचये। सोहमुञ्छव्रतं साधो चरिष्याम्यर्थसाधनम्।। a एष मे निश्चयः साधो कृतं कारणमुत्तमम्। b आमन्त्रयामि भद्रं ते कृतार्थोऽस्मि भुजङ्गम।। | 12-374-9a 12-374-9b 12-374-10 12-374-10 |
।। इति श्रीमन्महाभारते शान्तिपर्वणि मोक्षधर्मपर्वणि चतुःसप्तत्यधिकत्रिशततमोऽध्यायः।। 374।। |
12-374-4 उक्तानुक्ते पृष्टे अपृष्टेपि मयैव वात्सल्यात्कृते सति।। 12-374-6 अहं त्वयि भक्तिमानिति शेषः।। 12-374-8 यत्र चाहं स एव त्वमेवमाह भुजङ्गमेति ट. पाठः।।
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